Greta Acosta Reyes (Cuba), Neoliberalism, 2020.

ग्रेटा अकोस्टा रेयेस (क्यूबा), नवउदारवाद, 2020

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

एक नग़्मा कर्बलाए बेरूत के लिए

बच्चों की हँसती आँखों के

जो आइने चकनाचूर हुए

अब इनके सितारों की लौ से

इस शहर की रातें रोशन हैं

और रख़्शां है अर्ज़लेबनाँ। 

बेरूत निगारबज़्मजहाँ

जो चेहरे लहू के ग़ाज़े की,

ज़ीनत से सिवा पुरनूर हुए

अब उनके रंगीं परतव से। 

इस शहर की गलियाँ रौशन हैं,

और ताबाँ है अर्ज़लेबनाँ। 

बेरूत निगारबज़्मजहाँ

हर वीरान घर हर एक खंडर,

हम पाक़स्रदारा है

हर ग़ाज़ी रश्क़अस्कंदर। 

हर दुख़तर हमसरलैला है

ये शहर अज़ल से क़ाएम है

ये शहर आबाद तक दाइम है। 

 

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (1911-1984)

कोरोनावायरस का प्रकोप दुनिया भर में जारी है, 1 करोड़ 80 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और कम-से-कम 6,85,000 मौतें हो चुकी हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील और भारत सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं; दुनिया भर के कुल मामलों में से आधे मामले इन तीन देशों में हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दावा है कि परीक्षण ज़्यादा होने के कारण संक्रमितों की संख्या अधिक है। हालाँकि तथ्य इस दावे की पुष्टि नहीं करते, तथ्य दर्शाते हैं कि परीक्षण ज़्यादा होने के कारण नहीं बल्कि अमेरिका में ट्रम्प, ब्राज़ील में जेयर बोलसोनारो और भारत में नरेंद्र मोदी की सरकारों की अक्षमता और संक्रमण रोक पाने में उनकी विफलता के कारण ये संख्या इतनी ज़्यादा है। इन तीन देशों में परीक्षण करवाना मुश्किल है और परीक्षणों के परिणाम अविश्वसनीय रूप से रिपोर्ट किए गए हैं।

ट्रम्प, बोलसोनारो और मोदी एक ही जैसी राजनीतिक समझ रखते हैंजो कि दक्षिणपंथ की ओर इतनी ज़्यादा झुकी हुई है, जो सीधी नहीं चल सकती। लेकिन वायरस के बारे में उनके मज़ाक़िया बयानों, और वायरस को गंभीरता से लेने की उनकी अनिच्छा के तह में एक बहुत गहरी समस्या छिपी हुई है। इस समस्या से कई देश जूझ रहे हैं। समस्या का नाम है, नवउदारवाद। ये नीतिगत दिशानिर्देश 1970 के दशक में वैश्विक पूँजीवाद में आर्थिक मंदी और मुद्रास्फीति (‘मुद्रास्फीतिजनित मंदी’) के गहरे संकट को ठीक करने के लिए उभरा था। नीचे दिए गए चित्र में नवउदारवाद की हमारी परिभाषा है:

Vikas Thakur (India), Neoliberalism, 2020.

विकास ठाकुर (भारत), नवउदारवाद, 2020

 

अमीरों की ऋण हड़ताल, वित्त के उदारीकरण, श्रम क़ानूनों के विनियमन और कल्याणकारी सेवाओं की अनदेखी से सामाजिक असमानता गहरी हुई और राजनीति में दुनिया की विशाल आबादी की भूमिका कम हुई।टेक्नोक्रेट्स’- विशेषकर बैंकरोंद्वारा दुनिया को चलाए जाने की माँग ने दुनिया की आबादी के बड़े हिस्से में एक राजनीतिविरोधी भावना पैदा की, जिससे सरकारों और राजनीतिक गतिविधियों से जनता की दूरी लगातार बढ़ती गई।

जनता को तबाहियों से बचाने के लिए स्थापित किए गए समाजिक संस्थानों को नष्ट किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत जैसे देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को कमज़ोर किया गया, और बच्चोंबुज़ुर्गों की देखभाल के लिए काम कर रही सामाजिक सेवाएँ या तो बंद कर दी गईं या बजट कटौतियाँ के माध्यम से जर्जर कर दी गईं। सन् 2018 में हुए संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में पाया गया कि (आय की सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच, बेरोज़गारी भत्ता, विक्लांगता लाभ, वृद्धावस्था पेंशन, नक़द या वस्तु हस्तांतरण और अन्य करबचत योजनाओं जैसी) सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों तक विश्व की केवल 29% आबादी की ही पहुँच है। श्रमिकों के लिए उपलब्ध सबसे मामूली सामाजिक सुरक्षा (जैसे कि बीमार पड़ने पर मिलने वाली छुट्टी) को समाप्त करने और सब के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर पाने की विफलता का एक परिणाम ये हुआ है कि अब महामारी के समय में, मज़दूर तो घर पर रह सकते हैं और ही वे स्वास्थ्य सेवा का उपयोग कर सकते हैं: उन्हेंमुक्त बाज़ारनामक भेड़िये के आगे छोड़ दिया गया है, यह एक ऐसी दुनिया है जो जनता की भलाई के बजाये मुनाफ़े के इर्दगिर्द रची गई है।

 

Choo Chon Kai (Malaysia), Freedom of choice, 2020.

चू चुन काई (मलेशिया), चुनने की आज़ादी, 2020

 

ऐसा नहीं है कि नवउदारवाद और इसकी बजट कटौतियों की परियोजना के बारे में चेतावनियाँ दी गईं हों। सितंबर 2019 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने सार्वजनिक स्वास्थ्यकर्मियों की नौकरियों में कमी के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य ख़र्च में हो रही भारी कटौतियों और किसी भी तरह की महामारी आने पर इन कटौतियों के चलते होने वाले असर के बारे में चेतावनी दी थी। ये कोरोनावायरस महामारी से ठीक पहले का समय था, और इससे पहले आने वाली (H1N1, Ebola, SARS, MERS) महामारियाँ, महामारियों का प्रबंधन करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों की कमज़ोरी को दर्शा चुकी थीं।

नवउदारवाद की शुरुआत से ही, राजनीतिक दलों और सामाजिक आंदोलनों ने इन कटौतियों से उत्पन्न होने वाले ख़तरों के बारे में चेतावनी देनी शुरू कर दी थी। सामाजिक संस्थानों को होने वाले नुक़सान से किसी भीआर्थिक या महामारीजनितसंकट का सामना करने की समाज की क्षमता का भी नुक़सान होता है। लेकिन इन चेतावनियों को लगातार बेशर्मी से ख़ारिज किया जाता रहा है।

 

Kelana Destin (Indonesia), Water, 2020.

कलना डेस्टिन (इंडोनेशिया), पानी, 2020

 

1964 में स्थापित व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीटीएडी), 1981 में अपनी पहली व्यापार और विकास रिपोर्ट (TDR) के प्रकाशन से ही लगातार इस स्थिति पर चेतावनी जारी करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र का ये निकाय उदारीकृत व्यापार, विकासशील देशों में ऋणसंचालित निवेश और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों के अंतर्गत बजट कटौतियाँ करने के लिए लागू की जाने वाली व्यापक नीतियों पर आधारित नये आर्थिक एजेंडे को लगातार ट्रैक करता रहा है। आईएमएफ़ और अमीर बॉन्डहोल्डर्स द्वारा देशों पर लगाए गए बजट कटौती कार्यक्रमों से जीडीपी विकास नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ और देशों में बड़ा वित्तीय असंतुलन पैदा हो गया। ज़रूरी नहीं कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) और निर्यात में वृद्धि से विकासशील देशों के लोगों की आय में वृद्धि हुई हो। टीडीआर, 2002 ने इस विरोधाभास को उजागर किया कि जब विकासशील देश ज़्यादा व्यापार कर रहे हैं, तो वे कम कैसे कमा रहे हैं; इसका मतलब था कि वैश्विक व्यापार प्रणाली उन विकासशील देशों को छलने का ज़रिया थी, जिनकी अर्थव्यवस्था प्राथमिक वस्तुओं के निर्यात पर काफ़ी हद तक निर्भर है।

2011 की टीडीआर, 2007-08 के वित्तीय संकट के बाद के प्रभावों के अध्ययन पर आधारित थी; इस रिपोर्ट में कहा गया है किउदारीकरण और स्वविनियमित बाज़ारों में [वित्तीय] संकट के पहले से चले रहे विश्वास में गंभीर ख़ामियों को उजागर किया है। उदारीकृत वित्तीय बाज़ार (जुए के बराबर की) सट्टेबाज़ी और अस्थिरता को प्रोत्साहित करते हैं। और [ये] वित्तीय नवाचार व्यापक सामाजिक हित के बजाये अपने ही व्यवसाय को बढ़ावा देते हैं। इन ख़ामियों को नज़रअंदाज़ करने से एक नया, संभवतः इससे भी बड़ा संकट उत्पन्न हो सकता है।

 

Lizzie Suarez (USA), Abolish Neoliberalism Resist Imperialism, 2020.>

लिजी सुआरेज़ (यूएसए), नवउदारवाद को ख़त्म करो, साम्राज्यवाद का विरोध करो, 2020

 

2011 की टीडीआर को फिर से पढ़ने के बाद, मैंने ये जानने के लिए हीनर फ्लैस्बेक से संपर्क किया कि एक दशक गुज़र जाने के बाद वो इस रिपोर्ट के बार में क्या सोचते हैं। हीनर फ्लैस्बेक 2003 से 2012 तक यूएनसीटीएडी के माइक्रोइकोनॉमिक्स एंड डेवलपमेंट के प्रमुख थे। फ्लैस्बेक ने रिपोर्ट को फिर से पढ़ा और लिखा, ‘मुझे लगता है कि यह अभी भी नयी वैश्विक व्यवस्था [को समझने] के लिए एक अच्छी गाइड है।पिछले साल, फ्लैसबेक ने ग्रेट पैराडॉक्स: लिबरलिज़्म डेस्ट्रोएज़ मार्केट इकोनॉमीशीर्षक से तीन लेखों की एक सीरीज़ लिखी थी, जिसमें उनका तर्क है कि नवउदारवाद, आर्थिक गतिविधियों द्वारा अधिकतम जनता के लिए नौकरियाँ और धन बनाने की क्षमता नष्ट कर चुका है। अब, फ्लैसबेक स्थिर वेतनों को समस्याओं के एक संकेतक के रूप में देखने के महत्व पर ज़ोर देना चाहते हैं; उनका मानना है कि स्थिर वतनों की परिस्थिति, एक ऐसा बिंदु है जहाँ से समाधान विकसित किए जाने चाहिए।

2011 की टीडीआर ने तर्क दिया किवैश्वीकरण की वजह से उत्पन्न ताक़तों ने आय वितरण में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप वेतनों में गिरावट आई है और मुनाफ़े बढ़े हैं।’ 2010 के सियोल डिवेलप्मेंट कन्सेंसस ने सलाह दी थी किसमृद्धि बनाए रखने के लिए इसका [सबके लिए] साझा होना ज़रूरी है।चीन के अलावा, जिसने 2013 में ग़रीबी उन्मूलन और आर्थिक विकास साझा करने के लिए एक प्रमुख योजना विकसित की, अधिकांश देशों में वेतन वृद्धि उत्पादकता में आई वृद्धि से बहुत कम रही, जिसका अर्थ है कि घरेलू माँग, माल की आपूर्ति की तुलना में कम हो गई; और ही बाहरी माँग पर भरोसा करना या क्रेडिट से घरेलू माँग को बढ़ाना जैसे संभावित समाधान दीर्घकालिक साबित हुए।

 

Pavel Pisklakov (Russia), Invisible Hand, 2020.

पावेल पिस्कलाकोव (रूस), अदृश्य हाथ, 2020

 

फ्लैसबेक ने ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान को जवाब दिया कि: ‘इस मामले की जड़ वेतन हैं। टीडीआर 2011 में ये शामिल नहीं था। वेतन के सवाल का हल किए बिना, हमारी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने और उन्हें मज़बूत निवेश वाले विकास की राह पर वापस लाने के सभी प्रयास बेकार हैं। इसका हल करने का मतलब है, दुनिया के सभी देशों में मज़बूत विनियमन लागू करना, यह सुनिश्चित करने के लिए कि [हर] वेतनभोगी पूरी तरह से अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं की उत्पादकता वृद्धि में भाग ले सके। विकासशील दुनिया में, पूर्वी एशिया [के देशों] में ऐसा होता है, लेकिन कहीं और नहीं होता। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों पर वेतन वृद्धि को उत्पादकता विकास और सरकारी या केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित मुद्रास्फीति लक्ष्य के अनुरूप रखने का दबाव बनाने के लिए मज़बूत सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसे न्यूनतम मज़दूरी की वृद्धि के सरकारी फ़ैसलों के माध्यम से किया जा सकता है, जैसा कि चीन ने किया, या कंपनियों पर अनौपचारिक रूप से दबाव डालकर, जैसा जापान ने किया।

एक हालिया रिपोर्ट में, फ्लैसबेक ने तर्क दिया कि कई विकासशील देशअब कोरोनावायरस मंदी के बीच भीउन्नत पूँजीवादी देशों का अनुसरण कर रहे हैं, जो मज़दूरियाँ कम कर रहे हैं, ख़र्च में कटौतियाँ कर रहे हैं, औरश्रम बाज़ार के लचीलेपनकी विफल नीतियों को अपना रहे हैं; आईएमएफ़ भी अक्सर यही नीतियाँ अपनाने पर ज़ोर देता है, जो किवृद्धि दर और विकास में मुख्य बाधा हैं’। 

 

Sinead L Uhle (Germany), También la lluvia (‘Also the rain’), 2020.

सिनीड एल उले, बारिश भी, 2020

 

इस न्यूज़लेटर में शामिल पोस्टर हमारी साम्राज्यवादविरोधी पोस्टर प्रदर्शनी से लिए गए हैं। पहली प्रदर्शनीपूँजीवादके विषय पर थी; और दूसरीनवउदारवादके विषय पर थी, जिसके लिए हमें 27 देशों के 59 कलाकारों और 20 संगठनों के पोस्टर मिले। कृपया कलाकारों की कल्पनाशील प्रस्तुतियाँ देखने में थोड़ा वक़्त ख़र्च करें।

उनकी कल्पनाशीलता से हमें नवउदारवादी पूँजीवादी ढाँचे को अस्वीकार करने और बेहतर समाज बनाने के लिए हमारी माँगें रखने में हिम्मती और कल्पनाशील होने की प्रेरणा मिलती है। आसमान छूने का मतलब ये नहीं कि हम धनाढ्यों और ताक़तवरों के आगे आत्मसमर्पण करने के लिए हाथ उठाएँ, बल्कि हमें दुनिया को निराशा के दलदल से बाहर निकालने के लिए आसमान छूना है।

स्नेहसहित,

विजय।

 

Golbal Meeting Tricon

 

3 अगस्त को, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की हमारी पूरी टीम एक वैश्विक आभासी बैठक के लिए मिली। हमने इस महामारी के दौरान अब तक जितनी मेहनत से काम किया है और इसी तरह आगे भी करते रहने के लिए एकदूसरे की हौसलाअफ़ज़ाई की। हमने अपने एजेंडे पर चर्चा की और निम्नलिखित पाँच संकटों का गहन अध्ययन करने की योजना बनाई: (1) कोरोनावायरस महामारी, (2) बेरोज़गारी का संकट, (3) भूखमरी का संकट, (4) राज्य हिंसा में वृद्धि, और (5) सामाजिक आपदाओं में बढ़ौतरी (जैसे महिलाओं और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा)


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