राक्वेल फोरनर (अर्जेंटीना), फिन-प्रिंसिपियो (‘अंत की शुरुआत’), 1980.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन। 

यूनाइटेड किंगडम में अराजकता का शासन है, जहाँ लंदन में प्रधानमंत्री का निवास – 10 डाउनिंग स्ट्रीट – देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक, ऋषि सुनक, के रहने के लिए तैयार किया जा रहा है। लिज़ ट्रस केवल 45 दिनों के लिए प्रधानमंत्री रहीं, क्योंकि साइकल मज़दूरों की हड़तालों ने उनकी सरकार को हिलाकर रख दिया और उनकी नीतियों भी औसत दर्जे की थीं। अपने मिनी बजट में, जिसने उनकी सरकार को गिरा दिया, ट्रस ने कर कटौती में बढ़ौतरी और सामाजिक लाभ में अनजाने में कटौती करके ब्रिटिश जनता पर पूरी तरह से नवउदारवादी हमले का विकल्प चुना। इन नीतियों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय वर्ग को चौंका दिया, जिनकी राजनीतिक भूमिका स्पष्ट रूप से उभरकर आई क्योंकि धनी बॉन्डधारकों ने सरकारी बॉन्डों को रद्द करके यह संकेत दिया कि यूके की सरकार में अब उनका विश्वास कम हुआ है, जिससे सरकारी उधार की लागत में वृद्धि हुई और घर के मालिकों के लिए घर के लोन की क़िस्त महंगी हुई। धनी बॉन्डधारक वर्ग ने ही ट्रस सरकार का वास्तविक विरोध किया। यहाँ तक ​​​​कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने भी एक सख़्त बयान जारी करके इन धनी बॉन्डधारकों के पक्ष का समर्थन किया, जिस बयान में कहा गया था कि ‘यूके सरकार के इन उपायों से असमानता और बढ़ेगी’।

 

Duilio Pierri (Argentina), Retorno de los restos (‘Return of the Remains’), 1987.

डुलियो पिएरी (अर्जेंटीना), रेटोर्नो डी लॉस रेस्टोस (‘रिटर्न ऑफ़ द रिमेन’), 1987.

 

बढ़ी हुई असमानता के बारे में आईएमएफ़ की चिंता आश्चर्यजनक है। 1944 में स्थापित आईएमएफ़ ने अपने 78 सालों के इतिहास में शायद ही कभी बढ़ती असमानता की घटना पर ध्यान दिया हो। वास्तव में दक्षिणी गोलार्ध के अधिकांश देश इसकी नीतियों के कारण ‘उदारवादी जाल’ में फँस गए हैं, जिसे निम्नलिखित प्रक्रियाओं द्वारा आकार दिया गया था:

  • लूट के पुराने औपनिवेशिक इतिहास के कारण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के नये राष्ट्रों को अपने पूर्व औपनिवेशिक शासकों से धन उधार लेना पड़ा।
  • जिन बुनियादी ढाँचों का निर्माण औपनिवेशिक काल के दौरान नहीं किया गया उनके निर्माण के लिए पैसे उधार लिए गए, इसका मतलब था कि ऋण के माध्यम से मिला पैसा लंबी अवधि की परियोजनाओं में लग गया और उनसे किसी तरह की आय नहीं हुई।
  • इनमें से अधिकांश देशों को ऋणों के ब्याज का भुगतान करने के लिए और अधिक धन उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 1980 के दशक में तीसरी दुनिया का ऋण संकट पैदा हुआ।
  • आईएमएफ़ ने ऋण चुकाने के लिए उधार लेने में सक्षम होने की शर्त के रूप में इन देशों के भीतर नवउदारवादी नीतियों को लागू करने के लिए संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों का उपयोग किया। नवउदारवादी नीतियों ने अरबों लोगों को दरिद्र बना दिया, जिनके सस्ते श्रम से अमीर तबक़े ने धन संचय किया और यह चक्र चलता रहा। ग़रीबों ने पसीना बहाकर वैश्विक कमोडिटी शृंखला का निर्माण किया जिसका लाभ मुट्ठी भर समृद्ध लोगों ने उठाया।
  • ग़रीब आबादी का मतलब था, बढ़ते औद्योगीकरण के बावजूद, दक्षिणी गोलार्ध के देशों में कम सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर कम ख़र्च। संसाधनों की लूट की वजह से दो बातें हुई, जनता के जीवन के स्तर में सुधार करने के लिए पर्याप्त धन नहीं रहा और सरकरों को ऋण चुकाने तथा नया ऋण लेने के लिए बहुत ऊँचे ब्याज दरों का भुगतान करना पड़ा। यही कारण है कि 1980 से, दक्षिणी गोलार्ध के देशों ने अपने ऋणों पर ब्याज का भुगतान करने के लिए 4.2 ट्रिलियन डॉलर के सार्वजनिक धन को अपने देश से बाहर भेजा। इस लूट को और अधिक जटिल बनाने वाला तथ्य यह है कि 1980 से 2016 के दौरान व्यापार के ग़लत चालान और ग़लत मूल्य निर्धारण के साथ-साथ भुगतान संतुलन और रिकॉर्ड किए गए वित्तीय हस्तांतरण में रिसाव के माध्यम से अतिरिक्त 16.3 ट्रिलियन डॉलर दक्षिणी गोलार्ध के देशों से बाहर गया।

 

एंटोनियो बर्नी (अर्जेंटीना), रमोना एस्पेरा (‘रमोना का इंतज़ार’), 1964.

 

दक्षिणी गोलार्ध के देशों की नियमित दरिद्रता की इस प्रक्रिया के कुरूप पक्ष का उल्लेख हमारे डोजियर संख्या 57 में विस्तार से किया गया है। द जियोपॉलिटिक्स ऑफ़ इनइक़ुवैलिटी: डिसकसिंग पाथवेज़ टुवर्ड्स अ मोर जस्ट वर्ल्ड (असमानता की भू-राजनीति: एक अधिक न्यायपूर्ण विश्व बनाने के तरीक़े पर चर्चा) (अक्टूबर 2022)। उपलब्ध आँकड़ों के विस्तृत विश्लेषण के आधार पर ब्यूनस आयर्स में हमारे कार्यालय द्वारा तैयार किए गए डोजियर से पता चलता है कि असमानता एक वैश्विक घटना है, लेकिन आजीविका में भारी कमी दक्षिणी गोलार्ध के देशों में अनुभव की जाती है। उदाहरण के लिए, डोजियर बताता है कि ‘दुनिया के 163 देशों में केवल 32% परिवारों की आय वैश्विक औसत से अधिक है। कुल मिलाकर, परिधि पर के कुछ ही देशों की आय औसत आय से अधिक है, जबकि केंद्र के 100% देशों की आय औसत आय से अधिक है।

भले ही औद्योगिक उत्पादन का केंद्र अब उत्तरी गोलार्ध की जगह दक्षिणी गोलार्ध के देशों में चला गया है, फिर भी यह ‘असमानता की भू-राजनीति’ बनी हुई है। श्रम के वैश्विक विभाजन और बौद्धिक संपदा अधिकारों के वैश्विक स्वामित्व के संदर्भ में औद्योगीकरण का अर्थ यह हो गया है कि औद्योगिक उत्पादन दक्षिणी गोलार्ध के देशों में होने के बावजूद इसका लाभ वहाँ को लोगों को नहीं मिलता है। डोजियर इस बात को रेखांकित करता है कि ‘एक आदर्श मामला उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्र का है, जिसका उत्तर के विनिर्माण उत्पादन में 185% की भागीदारी है, लेकिन इन देशों में प्रति व्यक्ति आय अमीर देशों की प्रति व्यक्ति आय का केवल 15% है।’  साथ ही, ‘दक्षिणी गोलार्ध के देश उत्तरी गोलार्ध के देशों की तुलना में 26% अधिक वस्तुओं का उत्पादन करता है लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में उसकी आय उत्तरी गोलार्ध की तुलना में 80% से कम है।

दक्षिणी गोलार्ध के देशों में औद्योगीकरण हो रहा है, लेकिन ‘वैश्विक पूँजीवाद के केंद्र अभी भी उत्पादक प्रक्रिया और मौद्रिक पूँजी को नियंत्रित करते हैं जो उत्पादन संचयन के चक्र को बढ़ावा देते हैं’। पूँजीवादी व्यवस्था (उद्योग और वित्त) पर नियंत्रण के ये रूप अरबपतियों (जैसे ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री, ऋषि सनक) की संपत्ति में निरंतर वृद्धि के साथ-साथ बहुत से लोगों की दरिद्रता में इज़ाफ़ा करने में अपना योगदान देते हैं, इन ग़रीब लोगों में से अधिकांश लोग चाहे कितनी भी मेहनत कर लें उनकी ग़रीबी कम नहीं नहीं होती। उदाहरण के लिए, महामारी के शुरुआती वर्षों के दौरान, ‘हर 26 घंटे में एक नया अरबपति सामने आया, जबकि 99% आबादी की आय कम हुई’।

 

नोरा पैट्रिच और कार्लोस सेसानो (अर्जेंटीना), हिस्टोरिया, वर्दाद, लेयस (‘इतिहास, सच्चाई, क़ानून’), 2012.

 

हमारा डोजियर एक अधिक न्यायपूर्ण विश्व की दिशा में आगे बढ़ने के लिए असमानता के पुनरुत्पादन का विश्लेषण पाँच सूत्री योजना के साथ समाप्त होता है। ये बिंदु एक संवाद के लिए आमंत्रित करता है।

  1. वैश्विक शृंखलाओं का आंशिक विच्छेद। इसके अंतर्गत, हम नये व्यापार और विकास व्यवस्थाओं का आह्वान करते हैं, जिसमें उत्तरी गोलार्ध की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्मित वैश्विक कमोडिटी शृंखलाओं के बजाये दक्षिणी गोलार्ध की अधिक सहभागिता तथा अधिक क्षेत्रीय हिस्सेदारी हो।
  2. राज्य द्वारा राजस्व का विनियोजन। राजस्व के विनियोजन में कराधान (या राष्ट्रीयकरण) के माध्यम से राज्य का ठोस हस्तक्षेप (जैसे भूमि किराए के साथ-साथ खनन और तकनीकी राजस्व) शासक वर्ग की आय वृद्धि को कम करने की कुंजी है।
  3. सट्टा पूँजी का कराधान। दक्षिणी गोलार्ध के देशों से बड़ी मात्रा में पूँजी पलायन करती है, जिसे तब तक क़ब्ज़े में नहीं किया जा सकता जब तक कि सट्टा पूँजी पर पूँजी नियंत्रण या कर न हो।
  4. सामरिक वस्तुओं और सेवाओं का राष्ट्रीयकरण। दक्षिणी गोलार्ध की अर्थव्यवस्थाओं के प्रमुख क्षेत्रों का निजीकरण किया गया है और वैश्विक वित्त पूँजी द्वारा ख़रीदा गया है। ये सभी उपक्रम अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाने के लिए किया गया है जो वित्त पूँजी के हितों का ध्यान रखता है, श्रमिकों का नहीं।
  5. कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत अप्रत्याशित लाभ का कराधान। उत्पादन को बढ़ाने या बहुसंख्यक लोगों के आय को बढ़ाने और उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर करने के बजाये फ़र्मों के अत्यधिक मुनाफ़े को बड़े पैमाने पर सट्टा बाज़ार में लगा दिया जाता है। अत्यधिक लाभ पर कर लगाना इस अंतर को पाटने की दिशा में एक क़दम होगा।

 

बया महिद्दीन (अल्जीरिया), महिला और मयूर, 1973.

 

लगभग पचास साल पहले, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) और G77 द्वारा आयोजित एक बैठक में दक्षिणी गोलार्ध के देशों ने न्यू इंटरनेशनल इकोनॉमिक ऑर्डर (NIEO) नामक एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया और 1 मई 1974 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसे पारित कराया। एनआईईओ ने व्यापार और विकास के लिए एक ऐसा दृष्टिकोण सामने रखा जिसमें उत्तरी गोलार्ध पर दक्षिणी गोलार्ध की निर्भरता को कम करने की बात की गई थी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को लेकर विशिष्ट प्रस्तावों के साथ, एक नयी वैश्विक मौद्रिक प्रणाली का निर्माण, आयात प्रतिस्थापन का रखरखाव, कार्टेलाइजेशन, और खाद्य संप्रभुता बढ़ाने और कच्चे माल की बिक्री के लिए उच्च मूल्य अर्जित करने के साथ-साथ दक्षिण गोलार्ध के देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए अन्य रणनीतियों पर चर्चा की गई थी।

हमारे डोजियर में ऐसे कई प्रस्ताव हैं जो एनआईईओ से लिए गए हैं जिनमें हमारे समय के हिसाब से थोड़ा फेर बदल किया गया है। अल्जीरिया के राष्ट्रपति होउरी बौमेदिएन ने 1973 में अल्जीयर्स में NAM की बैठक में NIEO को आगे बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पारित होने के एक साल बाद, बौमेदिएन ने कहा कि दुनिया ‘एक तरफ़ वर्चस्व और लूट की द्वंद्वात्मकता और दूसरी तरफ़ मुक्ति और वसूली की द्वंद्वात्मकता’ की चपेट में है। बौमेदिएन ने कहा कि यदि NIEO पास नहीं हुआ और अगर उत्तरी गोलार्ध ने ‘तीसरी दुनिया के देशों से संबंधित संसाधनों के फल के नियंत्रण और उपयोग’ को स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया, तो इसका परिणाम एक ‘अनियंत्रित संघर्ष’ होगा। हालाँकि, NIEO को स्थापित करने की अनुमति देने के बजाय पश्चिम ने एक ऐसी नीति चलाई जिसने तीसरी दुनिया के ऋण संकट को जन्म दिया, जिससे एक ओर ‘नवउदारवादी जाल’ और दूसरी ओर आईएमएफ़ विरोधी दंगे हुए। तब से इतिहास आगे नहीं बढ़ा है।

1979 में, तंजानिया के राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे ने NIEO की विफलता और तीसरे विश्व के ऋण संकट के जन्म के बाद कहा कि ‘ग़रीबों का ट्रेड यूनियन’ बनाने की आवश्यकता है। ऐसी राजनीतिक एकता उस समय नहीं उभरी और न ही हमारे समय में ऐसा कोई ‘ट्रेड यूनियन’ है। इसका निर्माण ज़रूरी है।

स्नेह-सहित,

विजय।