प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

आज से दो साल पहले, मैं ब्राज़ील के साओ पॉलो राज्य में हमारे ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के ऑफ़िस से वैलिनहोस के बाहर स्थित कैम्प मारिएल विवे तक अपने सहयोगियों के साथ पैदल गया। कैम्प में चलते हुए मुझे लग रहा था जैसे मैं यहाँ पहले भी आ चुका हूँ। वो कैम्प दुनिया की किसी भी अन्य अत्यधिक ग़रीब लोगों की बस्तियों जैसा ही दिखता है। संयुक्त राष्ट्र की गणना के हिसाब से हमारे ग्रह पर आठ में एक व्यक्ति -यानी एक अरब लोग- ऐसी अनिश्चितता की स्थिति में रहते हैं। उस कैम्प के घर तिरपाल की नीली चादरों, लकड़ी के टुकड़ों, लोहे की लहरदार चादरों और पुरानी ईंटों जैसे  सामानों से मिलकर बने हुए थे। कैम्प मारिएल विवे का नाम ब्राज़ील के समाजवादी मारिएल फ्रेंको के नाम पर रखा गया है, जिनकी मार्च 2018 में हत्या कर दी गई थी। इस कैम्प में एक हज़ार परिवार रहते हैं। 

कैम्प मारिएल विवे अन्य ‘झुग्गियों’ से अलग है। झुग्गी शब्द से कई नकारात्मक अर्थ जुड़े हैं। झुग्गियों में अक्सर निराशा फैली होती हैं, और आपराधिक गिरोह या धार्मिक संगठन उनके लिए ‘उम्मीद’ की किरण होते हैं। लेकिन कैम्प मारिएल विवे का माहौल अलग है। भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) के झंडे हर जगह दिखाई देते हैं। कैम्प के निवासी मिलनसार हैं, उनमें से कई लोगों ने अपने संगठन का टी-शर्ट या कैप पहन रखा था। पूरा माहौल तैयारी का लगता है: स्थानीय अधिकारियों द्वारा झुग्गियाँ हटाने की कार्रवाइयों में अपने कैम्प को बचाने की तैयारी और अपने लिए एक ढंग का समुदाय बनाने की तैयारी।

 

कैम्प मारिएले विवे की सामुदायिक रसोई, 2019

 

कैम्प के बीच में एक सामुदायिक रसोई है जहाँ कुछ निवासी तीनों समय का भोजन करते हैं। भोजन सादा लेकिन पौष्टिक होता है। पास में ही एक छोटा-सा क्लिनिक है, जहाँ सप्ताह में एक बार एक डॉक्टर आते हैं। कैम्प के घरों के बाहर फूलों की क्यारियाँ और सब्ज़ियों के बग़ीचे हैं। पास के शहर के नगरपालिका अधिकारियों ने कैम्प के बच्चों को शहर के स्कूल तक ले जाने वाली स्कूल बस रोक दी। जब कैम्प के लोग अपने बच्चों को हर दिन स्कूल ले जाने और वहाँ से लाने का संघर्ष कर रहे थे, तब कैंप मारिएल विवे ने स्कूल के बाद की गतिविधियों के लिए एक ऑन-साइट कक्षा का निर्माण किया। ये कक्षा महामारी के दौरान भी चलती रही।

एमएसटी के तस्सी बर्रेटो ने अगस्त 2021 की शुरुआत में मुझे बताया कि उस कैम्प में कोविड-19 से एक भी मौत नहीं हुई है क्योंकि उन्होंने ‘संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए  ठोस कार्रवाई की’। स्थानीय नगर पालिका ने कैम्प में पानी का इंतज़ाम नहीं किया, और जैसाकि बर्रेटो कहते हैं कि यह ‘एक मानवाधिकार अपराध’ है। लेकिन कैम्प के निवासियों ने अपनी सामूहिक गतिविधियों का विकास करना, सामुदायिक रसोई और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को मज़बूत करना, और बग़ीचों में सब्ज़ियाँ उगाना जारी रखा। सब्ज़ियों का बग़ीचा मंडल के आकार में बनाया गया है। उनका बग़ीचा इतना उत्पादक रहा है कि वे वैलिनहोस और कैम्पिनास जैसे पास के शहरों में सब्ज़ियाँ बेचने लगे हैं।

ऑन-साइट क्लास कैंप मारिएल विवे के एक प्रमुख हिस्से में बनी है। लेकिन, बर्रेटो ने मुझे बताया कि, ‘स्कूल जाने की उम्र के बच्चों और युवाओं को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि [नगरपालिका स्कूल में] फ़ेस-टू-फ़ेस कक्षाएँ नहीं हो रही थीं और केवल वर्चूअल गतिविधियाँ हो रहीं थीं जिनमें वे भाग नहीं ले सकते थे’। कैम्प नेताओं ने कुछ नया सोचा: और हर दो हफ़्ते पर प्रिंट कर बच्चों में वर्क्शीट बाँटे -और क्योंकि पब्लिक स्कूल उनकी वर्क्शीट चेक नहीं कर सकते थे- तो उन्होंने इसके लिए पास के एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय, यूएनआईसीएएमपी, के शिक्षकों से बात की। बच्चों को शिक्षा दे पाना एक गंभीर चुनौती रही है।

 

 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान से हमने इस महीने ‘कोरोनाशॉक और ब्राज़ील में शिक्षा: डेढ़ साल बाद’ डोज़ियर प्रकाशित किया है। इसमें महामारी के परिणामस्वरूप सार्वजनिक शिक्षा में आए संकट के बारे में गहराई से बताया गया है। हमारे डोज़ियर में हमने यूनिसेफ़ के एक अध्ययन का हवाला दिया है, जिसके अनुसार, ब्राज़ील में 2020 के अंत तक, लगभग 15 लाख बच्चों और किशोरों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और 37 लाख बच्चे औपचारिक रूप से नामांकित थे लेकिन दूरस्थ कक्षाओं तक पहुँचने में असमर्थ थे।

संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि दुनिया भर में 90% छात्र -157 करोड़ बच्चे- महामारी के समय में फ़ेस-टू-फ़ेस स्कूली शिक्षा में भाग लेने में असमर्थ रहे, उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई करना पड़ा। लेकिन, हाल ही में यूनेस्को के द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया की आधी आबादी के पास इंटरनेट कनेक्शन नहीं है। यानी 360 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट नहीं है। इस अध्ययन के अनुसार, ‘ऑनलाइन लर्निंग की नीतियों की कमी या घर से [ऑन-लाइन] जुड़ने के लिए आवश्यक उपकरणों की कमी के चलते, दुनिया भर में कम-से-कम 46.3 करोड़ या लगभग एक-तिहाई छात्र दूरस्थ शिक्षा तक नहीं पहुँच सकते हैं’। दुनिया की आधी आबादी के पास इंटरनेट नहीं है, और जो इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं उनमें से भी बहुत से लोग दूरस्थ शिक्षा में भाग लेने के लिए आवश्यक तकनीकों और उपकरणों का ख़र्च नहीं उठा सकते हैं। लैंगिक डिजिटल ग़ैर-बराबरी और भी ज़्यादा गहरी है: कम विकसित देशों में, केवल 15% महिलाओं ने और तथाकथित विकसित दुनिया में 86% महिलाओं ने 2019 में इंटरनेट का उपयोग किया था।

डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में आए बदलाव से बड़ी कॉर्परेशनों को सार्वजनिक शिक्षा से आम लोगों को वंचित करने की ताक़त मिली है, जिससे आम बच्चों के लिए किसी भी स्तर की शिक्षा तक पहुँच पाना मुश्किल होता जा रहा है। बड़े कॉर्परेशन इस अवसर को स्पष्ट रूप से देख रहे हैं। जैसा कि माइक्रोसॉफ्ट ने कहा, ‘कोविड-19 के परिणामस्वरूप, डिजिटल प्रौद्योगिकी में निरंतर प्रगति, और छात्र-केंद्रित अधिगम की तीव्र माँग ने शिक्षा की संपूर्ण प्रणालियों में बदलाव का अभूतपूर्व अवसर प्रदान किया है’। जैसा कि ब्राज़ील के यूथ मूव्मेंट (लेवेंटे पॉपुलर दा जुवेंटुडे) की बिया कार्वाल्हो ने हमारे डोज़ियर के लिए हमें बताया कि, ‘इन व्यवसायियों के लिए, दूरस्थ शिक्षा अधिक लाभजनक है क्योंकि इससे वो अपने ख़र्चों में कटौती कर सकते हैं और बहुत बड़ी संख्या में बच्चों तक पहुँच सकते हैं। शिक्षा को एक वस्तु के रूप में देखने के दृष्टिकोण से, जहाँ वे कक्षाएँ बेचते हैं, दूरस्थ शिक्षा अधिक तर्कसंगत लगती है’। निजी डिजिटल शिक्षा प्रणालियों का बड़े पैमाने पर विस्तार करने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग पहले ही किया जा चुका है।

 

 

हमारे डोज़ियर के अंत में तीन प्रमुख मुद्दों को उजागर किया गया है: सार्वजनिक शिक्षा के बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता (और शिक्षा के बढ़ते निजीकरण को रोकना); शिक्षकों के व्यावसायिक विकास को महत्व देने, और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए  सहयोग की आवश्यकता; और एक नयी शैक्षिक परियोजना के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता। सबसे आख़िरी मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है। यह मुद्दा शिक्षा के उद्देश्य पर सवाल खड़े करता है, और एक ऐसा मंच तैयार करता है जहाँ युवा अपने समाज, अपने मूल्यों, अपने सामाजिक संस्थानों और उनके मूल्यों के बीच की विसंगति के बारे में प्रश्न पूछना सीखते हैं, और उस विसंगति को ख़त्म करने की दिशा में प्रयास करना सीखते हैं। 2011 में चिली, 2015 में दक्षिण अफ्रीका में और 2015-16 में भारत में हुए छात्र आंदोलनों और हमारे डोज़ियर को एक ही कड़ी जोड़ती है। इस नयी शैक्षिक परियोजना को विस्तृत करना एक मूलभूत आवश्यकता है।

 

कैम्प मारिएल विवे में स्कूल के बाद की ऑन-साइट कक्षा, 2021 (संचार विभाग, एमएसटी-साओ पॉलो के सौजन्य से)

 

2019 में कैम्प मारिएल विवे में चलते हुए, हमने दो युवा महिलाओं, केटली जुलिया और फर्नांडा फ़र्नांडीस से बात की थी। उन्होंने हमें अपनी स्कूली शिक्षा और कैम्प में चलने वाली अंग्रेज़ी कक्षाओं के बारे में बताया था। अब पिछले दो वर्षों में, केटली अन्य महिलाओं के साथ अपने समुदाय की एक प्रमुख नेता बन गई है। अपने स्वास्थ्य की चुनौतियों से लड़ते हुए, वो सब्ज़ियों के बाग़ीचे में काम करती, स्टोर-रूम में मदद करती है और डोनेशन से आए कपड़ों और कंबलों का प्रबंधन करती है।

बर्रेटो ने मुझसे कहा, ‘बर्बरता के बीच में भी उम्मीद हमेशा प्रकट होने का एक तरीक़ा ढूँढ़ लेती है’। केटली अब गर्भवती है, बर्रेटो ने कहा, ये ‘एक ख़ुशी जो हमें संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित करती है’। फ़र्नांडा अब साओ पॉलो के पास स्थित कैम्प इरमा अल्बर्टा में रहती है, जहाँ वह एमएसटी की सदस्य भी है और दो बच्चों की परवरिश करती है। फ़र्नांडा के बच्चे और केटली का आने वाला बच्चा उम्मीद देते हैं, लेकिन उन्हें एक मानवीय और आशावादी शैक्षिक परियोजना के साथ इस दुनिया में बड़े होने की उम्मीद भी चाहिए।

1942 में, अंग्रेज़ी कवि, समाजवादी और शांतिवादी स्टीफ़न स्पेंडर ने ‘एन एलीमेंट्री स्कूल क्लासरूम इन ए स्लम’ लिखी थी। स्पेंडर ने लिखा है कि, स्लम स्कूल के बच्चों का भविष्य ‘कोहरे से रंगा’ हुआ है और ‘क़यामत जितनी बड़ी झुग्गियों से भरे हैं’ उनके नक़्शे हैं। हमें उस झुग्गी की खिड़कियाँ तोड़नी होंगी, स्पेंडर ने लिखा था,

इन बच्चों के चेहरे ऊर्जावान लहरों से बहुत दूर हैं।

बेजड़ खरपतवारों की तरह, उनके पीलेपन के चारों ओर फटे बाल: 

कमज़ोरी से झुके सर वाली लंबी लड़की। कागज़-सा

लड़का, चूहे जैसे आँखों वाला। मुड़ी हुई हड्डियों का 

नाटा, बदक़िस्मत वारिस, अपनी मेज़ पर से 

एक पिता की बीमारी का पाठ सुनाता है। धुँधलके कमरे में सबसे पीछे

एक अनजाना, प्यारा तरुण। उसकी आँखें सपने में रहती हैं

इन सब से अलग, पेड़ के कमरे में गिलहरी के खेल का सपना।

 

उदास फीकी दीवारों पर, भेंट की गई तस्वीरें हैं। शेक्सपियर का सर,

जैसे बिन-बादल सवेरा, या तमाम शहरों पर बसा एक सभ्य गुंबद।

बेलदार, फूलों से सजी टायरोलीस घाटी। शानदार नक़्शा

दुनिया को उसकी दुनिया पुरस्कृत करता। और फिर भी, इन बच्चों

के लिए, ये खिड़कियाँ, ये नक़्शा नहीं, इनकी दुनिया हैं,

जहाँ उनका भविष्य कोहरे से रंगा है,

एक संकरी गली सीसे के आसमान से ढकी हुई 

नदियों, केपों और शब्दों के सितारों से बहुत दूर।

 

हाँ, शेक्सपियर कपटी लगता है, नक़्शा एक बुरा उदाहरण है।

जहाज़ और सूरज और प्यार उन्हें चोरी करने के लिए लुभाते हैं-

क्योंकि जीवन चालाकी से उनके तंग बिलों में बदल जाता है

कोहरे से अंतहीन रात तक? अपनी मुसीबतों के पहाड़ पर बैठे, इन बच्चों की

त्वचा में से हड्डियाँ झाँकती हैं और जोड़े गए काँच 

से जड़े इनके स्टील के चश्में, लगते हैं पत्थरों पर बोतल के टुकड़ों जैसे।

उनका सारा समय और जगह धुंधली झुग्गी है।

इसलिए उनके नक़्शे क़यामत जितनी बड़ी झुग्गियों से भरे हैं।

 

जब, राज्यपाल, निरीक्षक, आगंतुक, चाहेंगे

यह नक़्शा उनकी खिड़की बन जाएगा और ये खिड़कियाँ

जिन्होंने उनकी ज़िंदगियों को क़ब्रों की तरह बंद कर रखा है,

टूट जाएँगी, और खुल जाएँगी शहर के बाहर तक

और बच्चों को हरे-भरे खेत दिखाएँगी, उनकी दुनिया को

सोने की रेत पर आसमानी कर देंगी, और किताबों पर 

उनकी जीभों को दौड़ने देंगी नंगा [क्योंकि] सफ़ेद और हरे पत्तियाँ खोलेंगी

इतिहास उनका जिसकी भाषा सूरज है।

स्नेह-सहित,

विजय।