कॉमरेड एन. संकरैया (1922-2023) को समर्पित

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

हमारे समय की एक ख़ास बात यह है कि धुर दक्षिणपंथी ताक़तें उदार लोकतंत्र की स्थापित संस्थाओं के प्रति काफी सहज भाव रखती हैं। कहींकहीं किसी असंतुष्ट राजनीतिक नेता के उदाहरण मिल जाते हैं, जो चुनाव में अपनी हार को स्वीकार करने से इनकार करते हैं (जैसे कि डोनाल्ड ट्रम्प और जायर बोल्सोनारो) और फिर अपने समर्थकों से गैरसंसदीय कदम उठाने का आह्वान करते हैं (ऐसा हमने 6 जनवरी 2021 को संयुक्त राज्य अमेरिका में और फिर उसी तरह से 8 जनवरी 2023 को ब्राज़ील में देखा)। लेकिन, कुल मिलाकर, धुर दक्षिणपंथी ताक़तें यह जानती हैं कि वे जो कुछ भी करना चाहते हैं उसे उदार लोकतंत्र की संस्थाओं के माध्यम से हासिल किया जा सकता है। क्योंकि ये संस्थाएँ उनके काम में रुकावट नहीं बनतीं।

उदारवाद की राजनीतिक परियोजनाओं और धुर दक्षिणपंथियों के बीच इस घातक, घनिष्ठ गठजोड़ को दो तरीकों से समझा जा सकता है। पहला तो यह कि दक्षिणपंथी ताकतें अपने लाभ के लिए अपने देशों के उदार संविधान और संस्थानों में कोई बड़ा बदलाव किए बिना उनका उपयोग बहुत सहज रूप से करती हैं। यदि एक धुर दक्षिणपंथी सरकार एक उदार संविधान की अपने तरीक़े से व्याख्या कर सकती है और इस संवैधानिक ढांचे की संस्थाओं और कर्मचारियों को इस तरह की दक्षिणपंथी व्याख्या से कोई खिलाफत नहीं हो तो उदारवादी ढांचे के खिलाफ तख़्तापलट करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती। उसे अंदर से खोखला किया जा सकता है।

दूसरा, यह घनिष्ठ लेकिन घातक गठजोड़ बर्बर पूंजीवाद की सामाजिक दुनिया को परिभाषित करने वाली क्रूरता की संस्कृतियों (जैसा कि ऐज़ाज़ अहमद ने कहा था) के भीतर होता है। जीवित रहने के लिए पूंजी हेतु काम करने को मजबूर और लगातार अनिश्चित व अलगथलग करने वाली नौकरियों में लगे श्रमिकों को पता चलता है कि पैसा ही असली समुदाय‘ (जेमिनवेसेन) है और आदमी पैसा बनाने का साधन या उसका ग़ुलाम है। कार्ल मार्क्स ने इसके बारे में 1857/58 में लिखा था। वास्तविक समुदाय की देखभाल से वंचित, श्रमिक लंबे व कठिन कार्यदिवस के नरक और लंबी व कठिन बेरोज़गारी के बीच झूलता जीवन जीने को मजबूर हैं। राज्य द्वारा प्रदत्त सामाजिक कल्याण सेवाओं की अनुपस्थिति और मजदूरों के नेतृत्व वाली सामुदायिक संस्थाओं के पतन से क्रूरता की संस्कृतियाँउत्पन्न होती हैं, जिनमें घर से लेकर सड़कों पर हिंसा सामान्य है। यह हिंसा अक्सर शोरशराबे के बिना होती है और सत्ता की पारंपरिक संरचनाओं (जैसे, पितृसत्ता और मूलनिवासीवाद आदि) को मजबूत करती है। धुर दक्षिणपंथ की शक्ति का स्रोत इन क्रूरता की संस्कृतियोंमें निहित है, जो कभीकभी सामाजिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के जघन्य कृत्यों को जन्म देती है।

 

बर्बर पूंजीवाद ने उत्पादन का वैश्वीकरण कर दिया है और संपत्ति मालिकों (व्यक्तियों और निगमों) को उदार लोकतंत्र के मानदंडों, जैसे करों का उचित हिस्सा चुकाना आदि, का पालन करने से भी मुक्त कर दिया है। बर्बर पूंजीवाद की यह राजनीतिक आर्थिक संरचना एक नवउदारवादी सामाजिक व्यवस्था को जन्म देती है, जो मजदूर वर्ग और किसानों पर मितव्ययता थोपती है, काम के घंटे बढ़ाकर मजदूरों को समुदाय से अलगथलग करती है, मजदूरों द्वारा चलाए जाने वाले सामाजिक संस्थानों को नष्ट करती है और कुल मिला कर मजदूरों से उनका फ़ुरसत का समय छीनती है। दुनिया भर के उदार लोकतांत्रिक देश समयसमय पर अपनी आबादी का समयउपयोग सर्वेक्षण (टाइमयूज़ सर्वे) करते हैं ताकि यह जाना जा सके कि उनकी जनता अपना समय कैसे व्यतीत करती है। लेकिन कोई भी सर्वेक्षण इस बात पर ध्यान नहीं देता है कि क्या श्रमिकों और किसानों के पास फ़ुरसत का कोई समय है या नहीं, या वे अपने ख़ाली समय को कैसे व्यतीत करना चाहते हैं, और क्या जनता के लिए कम होता फ़ुरसत का समय उनके देश में सामान्य सामाजिक विकास के लिए चिंता का विषय है या नहीं। हम संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के 1945 के संविधान से बहुत दूर हैं, जिसमें शब्द और छवि द्वारा विचारों के मुक्त प्रवाहतथा लोकप्रिय शिक्षा को नई गति देने और संस्कृति के प्रसारकी आवश्यकता पर जोर दिया गया था। मानवता की दुविधाओं के बारे में सामाजिक चर्चाओं को चुप करा दिया जाता है जबकि नफरत के पुराने तौरतरीकों को जारी रखने की खुली छूट है।

प्रवासियों, आतंकवादियों और ड्रग डीलरों को सामाजिक बीमारियों की तरह चित्रित किया जाता है और उनके प्रति नफ़रत का माहौल एक कसैले राष्ट्रवाद को जन्म देता है, जो साथी मनुष्यों के प्रति प्रेम में नहीं बल्कि बाहरी व्यक्ति के प्रति घृणा में निहित है। नफरत देशभक्ति का रूप धारण कर लेती है जबकि राष्ट्रीय ध्वज का आकार और राष्ट्रगान के प्रति उत्साह लगातार बढ़ता जाता है। यह आज इस्राइल में प्रत्यक्ष रूप से दिख रहा है। इस नवउदारवादी, बर्बर, धुर दक्षिणपंथी देशभक्ति से क्रोध और कड़वाहट की तथा हिंसा और हताशा की ज़हरीली गंध आती है। क्रूरता की संस्कृतियाँ लोगों का ध्यान मामूली वेतन, भुखमरी, शैक्षिक अवसरों की कमी और स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधानों की कमी, जैसी उनकी वास्तविक समस्याओं से हटाकर बर्बर पूँजीवाद की ताक़तों द्वारा गढ़ी गईं अन्य झूठी समस्याओं की ओर ले जाती हैं। भुखमरी और निराशा के खिलाफ देशभक्त होना एक बात है। लेकिन बर्बर पूंजीवाद की ताकतों ने देशभक्ति के इस रूप को नष्ट कर दिया है। लोग सभ्य जीवन के लिए कराह रहे हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में अरबों लोग गज़ा पर इस्राइल के युद्ध को समाप्त करने की मांग करने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं, वे नावों को रोक रहे हैं और इमारतों पर कब्जा कर रहे हैं। लेकिन उदारवाद और दक्षिणपंथ का घनिष्ठ गठजोड़ समाज में हताशा और आक्रोश फैलाकर लोगों की सभ्य जीवन की इच्छा का गला घोंट देता है।

 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने लैटिन अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य पर एक अध्ययन What Can We Expect from the New Progressive Wave in Latin America?” (डोसियर नं. 70, नवंबर 2023) जारी किया है। डोसियर की शुरुआत सैंटियागो डी चिली में रेकोलेटा कम्यून के मेयर और चिली की कम्युनिस्ट पार्टी के एक प्रमुख सदस्य, डेनियल जेड्यू, की प्रस्तावना से होती है। जेड्यू का तर्क है कि बर्बर पूंजीवाद ने पूंजी और श्रम के बीच विरोधाभासों को तीखा किया है और ग्रह के विनाश को तेज कर दिया है। उनका तर्क है कि राजनीतिक सेंटर [पार्टियों]ने पिछले कुछ दशकों से दुनिया के अधिकांश देशों पर शासन किया है जबकि उन्होंने लोगों के सबसे गंभीर मुद्दों को हल नहीं किया। आज जब सामाजिक लोकतांत्रिक ताकतें बर्बर पूंजीवाद और नवउदारवादी मितव्ययता के बचाव में खड़ी हैं, तब लोकतंत्र की संस्थाओं और सामाजिक कल्याण की संरचनाओं की रक्षा के लिए वामपंथ को अग्रणी भूमिका में आना पड़ा है। इसके साथ ही, जेड्यू लिखते हैं, ‘दक्षिणपंथी ताकतों के बीच अत्यधिक लड़ाकू रिवायत का पुनरुत्थान हुआ है जो कि लगभग एक सदी पहले के फासीवादी युग से भी अधिक हिंसक है।

हमारा डोसियर पूरे लैटिन अमेरिका में राजनीति के उतारचढ़ाव की पड़ताल करता है है, जहां एक तरफ़ कोलंबिया के राष्ट्रपति चुनाव में वामपंथ की जीत हुई है और दूसरी तरफ़ पेरू में दक्षिणपंथ की पकड़ मज़बूत है। डोसियर का अंतिम आकलन महत्वपूर्ण है: कि अधिकांश लैटिन अमेरिका में वामपंथ समाजवाद के अंतिम लक्ष्य को त्याग चुका है और इसकी बजाय मानवीय चेहरे के साथ पूंजीवाद के बेहतर प्रबंधक की भूमिका अपना रहा है। जैसा कि डोसियर में कहा गया है:

वामपंथ आज नई सामाजिक परियोजना चलाकर आधिपत्य हासिल करने में अपनी असमर्थता ज़ाहिर कर चुका है। बुर्जुआ लोकतंत्र की अटल रक्षा ही इस बात का लक्षण है कि इसमें विद्रोह और क्रांति की कोई संभावना नहीं रही। यह वर्तमान वेनेजुएला सरकार का समर्थन करने में कुछ वामपंथी नेताओं की अनिच्छा के रूप में दिखाई देता है। वे इस सरकार को अलोकतांत्रिक मानते हैं इस तथ्य के बावजूद कि वेनेजुएला, क्यूबा जैसे कुछ देशों में से एक है, जहां वामपंथी बिना हारे इन संकटों का सामना करने में कामयाब रहे हैं। यह ढुलमुल रवैया और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में प्रतिबद्ध रूप से एक होने की विफलता एक बड़ी चुनौती है।

 

उदार लोकतंत्र धुर दक्षिणपंथ की महत्वाकांक्षाओं को रोकने में अक्षम साबित हुआ है। हालाँकि उदारवादी अभिजात्य वर्ग धुर दक्षिणपंथ की अश्लीलता से भयभीत हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे जनता को वर्ग की राजनीति से निराशा की राजनीति की ओर मोड़ने की दक्षिणपंथी कोशिशों का विरोध करते हों। दक्षिणपंथ की मुख्य आलोचना उदार संस्थानों से नहीं बल्कि खेतों और कारखानों से आती है। भुखमरी और काम के ठेकाकरण के खिलाफ तमाम लामबंदियों में ऐसा देखा गया है। कोलंबिया में मितव्ययता के खिलाफ और शांति के लिए बड़े पैमाने पर हुए जनप्रदर्शनों (2019-2021) से लेकर ग्वाटेमाला में कानून व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शनों (2023) में लोग जिन्हें उदारवादी संस्थानों ने दशकों से रोक रखा थे फिर से सड़कों पर उतर आए हैं। चुनावी जीतें महत्वपूर्ण होती हैं, लेकिन, अकेले, वे न तो समाज और न ही राजनीतिक नियंत्रण को बदल पाती हैं। यही कारण है कि राजनीतिक नियंत्रण पर दुनिया के अधिकांश हिस्सों में अभिजात वर्ग की कड़ी पकड़ बरकरार है।

जेड्यू अपनी प्रस्तावना में राजनीतिक सेंटर की कमजोरी और लामबंदियों को बढ़ावा देने वाली तथा जनप्रदर्शनों को हताशा की ओर जाने से रोकने वाली राजनीतिक परियोजना के निर्माण की आवश्यकता के प्रति सचेत रूप से लिखते हैं:

एक ठोस क्षितिज समाजवाद का पुनर्निर्माण और वामपंथ की एकता का निर्माण हमारे सामने खड़ी दुविधाओं को पहचानने और उनका समाधान करने में प्रमुख चुनौतियाँ हैं। ऐसा करने के लिए, हमें अपने उत्पीड़कों की भाषा को त्यागकर एक ऐसी भाषा का निर्माण करना होगा जो वास्तव में मुक्तिदायक हो। एकीकरण और समन्वय अब पर्याप्त उपाय नहीं रहे। कार्ल मार्क्स ने जिसे दुनिया की भौतिक एकता कहा है, उसकी सच्ची समझ पूरे ग्रह पर लोगों की संपूर्ण एकता और संयुक्त कारवाई के लिए आवश्यक है।

दुनिया भर में श्रमिक वर्ग की ताकतों को जिनमें बेहद ख़राब परिस्थितियों में कार्यरत श्रमिक और किसान दोनों शामिल हैं वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने तोड़ा है। अग्रणी क्रांतिकारी पार्टियों के लिए पैसे की ताकत द्वारा हथिया ली गई लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में अपनी ताकत बढ़ाना और यहाँ तक कि उसे बनाए रखना भी मुश्किल हो गया है। फिर भी, इन चुनौतियों का सामना करने के लिए समाजवाद का ठोस क्षितिजसंगठनों के निरंतर निर्माण, जनता की लामबंदी और राजनीतिक शिक्षा के माध्यम से तैयार किया जा रहा है। इस राजनीतिक शिक्षा में विचारों की लड़ाई के साथ भावनाओं की लड़ाई भी शामिल है। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान का काम और हमारा नया डोसियर भी उसी कड़ी से जुड़ा है और हम आशा करते हैं कि आप इस डोसियर को पढ़ेंगे तथा अपने जानकारों के बीच इस पर चर्चा करेंगे।

स्नेहसहित,

विजय

 

पुनश्च: एक और साल ख़त्म होने वाला है, और मैं एक बार फिर से आपसे सहायता माँग रहा हूँ। इस तरह के संस्थान बनाने के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है, और हमें उम्मीद है कि आप हमारी परियोजना के लिए जितना संभव हो उतना योगदान करके हमारे साथ जुड़ेंगे।