अर्नोल्ड बॉक्लिन (स्विट्ज़रलैंड), आइल ऑफ़ डेड, 1880.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

ऐसे कौन से संकट है जिनकी तरफ़ पूरी दुनिया का ध्यान जाता है? जब संयुक्त राज्य अमेरिका में एक क्षेत्रीय बैंक दिवालिया होने के बाद बंद हो जाता है तो मानो जैसे पूरी दुनिया ठहर गई हो। इस बैंक के डूबने का एक प्रमुख कारण यह था कि अल्पकालिक बांड की ब्याज दरें दीर्घावधि वाले बांड की ब्याज दरों से अधिक हो गईं। 10 मार्च को सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी), जो संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रौद्योगिकी स्टार्टअप के सबसे महत्वपूर्ण फाइनेंसरों में से एक रहा है, के डूबने की घटना ने पश्चिमी वित्तीय दुनिया में होने वाली व्यापक अराजकता की भविष्यवाणी कर दी है। एसवीबी के डूबने के कुछ दिनों बाद, सिग्नेचर बैंक को भी दिवालियापन का सामना करना पड़ा है, सिग्नेचर बैंक उन चुनिंदा बैंकों में था जो क्रिप्टोकरेंसी में जमा लेता था, और फिर बारी आई 1856 में स्थापित एक प्रतिष्ठित यूरोपीय बैंक क्रेडिट सुइस की जो जोखिम के दीर्घकालिक कुप्रबंधन की वजह से डूब गया (19 मार्च को इस संकट को रोकने के लिए एक आपातकालीन सौदा हुआ जिसके तहत यूएसबी क्रेडिट सुइस को ख़रीदने के लिए सहमत हो गया) सरकारों ने आपात स्थिति में ज़ूम के माध्यम से मीटिंग की, वित्तीय दिग्गजों ने केंद्रीय बैंकों और राज्यों के प्रमुखों से बात की, और समाचार पत्रों ने चेतावनी दी कि यदि जल्दी से पूरे वित्तीय ढाँचे को सुरक्षित नहीं किया गया तो पूरी व्यवस्था विफल हो जाएगी। कुछ घंटों के भीतर, पश्चिमी सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय प्रणाली को उबारने के लिए अरबों डॉलर की व्यवस्था की। इस संकट का दायरा और बढ़ने नहीं दिया जा सकता था।

दुनिया में अन्य गंभीर समस्याएँ भी हैं जिनको संकट कहा जा सकता है, लेकिन उन मामलों में वैसी त्वरित प्रतिक्रिया नहीं होती जैसी पश्चिमी सरकारों द्वारा अपनी बैंकिंग प्रणाली को मज़बूत करने के लिए की गई। तीन साल पहले, ऑक्सफ़ैम ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें पाया गया किदुनिया के 22 सबसे अमीर पुरुषों के पास अफ़्रीका की सभी महिलाओं की तुलना में अधिक संपत्ति है इस तथ्य के बावजूद कि यह असमानता बड़े पैमाने पर पश्चिमी बैंकिंग प्रणाली की लुटेरी, अविनियमित उधार प्रथाओं के कारण बढ़ती है, जिसके पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, जो एक बैंक की विफलता से अधिक चौंकाने वाला है, मगर इस दिशा में कोई कार्रवाई की जाती है कोई एजेंडा चलाया जाता है (जैसा कि हम अपने अप्रैल महीने के डोजियर, लाइफ़ ऑर डेट: स्ट्रैंगलहोल्ड ऑफ़ नियोकोलोनियलिज़्म एंड अफ़्रीकाज़ सर्च फ़ॉर अल्टरनेटिव्स में दिखाएँगे)

पिछले जनवरी में अफ़्रीकी महाद्वीप पर संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के बारे में एक रिपोर्ट आई है, जिस रिपोर्ट पर चुप्पी बनी हुई है। अफ़्रीकी संघ, अफ़्रीका के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग, अफ़्रीकी विकास बैंक और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा मिलकर तैयार की गई 2022 अफ़्रीका सतत विकास रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त विकास में विफलता के कारण, अफ़्रीकी देश अत्यधिक ग़रीबी उन्मूलन के क़रीब नहीं पाएँगे। COVID-19 महामारी से पहले, इस महाद्वीप में 445 मिलियन लोगजनसंख्या का 34% – अत्यधिक ग़रीबी में रहते थे, 2020 में उस संख्या में 30 मिलियन का और इज़ाफ़ा हो गया। रिपोर्ट का अनुमान है कि, 2030 तक, अफ़्रीकी महाद्वीप पर अत्यधिक ग़रीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 492 मिलियन तक पहुँच जाएगी। इस आपदा पर, जो लगातार जारी है, किसी प्रकार की चिंता व्यक्त नहीं की गई, अफ़्रीकी लोगों को इससे उबारने के लिए अरबों डॉलर की व्यवस्था करना तो दूर की बात है।

 

अलेक्जेंडर स्कंडर बोगोसियन (इथियोपिया), एंड ऑफ़ बिगिनिंग, 1972-1973.

 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाया कि अफ़्रीका में महिलाओं के महामारी से अधिक प्रभावित होने की संभावना है। आईएमएफ़ की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएँ स्वरोजगार के क्षेत्र में अधिक हैं इसलिए उनकी आर्थिक कठिनाइयाँ स्पष्ट तौर पर राष्ट्रीय आँकड़ों में दिखाई नहीं देती हैं। पूरे अफ़्रीका में, पिछले एक साल में लाखों लोग सड़कों पर उतरे हैं और बढ़ती महंगाई और गिरते जीवन स्तर को लेकर अपनी सरकारों से सवाल किया है, लोगों की कमाई का अधिकांश हिस्सा रोज़मर्रा के ख़र्चे में ख़त्म हो जाता है। जैसेजैसे आय में कमी होती है, और सामाजिक सेवाओं में गिरावट आती जाती हैं, वैसेवैसे महिलाएँ अपने घरों के काम का अधिकांश बोझ अपने कंधे पर उठा लेती हैंबच्चों, बूढ़ों, बीमार और भूखे लोगों की ज़िम्मेदारी उनके हिस्से जाती है। पैनअफ़्रीकी नारीवादी मंच द्वारा लिखित अफ़्रीकन फ़ेमिनिस्ट पोस्ट कोविड-19 इकॉनेमिक रिकवरी स्टेटमेंट ने इस प्रकार स्थिति का मूल्यांकन पेश किया है:

आर्थिक झटकों को झेल पाने में सक्षम होने तथा उनकी अधिक राजकोषीय अनिश्चितता के कारण महिलाओं के लिए सामजिक सुरक्षा की कमी ने विकास की उस अवधारणा की नाकामी को जगज़ाहिर कर दिया है जो उत्पादकता को अफ़्रीकी लोगों के कल्याण पर वरीयता देता है। दरअसल, कोविड-19 ने उस बात को स्पष्ट कर दिया है जिस पर नारीवादियों ने लंबे समय से ज़ोर दिया है: कि अर्थव्यवस्थाओं और बाज़ारों द्वारा अर्जित किए गए मुनाफ़े में महिलाओं की अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हैजो एक आवश्यक सेवा है, जिसे वर्तमान महामारी ने भी अपनी नीतियों में जगह नहीं दी है और ही उन्हें इसका श्रेय दिया है।

 

नाइकी डेविसओकुंडाय (नाइजीरिया), ब्यूटी इज़ एवरीवेयर, 2013.

 

8 मार्च को, अंतर्राष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस के अवसर पर पूरे अफ़्रीका में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसका एजेंडा था आम तौर पर जीवन स्तर में सामान्य गिरावट और ख़ास तौर पर महिलाओं के जीवन पर इसका प्रभाव। ऑक्सफ़ैम का वह विचारोत्तेजक बयानकि दुनिया के 22 सबसे अमीर पुरुषों के पास अफ़्रीका की सभी महिलाओं की तुलना में अधिक संपत्ति हैऔर यह अहसास कि इन महिलाओं के जीवन जीने की स्थितियाँ लगातार बिगड़ती जा रही है, तब भी दुनिया में इस संकट को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। दुनिया के अलगअलग देशों की राजधानियों के बीच आपस में किसी तरह की बातचीत नहीं हुई, केंद्रीय बैंकों के बीच कोई आपातकालीन ज़ूम मीटिंग नहीं हुई है, उन लोगों की कोई चिंता नहीं की गई जो ग़रीबी में धँसते चले जा रहे हैं क्योंकि उनके देशों ने ख़ुद को अधिक स्थायी ऋण संकट में डालकर नवउदारवादी नीतियों के लिए रास्ता बनाया है जो सामाजिक सुरक्षा पर होने वाले ख़र्च में कटौती की वकालत करते हैं। 8 मार्च को होने वाले अधिकांश विरोधों ने अपना ध्यान खाद्य और ईंधन की क़ीमतों की मुद्रास्फीति और उसकी वजह से महिलाओं के लिए पैदा होने वाली अनिश्चित स्थितियों पर केंद्रित किया। ब्राज़ील में दासजैसी श्रम प्रथाओं के ख़िलाफ़ भूमिहीन श्रमिक आंदोलन की सार्वजनिक कार्रवाई से लेकर तंज़ानिया में किसान समूहों के राष्ट्रीय नेटवर्क द्वारा लिंग आधारित हिंसा के ख़िलाफ़ प्रदर्शन, ग्रामीण और शहरी ट्रेड यूनियनों, राजनीतिक दलों तथा कई तरह के सामाजिक आंदोलनों द्वारा सड़कों पर महिलाओं का विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया, जिसमें जोसी मपामा की आवाज़ से आवाज़ मिलाकर महिलाओं ने कहा, ‘नेतृत्व करने वाली महिलाओं के लिए रास्ता बनाएँ

 

 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामजिक शोध संस्थान में हम इस बात को ट्रैक कर रहे हैं कि कैसे महामारी ने नवउपनिवेशवाद और पितृसत्ता की संरचनाओं को सख़्त कर दिया है, जिसकी परिणति कोरोनाशॉक और पितृसत्ता (नवंबर 2020) में हुई, जिसने वैश्विक स्वास्थ्य, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संकट का सामना करने के लिए लोगों की नारीवादी मांगों की एक सूची भी प्रस्तुत की। उस वर्ष की शुरुआत में, मार्च 2020 में, हमने अपनी नारीवाद शृंखला, संघर्षरत महिलाएँ, संघर्ष में महिलाएँ, का पहला अध्ययन जारी किया, जिसमें हमने बताया कि कैसे आर्थिक संकुचन और उदारवादी नीतियों के कारण अधिक महिलाएँ बेरोज़गार हो जाती हैं, महिलाओं पर उनके परिवारों और समुदायों के देखभाल की अधिक ज़िम्मेदारी जाती है, और इसकी वजह से महिलाओं की हत्या में इज़ाफ़ा भी होता है। इन भयावह स्थितियों के जवाब में, हमने दुनिया भर में महिलाओं के बढ़ते विरोध के बारे में भी लिखा। उस समय, हमने फ़ैसला किया कि इन संघर्षों में हमारे योगदानों में से एक योगदान यह होगा कि हम हमारे आंदोलनों के भीतर उन महिलाओं के इतिहास के बारे में और अधिक जानकारी इकट्ठा करें जिन्हें काफ़ी हद तक भुला दिया गया है। पिछले तीन वर्षों में, हमने तीन महिलाओंकनक मुखर्जी (भारत, 1921-2005), नेला मार्टिनेज एस्पिनोसा (इक्वाडोर, 1912-2004), और अब जोसी मपामा (दक्षिण अफ़्रीका, 1903-1979) की लघु जीवनियाँ प्रकाशित की हैं। हर साल, हम एक ऐसी महिला की जीवनी प्रकाशित करेंगे, जो कनक, नेला और जोसी की तरह, एक ऐसे समाजवाद के लिए लड़ीं, जो पितृसत्ता और वर्गीय शोषण से परे होगा।

 

1920 के दशक के अंत में पोटचेफस्ट्रूम में लॉजर के परमिट के ख़िलाफ़ विरोध अक्सर टाउन हॉल में अधिकारियों का सामना किया जाता था, टाउन हॉल पीछे है.

 

1920 के दशक की शुरुआत में, दक्षिण अफ़्रीका के अश्वेत श्रमिक वर्ग में जन्मी जोसी मपामा असंगठित क्षेत्र का हिस्सा बन गईं, उन्होंने कपड़े धोने, घर की सफ़ाई करने और खाना पकाने का काम किया। जब नस्लवादी शासन ने अफ़्रीकियों के आंदोलन को प्रतिबंधित करने के लिए नीतियों और क़ानूनों को लागू करने की कोशिश की गईं, तो जोसी राजनीति के क्षेत्र में कूद पड़ीं और सभी प्रकार के दमनचक्र का सामना किया, जिसमें पोटचेफस्ट्रूम (देश के उत्तरपश्चिम में) में लॉजर के परमिट जैसे फ़रमान शामिल हैं। दक्षिण अफ़्रीका की कम्युनिस्ट पार्टी (CPSA), जिसकी स्थापना 1921 में हुई, ने अलगाववादी क़ानूनों के ख़िलाफ़ असंख्य विरोधों की रूपरेखा तैयार की, श्रमिकों को अपनेश्रम पर अधिकार रखने और संगठित होने तथा इस शक्ति को अपने नियंत्रण में रखनेका हुनर सिखाया, जैसा कि उनके फ़्लायर ने घोषित किया था।ये तुम्हारे हथियार हैं; उनका उपयोग करना सीखो, जिससे अत्याचारी अपने घुटनों पर जाएँगे

1928 में, जोसी सीपीएसए में शामिल हुईं, उन्हें अपने सांगठनिक काम और राजनीतिक शिक्षा में भी मदद मिली। 1930 के दशक में वह जोहान्सबर्ग चली गईं और वैचारिक प्रशिक्षण के साथसाथ बुनियादी गणित और अंग्रेज़ी सिखाने के लिए एक नाइट स्कूल खोला। बाद में, जोसी सीपीएसए के शीर्ष नेतृत्व का हिस्सा बनने वाली पहली अश्वेत श्रमिक वर्ग की महिलाओं में से एक बन गईं और अंततः मॉस्को गईं और छद्म नाम रेड स्कार्फ़ का उपयोग करके कम्युनिस्ट यूनीवर्सिटी ऑफ़ ट्वायलर्स ऑफ़ ईस्ट में पढ़ाई की। पार्टी के महिला विभाग के प्रमुख के रूप में जोसी के नेतृत्व में अधिक से अधिक महिलाएँ सीपीएसए में शामिल हुईं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन मुद्दों को उठाया जाता था जिससे महिलाएँ सीधे तौर पर प्रभावित होती थीं, महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता था कि वे पुरुषों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ें।

 

फ़ेडरेशन ऑफ साउथ अफ़्रीकन वीमेन ने 17 अप्रैल 1954 को जोहान्सबर्ग के ट्रेड्स हॉल में अपना उद्घाटन सम्मेलन आयोजित किया, जहाँ जोसी नेशांति के लिए महिलाओं का संघर्षसत्र की अध्यक्षता की.

 

इतना सारा इतिहास भुला दिया गया है। समकालीन दक्षिण अफ़्रीका में फ़्रीडम चार्टर (26 जून 1955 को अपनाया गया) के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया गया है। लेकिन इस बात की कम जानकारी है कि इससे एक साल पहले, फ़ेडरेशन ऑफ़ साउथ अफ़्रीकन वीमेन (FEDSAW) ने एक महिला चार्टर (अप्रैल 1954) पारित किया था, जोजैसा कि हमने अपने अध्ययन में लिखा है – ‘आख़िरकार [यह चार्टर] रंगभेद समाप्ति के बाद दक्षिण अफ़्रीका में कुछ संवैधानिक अधिकारों का आधार बन जाने वाला था महिला चार्टर को 146 प्रतिनिधियों द्वारा पारित किया गया, जिन्होंने 2,30,000 महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया। उन प्रतिनिधियों में से एक जोसी थी, जो ट्रांसवाल अखिलमहिला संघ की ओर से सम्मेलन में शामिल हुईं और FEDSAW की ट्रांसवाल शाखा की अध्यक्ष बनीं। महिला चार्टर ने समान काम के लिए समान वेतन (जो मांग अब तक पूरी नहीं हो सकी है) और ट्रेड यूनियन बनाने के महिलाओं के अधिकार का आह्वान किया। जोसी के नेतृत्व में FEDSAW ने दक्षिण अफ़्रीका के रंगभेद शासन का ध्यान अपनी ओर खींचा, जिसका नतीजा यह हुआ कि 1955 में उन्हें राजनीति से प्रतिबंधित कर दिया गया। जोसी ने अपने FEDSAW साथियों को लिखा, ‘जोसी रहे या रहे, संघर्ष जारी रहेगा और एक दिन हमारी जीत होगी

9 अगस्त 1956 को, 20,000 महिलाओं ने दक्षिण अफ़्रीका की राजधानी प्रिटोरिया में मार्च किया और रंगभेद शासन द्वारा पारित क़ानूनों को समाप्त करने की माँग की। वह तारीख़ – 9 अगस्तअब दक्षिण अफ़्रीका में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। मार्च में शामिल महिलाओं ने नारा लगाया: वाथिंटअबाफ़ाज़ी, वाथिंटइम्बोकोडो, उज़ोकूफ़ा (‘तुम महिलाओं पर प्रहार कर रहे हो, समझो चट्टान पर प्रहार कर रहे हो, तुम कुचल दिए जाओगे‘)

स्नेहसहित

विजय