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Spiridonov Yuri Vasilyevich (Sakha), Landlord of the Moma Mountains, 2006.

स्पिरिदोनोव यूरी वासिलीविच (सखा), मोमापहाड़ों का ज़मींदार, 2006.

 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

1996 में, आर्कटिक सागर के किनारे पर बसे आठ देशों ने ओटावा घोषणा के आधार पर आर्कटिक परिषद का गठन किया था। ये आठ देश हैं कनाडा, डेनमार्क, फ़िनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका। परिषद के गठन की प्रक्रिया 1989 में शुरू हुई थी, जब फ़िनलैंड ने आर्कटिक के पर्यावरण के बारे में चर्चा करने के लिए अन्य देशों से संपर्क किया था। फ़िनलैंड की पहल से रोवनेमी घोषणा (1991) अस्तित्व में आई जिसके तहत आर्कटिक पर्यावरण संरक्षण रणनीति की स्थापना हुई।

इन सरकारों के लिए चिंता का मुख्य कारण था आर्कटिक पर वैश्विक प्रदूषण और उसकी वजह से पर्यावरणीय ख़तरोंका प्रभाव, जिनके परिणामस्वरूप आर्कटिक पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश हो रहा था। उस समय तक, आर्कटिक आइसकैप के पिघलने के बारे में कोई समझ नहीं थी (इस ख़तरे के बारे में आम सहमति 2006 में जियांगडोंग झांग और जॉन वॉल्श जैसे वैज्ञानिकों द्वारा 2007 की जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल की चौथी आकलन रिपोर्ट के लिए किए गए शोध से बनी थी) आर्कटिक परिषद के कार्यक्षेत्र का विस्तार कर उसमें जलवायु परिवर्तन का आकलन और क्षेत्र में विकास को भी शामिल कर दिया गया।

रेक्जाविक (आइसलैंड) में आर्कटिक परिषद की 2021 की मंत्रिस्तरीय बैठक में, रूस ने दो साल के लिए अध्यक्षता संभाली। 3 मार्च 2022 को, रूस को छोड़कर, परिषद के सभी सदस्यों ने इसकी बैठकों में भाग लेने से तब तक के लिए इनकार कर दिया, जब तक कि मॉस्को उसका अध्यक्ष बना रहेगा। जून में, ये सात देश उन परियोजनाओं पर आर्कटिक परिषद के काम की सीमित बहालीलागू करने पर सहमत हुए जिनमें रूसी संघ की भागीदारी शामिल नहीं होगी कुल मिलाकर, आर्कटिक परिषद का भविष्य दाव पर है।

 

Andreas Alariesto (Sápmi), Away, Bad Spirit, 1976.

एंड्रियास अलारिस्टो (सामी), अवे, बुरी आत्मा, 1976.

 

वास्तव में, आर्कटिक क्षेत्र में समस्याएँ आर्कटिक परिषद के विघटन की प्रक्रिया के साथ शुरू नहीं हुई थीं। इसकी शुरुआत एक दशक से भी पहले ही हो गई थी, जब इन आठ देशों ने आर्कटिक पर नियंत्रण के लिए उछल कूद शुरू की थी। वे नियंत्रण बर्फ़ पिघलने के ख़तरों को रोकने के लिए नहीं, बल्कि आर्कटिक सर्कल (66° उत्तर से ऊपर) के 21 मिलियन वर्ग किलोमीटर के दायरे में मौजूद खनिजों, धातुओं और जीवाश्म ईंधन का दोहन करने के लिए करना चाहते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि आर्कटिक में दुनिया का 22% अनदेखा तेल और प्राकृतिक गैस है, हालाँकि इस क्षेत्र से खनिज और तेल निकलाने की प्रक्रिया महंगी पड़ेगी। लेकिन दुर्लभ खनिजों (जैसे कैपेसिटर और इलेक्ट्रिक मोटर्स में इस्तेमाल होने वाले नियोडिमियम तथा मैग्नेट तथा लेज़र में इस्तेमाल होने वाले टेरबियम) का खनन बहुत फ़ायदेमंद है। ग्रीनलैंड के क्वानेफजेल्ड से लेकर नॉर्वे के कोबा प्रायद्वीप और कनाडाई शील्ड तक, पूरे आर्कटिक क्षेत्र में मौजूद खनिजों की क़ीमत अरबों डॉलर के बराबर है। हर आर्कटिक देश अब पिघल रही बर्फ़ के नीचे मौजूद इन क़ीमती संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए क्षेत्र पर दावा करने की होड़ में लगा है।

आर्कटिक में आधे से ज़्यादा हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र में पड़ता है और इस क्षेत्र के देशों की महाद्वीपीय सीमाओं से लगता है। इसलिए आर्कटिक का नियंत्रण काफ़ी हद तक संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून संधि (UNCLOS) के तहत होता है। संयुक्त राष्ट्र के 168 सदस्य देश इस संधि का पालन करते हैं। UNCLOS देशों को उनके तट की निम्नजल रेखा से बारह समुद्री मील तक संप्रभुता और उस निम्नजल चिह्न से 200 समुद्री मील की दूरी पर विशेष आर्थिक क्षेत्रबनाने का अधिकार देता है। इस मानक का मतलब है कि आर्कटिक में खनन या निष्कर्षण काफ़ी हद तक केवल इस क्षेत्र के देश ही कर सकते हैं और यह प्रक्रिया बहुपक्षीय नियंत्रण से बाहर है। हालाँकि, देशों की संप्रभुता UNCLOS द्वारा प्रस्तुत की गई आम समझ से संचालित होती है कि समुद्र तल मानवता की सामान्य विरासतहै और इसकी पड़ताल तथा दोहन देशों की भौगोलिक स्थिति के बावजूद, संपूर्ण मानव जाति के लाभ के लिए किया जाना चाहिए

 

Lucy Qinnuayuak (Kinngait), Children Followed by Bird Spirit, 1967.

लुसी किनुआयुक (इनुइट, केप डोरसेट), बच्चों के पीछे पंछीनुमा भूत, 1967.

 

UNCLOS के आधार पर, संयुक्त राष्ट्र ने उस संधि को लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) बनाया। किंग्स्टन (जमैका) में स्थित आईएसए, अब एक खनन संहिता पर काम कर रहा है, जिससे देशों को समुद्र तल में खनन करने की अनुमति मिल जाएगी। यह संहिता आईएसए के क़ानूनी और तकनीकी आयोग द्वारा विकसित की जा रही है, जिसमें हर पाँचवाँ सदस्य किसीकिसी खनन कंपनी से है। आर्कटिक सहित, समुद्र में खनन पर रोक की कोई संभावना नहीं दिखती, जिसमें आर्कटिक भी शामिल है (जबकि 1959 की अंटार्कटिक संधि प्रभावी रूप से उस महाद्वीप में खनन पर प्रतिबंध लगाती है) खनन कंपनियों के पक्ष में बनी खनन संहिता केवल शोषण को बढ़ाएगी, बल्कि प्रमुख शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ाएगी। इस प्रतिस्पर्धा ने पहले से ही संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल देशों तथा चीन और रूस जैसे देशों के बीच नये शीत युद्ध को तेज़ कर दिया है। इन तनावों के कारण पहले ही आर्कटिक का तेज़ी से सैन्यीकरण हो चुका है।

आर्कटिक परिषद के सभी सदस्य पहले से ही आर्कटिक के किनारे पर सैन्य ठिकाने विकसित कर चुके हैं। रूसी वैज्ञानिकों ने 2007 में उत्तरी ध्रुव से 4200 मीटर नीचे आर्कटिक समुद्र तल पर एक टाइटेनियम ध्वज लगाया था। इस प्रतीकात्मक जीत के बाद से आर्कटिक पर पकड़ बनाने की दौड़ और तेज़ हो गई है। इस भौगोलिक अभियान का नेतृत्व करने वाले रूसी खोजकर्ता अर्तुर चिलिंगारोव का कहना है कि विज्ञान और जलवायु परिवर्तन की चिंता ने उन्हें प्रेरित किया था; उन्होंने कहा, ‘आर्कटिक की रक्षा शब्दों से नहीं, बल्कि कर्मों से की जानी चाहिए संयुक्त राज्य अमेरिका के पास पहले से ही आर्कटिक सर्कल के अंदर एक सैन्य आधार था; ग्रीनलैंड पर औपनिवेशिक राज करने वाला देश डेनमार्क जब नाटो में शामिल हुआ, तब 1950 के दशक में ग्रीनलैंड ऐन थुले एयर बेस बनाया गया था। आर्कटिक के अन्य तटीय देशों के सैन्य बल भी लंबे समय से उत्तर की बर्फ़ को पार करते रहे हैं, लेकिन यह सैन्य उपस्थिति हाल के वर्षों में निश्चित रूप से बढ़ी है (उदाहरण के लिए, कनाडा ने हाल ही में बाफिन द्वीप, नुनावुत पर नानिसिविक नौसेना सुविधा का निर्माण किया है, जो 2023 में बनकर तैयार हो जाएगा। उधर रूस ने एलेक्जेंड्रा लैंड में नगर्सकोय एयर बेस तथा कोटलनी द्वीप पर टेंप एयर बेस की मरम्मत की है।

 

Sivtsev Ellay Semenovitch (USSR), On the Bull, 1963.

एले शिवत्सेव (यूएसएसआर), सांड पर सवार, 1963.

 

आर्कटिक परिषद उन कुछ बहुपक्षीय संस्थानों में से एक थी जिसका उद्देश्य था अटलांटिक तटवर्ती शक्तियों के बीच संचार विकसित करना। लेकिन अब, उनमें से सात देशों ने परिषद में भाग नहीं लेने का फ़ैसला किया है। उनमें से पाँच सदस्यकनाडा, डेनमार्क, आइसलैंड, नॉर्वे और संयुक्त राज्य अमेरिकापहले से ही नाटो का हिस्सा हैं, और दो और सदस्योंफ़िनलैंड और स्वीडनको नाटो में तेज़ी से शामिल किया जा रहा है। क्षेत्र में निर्णय लेने की ताक़त तेज़ी से आर्कटिक परिषद से नाटो के हाथ में जा रही है। क्षेत्र में नाटो के संचालन का केंद्र नॉर्वे में रहा है, जो कि नाटो के उत्कृष्टशीत मौसम संचालन केंद्र की मेज़बानी करता है और 2006 के बाद से नाटो सहयोगियों के लिए आर्कटिक में कोल्ड रिस्पांस नामक द्विवार्षिक सैन्य अभ्यास आयोजित करता है। 

2019 में, अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ रोवानीमी (फ़िनलैंड) में आयोजित आर्कटिक परिषद की बैठक में गए थे और वहाँ उन्होंने चीन पर आर्कटिक में पर्यावरण विनाश का आरोप लगाया। चीन निश्चित रूप से पोलर सिल्क रोड परियोजना चला रहा है, लेकिन इस बात का कोई वास्तविक प्रमाण नहीं है कि चीन नेविशेष रूप सेउत्तरी समुद्री मार्गों में हानिकारक भूमिका निभाई है। चीन के बारे में यह टिप्पणीऔर आर्कटिक में रूस के बारे में अन्य टिप्पणियाँनये शीत युद्ध का हिस्सा हैं। अमेरिकी रक्षा विभाग ने अपनी आर्कटिक रणनीति (2019) जारी की, जिसमें प्रतिस्पर्धा कॉरिडर के रूप में क्षेत्र का लाभ उठाने के लिए चीन और रूस की क्षमता को सीमित करनेपर ज़ोर दिया गया था (अमेरिकी वायु सेना की 2020 आर्कटिक रणनीति में भी इस बात को दोहराया गया था)

 

Per Enoksson (Sápmi), Sing, Sing, Sing-along Song, 2008–2010.

पर एनोक्ससन (सामी), गाओ, गाओ, गाओ एक लंबा गीत, 2008-10.

 

अक्टूबर 2022 में, आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक ने वार्षिक आर्कटिक सर्कल सभा की मेज़बानी की। रूस को छोड़कर, जिसे बुलाया नहीं गया था, सभी प्रमुख शक्तियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था। आइसलैंड के पूर्व राष्ट्रपति ओलाफुर राग्नर ग्रिम्सन, जिनका नाम पनामा पेपर्स भ्रष्टाचार घोटाले में आया था, ने नाटो सैन्य परिषद के अध्यक्ष नॉर्वेजियन एडमिरल रॉब बाउर द्वारा दिए गए मुख्य भाषण की अध्यक्षता की। बाउर ने कहा कि नाटो को रूस और चीन को बढ़ने से रोकने के लिए आर्कटिक में अधिक शक्तिशाली उपस्थिति बनानी चाहिए। बाउर ने चीन और रूस के लिए कहा कि वो एक सत्तावादी शासन है जो हमारे मूल्यों को साझा नहीं करता और नियमआधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को कमज़ोर करता है चीन के पोलर सिल्क रोड के बारे में एडमिरल बाउर ने कहा, यह केवल एक ढाल है जिसमें चीनी नौसेना संरचनाएँ प्रशांत से अटलांटिक तक और अधिक तेज़ी से आगे बढ़ सकें, और पनडुब्बियाँ अटलांटिक में शरण ले सकें

आइसलैंड में चीन के राजदूत, हे रुलोंग, ने चर्चा के दौरान अपनी सीट से उठकर नाटो एडमिरल से कहा, ‘आपका भाषण अहंकार और व्यामोह से भरा है। आर्कटिक एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ उच्च सहयोग और कम तनाव होना चाहिए। जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो आर्कटिक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है हे रुलोंग के हस्तक्षेप के बाद ग्रिम्सन ने सत्र का अंत किया। हॉल में शांत हँसी सुनाई दे रही थी।

 

Maria Petrovna Vyucheyskaya (USSR), Going to a Demonstration, 1932–1933.

मारिया पेत्रोव्ना व्याचेस्काया (यूएसएसआर), वे एक प्रदर्शन में जा रहे हैं, 1933-34.

 

नये शीत युद्ध की इन अधिकांश चर्चाओं में वे आदिवासी समुदाय अनुपस्थित हैं जो आर्कटिक के वासी हैं: जैसे अलेउत, और यूपिक (संयुक्त राज्य अमेरिका), इनुइट (कनाडा, ग्रीनलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका), चुची, ईवनक, खांटी, नेनेट्स, और याकूत या सखा (रूस), और सामी (फ़िनलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन) आर्कटिक काउंसिल में उनका प्रतिनिधित्व छह संगठन करते हैंअलेउत इंटरनेशनल एसोसिएशन, आर्कटिक अथाबास्कन काउंसिल, ग्विचइन काउंसिल, इनुइट सर्कम्पोलर काउंसिल, रायपोन (उत्तर के स्वदेशी लोगों का रूसी संघ), और सामी परिषद। ये संगठन आर्कटिक के आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन इन बढ़ते टकरावों में उनकी आवाज़ दबाई जा रही है।

आदिवासी लोगों की आवाज़ की इस चुप्पी ने मुझे निल्सअसलक वाल्केपा (1943-2001) की याद दिला दी, जो महान सामी कलाकार थे, जिनकी कविता हवा की आवाज़ की तरह गूँजती है:

क्या आप जीवन की आवाज़ सुन सकते हैं

नाले की गर्जना में

हवा के झोंके में

मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ

बस इतना ही।

स्नेहसहित

विजय।

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