E. Meera (Kerala), Red Dawn, 2021.

. मीरा (केरल), रेड डॉन, 20212.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

3.5 करोड़ की आबादी केरल राज्य ने वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ़) को एक बार फिर से सरकार बनाने के लिए चुना है। 1980 के बाद से अब तक, केरल के लोग सरकार चलाने वाली पार्टी को हटाकर बारीबारी से वामपंथी और दक्षिणपंथी ख़ेमों की सरकार बनवाते रहे हैं। इस साल, केरल के लोगों ने वामपंथियों के हक़ में दुबारा वोट देकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता, पिनरायी विजयन, को मुख्यमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल देने का फ़ैसला किया है। स्वास्थ्य मंत्री के. के. शैलजा, जिन्हें शैलजा टीचर के नाम से जाना जाता है, अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से 60,000 से भी ज़्यादा वोटों से दुबारा चुनाव जीतीं हैं।

यह स्पष्ट है कि लोगों ने तीन कारणों से वाम सरकार को वोट दिया:

एलडीएफ़ सरकार ने 2017 में आए चक्रवात ओखी (2017), 2018 और 2019 की बाढ़, और 2018 में निपा वायरस और 2020-21 में कोरोनावायरस जैसे एक बाद एक आए बड़े संकटों को कुशलता और तर्कसंगत तरीक़े से संभाला है।

) इन संकटों के बावजूद, सरकार ने लोगों की ज़रूरतों का ध्यान रखना जारी रखा और किफ़ायती घरों, उच्च गुणवत्ता वाले सार्वजनिक स्कूलों और आवश्यक सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया।

) सरकार और वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उसके नेता और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते नवफ़ासीवाद के ख़िलाफ़ भारत के धर्मनिरपेक्ष और संघीय ढाँचे की रक्षा के लिए संघर्ष किया।

अगर दुनिया के अन्य हिस्सों में वर्तमान पर अतीत हावी है, तो केरल में, वर्तमान पर भविष्य और भविष्य की संभावनाएँ हावी हैं।.

 

Niharika Ram (Kerala), Plucking the Saffron, 2021.

निहारिका राम (केरल), प्लकिंग सैफ़्रॉन , 2021.

 

रविवार को, मुख्यमंत्री विजयन ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस की शुरुआत चुनाव परिणामों के साथ नहीं, बल्कि कोविड-19 पर अपडेट देते हुए की। केरल के लोगों को राज्य में महामारी की वर्तमान स्थिति के बारे में बताने के बाद ही उन्होंने लोगों की जीतकी बधाई दी। उन्होंने कहा, ‘यह जीत, हमें और विनम्र बनाती है। यह माँग करती है कि हमें और अधिक प्रतिबद्ध होना चाहिए 2017 के चक्रवात से लेकर कोरोनावायरस महामारी तक, मुख्यमंत्री ने प्रत्येक संकट के दौरान शांत और तर्कसंगत प्रेस कॉन्फ़्रेंस के माध्यम से जनता से संवाद किया; जनता के सामने समस्या का विज्ञानआधारित आकलन पेश किया और उन परिस्थितियों में निराश हो रहे लोगों को उम्मीद बँधाई।

जेओ बेबीमलयालम फ़िल्म निर्देशक जिन्होंने हिट फ़िल्म ग्रेट इंडियन किचन (2021) बनाई हैने प्रेस कॉन्फ़्रेंस पर एक पैरोडी बनाई है; पिछले साल उन्होंने अपने चार साल के बेटे को यह बताने के लिए एक फ़ेसबुक वीडियो में अपनी आवाज़ डब की थी कि सुबह की चाय से पहले ब्रश करना चाहिए। 2 मई कोचुनाव परिणाम सामने आने के बाद–  हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में तर्कसंगत शांति की परंपरा क़ायम रही।

 

Nipin Narayanan (Kerala), Flag in the Storm, 2021.

निपिन नारायणन (केरल), फ्लैग इन स्टॉर्म, 2021.

 

दूसरी ओर, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण ठीक इसके उलट है, और केरल की जनता को साफ़ तौर पर समझ आया है। 28 जनवरी को, मोदी ने स्विट्ज़रलैंड के दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम को संबोधित किया, जहाँ उन्होंने घोषणा की कि भारत कोविड-19 से जीत गया है। वो शेखी बघारने रहे थे। मोदी ने कहा, ‘किसी अन्य देश के साथ भारत की सफलता की तुलना करना उचित नहीं होगा। जिस देश में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है, उस देश ने कोरोना का प्रभावी ढंग से प्रबंधन कर मानवता को एक बड़ी आपदा से बचाया है उसी दिन, मोदी के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि, ‘भारत ने अपने कोविड-19 ग्राफ़ को फ़्लैट कर लिया है बेशक उस दिन, भारत में पुष्टि किए गए नये मामलों की संख्या 18,855 थी। और सजग जानकार कह रहे थे की इस बात की संभावना है कि ये संख्या कम करके बताई गई हो, तथा समाज में बरती जाने वाली सावधानियों की कमी को देखते हुए वे चेतावनी दे रहे थे कि यह वायरस और इसके नये वेरिएंट जल्दी ही अपनी शक्ति का फिर से एहसास करा सकते हैं।

मोदी और हर्षवर्धन की टिप्पणी से कुछ दिन पहले, मोदी की पार्टी के सदस्य और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 70 लाख लोगों को अप्रैल में कुम्भ मेला आयोजित करने की अनुमति दी थी। कुम्भ मेले में हर बारह साल पर श्रद्धालु बृहस्पति की परिक्रमा को मनाने के लिए इकट्ठे होते हैं। ठीक महामारी के दौरान कुम्भ को एक साल पहले ही मनाने की अनुमति दे दी गई। सरकारी अधिकारियों ने अप्रैल की शुरुआत में ही चेतावनी दी थी कि कुम्भ और इस तरह के अन्य समारोह वायरस के संक्रमण को बढ़ा सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पर कहा था कि यह ग़लत और झूठहै। मेला भी हुआ और मोदी ने विधानसभा चुनावों के लिए बड़ीबड़ी जनसभाएँ भी कीं।

 

Gopika Babu (Kerala), Armed with Red, 2021.

गोपिका बाबू (केरल), आर्म्ड विध रेड , 2021.

 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम में मोदी की टिप्पणी भद्दी भी थी और हास्यास्पद भी। अप्रैल के आख़िरी दिन, भारत में कोविड-19 के 4 लाख से भी ज़्यादा दैनिक मामले कन्फ़र्म हुए थे। पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था धराशायी हो चुकी है। स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का सरकारी ख़र्च बहुत ही कम है; 2018 में जीडीपी का केवल लगभग 1.3% स्वास्थ्य क्षेत्र पर ख़र्च हुआ था। 2020 के अंत में, भारत सरकार ने स्वीकार किया था कि उसके पास 1,000 भारतीयों पर 0.8 मेडिकल डॉक्टर हैं, और 1,000 भारतीयों पर 1.7 नर्स हैं। भारत जितने बड़े और संपन्न किसी अन्य देश में इतना कम मेडिकल स्टाफ़ नहीं है।

स्थिति इससे भी ख़राब है। भारत में प्रत्येक 10,000 लोगों के लिए केवल 5.3 बेड हैं, जबकि चीन मेंउदाहरण के लिए– 10,000 लोगों के लिए 43.1 बेड हैं। भारत में 1,00,000 लोगों के लिए केवल 2.3 क्रिटिकल केयर बेड (जबकि चीन में ये संख्या 3.6 है) और केवल 48,000 वेंटिलेटर हैं (जबकि चीन में अकेले वुहान में 70,000 वेंटिलेटर हैं)

चिकित्सा क्षेत्र की दुर्दशा का एक ही कारण है: निजीकरण, जहाँ निजी क्षेत्र के अस्पताल अधिकतम क्षमता (अधिकतम उपयोग) के सिद्धांत पर चलते हैं और उससे ज़्यादा भार को संभालने की क्षमता नहीं रखते। निजी स्वास्थ्य क्षेत्र सर्वोत्तम उपयोग के सिद्धांत पर चलता है, इसलिए बीमारी की एकदम अचानाक से उठी लहर से निपटने में सक्षम नहीं होता है। कोई भी निजी क्षेत्र का अस्पताल स्वेच्छा से अधिशेष बेड या अधिशेष वेंटिलेटर विकसित नहीं करेगा, क्योंकि सामान्य समय में इसका मतलब होगा कि अस्पतालों में अधिशेष क्षमता अप्रयुक्त रहेगी। और महामारी के समय में इसी कारण से संकट उत्पन्न होता है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कम सरकारी ख़र्च का मतलब है चिकित्सा के बुनियादी ढाँचे पर कम ख़र्च और चिकित्साकर्मियों के लिए कम वेतन। यह साधारण या असाधारण कैसे भी समय में एक आधुनिक समाज को चलाने का बेहद ख़राब तरीक़ा है।

 

 मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के ज़ेवियर चिट्टिलाप्पिल्ली मलयालम में ‘द इंटरनेशनेल’ गा रहे हैं; चिट्टिलाप्पिल्ली वड़ाक्काँचेरी, केरल से जीते हैं .

 

मोदी की पार्टीभाजपाकेरल के इस विधानसभा चुनाव में (एक भी सीट बिना जीते) निर्णायक रूप से हारी है6.8 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य तमिलनाडु में उनकी सहयोगी पार्टी हारी है, और 9.1 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य पश्चिम बंगाल में भी भाजपा हारी है। इन राज्यों का जनादेश ज़ाहिर तौर पर बाज़ार द्वारा संचालित चिकित्सा प्रणालियों द्वारा बनाई गई तबाही और एक निकम्मी सरकार के ख़िलाफ़ है। हालाँकि, यह कहा जा सकता है कि ये मोदी के समर्थन के आधार क्षेत्र नहीं हैं। मोदी के असल समर्थक बड़े पैमाने पर उत्तरी और पूर्वी भारत में हैं जहाँ कमसेकम अगले एक साल तक चुनाव नहीं होने वाला है। लेकिन, नवंबर 2020 में शुरू हुआ किसानों का संघर्ष संभवतः हरियाणा से लेकर गुजरात तक भारत के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में सत्ता का संतुलन बदल सकता है।

सरकार की क्रूर अक्षमता वैक्सिनेशन की स्थिति से समझी जा सकती है। भारत दुनिया के कुल टीकों में से 60% टीकों का उत्पादन कर रहा है। फिर भीजैसा कि  के प्रोफ़ेसर तेजल कनितकर ने कहा हैवर्तमान में जिस गति से काम चल रहा हो उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत नवंबर 2022 से पहले अपने टीकाकरण अभियान को पूरा नहीं कर सकेगा। यह परेशान करने वाली स्थिति है। कनितकर ने तीन नीतिगत सुझाव दिए हैं जो संवेदनशील हैं और जिन्हें तुरंत लागू किया जाना चाहिए:

  1. विनियमित क़ीमतों पर भारत सरकार टीकों को बड़े पैमाने पर ख़रीदे।
  2. केंद्र सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राज्य सरकारों के परामर्श से आपूर्ति दर निर्धारित कर सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में पारदर्शी टीका आवंटन योजना चलाए ताकि पूरे देश में बराबरी सुनिश्चित की जा सके।
  3. सभी आर्थिक वर्गों के बीच न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करने के लिए मेहनतकश जनता तक टीके पहुँचाने हेतु स्थानीय सरकारों के स्तर से संचालित कार्यक्रम चलाए जाएँ।

यह एक ऐसा कार्यक्रम है जो केवल भारत के लिए, बल्कि दुनिया के अधिकांश देशों के लिए ज़रूरी है।.

 

Junaina Muhammed, Captain and Teacher, 2021.

जुनैना मुहम्मद, कैप्टन एंड टीचर, 2021.

 

केरल में ख़ुशी का माहौल है, और पूरे देश के संवेदनशील लोग केरल की वामपंथी सरकार की ओर देख रहे हैं कि वो कैसे महामारी का प्रबंधन कर रही है और जनहित का एजेंडा आगे ले जा रही है। एक युवा कवि, जीवेश एम. ने जीत के इस माहौल को अपनी कविता में व्यक्त किया है:

फूल,

तुम इतने लाल क्यों हो?

 

जड़ें गहरी हैं,

तह तक जाती हैं।

इसलिए।

चुनाव से कुछ दिन पहले, किसी ने केरल की स्वास्थ्य मंत्री के. के. शैलजा से महामारी की स्थिति के बारे में पूछा था। उनके शब्दों के साथ मैं ये न्यूज़लेटर ख़त्म करता हूँ:

मुझे लगता है कि इस महामारी से दो अहम सबक़ मिले हैं। पहला ये कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली सुधारने के लिए देश में उचित योजना बनाने और विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन तंत्र स्थापित करने की ज़रूरत है। और दूसरा यह कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने में कोई देरी नहीं की जा सकती है। हम अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल एक प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र पर ख़र्च करते हैं; इसे कमसेकम दस प्रतिशत तक बढ़ाया जाना चाहिए। क्यूबा जैसे देश स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कहीं अधिक निवेश करते हैं। जब हमने केरल में फ़ैमिली हेल्थ सेंटर शुरू किया था तो क्यूबा के फ़ैमिली डॉक्टर्स सिस्टम से मैं बहुत प्रभावित हुई थी। स्वास्थ्य सेवा सार्वभौमिक होनी चाहिए, केवल तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में कुछ रेग्युलेशन हों। स्वास्थ्य क्षेत्र के प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तरों पर निवेश बढ़ाया जाना चाहिए। रेग्युलेशन के साथ विकेंद्रीकृत योजना होनी चाहिए। क्यूबा ने अपनी केंद्रीकृत योजना और विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन के कारण बहुत कुछ हासिल किया है। स्वास्थ्य सेवा की उनकी प्रणाली जनकेंद्रित और मरीज़केंद्रित है। उनका समतावादी तौरतरीक़ा और विकेंद्रीकरण यहाँ भी लागू किया जा सकता है। 

मैं एक वामपंथी हूँ। आज के समय में इस देश की स्वास्थ्य नीति पर मेरा कोई बस नहीं चल सकता है। लेकिन आज यदि केंद्र में वामपंथी सरकार होती, तो हम स्वास्थ्य और शिक्षा का राष्ट्रीयकरण कर देते। सरकार को स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर नियंत्रण रखना चाहिए ताकि सभी कोकोई ग़रीब हो या अमीरसमान उपचार मिल सके।

स्नेहसहित,

विजय।