चित्तप्रसाद, भारत के मज़दूर पढ़ते हुए.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

अक्टूबर 2021 में, संयुक्त राष्ट्र के विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने वैश्विक बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक 2021 जारी किया, जिस पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया। इस रिपोर्ट का उपशीर्षक था नस्ल, जाति और लिंग के आधार पर असमानताओं को उजागर करना। प्रति दिन 1.90 डॉलर की आय को ग़रीबी रेखा मापने का अंतर्राष्ट्रीय पैमाना मानने की तुलना में ‘बहुआयामी ग़रीबी’ ग़रीबी मापने का कहीं अधिक सटीक पैमाना है। स्वास्थ्य (पोषण, बाल मृत्यु दर), शिक्षा (स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति), और जीवन स्तर (खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, संपत्ति) जैसे तीन विषयों से जुड़े दस संकेतकों में इसे विभाजित किया गया है। इस टीम ने 109 देशों में बहुआयामी ग़रीबी का अध्ययन किया और 590 करोड़ लोगों की जीवन स्थितियों को देखा। उन्होंने पाया कि 130  करोड़ लोग -यानी पाँच में से एक लोग- बहुआयामी ग़रीबी में रहते हैं:

1. इनमें से आधे लोग यानी लगभग 64.4 करोड़ लोग 18 साल से कम उम्र के बच्चे हैं।

2. इनमें से लगभग 85 प्रतिशत उप-सहारा अफ़्रीका और दक्षिण एशिया में रहते हैं।

3. इनमें से सौ करोड़ लोग खाना पकाने के ठोस ईंधन का इस्तेमाल करते हैं (जिससे साँस सम्बंधी बीमारियाँ होती हैं), निम्नस्तरीय आवास व अपर्याप्त स्वच्छता में रहते हैं।

4. 56.8 करोड़ लोगों के पास पीने के साफ़ पानी की कमी है, और इसे हासिल करने के लिए उन्हें आने-जाने में आधे घंटे से ज़्यादा का समय लगता है।

5. 78.8 करोड़ बहुआयामी ग़रीब लोगों के घर में कम-से-कम एक कुपोषित व्यक्ति रहता है।

6. इनमें से लगभग 66 प्रतिशत लोग ऐसे घरों में रहते हैं जहाँ किसी ने स्कूली शिक्षा के कम-से-कम छह साल भी पूरे नहीं किए हैं।

7. 67.8 करोड़ लोगों की बिजली तक पहुँच नहीं है।

8. 55 करोड़ लोगों के पास अध्ययन में दी गई आठ प्रकार की संपत्तियों (रेडियो, टेलीविज़न, टेलीफ़ोन, कंप्यूटर, पशु गाड़ी, साइकिल, मोटरसाइकिल, या रेफ़्रिजरेटर) में से सात नहीं हैं। उनके पास कार भी नहीं है।

यूएनडीपी रिपोर्ट में दिए गए आँकड़े अन्य शोधकर्ताओं द्वारा दिए गए आँकड़ों के मुक़ाबले काफ़ी कम हैं। जैसे कि इस रिपोर्ट के अनुसार जिनके पास बिजली नहीं है ऐसे लोगों की संख्या है 67.8 करोड़ है। लेकिन विश्व बैंक के आँकड़ों से पता चलता है कि साल 2019 में, दुनिया के 90 प्रतिशत आबादी की बिजली तक पहुँच थी, जिसका मतलब है कि 120 करोड़ लोगों के पास बिजली नहीं थी। 2020 के एक महत्वपूर्ण अध्ययन से पता चलता है कि 350 करोड़ लोगों की बिजली तक ‘यथोचित विश्वसनीय पहुँच’ नहीं है। यह आँकड़ा यूएनडीपी की रिपोर्ट में दी गई कुल संख्या से कहीं अधिक है। विशिष्ट आँकड़े भले कुछ अलग हों, लेकिन ये सभी एक ही ट्रेंड दिखाते हैं। हम एक ऐसे ग्रह पर रहते हैं जहाँ असमानताएँ लगातार बढ़ रही हैं।

यूएनडीपी ने पहली बार असमानताओं के बारीक पहलुओं पर ध्यान दिया है और वंश, नस्ल तथा जाति के सामाजिक पदनुक्रमों के आधार पर असमानताओं को उजागर किया है। सामाजिक पदानुक्रम -जहाँ अतीत की विरासत मानव गरिमा पर तीखा हमला करती रहती है- से बुरा कुछ भी नहीं है। 41 देशों के आँकड़ों को देखते हुए, यूएनडीपी ने पाया कि बहुआयामी ग़रीबी उन लोगों को असमान रूप से प्रभावित करती है जो सामाजिक भेदभाव का सामना करते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (‘अनुसूचित’ क्योंकि सरकार उन्हें आधिकारिक तौर पर नामित समूहों के रूप में मान्यता देती है) के लोग सबसे ज़्यादा ग़रीबी और ग़ैर-बराबरी का सामना करते हैं, जो कि उनकी दरिद्रता को भी बढ़ाता है। बहुआयामी ग़रीबी से जूझ रहे छ: में से पाँच लोग अनुसूचित जाति और जनजाति से हैं। 2010 के एक अध्ययन से पता चला है कि हर साल भारत में कम-से-कम 6.3  करोड़ लोग (यानी हर सेकंड दो लोग) स्वास्थ्य पर अपनी जेब से ख़र्च करने के कारण ग़रीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान, ये संख्या और बढ़ गई है, हालाँकि सटीक आँकड़े इकट्ठा करना आसान नहीं रहा है। और बहुआयामी ग़रीबी से जूझ रहे छ: में से पाँच लोग -जो कि अधिकांशत: अनुसूचित जाति और जनजाति से हैं- की स्वास्थ्य देखभाल तक कोई पहुँच ही नहीं है और इसलिए वे इस उपरोक्त आँकड़े में शामिल भी नहीं हैं। ये समुदाय औपचारिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली से लगभग बाहर हैं, जो कि इन समुदायों के लिए महामारी के दौरान विनाशकारी साबित हुआ।

 

 

 

पिछले साल, एएलबीए-टीसीपी (बोलिवेरियन अलायंस फ़ॉर द पीपुल्स ऑफ़ आवर अमेरिका – पीपुल्स ट्रेड ट्रीटी) के महासचिव, साचा लोरेंटी ने ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और कराकास, वेनेज़ुएला में स्थित इंस्टिट्यूटो साइमन बोलिवर से हमारे समय के व्यापक संकटों का जवाब ढूँढ़ने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय चर्चा शुरू करने के लिए कहा। हमने दुनिया भर के छब्बीस शोध संस्थानों को इकट्ठा कर बैठकें की, और ‘ग्रह को बचाने की योजना’ के नाम से एक दस्तावेज़ तैयार किया। इस योजना को हमने हमारे डोज़ियर 48 (जनवरी 2022) में एक लंबी भूमिका के साथ फिर से प्रकाशित किया है। 

इसे तैयार करते हुए हमने दो प्रकार की सामग्रियों का अध्ययन किया: पहला, विश्व आर्थिक मंच से लेकर काउन्सिल ऑफ़ इंक्लूसिव कैपिटलिज़्म जैसे रूढ़िवादी और उदारवादी विशेषज्ञ दलों द्वारा निर्मित योजनाएँ; दूसरा, ट्रेड यूनियनों, वामपंथी राजनीतिक दलों और सामाजिक आंदोलनों की माँगें। हमने इन माँगों के आधार पर रूढ़िवादी और उदारवादी तर्कों की सीमाओं को समझने की कोशिश की। उदाहरण के लिए, हमने पाया कि उदारवादी और रूढ़िवादी लेखों में इस तथ्य को नज़रअंदाज़ किया गया है कि महामारी के दौरान, (उत्तरी गोलार्ध के) केंद्रीय बैंकों ने लड़खड़ाती पूँजीवादी व्यवस्था को बचाए रखने के लिए 16 लाख करोड़ डॉलर जुटाए। यानी पैसा तो है, जो कि सामाजिक कल्याण में लगाया जा सकता था, लेकिन उसे वित्तीय क्षेत्र और उद्योगों को डूबने से बचाने के इए इस्तेमाल किया गया। यदि इन्हें बचाने के लिए धन उपलब्ध कराया जा सकता है, तो हर देश में एक मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और ग़ैर-नवीकरणीय जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा स्रोतों में स्थानांतरण करने के लिए भी धन जुटाया जा सकता है।

ग्रह को बचाने की योजना में ‘लोकतंत्र और विश्व व्यवस्था’ से लेकर ‘डिजिटल दुनिया’ जैसे बारह क्षेत्रों को शामिल किया गया है। आपको योजना में किए गए दावों की जानकारी देने के लिए, शिक्षा के मद में की गई सिफ़ारिशें यहाँ साझा कर रहा हूँ:

1. शिक्षा का वस्तुकरण बंद करें, जिसमें सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करना व शिक्षा के निजीकरण को रोकना शामिल है।

2. शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन में शिक्षकों की भूमिका को बढ़ावा दें।

3. सुनिश्चित करें कि समाज के वंचित वर्गों को शिक्षक बनने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।

4. बिजली और डिजिटल विभाजन को पाटें।

5. सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित और सार्वजनिक रूप से नियंत्रित हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सिस्टम बनाएँ।

6. सुनिश्चित करें कि सभी स्कूली बच्चों की पाठ्येतर गतिविधियों सहित शिक्षा प्रक्रिया के सभी तत्वों तक पहुँच हो।

7. हर प्रकार की उच्च शिक्षा में छात्र-छात्राओं के लिए निर्णय प्रक्रियाओं में भाग लेने के मंच विकसित करें। 

8. शिक्षा को जीवन भर का अनुभव बनाएँ, ताकि जीवन के हर स्तर पर लोग विभिन्न प्रकार के संस्थानों में सीखने की प्रथा का आनंद ले सकें। इससे इस बात को बढ़ावा मिलेगा कि शिक्षा केवल करियर बनाने का ज़रिया नहीं है, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण का ज़रिया भी है जो दिमाग़ और समुदाय की निरंतर वृद्धि और विकास का समर्थन करता है।

9. हर उम्र के श्रमिकों के लिए उनके व्यवसायों से संबंधित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में सब्सिडी दें।

10. उच्च शिक्षा सहित शिक्षा के सभी स्तरों को लोगों की बोली जाने वाली भाषा में उपलब्ध कराएँ; सुनिश्चित करें कि सरकारें अनुवाद और अन्य साधनों के माध्यम से अपने देश में बोली जाने वाली भाषाओं में शिक्षण सामग्री प्रदान करने की ज़िम्मेदारी लें।

11. औद्योगिक, कृषि और सेवा क्षेत्र की सहकारी समितियों की ज़रूरतों को पूरा करने वाले प्रबंधन शिक्षण संस्थानों की स्थापना करें।

 

टीना मोडोट्टी, एल माचेत, 1926.

 

ग्रह को बचाने की योजना संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945) के सिद्धांतों में निहित है; वो चार्टर जिसे दुनिया के सबसे ज़्यादा देश सर्वसम्मति से मानते हैं (संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों ने इस बाध्यकारी संधि पर हस्ताक्षर किए हैं)। हम आशा करते हैं कि आप इस योजना और हमारे डोज़ियर को ज़रूर पढ़ेंगे। यह योजना चर्चा और बहस और बदलावों के लिए खुली है। यदि आपके पास कोई सुझाव या विचार है या आप हमें बताना चाहते हैं कि कैसे इस आप योजना का उपयोग करने में सक्षम रहे, तो कृपया हमें [email protected] पर लिखें।

मज़दूर वर्ग के संघर्ष के विकास के लिए अध्ययन एक प्रमुख साधन रहा है, जैसा कि सामान्य लोगों के मस्तिष्क पर मज़दूर वर्ग के समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और साहित्य के प्रभाव से पता चलता है। 1928 में, टीना मोडोट्टी ने मैक्सिको के क्रांतिकारी किसानों की एल माचेत -उनकी कम्युनिस्ट पार्टी का अख़बार- पढ़ते हुए तस्वीर ली थी। मोडोट्टी, एक आला दर्जे के क्रांतिकारी फ़ोटोग्राफ़र थे, जिन्होंने मैक्सिकन क्रांतिकारियों, वीमर वामपंथियों, और स्पेनिश गृहयुद्ध के सेनानियों की ईमानदार प्रतिबद्धता को अपनी तस्वीरों में दर्शाया था। एल माचेत पढ़ने वाले किसान और भारत में 1943 के बंगाल अकाल के दौरान एक झोपड़ी में तुर्की के कम्युनिस्ट कवि नाज़िम हिकमत को पढ़ने वाला किसान, जिसे चित्तप्रसाद ने अपनी लकड़ी की मूर्ति में दर्शाया है, वे जगहें हैं जहाँ हमें उम्मीद है कि इस योजना पर चर्चा की जाएगी। हम आशा करते हैं कि इस योजना का उपयोग न केवल वर्तमान की आलोचना करने के लिए किया जाएगा, बल्कि भविष्य के समाज को वर्तमान में बनाने के लिए एक कार्यक्रम के रूप में भी लिया जाएगा।

 

 

स्नेह-सहित,

विजय।