Bassim Al Shaker (Iraq), Symphony of Death 1, 2019.

बसीम अल शकर (इराक), मौत का राग 1, 2019.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने अपना वार्षिक शिखर सम्मेलन 11-12 जुलाई को विनियस, लिथुआनिया में आयोजित किया। पहले दिन की कार्यवाही के बाद जारी विज्ञप्ति में दावा किया गया कि नाटो एक रक्षात्मक गठबंधन है‘; ये बयान इस बात की बानगी पेश करता है कि क्यों कई लोग नाटो का असल उद्देश्य समझ नहीं पाते। इस बयान के विपरीत, सैन्य खर्च पर उपलब्ध ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि नाटो में शामिल देश और नाटो के सहयोगी देश हथियारों पर कुल वार्षिक वैश्विक खर्च का लगभग तीनचौथाई हिस्सा खर्च करते हैं। इनमें से कई देशों के पास अत्याधुनिक हथियार प्रणालियाँ हैं, जो अधिकांश गैरनाटो देशों की सेनाओं के पास मौजूद हथियारों की तुलना में कहीं ज़्यादा विनाशकारी हैं। पिछले पच्चीस सालों में, नाटो ने अपनी सैन्य शक्ति का उपयोग अफगानिस्तान (2001) और लीबिया (2011) जैसे कई देशों को नष्ट करने में किया है। उसने अपने आक्रामक गठबंधन की ताकत से समाजों को तहसनहस किया है और एकीकृत यूगोस्लाविया (1999) को तोड़ा है। इस रिकॉर्ड को देखते हुए, इस बात को हज़म करना मुश्किल है कि नाटो एक रक्षात्मक गठबंधनहै।

अप्रैल 2023 में फिनलैंड के नाटो में शामिल होने के बाद नाटो के सदस्य देशों की संख्या अब इकतीस हो गई है। 4 अप्रैल 1949 को संस्थापन संधि (वाशिंगटन संधि या उत्तरी अटलांटिक संधि) पर हस्ताक्षर कर ऐक्सिस शक्तियों के ख़िलाफ़ युद्ध में शामिल यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बारह देशों ने नाटो की स्थापना की थी। उसके बाद से इस संगठन की सदस्यता दोगुनी से भी अधिक हो गई है। यह जानना ज़रूरी है कि नाटो के मूल सदस्यों में से एक पुर्तगाल में उस समय फासीवादी तानाशाही का राज था। पुर्तगाल में एस्टाडो नोवो की तानाशाही 1933 से 1974 तक चली।

इस संधि के अनुच्छेद 10 में घोषणा की गई है कि नाटो सदस्य – ‘सर्वसम्मति से‘ – सैन्य गठबंधन में शामिल होने के लिए किसी अन्य यूरोपीय राज्य को आमंत्रितकर सकते हैं। उस सिद्धांत के आधार पर, नाटो ने ग्रीस और तुर्की (1952), पश्चिम जर्मनी (1955) और स्पेन (1982) को शामिल किया और इस तरह सोलह देश नाटो के सदस्य बन गए। नाटो कथित रूप से यूएसएसआर और पूर्वी यूरोप के कम्युनिस्ट देशों का सामना करने के लिए गठित किया गया था; यानी उनके विघटन के बाद यह गठबंधन ख़त्म हो जाना चाहिए था। लेकिन इसके विपरीत, नाटो की बढ़ती सदस्यता ने अटलांटिक गठबंधनको चुनौती देने वाले किसी भी देश को अपनी सैन्य शक्ति के बल पर सबक सिखाने के लिए नाटो की अनुच्छेद 5 का सहारा लेने की महत्वाकांक्षा को बढ़ा दिया है।

 

Nino Morbedadze (Georgia), Strolling Couple, 2017.

नीनो मोरबेडाज़े (जॉर्जिया), आवारा दंपति, 2017.

 

नाटो नामक अटलांटिक गठबंधनशुरूआत में यूएसएसआर, और अक्टूबर 1949 के बाद से यूएसएसआर और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के खिलाफ अमेरिका द्वारा बनाई गई सैन्य संधियों का एक हिस्सा भर था। इन संधियों में सितंबर 1954 का मनीला समझौता भी शामिल है, जिसने दक्षिणपूर्व एशियाई संधि संगठन (एसईएटीओ) बनया, और फरवरी 1955 का बगदाद समझौता शामिल है, जिससे केंद्रीय संधि संगठन (सेंटो) बना। तुर्की और पाकिस्तान अप्रैल 1954 में एक सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर कर यूएसएसआर के खिलाफ गठबंधन में साथी बन गए; यह समझौता नाटो के दक्षिणी सदस्य (तुर्की) और एसईएटीओ के पश्चिमी सदस्य (पाकिस्तान) के माध्यम से कारगर बनाया गया। अमेरिका ने सेंटो और एसईएटीओ के प्रत्येक सदस्य के साथ एक सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर किया और यह सुनिश्चित किया कि इन संरचनाओं में उसे अहम भूमिका मिले।

अप्रैल 1955 में बांडुंग, इंडोनेशिया में आयोजित एशियाईअफ़्रीकी सम्मेलन में, भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इन सैन्य गठबंधनों के निर्माण पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, क्योंकि अमेरिका और यूएसएसआर के बीच बढ़ते तनाव का असर पूरे एशिया में दिखाई दे रहा था। उन्होंने कहा कि, नाटो ने दो तरह से खुद का विस्तार किया है ‘: पहला, नाटो अटलांटिक से निकलकर दूर के अन्य महासागरों और समुद्रों तक पहुंच गया हैऔर दूसरा, ‘नाटो आज उपनिवेशवाद के सबसे ताकतवर संरक्षकों में से एक है। नेहरू ने गोवा का उदाहरण दिया, जहां फासीवादी पुर्तगाल का कब्जा बरकरार था और नाटो सदस्यों द्वारा प्रमाणित भी था। नेहरू ने इसे घोर दुस्साहसकरार दिया। वैश्विक गुंडे और उपनिवेशवाद के रक्षक के रूप में नाटो की यह परिभाषा लगभग ज्यों की त्यों आज भी जायज़ हैं।

 

Slobodan Trajković (Yugoslavia), The Flag, 1983.

स्लोबोडन ट्रैजकोविक (यूगोस्लाविया), परचम, 1983.

 

एसईएटीओ को 1977 में भंग कर दिया गया; इसकी आंशिक वजह वियतनाम में अमेरिका की हार थी। सेंटो को 1979 में हुई ईरानी क्रांति के कारण उसी साल भंग कर दिया गया। 1983 में यूएस सेंट्रल कमांड की स्थापना और यूएस पैसिफिक कमांड की पुन:स्थापना के साथ अमेरिका ने अपनी सैन्य रणनीति बदल दी। अमेरिका ने अब एसईएटीओ और सेंटो जैसे समझौते करने की बजाय प्रत्यक्ष सैन्य उपस्थिति स्थापित करने पर बल दिया। इसके अलावा अमेरिका ने दुनिया में अपनी सैन्य शक्ति का विस्तार किया। उसने सैन्य अड्डों और युद्धपोतों की संरचना का विस्तार कर दुनिया में कहीं भी हमला करने की अपनी क्षमता बढ़ाई (1930 की द्वितीय लंदन नौसेना संधि के 1939 में समाप्त होने से इस तरह के अमेरिकी सैन्य विस्तार के ऊपर लगे प्रतिबंध जाते रहे)। हालाँकि नाटो हमेशा से ही वैश्विक महत्वाकांक्षाएं पाले हुए था, लेकिन विदेशी ज़मीनों पर अमेरिकी सैन्य ताकत की स्थापना और (1994 में स्थापित शांति के लिए साझेदारीजैसे कार्यक्रम, तथा जापान तथा दक्षिण कोरिया पर लागू वैश्विक नाटो भागीदारगैरनाटो सहयोगीजैसी अवधारणाओं द्वारा) नए सदस्यों को अपने दायरे में मजबूती से जकड़ने वाली सरंचनाओं के निर्माण ने इस गठबंधन को सही मायने में मूर्त रूप दिया। नाटो की 1991 की रणनीतिक अवधारणा के अनुसार वह संयुक्त राष्ट्र के मिशनों के लिए सैन्य बल प्रदान करके वैश्विक स्थिरता और शांति में योगदान देगा‘; हमने उसके घातक योगदान को यूगोस्लाविया (1999), अफगानिस्तान (2003), और लीबिया (2011) में देखा है।

रीगा शिखर सम्मेलन (2006) तक, नाटो को विश्वास हो गया था कि अफगानिस्तान से बाल्कन तक और भूमध्य सागर से दारफुर तकउसकी पकड़ है। नाटो के विषय में नेहरू का उपनिवेशवाद वाला बयान आज अतिशयोक्ति लग सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि, नाटो दुनिया के लोगों की संप्रभुता और गरिमा की माँग, जो कि दो प्रमुख उपनिवेशवादविरोधी अवधारणाएँ हैं, को कुंद करने का एक साधन बन गया है। इन दो परियोजनाओं को लागू करने वाली कोई भी जनपरियोजना खुद को नाटो की हथियार प्रणाली के सामने खड़ा पाती है

 

Shefa Salem al-Baraesi (Libya), Kaska, Dance of War, 2020.

शेफ़ा सलेम अलबारासी (लीबिया), कास्का, युद्ध का नृत्य, 2020.

 

यूएसएसआर और पूर्वी यूरोप की साम्यवादी राज्य व्यवस्था के पतन ने यूरोप की वास्तविकता को बदल दिया। 9 फरवरी 1990 को मॉस्को में सोवियत संघ के विदेश मंत्री एडुआर्ड शेवर्नडज़े को अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स बेकर द्वारा दी गई आयरनक्लाड गारंटी‘, कि नाटो की सेनाएँ जर्मन सीमा के पूर्व की ओर नहीं बढ़ेंगी‘, को नाटो तुरंत भूल गया। नाटो क्षेत्र की सीमा से लगे कई देशों पर बर्लिन दीवार गिरने का तत्काल असर पड़ा। निजीकरण ने मंदी से त्रस्त अर्थव्यवस्थाओं की आबादी की सम्मान से जीने की संभावना को खत्म कर दिया। था। पूर्वी यूरोप के कई देश यूरोपीय संघ (ईयू) में प्रवेश के लिए बेताब थे क्योंकि उससे उन्हें कम से कम आम बाजार तक पहुंच मिल जाती; और वो जान गए थे कि ईयू में प्रवेश की क़ीमत उन्हें नाटो में शामिल होकर चुकानी पड़ेगी। 1999 में, चेकिया, हंगरी और पोलैंड, और फिर 2004 में बाल्टिक राज्य (एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया), बुल्गारिया, रोमानिया, स्लोवेनिया और स्लोवाकिया भी नाटो में शामिल हो गए। निवेश और बाज़ार के लिए उत्सुक कई देश 2004 तक नाटो के अटलांटिक गठबंधन और यूरोपीय संघ में शामिल हो गए।

नाटो ने अपना विस्तार जारी रखा; 2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मोंटेनेग्रो और 2020 में उत्तरी मैसेडोनिया नाटो में शामिल हुए। हालांकि, अमेरिकी बैंकों के संकट, बाज़ार के अंतिम विकल्प के रूप में अमेरिका का घटता आकर्षण और 2007 के बाद अटलांटिक दुनिया में जारी लगातार आर्थिक मंदी से स्थिति में कुछ बदलाव आया। अटलांटिक देश निवेशकों या बाज़ार के रूप में विश्वसनीयता खोने लगे। 2008 के बाद, सार्वजनिक व्यय में कटौती के कारण यूरोपीय संघ में बुनियादी ढांचे के निवेश में 75% की गिरावट आई और यूरोपीयन इन्वेस्टमेंट बैंक ने चेतावनी दी कि सरकारी निवेश पच्चीस साल के निचले स्तर पर पहुंचने वाला है।

 

ArtLords (including Kabir Mokamel, Abdul Hakim Maqsodi, Meher Agha Sultani, Omaid Sharifi, Yama Farhard, Negina Azimi, Enayat Hikmat, Zahid Amini, Ali Hashimi, Mohammad Razeq Meherpour, Abdul Razaq Hashemi, and Nadima Rustam), The Unseen Afghanistan, 2021.

कबीर मोकामेल, अब्दुल हकीम मकसोदी, मेहर आगा सुल्तानी, ओमेद शरीफी, यामा फरहार्ड, नेगिना अजीमी, इनायत हिकमत, जाहिद अमिनी, अली हाशिमी, मोहम्मद रज़ेक मेहरपुर, अब्दुल रज़ाक हाशमी और नदीमा रुस्तम सहित अन्य ArtLords, अनदेखा अफ़गानिस्तान, 2021.

 

चीनी निवेश के आगमन और चीनी अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण की संभावना ने, विशेष रूप से मध्य और पूर्वी यूरोप की, कई अर्थव्यवस्थाओं को अटलांटिक से दूरी बानाने को प्रेरित किया। 2012 में, चीन और मध्य व पूर्वी यूरोपीय देशों के बीच पहला (चीनसीईईसी) शिखर सम्मेलन वारसॉ (पोलैंड) में आयोजित किया गया, जिसमें क्षेत्र के सोलह देशों ने भाग लिया। आगे चल कर इस प्रक्रिया में अल्बानिया, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेकिया, एस्टोनिया, ग्रीस, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, उत्तरी मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया जैसे पंद्रह नाटो सदस्य भी शामिल हुए (हालाँकि 2021 और 2022 में, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया ने अपने कदम पीछे हटा लिए)। मार्च 2015 में, छह तत्कालीन यूरोपीय संघ के सदस्य देश फ्रांस, जर्मनी, इटली, लक्ज़मबर्ग, स्वीडन और यूके बीजिंग स्थित एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक में शामिल हुए। उसके चार साल बाद, इटली बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल होने वाला पहला G7 देश बना। यूरोपीय संघ के दोतिहाई सदस्य देश आज बीआरआई का हिस्सा हैं, और यूरोपीय संघ 2020 में निवेश पर व्यापक समझौते का हिस्सा भी बना गया।

चीन के साथ इन बढ़ते संबंधों को अटलांटिक गठबंधन ख़तरे की तरह देखता है। अमेरिका ने अपनी 2018 की राष्ट्रीय रक्षा रणनीति में चीन को अपना रणनीतिक प्रतिद्वंद्वीकहा आप चीन के लिए इस्तेमाल की गई इस परिभाषा से अमेरिका के चीन से तथाकथित ख़तरे पर बदलते अन्दाज़ का अंदाज़ा लगा सकते हैं। बहरहाल, नवंबर 2019 में, नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा था कि दक्षिण चीन सागर, या कहीं ओर, नाटो का विस्तार करने की कोई योजना, कोई प्रस्ताव, कोई इरादा नहीं है। लेकिन, 2020 तक उनका मूड बदल चुका था। केवल सात महीने बाद, स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि, ‘नाटो चीन को नए दुश्मन या प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं देखता है। बल्कि हम मानते हैं कि चीन का उदय शक्ति के वैश्विक संतुलन को मौलिक रूप से बदल रहा है। स्टोल्टेनबर्ग ने आगे कहा कि, नाटो ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया व अपने बाकी सहयोगियों के साथ मिलकर चीन के उदय के सुरक्षा परिणामों को संबोधित करेगा। इन चर्चाओं में एक वैश्विक नाटो और एक एशियाई नाटो की बात प्रत्यक्ष रूप से केंद्र में है; स्टोलटेनबर्ग ने विनियस में कहा कि जापान में एक संपर्क कार्यालय बनाने पर विचार किया जा रहा है

यूक्रेन युद्ध ने अटलांटिक गठबंधन को नई ताक़त दी है, और स्वीडन जैसे अभी तक झिझक रहे यूरोपीय देश भी इसके ख़ेमे में आ गए हैं। फिर भी, नाटो देशों की जनता में कुछ ऐसे समूह हैं जो इस गठबंधन के उद्देश्यों पर संदेह जाता रहे हैं, जैसे विनियस शिखर सम्मेलन के खिलाफ नाटोविरोधी प्रदर्शन हुए। विनियस शिखर सम्मेलन से जारी विज्ञप्ति ने नाटो में यूक्रेन के प्रवेश को रेखांकित किया और नाटो की स्वपरिभाषित सार्वभौमिकता पर ज़ोर दिया। उदाहरण के लिए, विज्ञप्ति में घोषणा की गई है कि चीन हमारे हितों, सुरक्षा और मूल्योंको चुनौती दे रहा है; यहाँ हमारेशब्द का प्रयोग केवल नाटो देशों के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए किया गया है। धीरेधीरे, नाटो खुद को संयुक्त राष्ट्र के विकल्प के रूप में पेश कर रहा है, और यह दिखा रहा है कि वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की बजाय दुनिया के हितों, सुरक्षा और मूल्योंकी मध्यस्थता और संरक्षण वही कर सकता है। इस दृष्टिकोण का विश्व के अधिकांश लोग विरोध करते हैं, जिनमें से सात अरब लोग नाटो के सदस्य देशों (जिनकी कुल जनसंख्या एक अरब से भी कम है) में भी नहीं रहते हैं। ये अरबों लोग समझना चाहते हैं कि नाटो संयुक्त राष्ट्र का स्थान क्यों लेना चाहता है।

स्नेहसहित,

विजय।