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चित्तप्रसाद (भारत), शांति का आह्वान, 1952.
प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
23 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने युद्ध रोकने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘वायरस का प्रकोप युद्ध की मूर्खता को दर्शाता है।’ सशस्त्र संघर्ष अवस्थिति व कार्यक्रम डेटा प्रोजेक्ट (ACLED) की एक हालिया रिपोर्ट में लिखा है कि, ‘विश्व में युद्ध रोकने के आह्वान का वांछित परिणाम नहीं निकला है।’ अफ़ग़ानिस्तान से लेकर यमन तक युद्ध के नगाड़े बज ही रहे हैं, और युद्ध से उत्पन्न अशांति और उदासी ही सामाजिक जीवन को परिभाषित करती है।
वैश्विक महामारी न केवल तत्काल कार्रवाई का समय है; बल्कि यह सोचने का समय है, अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने का समय है। लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया जिनकी युद्ध करने की आदत है और जिनमें जंगली सूअर जैसा धीरज है। संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार, COVID-19 की गंभीरता के बावजूद, चीन के साथ एक भ्रामक युद्ध करने की अंधाधुंध कोशिश कर रही है, उसे वायरस के लिए दोषी ठहराते हुए, हर मौक़े पर उसे नष्ट करने की धमकी दे रही है। यूएस इंडो-पैसिफ़िक कमांड ने चीन को डराने के मक़सद से मिसाइल दीवार बनाने के लिए 20 बिलियन डॉलर अतिरिक्त धन की मांग की है (नेशनल डिफ़ेंस औथोराईज़ेशन ऐक्ट (NDAA 20): रीगेन द ऐडवान्टेज नामक एक दस्तावेज़ में ऐसा कहा गया है)। ग्रेट लॉकडाउन के बीच, युद्ध का माहौल तैयार हो रहा है। जब हम मनुष्यों को सहयोग के तरीक़े खोजने चाहिए, तब युद्ध की ओर बढ़ना पागलपन है।
वोज़कीच फ़ैंगर (पोलैंड), कोरियन माँ (1951), वारसॉ में राष्ट्रीय संग्रहालय
18वें न्यूज़लेटर (2020) में, मैंने अब्दुल्ला एल हरीफ़ से चीन के ख़िलाफ़ युद्धोन्माद के बारे में उनका साक्षात्कार लिया था। एल हरीफ़ डेमोक्रेटिक वे (मोरक्को के एक वामपंथी दल) के संस्थापक हैं; वह इसके पहले राष्ट्रीय सचिव भी थे और अब बतौर उप राष्ट्रीय सचिव अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रभारी हैं। एल हरीफ़ एक इंजीनियर हैं जिन्होंने माइन्स पेरिस टेक में पढ़ाई की थी। वो मोरक्को के एक गुप्त संगठन के सदस्य भी थे, जिसने किंग हसन II की तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी और लोकतंत्र तथा समाजवाद के लिए संघर्ष में अपनी भूमिका के लिए सत्रह साल तक जेल में रह चुके हैं। एल हरीफ़ और मैंने शांति के लिए एक अपील का मसौदा तैयार किया है। हम आशा करते हैं कि इसे आप पढ़ेंगे और दूसरों को भी पढ़ने के लिए कहेंगे।
15 मार्च 1950 को विश्व शांति परिषद ने स्टॉकहोम अपील जारी की। यह एक छोटा-सा लेख था जिसमें परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया गया था और जिसपर अंततः लगभग 20 लाख लोगों ने हस्ताक्षर किया। ये अपील तीन बेहतरीन बिंदुओं पर आधारित थी:
अब, 70 साल बाद, परमाणु हाथियार कहीं ज़्यादा घातक है, और यहाँ तक कि पारंपरिक हथियार भी संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से ज़्यादा ख़तरनाक हैं। 1950 में, दुनिया में 304 परमाणु हथियार थे (संयुक्त राज्य अमेरिका में 299), जबकि अब दुनिया में 13,355 हैं (संयुक्त राज्य अमेरिका में 5,800); और 2020 के परमाणु हथियार इस भयानक तकनीक के शुरुआती वर्षों की तुलना में कहीं ज़्यादा विनाशकारी है। स्टॉकहोम अपील जैसी कोई अपील आज बेहद ज़रूरी है।
सामूहिक विनाश के हथियारों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करना कोई छोटा मुद्दा नहीं है; बल्कि ये संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में काम कर रहे देशों के उस समूह की ओर सीधे इशारा करना है, जो अपने वैश्विक प्रभुत्व को बनाए रखने और अपने प्रभुत्व का विस्तार करने के लिए बल का उपयोग करने के आदी हैं। इस वैश्विक महामारी के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका चीन, ईरान और वेनेजुएला के ख़िलाफ़ संघर्ष को बढ़ाने की धमकियाँ दे रहा है, वेनेजुएला के बंदरगाहों से पूरी तरह से व्यापार रोकने के लिए एक नौसेना वाहक समूह भेजा गया, और अंतर्राष्ट्रीय जलसीमा पर ईरानी नौकाओं के अधिकार को चुनौती देने के लिए फ़ारस की खाड़ी में जहाज़ उतारे गए। इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि वो चीन के चारों ओर आक्रामक मिसाइल बैट्रियाँ और एंटी-मिसाइल रडार की व्यूह रचना करेगा। चीन, ईरान और वेनेजुएला में से किसी भी देश ने संयुक्त राज्य अमेरिका के ख़िलाफ़ कोई आक्रामक क़दम नहीं उठाया है; संयुक्त राज्य अमेरिका ही है जिसने इन देशों पर संकट थोपा है। यदि किसी अपील का मसौदा आज के संदर्भ में तैयार किया जाना है, तो वो नर्म और सब के लिए एक समान नहीं हो सकता। हमारे समय में शांति के लिए कोई भी आह्वान विशेष रूप से वाशिंगटन डीसी से शुरू होने वाले लेकिन अन्य देशों द्वारा भी अंजाम दिए जाने वाले साम्राज्यवादी युद्ध के ख़िलाफ़ एक आह्वान होना चाहिए।
पॉल रेबिरोल (फ्रांस), विएत–नाम के बुद्धिजीवियों का दिन, 1968
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा युद्ध की स्थिति थोपने का हमारा आकलन चार बिंदुओं पर आधारित है:
हमीद इवाइस (मिस्र), अल ज़ाइम व ता’मीम अल कनाल (नासर और नहर का राष्ट्रीयकरण), 1957
एसेला पेरेज़ (क्यूबा), शांति ही भविष्य है, युवाओं और छात्रों का 11 वाँ विश्व महोत्सव, हवाना, क्यूबा,1978
जिस दुनिया में स्टॉकहोम अपील लिखी गई थी, वह आज की दुनिया से बहुत अलग थी। अब एक नयी अपील की ज़रूरत है। हमने बोफ़िशा, ट्यूनीशिया में इस पर चर्चा करते हुए इसे लिखा है; इसलिए इसे बोफ़िशा अपील का नाम दिया है।
हम, दुनिया के लोग:
अहमद मोफ़ीद (फिलिस्तीन), महदी अमेल, 2020
18 मई 1987 को बेरूत की सड़कों पर हसन हमदान (महदी अमेल) को मार डाला गया। महदी अमेल आज भी अरब दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण मार्क्सवादी विचारकों में से एक हैं। आज के बदरंग दौर में उनकी सबसे महत्वपूर्ण और सबसे काव्यत्मक पंक्तियाँ हमें उम्मीद से भर देती हैं:
तुम हारे नहीं हो,
जब तक तुम विरोध कर रहे हो।
11 मई 2020 को, महदी अमेल की साथी और इस न्यूज़लेटर की एक उत्साही पाठक, एवलिन हमदान का देहांत हो गया। यह न्यूज़लेटर हमारी कॉमरेड एवलिन और उनके बच्चों को समर्पित है।
स्नेह-सहित,
विजय
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