श्रेय: वेलिंगटन लेनन / एमएसटी-पीआर

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

2019 की बात है, ब्राज़ील में ठिठुरन भरी सर्दियों के दिन थे, रेनाटा पोर्टो बुगनी (ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की उप-निदेशक), आंद्रे कार्डोसो (ब्राज़ील में हमारे कार्यालय के समन्वयक), और मैं कूर्टिबा में लूला लिवरे (‘लूला को रिहा करो’) कैंप में गए थे। जिस जेल में 15-वर्ग मीटर की कोठरी में पूर्व राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा को बंद किया गया था, उसी जेल के सामने यह कैंप लगाया गया था। लूला पिछले 500 दिनों से जेल में थे। लूला लिवरे कैंप में हर दिन सैकड़ों लोग लूला की हौसला अफ़ज़ाई के लिए आते और उन्हें गुड मोर्निंग, गुड डे, गुड नाइट आदि कहते। इसके अलावा कैंप का एक और मक़सद था, लूला को बंदी बनाकर रखने का विरोध करना। उसके अस्सी दिन बाद, लूला को जेल से रिहा कर दिया गया। उन पर लगे आरोप ख़ारिज हो गए थे, जानकार लोगों की नज़र में वे सभी बेतुके आरोप थे। 2 अक्टूबर 2022 को होने वाले देश के राष्ट्रपति चुनावों में लूला के जीतने की संभावना सबसे अधिक है।

सेंट्रल जेल के बाहर लगे कैंप की एक और विशेषता थी। वहाँ भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) के सदस्य लगातार उपस्थित रहे। उनके झंडे हर जगह दिख रहे थे। उनका कैडर लूला को रिहा कराने के संघर्ष में सबसे आगे था। यह संघर्ष कूर्टिबा से देश के कोने-कोने तक फैल गया था। किसी व्यक्ति या कॉर्परेशनों के नाम पर ख़ाली पड़ी बड़ी ज़मीनों (लातीफ़ंडीयोस) पर खेत-मज़दूरों और किसानों के अधिग्रहण से शुरू हुए एमएसटी आंदोलन का गठन, सैन्य तानाशाही (1964-85) के दौरान 1984 में हुआ था। पिछले चार दशकों में, इन किसानों ने पूरे ब्राज़ील में लाखों हेक्टेयर ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लैटिन अमेरिका में सबसे बड़ा सामाजिक आंदोलन खड़ा कर लिया है।

 

श्रेय: मिडिया निंजा

एमएसटी द्वारा अधिकृत इन जगहों पर लगभग पाँच लाख परिवार रहते हैं। इसका मतलब है कि एमएसटी लगभग बीस लाख लोगों को अपने साथ जोड़ने में सफल रहा है। लगभग एक लाख परिवार उन बंजर ज़मीनों पर कैम्पों में रहते हैं, जिनका उन्हें अभी औपचारिक तौर से अधिकार नहीं मिला है। चार लाख परिवार उन बस्तियों में रहते हैं, जहाँ की ज़मीन पर, ब्राज़ील के 1988 के संविधान में अध्याय तीन के अनुच्छेद 184 के प्रावधानों के माध्यम से उन्हें पक्का क़ब्ज़ा मिल चुका है। इस अनुच्छेद के अनुसार ‘सरकार सामाजिक हित के लिए, कृषि सुधार के उद्देश्य से, उस ग्रामीण संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है, जिस पर कोई सामाजिक कार्य नहीं हो रहा हो’। हालाँकि, यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि समय-समय पर ब्राज़ील की सरकार इन वैध बस्तियों में बसे परिवारों को वहाँ से बेदख़ल करने का प्रयास करती रहती है।

इन बस्तियों में रहने वाले लोग कई तरह की लोकतांत्रिक संरचनाओं के माध्यम से ख़ुद को संगठित करते हैं। वे अपने बच्चों के लिए स्कूल और ज़रूरतमंदों के लिए सामुदायिक रसोई चलाते हैं। वे अपनी ज़रूरतों को पूरा करने और बाज़ार में बेचने लायक़ खेती के लिए कृषि पारिस्थितिकीय तकनीकें विकसित कर रहे हैं। एमएसटी आंदोलन अब ब्राज़ील के सामाजिक परिदृश्य का हिस्सा बन चुका हैं; उत्तर में अमेज़न जंगलों से लेकर ब्राज़ील के दक्षिणी छोर पर स्थित अरोइओ चुई तक इन कैंपों/बस्तियों में फहराते आंदोलन के लाल झंडों के बिना ब्राज़ील की कल्पना करना असंभव है।

 

श्रेय: मिडिया निंजा

एमएसटी की इन महत्वपूर्ण गतिविधियों के पीछे एक सिद्धांत है। और कृषि सुधार जैसी अवधारणाओं में निहित वह सिद्धांत अलग-अलग जगहों पर दिखता है। हमारे संस्थान की उप-निदेशक, रेनाटा पोर्टो बुगनी ने एमएसटी आंदोलन के सिद्धांत और उसके लिए इतालवी कम्युनिस्ट एंटोनियो ग्राम्शी के लेखन की प्रासंगिकता के बारे में एमएसटी की राष्ट्रीय समन्वयन समिति के एक सदस्य नेउरी रोसेटो के साथ बातचीत की। ग्राम्शीलैब और सेंटरो पर ला रिफ़ोरमा डेल्लो स्टेटो से संयुक्त रूप से प्रकाशित यह इंटर्व्यू हमारे जुलाई, 2022 के डोजियर संख्या 54, ‘ग्राम्शी अमिड्स्ट ब्राज़ील’स लैंडलेस वर्कर्स मूव्मेंट’ में शामिल है। नेउरी, जैसा कि वे ख़ुद को कहलाना पसंद करते हैं, ने ग्राम्शी और एमएसटी के सामने खड़ी तीन प्रमुख चुनौतियों के बारे में हमसे अपने विचार साझा किया:

1) मानवता की दुविधाओं को दूर करने के प्रयासों (जैसे कृषि सुधार) में बाधा डालने वाले विरोधी तत्वों की सटीक पहचान करना;

2) प्रत्येक देश में एक राजनीतिक परियोजना के निर्माण के लिए मज़दूर वर्ग के साथ लगातार संवाद स्थापित करना; तथा

3) हमारे संघर्षों को आगे बढ़ाने वाली मुख्य ताक़तों की राजनीतिक और संगठनात्मक क्षमता को मज़बूत करना।

जैसा कि ग्राम्शी ने बताया था, आधिपत्य (Hegemony) लोगों के ‘सामान्य ज्ञान’ से एक नयी राजनीतिक परियोजना विकसित करने और उन विचारों को एक सुसंगत दर्शन में बदलने के प्रयासों से उभरता है। एमएसटी के लिए इस सिद्धांत की विस्तृत व्याख्या के केंद्र में कृषि सुधार है। नेउरी के अनुसार, इस सुधार परियोजना का केंद्रीय मक़सद है ‘भू स्वामित्व को लोकतांत्रिक बनाने के संघर्ष के साथ-साथ ब्राज़ील की आबादी के लिए स्वस्थ भोजन के उत्पादन पर केंद्रित एक कृषि मॉडल के लिए’ लड़ना। एमएसटी आंदोलन किसानों को केवल भूमि पर उनके नियंत्रण में सुधार करने हेतु संगठित नहीं करता, बल्कि कृषि उत्पादन पर भी उनके बेहतर नियंत्रण की क़वायद करता है। जैसे ज़हरीले रसायनों का इस्तेमाल न करना, जो कि श्रमिकों की ज़मीन और लोगों के स्वास्थ्य दोनों को नष्ट करता है। यही कारण है कि यह परियोजना अब उन उपभोक्ताओं के बीच में भी अपनी जगह बना रही है, जो ऐसे खाद्य पदार्थों में रुचि लेते हैं जो उनके लिए और पृथ्वी के लिए हानिकारक न हों। कृषि सुधार के हक़ में देश के 21.2 करोड़ लोगों को एकजुट करना ही एमएसटी का उद्देश्य है।

 

 

श्रेय: इगोर डी नदई

एमएसटी सामाजिक आंदोलन है या राजनीतिक दल? यह एक ऐसा सवाल है जो जिसका जवाब देना चालीस साल पहले भी आसान नहीं था, जब एमएसटी की शुरुआत हुई थी। लेकिन ग्राम्शी की नज़र में सामाजिक आंदोलनों और राजनीतिक दलों के बीच का अंतर ज़्यादा नहीं है। इस विषय पर नेउरी की टिप्पणी काफ़ी शिक्षाप्रद है:

वर्ग संघर्ष में बेहतर योगदान के लिए, हम संगठनात्मक तथा वैचारिक दोनों अर्थों में अपनी राजनीतिक ताक़तों की ज़िम्मेदारी व उनको सुधारने की आवश्यकता को समझते हैं। लेकिन, राजनीतिक दल की ठोस परिभाषा के अर्थ में हम अपनी भूमिका निभाने का दावा नहीं करते, क्योंकि हम मानते हैं कि यह राजनीतिक साधन हमारे दायरे से बाहर है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम निर्दलीय हैं या कि हम अपने को राजनीतिक दलों से ऊपर समझते हैं। हम मानते हैं कि मज़दूर वर्ग के आंदोलनों, ट्रेड यूनियनों और राजनीतिक दलों की समझ एक ऐसी सामाजिकता के निर्माण के लिए ज़रूरी है जो वैकल्पिक हो और बुर्जुआ आदेश के उलट हो। … हम सबाल्टर्न (हाशिए के) वर्गों को शिक्षित करने में राजनीतिक कार्रवाई और लोकप्रिय लामबंदियों के महत्व और उनकी ताक़त को कम करके नहीं देखते। आम जनता लोकप्रिय लामबंदियों में सीखती भी है और शिक्षित भी होती है। जन आंदोलन में ही संगठन की राजनीतिक शक्ति निहित है; यहीं से जनता का राजनीतिक-वैचारिक स्तर ऊँचा होता है।

तो कुल मिलाकर, एमएसटी किसान वर्ग की संगठनात्मक और वैचारिक ताक़त बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है, और यह सामाजिक मुक्ति के लिए एक राजनीतिक परियोजना बनाने के साथ-साथ ट्रेड यूनियन आंदोलनों और अन्य संगठनों के साथ भी काम करता है। इसीलिए, एमएसटी ब्राज़ील में लोकप्रिय परियोजना (प्रोजेटो ब्रासिल पॉपुलर) का निर्माण कर रहा है। नेउरी कहते हैं, ‘इस परियोजना का उद्देश्य एक ऐतिहासिक ब्लॉक को खड़ा करना है जो पूँजीवाद-विरोधी मुक्ति संघर्षों और मज़दूर वर्ग के हितों तथा उनकी ज़रूरतों को पूरा करने वाले तात्कालिक आर्थिक कद़मों को बढ़ावा दे’। इसलिए, मज़दूर वर्ग और किसानों का हौसला और शक्ति बढ़ाना एमएसटी की गतिविधियों का अहम हिस्सा है। इस काम का एक हिस्सा लूला की क़ैद के ख़िलाफ़ लड़ना रहा है।

 

नारा लेओ (ब्राज़ील) फ़ज़ एस्क्यूरो मास ईयू कैंटो (अँधेरा है, लेकिन मैं गाता हूँ) गा रही हैं (1966)

1962-63 में, ब्राज़ील में राष्ट्रपति जोआओ गौलार्ट के नेतृत्व में मध्यमार्गी-वामपंथी सरकार थी; और देश परिवर्तन तथा संभावना की ओर बढ़ रहा था। इस दौरान, अमेज़न के कवि थियागो डी मेलो (1926–2022) ने ‘मद्रुगाडा कैंपोनसा’ (किसान की भोर) कविता लिखी थी। यह कविता भोजन के साथ-साथ उम्मीद को रोपने में किसानों की कड़ी मेहनत को दर्शाती है। जब यह कविता 1965 में फ़ज़ एस्क्यूरो मास ईयू कैंटो (‘अँधेरा है लेकिन मैं गाता हूँ) नामक पुस्तक में प्रकाशित हुई, तब तक ब्राज़ील में राजनीतिक परिस्थिति बदल चुकी थी। अमेरिका के नेतृत्व में गॉलार्ट के ख़िलाफ़ हुए तख़्तापलट के बाद 1964 में सेना के पास सत्ता चली गई थी। कविता की पंक्ति ‘अँधेरा है, लेकिन मैं गाता हूँ क्योंकि सवेरा आना ही है’ एक नया अर्थ पा चुकी थी। उसके अगले साल, नारा लेओ ने इस कविता को गाकर इसे उस समय का ऐन्थम बना दिया। हम अपने इस न्यूज़लेटर को डी मेलो की कविता के साथ ख़त्म करते हैं। यह कविता किसानों और सत्ता, विशेषाधिकार तथा संपत्ति की तानाशाही के ख़िलाफ़ जनता के संघर्षों को एक श्रद्धांजलि है: 

जल्द ही (मैं हवा में महसूस कर रहा हूँ) 

गेहूँ पकने वाला है।

फ़सल काटने का समय होगा।

चमत्कार हो रहे हैं,

जैसे मकई के खेत में नीली बारिश,

फलियाँ फूटकर फूल बन रही हैं,

दूर लगे मेरे रबड़ के पेड़ों से 

नया रस गिरने लगा है। 

 

आशा की सुबह,

प्यार करने का समय लगभग आ चुका है।

मैं ज़मीन पर जल रहे एक उत्साही सूरज को काटता हूँ

और गन्ने के अंदर की रौशनी,

मेरी आत्मा को बनाता हूँ उसकी पताका।

 

किसान की भोर। ज़मीन पर अभी भी अँधेरा है,

किसान की सुबह में भी।

लेकिन बीज लगाना ज़रूरी है।

रात इससे भी स्याह थी,

सुबह आ ही जाएगी।

 

अकेलेपन को छलने में

डर और उपहास से बने

गीत की कोई जगह नहीं।

यह सच का समय है

जो सादगी के साथ हमेशा गाया जाए।

अब ख़ुशी का समय है

जो बनती है दिन-ब-दिन

रोटी और गीत के साथ।

 

ज़मीन पर अँधेरा है (पर इतना भी नहीं),

यह काम का समय है।

अँधेरा है लेकिन मैं गाता हूँ

क्योंकि सवेरा आना ही है।

(अँधेरा है, लेकिन मैं गाता हूँ)।

स्नेह-सहित

विजय।