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बॉनपॉल फ़ोथ्यज़न (लाओस), रेड कार्पेट, 2015.
प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
इस तथ्य पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है कि लाओस और वियतनाम जैसे देश कोरोनावायरस का सामना करने में सक्षम रहे हैं; दोनों देशों में COVID-19 से कोई मौत नहीं हुई है। ये दोनों दक्षिण–पूर्व एशियाई देश चीन की सीमा पर स्थित हैं, और दोनों देशों के चीन के साथ व्यापार और पर्यटन संबंध हैं, जहाँ दिसंबर 2019 के अंत में पहली बार वायरस का पता चला था। हिमालय की ऊँची पर्वत शृंखलाएँ भारत को चीन से अलग करती हैं, और ब्राज़ील तथ संयुक्त राज्य अमेरिका चीन से दो सागर पार हैं; फिर भी, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील और भारत से संक्रमण और मौत की चौंकाने वाली संख्या सामने आ रही हैं। क्या कारण हैं कि लाओस और वियतनाम जैसे अपेक्षाकृत ग़रीब देश वायरस के संक्रमण चक्र को तोड़ने की कोशिशों में सफल रहे हैं, जबकि अमीर देशों में –विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में– संक्रमण और मौतें तेज़ी से बढ़ी हैं?
इस सवाल का बेहतर जवाब पाने के लिए ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की हमारी टीम लाओस और वियतनाम जैसी जगहों की सरकारों द्वारा कोरोनावायरस के तेज़ी से बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए अपनाए जा रहे उपायों का अध्ययन कर रही है। हमने तीन देशों (क्यूबा, वेनेज़ुएला, और वियतनाम) और भारत के एक राज्य (केरल) के अनुभवों को क़रीब से समझा; कोरोना आपदा पर हमारा तीसरा अध्ययन, कोरोनाशॉक और समाजवाद, इसी तफ़तीश पर आधारित है। इस अध्ययन से समाजवादी सरकार वाले देशों और पूँजीवादी व्यवस्था वाले देशों की COVID-19 प्रतिक्रिया में चार सिद्धांतिक अंतर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है:
विज्ञान बनाम मतिभ्रम:- चीनी वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने जब 20 जनवरी 2020 को कोरोनावायरस के मानव–से–मानव संचरण होने की संभावना की घोषणा की, तभी से समाजवादी सरकारों ने बंदरगाहों में प्रवेश करते समया निगरानी करने और आबादी का परीक्षण तथा कॉनटैक्ट ट्रेसिंग करना शुरू कर दिया। जनता में संक्रमण नियंत्रण से बाहर न चला जाए इसके लिए उन्होंने तुरंत कार्य बलों की स्थापना कर प्रक्रियाओं की शुरुआत कर दी। उन्होंने त्वरित कार्यवाही करने के लिए 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा वैश्विक महामारी घोषित किए जाने तक का इंतज़ार नहीं किया।
समाजवादी सरकारों की प्रतिक्रिया संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ब्राज़ील, भारत और अन्य पूँजीवादी देशों की सरकारों द्वारा चीनी सरकार और WHO के प्रति अख़्तियार मतिभ्रम के ठीक विपरीत है। वियतनाम के प्रधान मंत्री गुयेन जून्ग फुक और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के रवैयों की किसी प्रकार की कोई तुलना नहीं की जा सकती: गुयेन जून्ग फुक का रवैया शांत और विज्ञान–आधारित रहा, वहीं ट्रम्प 24 जून तक भी कोरोनावायरस का मज़ाक़ उड़ाते रहे हैं और इसकी तुलना साधारण फ़्लू से करते रहे हैं।
मिगुएल गुएरा (यूटोपिक्स, वेनेजुएला), क्यूबा के डॉक्टर्स के नाम, 2020.
अंतर्राष्ट्रीयतावाद बनाम कट्टर राष्ट्रवाद तथा नस्लवाद:– ट्रम्प और बोलसोनारो वायरस से निपटने की तैयारी में कम समय बिता रहे हैं और चीन को वायरस के लिए दोषी ठहराने में ज़्यादा; वे अपने लोगों की देखभाल करने के बजाये अपनी अक्षमता से ध्यान हटाने के लिए अधिक चिंतित हैं। यही कारण था कि WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनम घेबराएसेस ने ‘एकजुट होने, कलंकित नहीं करने’ का आह्वान किया था। कट्टर राष्ट्रवाद और नस्लवाद संयुक्त राज्य अमेरिका या ब्राज़ील को महामारी के क़हर से नहीं बचा पाए; दोनों देश गंभीर संकट में फँस चुके हैं।
दूसरी ओर, एक ग़रीब देश, वियतनाम – जिस पर हमारी जीवित स्मृति में संयुक्त राज्य अमेरिका ने बड़े पैमाने पर विनाशकारी हथियारों के साथ बमबारी की– ने वाशिंगटन डीसी को सुरक्षात्मक उपकरण भेजे हैं, और चीन तथा क्यूबा के डॉक्टर दुनिया भर में COVID-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में सहायता कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ब्राज़ील या भारत की कोई भी मेडिकल टीम कहीं भी देखने को नहीं मिल रही। नस्लवाद में लिप्त, इन देशों के भयावह रूप से अक्षम नेताओं ने अपनी जनता को बेफ़िक्री में उलझाने की कोशिश की। जनता इस लापरवाही की बहुत बड़ी क़ीमत चुका रही है। यही कारण है कि लेखिका अरुंधति रॉय ने ‘मानवता के ख़िलाफ़ अपराध’ करने के लिए ट्रम्प, मोदी, और बोलसनारो सरकारों की जाँच हेतु एक ट्रिब्यूनल के गठन का आह्वान किया था।
#CubaSalvaVidas अभियान, हमने क्यूबा में एक डॉक्टर भेजे; वो डॉक्टर लाखों में बदल गए, 2020.
सार्वजनिक क्षेत्र बनाम निजी लाभ आधारित क्षेत्र:- ‘फ़्लैटन द कर्व’ उन देशों में वास्तविकता के आगे समर्पण करने जैसा साबित हुआ है जिन्होंने स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण किया है और जिनकी जर्जर हो चुकी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियाँ महामारी को संभाल नहीं सकतीं। जैसा कि हमने डोसियर संख्या 29 (जून 2020), स्वास्थ्य एक राजनीतिक विकल्प है में दिखाया है, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों पर बढ़ते हमले के मद्देनज़र WHO ने स्वास्थ्य सेवा वितरण का निजीकरण करने के नवउदारवादी नीतियों को स्वीकारने वाले देशों में किसी भी महामारी के ख़तरे के बढ़ने के बारे में चेतावनी दी थी।
वियतनाम और क्यूबा जैसे देश अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों और वायरस से लड़ने के लिए –सुरक्षात्मक उपकरण से लेकर दवाइयों तक– जो भी आवश्यक था, उसके उत्पादन के लिए अपने सार्वजनिक क्षेत्र पर भरोसा कर सकते थे। यही कारण है कि एक ग़रीब देश वियतनाम, एक अमीर देश संयुक्त राज्य अमेरिका को सुरक्षात्मक उपकरणों की लगभग 5 लाख इकाइयाँ भेजने में समर्थ रहा।
सार्वजनिक कार्रवाई बनाम आबादी को विकेंद्रीकृत करना तथा अपंग बनाना:– 3 करोड़ 50 लाख की आबादी वाले केरल राज्य में युवाओं और महिलाओं, श्रमिकों और किसानों के कई बड़े संगठन, और कई सहकारी समितियाँ, सीधे तौर पर संक्रमण की शृंखला तोड़ने और जनता को राहत सामग्री प्रदान करने के काम में जुट गए। 45 लाख महिलाओं के एक सहकारी संगठन –कुदम्बश्री– ने बड़े पैमाने पर मास्क और हैंड सैनिटाइज़र बनाए, और ट्रेड यूनियनों ने बस स्टेशनों पर हाथ धोने के लिए हौदियों का निर्माण किया। इस प्रकार की सार्वजनिक कार्रवाइयाँ पूरी समाजवादी दुनिया में नज़र आईं; क्यूबा में क्रांति की रक्षा समितियाँ मास्क बना रहीं थीं और स्वास्थ्य अभियानों में सहयोग कर रही थीं, वेनेज़ुएला की सामुदायिक रसोइयाँ और आपूर्ति व उत्पादन की स्थानीय समितियाँ (CLAP) जनता की पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भोजन वितरण का विस्तार कर रही थीं।
सार्वजनिक कार्रवाई का यह स्तर उन्नत पूँजीवादी देशों में मुमकिन ही नहीं है, जहाँ जन–संगठन प्रतिबंधित हैं और स्वैच्छिक (वोलंटरी) कार्रवाई का ग़ैर-लाभकारी संगठनों में व्यवसायीकरण हो चुका है। यह विडंबना है कि इन बड़े लोकतंत्रों में जनता व्यक्तिवादी हो चुकी है, और सरकारों की कार्रवाई पर भरोसा करने लगी है, जो कि ज़रूरत की इस घड़ी में ग़ायब हैं।
हीप ले डच (वियतनाम), घर पर रहना अपने देश से प्यार करना है!, 2020.
इन्हीं कारणों से लाओस और वियतनाम में COVID- 19 से कोई मौत नहीं हुई, और क्यूबा और केरल संक्रमण की दर कम करने में सफल रहे हैं। यदि नवउदारवादी नीतियाँ अपनाने वाले वेनेज़ुएला के पड़ोसी देशों (ब्राज़ील और कोलम्बिया) में इतने लोग संक्रमित न हुए होते तो, वेनेज़ुएला में संक्रमितों की संख्या और भी कम होती। हालाँकि वेनेज़ुएला में COVID-19 से हुई कुल 89 मौतें ब्राज़ील में हुई 72,151, अमेरिका में हुई 1,37,000, और कोलंबिया में हुई 5,307 मौतों से बहुत कम है। यह ध्यान देने योग्य है कि मौत के आँकड़ों में इतना फ़र्क़ होने के बावजूद, वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति मदुरो अभी भी न केवल बीमारी की गंभीरता पर ज़ोर दे रहे हैं, बल्कि ख़त्म हो चुकी 89 ज़िंदगियों की क़ीमत को लेकर भी गंभीर हैं।
लेकिन लाओस, वियतनाम, क्यूबा और वेनेज़ुएला जैसे देशों के सामने गंभीर चुनौतियाँ खड़ी हैं, भले ही वो वायरस को रोकने में काफ़ी हद तक सफल हो चुके हैं। क्यूबा और वेनेज़ुएला पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा निर्धारित कड़े प्रतिबंधों का ख़तरा लगातार बना हुआ है; दोनों देश आसानी से चिकित्सा आपूर्ति न तो प्राप्त कर सकते हैं न ही उसके लिए भुगतान ही कर सकते हैं।
लाओस के एक सरकारी अधिकारी ने मुझसे कहा, ‘हमने वायरस के संकट को पराजित किया। अब ऋण संकट हमें पराजित कर देगा, [वो संकट] जिसे हमने उत्पन्न नहीं किया।‘ केवल इसी साल लाओस को अपने बाहरी ऋण चुकाने के लिए 90 करोड़ डॉलर का भुगतान करना पड़ेगा; जबकि इसकी कुल विदेशी विनिमय संग्रह राशि 10 करोड़ डॉलर से कम की है। पूर्ण रूप से ऋण रद्द न होने के कारण, कोरोनावायरस मंदी ने इन समाजवादी सरकारों के लिए एक गंभीर चुनौती पैदा कर दी है, जो कि बहादुरी से महामारी का प्रबंधन करने में सक्षम रही हैं। इस संदर्भ में ऋण रद्द करने का आह्वान जीवन–मरण का मसला है। यही कारण है कि ये माँग कोविड-19 के बाद दक्षिणी गोलार्ध के देशों के लिए दस एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मेरा दिमाग़ अच्छी वजहों से आज से पहले के युग में मानवता के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले कवियों और क्रांतिकारियों की ओर विचरने लगा है। दो ईरानी कवि याद आए, शाह की तानाशाही ने अलग-अलग तरीक़े से जिनकी हत्या कर दी थी: फ़रोग़ फ़रोख़ज़ाद (1934-1967) और ख़ुसरो गोल्सोरख़ी (1944-1974)। फ़रोखज़ाद की अद्भुत कविता, Someone Who Is Not Like Anyone (कोई हो जो किसी और जैसा न हो), किसी के आने की तीव्र इच्छा व्यक्त करती है, वो जो आएगा और ‘रोटी बाँटेगा’, ‘काली–खाँसी की दवा बाँटेगा’, और ‘अस्पताल के एड्मिशन नम्बर बाँटेगा।‘ एक रहस्यमयी कार दुर्घटना में फ़रोखज़ाद की मृत्यु हो गई थी।
गोल्सोरख़ी पर शाह के बेटे को मारने की साज़िश रचने का आरोप था। अपनी न्यायिक जाँच में, उन्होंने घोषणा की, ‘एक मार्क्सवादी होने के नाते, मेरा संबोधन जनता और इतिहास से है। तुम मुझ पर जितने ज़्यादा हमले करोगे, उतना ही मैं तुम से दूर होता जाऊँगा और लोगों के उतना ही क़रीब। यदि तुम मुझे दफ़न भी कर दो –जो कि तुम निश्चित रूप से करोगे– तो लोग मेरी लाश से झंडे और गीत बना लेंगे।‘ वे अपने पीछे कई गीत छोड़ गए, जिनमें से एक से हमारे न्यूज़लेटर को शीर्षक मिला है; ये गीत हमारे समय की अनिश्चितता के विपरीत हमें प्रेरणा देता है:
हमें एक दूसरे से प्यार होना चाहिए!
हमें कैस्पियन [सागर] की तरह गरजना चाहिए
भले ही हमारी चीख़ें सुनी न जाएँ
हमें उन्हें इकट्ठा करना चाहिए।
दिल की हर धड़कन हमारा गीत होना चाहिए
ख़ून की लालिमा, हमारा परचम
हमारे दिल, परचम और गीत।
स्नेह–सहित, विजय।
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