शिरीन अबू अक़लेह के लिए बने पोस्टरों का कोलाज. 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

11 मई 2022 को, एक इज़रायली निशानेबाज़ ने फ़िलिस्तीन की दिग्गज पत्रकार शिरीन अबू अक़लेह के सिर पर गोली मार दी। अक़लेह उस समय (अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों के एक हिस्से) जेनिन की एक शरणार्थी बस्ती में इज़रायली सेना के हमले पर रिपोर्टिंग कर रही थीं। निशानेबाज़ उनके साथ मौजूद अन्य पत्रकारों पर लगातार गोलियाँ चलाते रहे, ताकि उनमें से कोई उनकी मदद न कर पाए। जब तक उन्हें इब्न सीना अस्पताल ले जाया गया, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।

अबू अक़लेह की मौत के बाद इज़रायली सेना अधिकृत पूर्वी यरुशलम में उनके घर तक पहुँच गई। उन्होंने फ़िलिस्तीनी झंडे ज़ब्त कर लिए और शोकाकुल लोगों को फ़िलिस्तीनी गाने बजाने से रोकने का प्रयास किया। 13 मई को उनके अंतिम संस्कार के दिन इज़राइली रक्षा बलों ने अक़लेह के अंतिम संस्कार के लिए उमड़े परिवार और समर्थकों के सैलाब -यहाँ तक कि उनका जनाज़ा ले जा रहे लोगों- पर हमला किया। इन लोगों ने जो फ़िलिस्तीनी झंडे अपने हाथों में ले रखे थे, वे भी छीन लिए गए। अबू अक़लेह, जो 1997 से अल जज़ीरा की एक सम्मानित पत्रकार रही थीं, की हत्या और उनके अंतिम संस्कार में इज़रायली सेना द्वारा की गई हिंसा फ़िलिस्तीन पर इज़रायली क़ब्ज़े की रंगभेदी (अपार्थेड) प्रकृति को पुष्ट करती है। फ़िलिस्तीनी नेता डॉ हनान अशरावी ने ट्वीट किया कि फ़िलिस्तीनी झंडों, पोस्टरों और नारों पर हमला ‘उत्पीड़क की असुरक्षा’ को उजागर करता है। अशरावी ने आगे लिखा,इन सांस्कृतिक प्रतीकों पर हमला उनके भीतर ‘हमारे प्रतीकों का डर, हमारे दुःख और क्रोध का डर, हमारे अस्तित्व का डर’ दिखाता है।

अबू अक़लेह जेनिन में हुए हमले पर रिपोर्ट करने के दौरान मारी गईं, जहाँ फ़िलिस्तीन का अनूठा फ़्रीडम थियेटर है। 4 अप्रैल 2011 को थिएटर के संस्थापकों में से एक, जुलियानो मेर-खामिस की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, ठीक उसी जगह के आस पास जहाँ पर अबू अक़लेह को मारा गया। मेर-खामिस ने कहा था, ‘इज़रायल [फ़िलिस्तीनी] समाज के न्यूरोलॉजिकल सिस्टम को नष्ट कर रहा है’। उन्होंने कहा था, ये न्यूरोलॉजिकल सिस्टम है ‘संस्कृति, पहचान, संचार … हमें अपने पैरों पर फिर से खड़ा होना होगा। हम अभी अपने घुटनों पर जी रहे हैं’।

 

आगे: बीजिंग की एक ओपेरा मंडली के कलाकार परफ़ॉर्म कर रहे हैं। पीछे: लू शुन एकेडमी ऑफ़ आर्ट्स में नाट्य कला के छात्र अपने द्वारा बनाई एक संरचना में नाटक का अभ्यास कर रहे हैं।
श्रेय: येनान रेड क्लाउड प्लेटफ़ॉ [延安红云平台]

आठ दशक पहले, शंघाई जैसे शहरों के सैकड़ों चीनी बुद्धिजीवी और कलाकार चीन के केंद्र में स्थित येनान में इकट्ठे हुए थे। येनान चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) का मज़बूत आधार बन चुका था। 1942 में, इस शहर और उसके आसपास की गुफाओं में, तीन बड़ी चुनौतियों के सामने चीन की कमज़ोर संस्कृति के बारे में एक गंभीर चर्चा हुई। ये बड़ी समस्याएँ थीं: चीन की विद्वेषपूर्ण सामंती व्यवस्था, पश्चिमी नेतृत्व वाला क्रूर साम्राज्यवाद, और निष्ठुर जापानी फ़ासीवादी आधिपत्य। सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं को इतिहास के इन तथ्यों के साथ-साथ उनके द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक कार्यों का भी सामना करना था। येनान में, बहस इस जटिल दावे के इर्द-गिर्द हो रही थी कि कलाकार अपने समय की प्रमुख ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का सामना किए बिना अपना काम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक ऐसे फ़िलिस्तीनी कलाकार की कल्पना कीजिए जो आज इज़रायली अपार्थेड की क्रूरता से प्रभावित हुए बिना काम करता हो।

सीपीसी के प्रचार विभाग के प्रमुख, काई फेंग ने क्रांतिकारी युद्ध के दौरान कला और संस्कृति की स्थिति पर बहस करने के लिए कलाकारों को तीन सप्ताह के लिए केंद्रीय पार्टी कार्यालय में इकट्ठा होने के लिए आमंत्रित किया। सीपीसी के एक नेता माओ ज़ेडॉन्ग ने सभी विचारों को सुना, अपनी टिप्पणी दी, और उसके अगले साल ‘टॉक्स ऐट द येनान फ़ोरम ऑन लिटरेचर एंड आर्ट’ प्रकाशित की। हमारा डोज़ियर नं. 52 (मई 2022), ‘गो टू येनान: कल्चर एंड नेशनल लिबरेशन’, येनान फ़ोरम में हुई बहस और मौजूदा समय में उसके निहितार्थ का आकलन पेश करता है। ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के कला विभाग द्वारा बनाए गए चित्रों से सुसज्जित यह डोज़ियर, येनान में चली बहसों को मौजूदा समय के संदर्भ में देखता है और आज के आंदोलनों में सांस्कृतिक कार्य की केंद्रीयता पर ज़ोर देता है।

 

ऊपर: एक गायन मंडली यांग्गे ओपेरा ‘ब्रदर एंड सिस्टर रेक्लेमिंग द वेस्टलैंड’ गा रही है। नीचे: ललित कला के छात्र स्केचिंग सीख रहे हैं।
श्रेय: येनान लिटरेचर एंड आर्ट मेमोरियल हॉल और येनान रेड क्लाउड प्लेटफ़ॉ [延安红云平台]

कलाकार की कल्पना उसके जीवन के अनुभवों से निकलती है। जेनिन के फ़्रीडम थिएटर के नाटक तेल अवीव या न्यूयॉर्क की कैफ़े लाइफ़ का प्रदर्शन नहीं करते; उनके नाटक अधिकृत फ़िलिस्तीन की कल्पना में गहरे उतरते हैं। हमारा डोज़ियर बताता है, येनान में, ‘शहरी बुद्धिजीवियों को … अपने और किसान जनता के बीच की खाई पाटने के लिए अपने परिवर्तन से गुज़रना पड़ा था। यह परिवर्तन येनान फ़ोरम के केंद्र में था … मिल कर, वे एक प्रभावी राजनीतिक शक्ति में बदल सकते थे’।

23 मई 1942 को, माओ येनान फ़ोरम में शंघाई जैसे शहरों को छोड़कर इस पिछड़े इलाक़े तक आए कलाकारों और बुद्धिजीवियों के सामने अपनी समापन टिप्पणी रखने के लिए मंच पर चढ़े। माओ ने कहा कि यहाँ जीवन के नये रूपों का निर्माण हो रहा था, एक नया उत्साह पैदा हुआ है, जिसने लोगों की रीढ़ को सीधा किया है और सामाजिक जीवन के नये रूपों का निर्माण किया है। माओ ने कहा कि, ‘आधार क्षेत्र में पहुँचने का मतलब है, एक ऐसे शासनकाल में पहुँचना जो चीन के इतिहास में कई हज़ार वर्षों के दौरान नहीं देखा गया, जहाँ सत्ता मज़दूरों, किसानों और सैनिकों और आम जनता के हाथ में है … अतीत के युग हमेशा के लिए समाप्त हो चुके हैं और कभी वापस नहीं आएँगे’। उनका मतलब था कि चीन के जिन लोगों ने अभी-अभी सीधे खड़े होना शुरू किया है, उनके बारे में और उनके लिए कहानियाँ कहने/लिखने के लिए कल्पना का विस्तार किया जाना चाहिए। येनान के बुद्धिजीवियों का तर्क था कि इन प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं के लिए प्रासंगिक होना ही कला का उद्देश्य है।

अपनी बात रखने के लिए, माओ ने लेखक लू शुन (1881-1936) को उद्धृत किया। शुन ने इन परिवर्तनों को बारीकी से समझा और अपनी कविताओं में उन्हें प्रतिबिंबित किया:

भौंह चढ़ाकर, मैं शांति से हज़ारों उँगलियाँ दरकिनार कर देता हूँ,

सिर झुकाकर, मैं एक इच्छुक बैल की तरह बच्चों की सेवा करता हूँ।

माओ ने बताया कि दुश्मन की ये ‘हज़ारों उँगलियाँ’, साम्राज्यवादी और सामंती ज़मींदार हैं; और ‘बच्चे’ हैं मज़दूर वर्ग, किसान और आम जनता। उन्होंने ने आगे समझाया कि लू शुन के शब्द दर्शाते हैं कि एक कलाकार -‘इच्छुक बैल’- को कभी भी दमन के पुराने ढाँचों के सामने झुकना नहीं चाहिए; कलाकार को स्वतंत्रता के संघर्ष में लोगों का साथ देने के लिए तैयार रहना चाहिए।

यह वह संघर्ष है जिसने आम जनता को सीधे खड़े होने के काबिल बनाया, उन्हें सदियों से अपने श्रम की अभिजात वर्गों द्वारा की जा रही चोरी को देखने के अपमान को नकारने की हिम्मत दी। कलात्मक और बौद्धिक गतिविधियों में मौजूदा समय के व्यापक परिवर्तन प्रतिबिंबित होने चाहिए; वो परिवर्तन जो आज ग़रीबी को समाप्त करने के लिए चल रहे चीन के जन अभियान में मौजूद हैं, अपनी आजीविका के ऊबरीकरण (ऊबर जैसी कम्पनियों की तरह सब कुछ ठेके पर दे देना) के ख़िलाफ़ भारतीय किसानों के संघर्ष में मौजूद हैं, राजनीतिक हत्याओं के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़े दक्षिण अफ़्रीका के बहादुर झुग्गीवासियों में मौजूद हैं, और शिरीन अबू अक़लेह के अंतिम संस्कार के लिए उमड़ी फ़िलिस्तीनियों की भीड़ में मौजूद हैं।

 

यांग्गे गायन मंडली 1943 के वसंत महोत्सव समारोह में लोगों के सामने परफ़ॉर्म कर रही है।
श्रेय: येनान रेड क्लाउड प्लेटफ़ॉर्म और चाइना यूथ डेली [中国青年报]

येनान में चली बहसों ने कलाकारों और लेखकों के लिए गहन सांस्कृतिक गतिविधि को अंकुरित करने, सांस्कृतिक क्षेत्र में नये विचारों को प्रसारित करने, रोज़मर्रा की बातचीत को नये क्षितिज तक ले जाने और नये राजनीतिक स्थान और युग बनाने का रास्ता साफ़ कर दिया। इस सांस्कृतिक कार्य ने बुद्धिजीवियों और कलाकारों को भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया; उन्हें प्रेरित किया कि वे केवल अपने स्वभाव (‘कला के लिए कला’) से संबंधित नहीं बल्कि एक नये क्षितिज के लिए, और एक नयी मानवता का उद्घाटन करने के लिए कलात्मक काम करें। उन पर अपने काम को पूरी तरह से एक राजनीतिक परियोजना में बदलने का कोई दायित्व नहीं था, क्योंकि इससे उनकी वर्तमान की दुविधाओं से परे जाने की क्षमता क्षीण होती। कलाकारों और बुद्धिजीवियों को आंदोलनों का समर्थन तो करना ही था, लेकिन समाज में एक नये कल्चर को बढ़ावा देने के लिए उत्साह और जोश पैदा करने की जगह भी उन्हें ही तैयार करनी थी।

येनान में माओ के हस्तक्षेप ने यह स्पष्ट कर दिया कि बौद्धिक और कलात्मक गतिविधि अपने आप ही दुनिया में बदलाव नहीं ले आएगी। कलाकार और बुद्धिजीवी वास्तविकता की ओर ध्यान दिलाते हैं, कुछ समस्याओं की ओर इशारा करते हैं और उनके बारे में समझ प्रदान करते हैं। लेकिन कला अकेले ही सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती। उसके लिए समाज को किसी रूप में नया बनाने वाले संगठनों और आंदोलनों की ओर रुख़ करना ज़रूरी है। यदि कला को राजनीतिक सिद्धांत और अभ्यास का भारी बोझ ढोना पड़े, तो वह गौण हो जाएगी। कला को मज़दूर वर्ग और किसान वर्ग की संवेदनाओं को समझते हुए नये सांस्कृतिक प्रस्ताव पेश करने चाहिए। दमन के आगे झुकने से इंकार करने वाले ज्वार के साथ चलकर कला हमें नयी संभावनाओं की ओर ले जाती है।

मलक मटर (फ़िलिस्तीन), कबूतर के साथ स्वर्ग की ओर उड़ने से पहले का आख़िरी दृश्य, 2019.

फ़्रीडम थिएटर द्वारा आयोजित एक कैम्प में भाग लेने वाली एक युवा लड़की अस्मा नघनाघिये ने सांस्कृतिक कार्यों की सुंदरता के बारे में कहा कि ‘थिएटर की एक अभ्यास में मैंने एक पक्षी की नक़ल की जो मेरे पड़ोस के ऊपर और फिर जेनिन के ऊपर और फिर समुद्र के ऊपर उड़ता है। यह एक सपने जैसा था’। भविष्य का सपना वर्तमान को संघर्ष की जगह में बदल देता है।

स्नेह-सहित,

विजय।