Kawayan De Guia (Philippines), Nature of Currency, 2017.

कावेयन डी गुआ (फ़िलीपींस), मुद्रा की प्रकृति, 2017.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

2 फ़रवरी 2023 को फ़िलीपींस के राष्ट्रपति फ़र्डिनेंड मार्कोस जूनियर ने मनीला के मलाकानांग पैलेस में अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन से मुलाक़ात की। उन्होंने अपने देश में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति का विस्तार करने पर सहमती जताई। एक संयुक्त बयान में, दोनों सरकारें उन्नत रक्षा सहयोग समझौते (EDCA) के पूर्ण कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के लिए अपनी योजनाओं की घोषणा करनेऔर देश के रणनीतिक क्षेत्रों में सहमति वाले चार नये स्थानों को नामित करनेपर सहमत हुईं। EDCA, जिस पर 2014 में सहमति बनी थी, अमेरिका को अपनी सैन्य गतिविधियों के लिए फ़िलीपींस की ज़मीन का उपयोग करने की अनुमति देता है। यूएसएसआर के पतन के दौरान अमेरिकी सैनिकों द्वारा फ़िलीपींस मेंसुबिक खाड़ी में एक बड़े अड्डे सहितअपने ठिकानों को ख़ाली करने के लगभग एक चौथाई सदी के बाद EDCA का गठन हुआ है।

उस समय, अमेरिका को लगा था कि वह जीत गया है और इसलिए शीत युद्ध के दौरान बनाए गए सैन्य ठिकानों की विशाल संरचना की आवश्यकता नहीं बची। 1990 के दशक से, अमेरिका ने संबद्ध देशों की सेनाओं को अमेरिकी सैन्य नियंत्रण के अधीनस्थ बलों के रूप में एकीकृत करके और अपनी वायुशक्ति की तकनीकी रूप से बेहतर पहुँच बढ़ाने के लिए छोटे ठिकानों का निर्माण करके नये प्रकार की वैश्विक उपस्थिति दर्ज की है। हाल के वर्षों में, अमेरिका को इस वास्तविकता का सामना करना पड़ा है कि उसकी विलक्षण शक्ति को चीन जैसे कई देश आर्थिक रूप से चुनौती दे रहे हैं। इन चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए, अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के सैन्य बलों और छोटेछोटे, लेकिन पूरी तरह से घातक, सैन्य अड्डों की संरचना के माध्यम से अपनी सैन्य बल संरचना का पुनर्निर्माण करना शुरू किया। संभावना है कि फ़िलीपींस में बनने वाले चार नये अड्डों में से तीन द्वीपसमूह के उत्तर में स्थित लुज़ोन द्वीप पर होंगे; यानी अमेरिकी सेना ताइवान से ज़्यादा दूरी पर नहीं होगी।

 

सु शियाओबाई (चीन), महान अंत3, 2008.

 

पिछले पंद्रह वर्षों से, अमेरिका उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में शामिल देशों सहित अपने सहयोगियों पर सैन्य शक्ति का विस्तार करने का दबाव बना रहा है। और दूसरी ओर वह ख़ुद अपनी तकनीकीसैन्य शक्ति दुनिया भर में छोटेछोटे सैन्य ठिकानों की स्थापना करके अपनी पहुँच बढ़ा रहा है। इसके साथसाथ वह अधिक क्षेत्रीय पहुँच वाले विमान और जहाज़ बनाकर अपनी पहुँच बढ़ा रहा है। इस सैन्य बल का इस्तेमाल उन देशों के ख़िलाफ़ उत्तेजक कार्रवाइयाँ करने के लिए किया गया है जिन्हें वह अपने आधिपत्य के लिए ख़तरा मानता है। इसमें प्रमुख रूप से दो देशों, चीन और रूस, को अमेरिका के तीव्र हमले का सामना कर पड़ रहा था। यूरेशिया के दोनों सिरों पर अमेरिका ने यूक्रेन के ज़रिये रूस को और ताइवान के ज़रिये चीन को उकसाना शुरू किया। यूक्रेन के ज़रिये किए गए उकसावे की परिणति अब एक युद्ध के रूप में हुई है जो एक साल से जारी है, वहीं फ़िलीपींस में नये अमेरिकी ठिकाने ताइवान को युद्ध के मैदान के रूप में इस्तेमाल करते हुए चीन के ख़िलाफ़ हमला बढ़ाने की योजना का हिस्सा हैं।

पूर्वी एशिया की स्थिति को विस्तार से समझने के लिए, इस न्यूज़लेटर के बाक़ी हिस्से मेंनो कोल्ड वॉरद्वारा जारी की गई ब्रीफ़िंग नं. 6, ताइवान इज़ रेड लाइन इशू, शामिल कर रहा हूँ। यह लेख पीडीएफ़ के रूप में डाउनलोड के लिए भी उपलब्ध है।

 

ब्रीफ़िंग कार्ड: ताइवान इज़ अ रेड लाइन इशू. 

 

हाल के वर्षों में, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच के तनाव के लिए ताइवान एक फ्लैशप्वाइंट बन गया है। स्थिति की गंभीरता हाल ही में 21 दिसंबर को रेखांकित हुई, जब अमेरिका और चीनी सैन्य विमान दक्षिण चीन सागर के ऊपर एकदूसरे के तीन मीटर के दायरे में गए।

इस सुलगते संघर्ष की जड़ में ताइवान की संप्रभुता को लेकर इन दोनों देशों के अलगअलग दृष्टिकोण हैं। चीन अपने मत, जिसे एक चीनसिद्धांत के रूप में जाना जाता है, को लेकर दृढ़ है: हालाँकि [चीन की] मुख्य भूमि और ताइवान में अलगअलग राजनीतिक प्रणालियाँ हैं, [फिर भी] वे एक ही देश का हिस्सा हैं जिसकी संप्रभुता बीजिंग में है। इस बीच, ताइवान पर अमेरिका की स्थिति बहुत कम स्पष्ट है। औपचारिक रूप से एक चीन नीति अपनाने के बावजूद, अमेरिका के ताइवान के साथ व्यापक अनौपचारिकसंबंध और सैन्य संबंध बरक़रार हैं। बल्कि, 1979 के ताइवान संबंध अधिनियम के तहत, अमेरिकी क़ानून वाशिंगटन पर द्वीप को रक्षात्मक चरित्रके हथियार प्रदान करने की ज़िम्मेदारी डालता है।

अमेरिका ताइवान के साथ अपने मौजूदा संबंधों को यह दावा करके सही ठहराता है कि वे द्वीप के लोकतंत्रऔर स्वतंत्रताको बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। लेकिन, ये दावे कितने वैध हैं?

 

आधार स्थल का विस्तार

ताइवान के समकालीन भूराजनीतिक महत्व को समझने के लिए शीत युद्ध के इतिहास की पड़ताल करना आवश्यक है। 1949 की चीनी क्रांति से पहले, चीन के भीतर कम्युनिस्टों और राष्ट्रवादियों, या कुओमिन्तांग (केएमटी) के बीच गृह युद्ध चल रहा था। केएमटी को वाशिंगटन से सैन्य और आर्थिक सहायता के रूप में अरबों डॉलर मिले थे। क्रांति के परिणामस्वरूप मुख्य भूमि पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (पीआरसी) की स्थापना हुई, जबकि पराजित केएमटी सेना भागकर ताइवान द्वीप चली गई, जो कि चार साल पहले, 1945 में, जापानी औपनिवेशिक शासन के पचास वर्षों के बाद चीनी संप्रभुता का हिस्सा बन गया था। ताइपे से, केएमटी ने पीआरसी की वैधता को ख़ारिज करते हुए यह घोषणा की कि वे चीन गणराज्य (आरओसी) के नाम से पूरे चीन की निर्वासित सरकार हैंजो कि मूल रूप से 1912 में स्थापित हुई थी।

अमेरिकी सेना ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 1955 में संयुक्त राज्य ताइवान रक्षा कमान की स्थापना कर द्वीप पर परमाणु हथियार तैनात कर दिए और 1979 तक हज़ारों अमेरिकी सैनिकों का वहाँ क़ब्ज़ा रहा। ताइवान में लोकतंत्रया स्वतंत्रताकी रक्षा करने के बजाय, अमेरिका ने केएमटी की तानाशाही का समर्थन किया; तानाशाही के दौर में 1949-1987 तक चले मार्शल लॉ के 38 साल भी शामिल हैं। इस समय के दौरान, जिसे श्वेत आतंकके रूप में जाना जाता है, ताइवान के अधिकारियों का अनुमान है कि 1,40,000 से 2,00,000 लोगों को क़ैद या प्रताड़ित किया गया था, और 3,000 से 4,000 लोगों को केएमटी ने मार डाला था। वाशिंगटन ने इस क्रूर दमन को स्वीकार किया क्योंकि ताइवानचीनी मुख्य भूमि के दक्षिणपूर्वी तट से सिर्फ़ 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होने के कारणएक उपयोगी आधार स्थल के रूप में काम कर सकता था; और अमेरिका ने बीजिंग पर दबाव बनाने और उसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अलग करने के लिए इसका इस्तेमाल भी किया है।

1949-1971 तक, अमेरिका पीआरसी को संयुक्त राष्ट्र से बाहर रखने में सफल रहा; इसके पीछे अमेरिका का यह तर्क था कि ताइवान का आरओसी प्रशासन ही पूरे चीन की एकमात्र वैध सरकार है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि, इस समय के दौरान, तो ताइपे और ही वाशिंगटन ने यह तर्क दिया कि ताइवान द्वीप चीन से अलग है, जबकि आज ताइवान की स्वतंत्रताके नाम पर इस बात पर ज़ोर दिया जा रहा है। हालाँकि, ये प्रयास अंततः 1971 में असफल साबित हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आरओसी को बाहर करने और पीआरसी को चीन के एकमात्र वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने के हक़ में मतदान किया। बाद में चल कर, 1979 में, अमेरिका ने अंततः पीआरसी के साथ संबंध सामान्य कर लिए, और एक चीन नीति को अपनाया ताइवान की आरओसी के साथ अपने औपचारिक राजनयिक संबंधों को समाप्त कर दिया।

 

चू वीबोर (चीन), हृदय में सूरज, 1969.

 

ताइवान में शांति स्थापित करने के लिए, अमेरिका की दखलंदाज़ी ख़त्म होनी चाहिए

आज, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक चीन नीति को बड़े पैमाने पर अपना चुका है। संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से केवल 13 देश ही ताइवान की आरओसी को मान्यता देते हैं। हालाँकि, ताइवान में अलगाववादी ताक़तों के साथ अमेरिका का गठबंधन और अमेरिका के द्वारा लगातार उकसाए जाने के कारण ताइवान अंतर्राष्ट्रीय तनाव और संघर्ष का स्रोत बना हुआ है।

अमेरिका के हथियारों की बिक्री, सैन्य प्रशिक्षण, सलाहकारों द्वीप पर कर्मचारी भेजने के माध्यम से ताइवान के साथ क़रीबी सैन्य संबंध जारी है। इसके साथसाथ वह चीन की मुख्य भूमि से ताइवान को अलग करने वाले संकीर्ण ताइवान स्ट्रेट में बारबार युद्धपोत भेजता रहता है। 2022 में, वाशिंगटन ने ताइवान को सैन्य सहायता में 10 बिलियन डॉलर देने का वादा किया था। इसके साथ, अमेरिकी कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल नियमित रूप से ताइपे की यात्रा करता रहता है, और अलगाववाद की धारणाओं को वैध साबित करता है। इसका एक उदाहरण है अगस्त 2022 में प्रतिनिधि सभा की पूर्व अमेरिकी अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की विवादास्पद यात्रा।

क्या अमेरिका या कोई अन्य पश्चिमी देश ऐसी स्थिति को स्वीकार करेगा जहाँ चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त क्षेत्र के हिस्से में अलगाववादी ताक़तों को सैन्य सहायता, सैनिक और राजनयिक समर्थन की पेशकश करता हो? जवाब, ज़ाहिर तौर पर, नहीं होगा।

नवंबर में, इंडोनेशिया में चल रहे जी20 शिखर सम्मेलन में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने, बाइडेन के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से, अपनी पहली फ़िज़िकल बैठक की। बैठक में, शी ने ताइवान पर चीन के रुख़ को दृढ़ता से दोहराते हुए बाइडेन को बताया कि: ताइवान का सवाल चीन के मूल हितों के केंद्र में है, चीनअमेरिका संबंधों की राजनीतिक नींव का आधार है, और यह वो पहली लाल रेखा है जिसे पार नहीं किया जाना चाहिए हालाँकि बाइडेन ने यह कहते हुए जवाब दिया कि अमेरिका एक चीन नीति का पालन करता है और वह तनाव की तलाश में नहींहै, जबकि कुछ ही महीने पहले, उन्होंने एक टेलीविज़न साक्षात्कार में पुष्टि की थी कि यदि ज़रूरत पड़ी तो अमेरिकी सैनिक सैन्य रूप से ताइवान की रक्षाकरने के लिए हस्तक्षेप करेंगे।

अमेरिका के ट्रैक रिकॉर्ड से साफ़ है कि वाशिंगटन चीन को भड़काने और लाल रेखाकी अवहेलना करने पर आमादा है। पूर्वी यूरोप में, समान रूप से लापरवाह दृष्टिकोण, अर्थात् रूस की सीमा की ओर नाटो का निरंतर विस्तार, यूक्रेन में युद्ध के प्रकोप का कारण बना। यही कारण है कि ताइवान में प्रगतिशील ताक़तों ने घोषणा की है कि, ‘ताइवान स्ट्रेट में शांति बनाए रखने और युद्ध की विभीषिका से बचने के लिए, अमेरिकी हस्तक्षेप को रोकना आवश्यक है

 

हुआंग युक्सिंग (चीन), परिपक्वता के पेड़, 2016.

 

31 जनवरी को, पोप फ़्रांसिस ने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) में दस लाख लोगों की उपस्थिति में एक जनसभा का आयोजन किया, जहाँ उन्होंने घोषणा की कि राजनीतिक शोषण ने एकआर्थिक उपनिवेशवादका मार्ग प्रशस्त किया जो समान रूप से ग़ुलाम बनाता है पोप ने कहा, अफ़्रीका, ‘हड़पने लायक़ खदान या लूटे जाने लायक़ इलाक़ा नहीं है। अफ़्रीका का शोषण बंद करो! लेकिन उसी सप्ताह के अंत में, अमेरिका और फ़िलीपींस नेपोप की घोषणा की पूरी अवहेलना करते हुएनये सैन्य ठिकानों का निर्माण करने पर सहमती जताई, ताकि चीन के चारों ओर अमेरिकीसहयोगियों के सैन्य अड्डों का घेराव पूरा किया जा सके और चीन पर अमेरिकी आक्रमण को तेज़ किया जा सके।

पोप के आह्वान को इस तरह भी पढ़ा जा सकता है: दुनिया का शोषण बंद करो इसका मतलब है कि हमें कोई नया शीत युद्ध नहीं चाहिए, और किसी प्रकार के उकसावे की बात नहीं चाहिए।

स्नेहसहित,

विजय।