प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

24 फ़रवरी 2023 को, चीनी विदेश मंत्रालय नेयूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान पर चीन की स्थितिशीर्षक वाली बारहसूत्री योजना जारी की। यहशांति योजना‘, जैसा कि इसे कहा गया है, संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945) के स्थापित सिद्धांतों और 1955 में आयोजित अफ़्रीकी तथा एशियाई देशों के बांडुंग सम्मेलन के दस सिद्धांतों पर आधारित संप्रभुता की अवधारणा से प्रेरित है। चीन के वरिष्ठ राजनयिक वांग यी के मास्को दौरे के दो दिन बाद यह योजना जारी की गई, जहाँ उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात की। इस योजना में रूस की रुचि है जिसकी पुष्टि क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने यात्रा के तुरंत बाद की: ‘ऐसी कोई भी योजना बनाने का प्रयास जो [यूक्रेन] संघर्ष को शांति की राह पर ले जाए, ध्यान देने योग्य है। हम अपने चीनी दोस्तों की योजना पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।

यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने सार्वजनिक किए जाने के कुछ घंटे बाद इस योजना का स्वागत करते हुए कहा कि वह संभावित शांति प्रक्रिया पर चर्चा करने के लिए जल्दसेजल्द चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलना चाहेंगे। फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्राँ ने इस भावना को प्रतिध्वनित करते हुए कहा कि वह अप्रैल की शुरुआत में बीजिंग का दौरा करेंगे। इस योजना के कई दिलचस्प पहलू हैं, विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के पास सभी प्रकार की शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान और चीन द्वारा यूक्रेन के पुनर्निर्माण में मदद करने की प्रतिज्ञा। लेकिन शायद सबसे दिलचस्प बात यह है कि शांति की योजना पश्चिम के किसी देश से नहीं, बल्कि बीजिंग से आई है।

 

 

जब मैंनेयूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान पर चीन की स्थितिपढ़ी, तो मुझेऑन पल्स ऑफ़ मॉर्निंगकी याद गई, जो 1993 में माया एंजेलो द्वारा प्रकाशित एक कविता थी, हमारे सामने सोवियत संघ का मलबा है, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इराक़ पर की जाने वाली भयानक बमबारी अब भी सिहरन पैदा कर रही है, जिसके झटके अफ़ग़ानिस्तान और बोस्निया तक में महसूस किए गए। इस न्यूज़लेटर का शीर्षक, ‘फिर से वैश्विक शांति और पारस्परिक सम्मान के सपने का जन्मकविता के केंद्र में है। एंजेलो ने इस कविता को चट्टानों और पेड़ों के बीच लिखा, वे जो मनुष्यों से अधिक जीवित हैं और जो हमें दुनिया को नष्ट करते हुए देखते रहते हैं। कविता के दो हिस्से बारबार दोहराए जाने लायक़ हैं:

तुम में से प्रत्येक सीमावर्ती देश,

जो बिलावजह गर्व से भरे हैं,

फिर भी लगातार हमले के शिकार हो रहे हैं।

लाभ के लिए होने वाले सशस्त्र संघर्ष ने

मेरे किनारे पर कचरे के निशान छोड़ दिए हैं

सीने पर मलबे का ढेर जमा कर दिया है।

फिर भी आज मैं तुम्हें अपनी नदी के किनारे बुलाती हूँ,

यदि तुम युद्ध का अध्ययन नहीं करोगे। आना,

शांति में लिपटे, और मैं गीत गाऊँगी

निर्माता ने मुझे सबकुछ दिया जब मैं और

वृक्ष और चट्टान एक थे।

निराशा से पहले तुम्हारे आसपास दुख था

और जब तुम अपने आपको जानते थे

तब तक कुछ नहीं जानते थे।

नदी गाती है और गाती रहती है।

इतिहास, अपने भीषण दर्द के बावजूद

भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन अगर सामना किया जाए

साहस के साथ, फिर से वही इतिहास नहीं दोहराता है।

इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन उसे दोहराने की ज़रूरत नहीं है। एंजेलो की कविता का संदेश और हमारे अध्ययन साम्राज्यवादीनियमआधारित व्यवस्थाके आठ विरोधाभास का संदेश एक ही है, जिसे हमने पिछले सप्ताह जारी किया था।

 

 

अक्टूबर 2022 में, क्यूबा के सेंटर फ़ॉर इंटरनेशनल पॉलिसी रिसर्च (CIPI) ने रणनीतिक अध्ययन पर अपना 7वाँ सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें पश्चिमी देशों की घटती शक्ति और उभरती हुई दुनिया के भीतर विकसित हो रहे विश्वास पर ज़ोर देने के साथ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में हो रहे बदलावों का अध्ययन किया गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी सैन्य बल और वित्तीय प्रणालियों पर नियंत्रण के माध्यम से दुनिया भर में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन कई विकासशील देशों के आर्थिक प्रगति की वजह से, जिसका नेतृत्व चीन कर रहा है, विश्व मंच पर एक गुणात्मक परिवर्तन महसूस किया जा सकता है। इस प्रवृत्ति का एक उदाहरण G20 देशों के बीच चल रहा विवाद है, कई देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों द्वारा यूक्रेन में युद्ध के लिए रूस की कड़ी निंदा करने के दबाव के बावजूद मास्को के ख़िलाफ़ खड़े होने से इनकार कर दिया है। भूराजनीतिक माहौल में यह बदलाव कैसे आया इसका तथ्यों के आधार पर सटीक विश्लेषण करने की आवश्यकता है।

इसके लिए, सीआईपीआई के सहयोग से निर्मित हमारे नवीनतम डोजियर, सॉवरेन्टी, डिग्निटी, एंड रीजनलिज्म इन न्यू इंटरनेशनल ऑर्डर (मार्च 2023), में एक नयी वैश्विक व्यवस्था के उद्भव के बारे में कुछ विचार किया गया है जो अमिरिकी आधिपत्य वाली अवधि के बाद निर्मित होगा। सीआईपीआई के निदेशक, जोस आर. कबानास रोड्रिग्ज द्वारा लिखे गए प्राक्कथन के साथ डोज़ियर की शुरुआत होती है, जिसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि दुनिया पहले से ही युद्ध में है, अर्थात् संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा नाकेबंदी तथा प्रतिबंध जैसी आर्थिक नीतियों के माध्यम से (क्यूबा सहित) दुनिया के अधिकांश हिस्सों पर थोपा गया युद्ध जो विकास की संभावनाओं का गला घोंट देते हैं। जैसा कि ग्रीस के पूर्व वित्त मंत्री यानिस वरौफ़ाकिस ने कहा, इन दिनों तख़्तापलट के लिएटैंकों की जरूरत नहीं है। बैंकों के ज़रिये भी तख़्तापलट किया जाता है।

अमेरिका यूक्रेन और ताइवान में एक आक्रामक सैन्य और कूटनीतिक हस्तक्षेप के माध्यम सेएकमात्र शक्तिकी अपनी स्थिति को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है, उसे इस बात की कोई चिंता नहीं है कि  इससे दुनिया में भारी अस्थिरता गई है। यह दृष्टिकोण अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की स्वीकारोक्ति से स्पष्ट हो जाता है किहम रूस को कमज़ोर होते देखना चाहते हैंऔर यूएस हाउस फ़ॉरेन अफ़ेयर्स कमेटी के अध्यक्ष माइकल मैककॉल का बयान भी इसी दृष्टिकोण की पुष्टि करता है, ‘यूक्रेन आज नहीं तो कल ताइवान बनने जा रहा है यह अस्थिरता और पश्चिम की घटती शक्ति के बारे में एक चिंता है जिसके कारण दुनिया के अधिकांश देशों ने रूस को अलगथलग करने के प्रयासों में शामिल होने से इनकार कर दिया है।

 

 

चीन, ब्राज़ील, भारत, मैक्सिको, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ़्रीका जैसे कुछ बड़े विकासशील देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों पर निर्भरता को कम किया है। इन देशों ने एक नयी विश्व व्यवस्था के लिए एक नयी योजना पर चर्चा करना शुरू कर दिया है। यह बिलकुल स्पष्ट है कि इनमें से अधिकांश देशअपनीअपनी सरकारों की राजनीतिक परंपराओं में भारी अंतर के बावजूदअब यह स्वीकार करते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका कीनियमआधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाअब उस अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम नहीं है जो कभी उसके पास था। इतिहास की वास्तविक गति से पता चलता है कि विश्व व्यवस्था अमेरिकी आधिपत्य से होकर एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रही है जो अपने चरित्र में कहीं अधिक क्षेत्रीय है। अमेरिका के नीतिनिर्माता, अपने प्रोपगेंडा के हिस्से के रूप में, इस बात को प्रचारित कर रहे हैं कि चीनथ्यूसीडाइड्स ट्रैपके तर्क के साथसाथ दुनिया पर क़ब्ज़ा करना चाहता है, इसके पीछे का तर्क यह है कि जब आधिपत्य स्थापित करने के लिए नयी शक्ति सामने आती है तो इसका परिणाम उस उभरती हुई शक्ति और मौजूदा महान शक्ति के बीच युद्ध के रूप में सामने आता है। हालाँकि, यह तर्क तथ्यों पर आधारित नहीं है।

विकासशील देशबहुध्रुवीयदुनिया का निर्माण करना चाहते हैं, कि शक्ति का कोई एक और केंद्र, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साँचे में ढला हो। विकासशील देश एक ऐसी विश्व व्यवस्था की मांग कर रहे हैं जिसके जड़ें संयुक्त राष्ट्र चार्टर के साथसाथ मज़बूत क्षेत्रीय व्यापार और विकास प्रणालियों में निहित हों। हमने अपने नवीनतम डोजियर में लिखा है, ‘परस्पर सम्मान और क्षेत्रीय व्यापार प्रणालियों, सुरक्षा संगठनों और राजनीतिक संरचनाओं को मज़बूत करके यह नया अंतर्राष्ट्रीयतावाद केवल बनाया जा सकता हैऔर बाल्कनाइजेशन (नस्ल के आधार पर छोटे देश बनाने की प्रक्रिया) से बचा जा सकता है यूक्रेन में युद्ध के बारे में दक्षिणी गोलार्ध के देशों में हो रही चर्चाओं में इस नये रुझान के संकेतक मौजूद हैं और शांति के लिए चीन द्वारा प्रस्तुत योजना में इसकी निशानदेही की जा सकती है।

 

 

हमारा डोजियर अमेरिकी शक्ति और उसकेनियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाके कमज़ोर पड़ने के इस क्षण का कुछ विस्तार से विश्लेषण करता है। हम फिर से बहुपक्षवाद और क्षेत्रवाद की संभावना की पड़ताल करते हैं, जो उभरती हुई विश्व व्यवस्था की प्रमुख अवधारणाएँ हैं। लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई राज्यों के समुदाय (सीईएलएसी) से लेकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) तक, बढ़ते क्षेत्रीय व्यापार के मंचों के निर्माण से क्षेत्रवाद का विकास स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। इस बीच, वैश्विक निर्णय लेने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की ओर वापस लौटने पर ज़ोर, उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के ग्रुप ऑफ़ फ़्रेंड्स इन डिफ़ेंस ऑफ़ यूएन चार्टर का गठन स्पष्ट रूप से बहुपक्षवाद की प्रबल इच्छा को दर्शाता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका अब भी एक शक्तिशाली देश है, लेकिन यह विश्व व्यवस्था में हो रहे भारी बदलावों को स्वीकार नहीं कर पाया है। इसे अपने इस भ्रम को दूर करना चाहिए कि वही दुनिया की एकमात्र शक्ति है और यह स्वीकार करना चाहिए कि वह संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से एक देश है उससे ज्यादा कुछ नहीं है। महान शक्तियाँसंयुक्त राज्य अमेरिका सहितया तो लोगों की भलाई के लिए एक दूसरे के साथ मिलजुलकर रहने और सहयोग करने के तरीक़े खोज लेंगी, या वे सभी एक साथ ढह जाएँगी।

महामारी की शुरुआत में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख, डॉ टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने दुनिया के देशों से अधिक सहयोगी बनने और टकराव से बचने का आग्रह करते हुए कहा कियह एकजुटता का समय है, किसी पर लांछन लगाने का नहीं‘, बाद के वर्षों में इसी बात को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रों कोसामान्य समस्याओं के सामान्य समाधान खोजने के लिए वैचारिक विभाजनों के बीच मिलकर काम करना चाहिए बुद्धिमत्ता से भरे इन शब्दों पर ध्यान देना चाहिए।

स्नेहसहित

विजय