Zoulikha Bouabdellah (Algeria), Envers Endroit Géométrique (‘Geometric Reverse Obverse’), 2016.

ज़ोलिखा बौअब्देल्लाह (अल्जीरिया), ज्यामितिक चित और पट, 2016.

 

प्यारे दोस्तों,

 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

 

आजकल कई घटनाओं को समझ पाना मुश्किल है। इसका एक उदाहरण फ़्रांस का व्यवहार है। एक तरफ, फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने मन बदल कर अब उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में यूक्रेन के प्रवेश का समर्थन कर दिया है। दूसरी ओर, उन्होंने कहा कि फ़्रांस अगस्त में दक्षिण अफ्रीका में होने जा रहे ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन में भाग लेना चाहता है। सारा यूरोपीय महाद्वीप एक जैसा नहीं है और इसमें समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं; जैसे हंगरी और तुर्की ने जुलाई में विनियस (लिथुआनिया) में हुए नाटो वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान स्वीडन की नाटो में शामिल होने की इच्छा का समर्थन करने से इनकार कर दिया। हालाँकि, यूरोप के पूंजीपति अपनी संपत्ति जमा करने के लिए पश्चिमी वॉल स्ट्रीट निवेश फर्मों की ओर नज़र जमाए रखते हैं, और अपने भविष्य को भविष्य संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ जोड़कर देखते हैं। यूरोप  अटलांटिक गठबंधन से दृढ़ता के साथ जुड़ा हुआ है जहां एक स्वतंत्र यूरोपीय आवाज के अस्तित्व की गुंजाइश बहुत कम है।

नो कोल्ड वॉर मंच पर, हम यूरोप की विदेश नीति के इन तत्वों का सावधानीपूर्वक अध्ययन कर रहे हैं। ब्रीफ़िंग नं. 8, जिसे इस न्यूज़लेटर में आप आगे पढ़ेंगे, को वर्कर्स पार्टी ऑफ़ बेल्जियम (पीटीबी-पीवीडीए) और यूरोपीय संसद के सदस्य मार्क बोटेंगा के योगदान से लिखा गया है। आप इसे नीचे पढ़ सकते हैं।

 

यूक्रेन में युद्ध के साथ-साथ यूरोप पर अमेरिका की पकड़ और प्रभाव भी मजबूत हुआ है। रूस की एक महत्वपूर्ण गैस आपूर्ति को अमेरिकी कंपनी शेल गैस के हवाले कर दिया गया। यूरोपीय संघ (ईयू) के जो कार्यक्रम मूल रूप से यूरोप के औद्योगिक आधार को मजबूत करने के लिए बनाए गए थे, वो अब अमेरिका में बने हथियारों की बिक्री के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। अमेरिका के दबाव के चलते, कई यूरोपीय देशों ने शांति क़ायम करने हेतु राजनीतिक समाधान पर जोर देने के बजाय यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने में योगदान दिया है।

साथ ही, अमेरिका चाहता है कि यूरोप चीन से दूरी बनाए, जिससे यूरोप की वैश्विक भूमिका और कम हो जाएगी। यह यूरोप के लिए अहितकारी होगा। अमेरिका के टकरावपूर्ण और हानिकारक नए शीत युद्ध के एजेंडे का पालन करने के बजाय, यह यूरोप के लोगों के हित में है कि उनके देश वैश्विक सहयोग और विविध अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आधारित एक स्वतंत्र विदेश नीति स्थापित करें।

 

यूरोप की अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता

यूक्रेन युद्ध और उसके बाद लगे प्रतिबंधों व जवाबी प्रतिबंधों के कारण यूरोपीय संघ और रूस के व्यापार संबंधों में तेजी से गिरावट आई है। अपने व्यापारिक सहयोगी को खोने से यूरोपीय संघ के विकल्प सीमित हो गए हैं और अमेरिका पर उसकी निर्भरता बढ़ गई है। इसका प्रभाव यूरोपीय संघ की ऊर्जा नीति में सबसे अधिक दिखाई दे रहा है। यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप, यूरोप ने रूसी गैस पर अपनी निर्भरता कम कर दी, लेकिन अब वह उससे अधिक महंगी अमेरिकी तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) पर निर्भर है। अमेरिका ने इस ऊर्जा संकट का फायदा उठाया है और अपनी एलएनजी को उत्पादन लागत से बेहद ऊँची कीमत पर यूरोप को बेच रहा है। 2022 में, यूरोप में आयातित एलएनजी का 41% हिस्सा अमेरिका से आया था। इससे अमेरिका को यूरोपीय संघ के नेताओं पर दबाव डालने की अतिरिक्त शक्ति मिली है: यदि अमेरिका एलएनजी की आपूर्ति रोक देता है तो यूरोप को तुरंत बड़ी आर्थिक और सामाजिक कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।

 

Reza Derakhshani (Iran), White Hunt, 2019.

रेज़ा डेराखशानी (ईरान), शिकार , 2019.

 

वाशिंगटन ने कम ऊर्जा कीमतों का तर्क पेश करते हुए, यूरोपीय कंपनियों को अमेरिका में स्थानांतरित करने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया है। इस मामले में जर्मनी के आर्थिक मामलों व जलवायु कारवाई मंत्री रॉबर्ट हैबेक ने कहा कि, अमेरिका ‘यूरोप से निवेश खींच रहा है’ – यानी, वह सक्रिय रूप से क्षेत्र के वि-औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दे रहा है।

अमेरिकी मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम (2022) और चिप्स एवं विज्ञान अधिनियम (2022) अमेरिका में स्वच्छ ऊर्जा और सेमीकंडक्टर उद्योगों को आकर्षित करने के लिए क्रमशः $370 बिलियन और $52 बिलियन की सब्सिडी की पेशकश करते हुए साफ़ तौर पर इस उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं। इन उपायों का प्रभाव यूरोप में दिखना शुरू हो गया है: टेस्ला कंपनी कथित तौर पर अपनी बैटरी निर्माण परियोजना को जर्मनी से अमेरिका में स्थानांतरित करने पर चर्चा कर रही है, और फ़ोक्सवैगन कंपनी ने पूर्वी यूरोप में एक नियोजित बैटरी संयंत्र को रोक दिया है, और उसके बजाय कनाडा में अपने पहले उत्तरी अमेरिकी इलेक्ट्रिक बैटरी संयंत्र को स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है, क्योंकि वहाँ पर कंपनी अमेरिकी सब्सिडी प्राप्त कर सकेगी।

यूरोपीय संघ अन्य क्षेत्रों में भी अमेरिका पर निर्भर है। फ़्रांसीसी सीनेट की 2013 की एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से पूछा गया था कि: ‘क्या यूरोपीय संघ डिजिटल दुनिया का उपनिवेश है?’। अमेरिका के क्लेरिफाइंग लॉफुल ओवरसीज यूज़ ऑफ डेटा (CLOUD) एक्ट, 2018 और फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विलांस एक्ट (FISA), 1978 अमेरिकी कंपनियों को यूरोपीय संघ के डेटा और फोन कॉल सहित दूरसंचार तक पहुंच की अनुमति देते हुए, उन्हें राजकीय रहस्यों तक पहुंच प्रदान करते हैं। यूरोपीय संघ की लगातार जासूसी की जा रही है।

 

Clément Jacques-Vossen (Belgium), Lockdown, 2020.

क्लेमेंट जैक्स-वॉसेन (बेल्जियम), लॉकडाउन, 2020.

 

बढ़ता सैन्यीकरण यूरोप के हितों के ख़िलाफ है

रणनीतिक ख़तरों पर यूरोपीय संघ की चर्चा ज्यादातर चीन और रूस पर केंद्रित है जबकि अमेरिका के प्रभाव को लगभग नजरअंदाज कर दिया जाता है। अमेरिका यूरोप में 200 से अधिक अमेरिकी सैन्य अड्डों और 60,000 सैनिकों का एक विशाल नेटवर्क संचालित करता है। नाटो के माध्यम से यह यूरोप के रक्षा से जुड़े कदमों  पर ‘पूरकता’ लागू करता है, जिसका अर्थ है कि नाटो के यूरोपीय सदस्य देश अमेरिका के साथ मिलकर काम कर सकते हैं, लेकिन स्वतंत्र रूप से नहीं। पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री मेडेलीन अलब्राइट ने प्रसिद्ध रूप से इसे ‘तीन D’ के रूप में संक्षेपित किया: यूरोप की निर्णय प्रक्रिया को नाटो से ‘de-link’ (यानी, अलग) नहीं किया जा सकता, नाटो के प्रयासों को ‘duplicate’ (यानी, दोहराया) नहीं जा सकता, और नाटो के गैर-यूपोयीय सदस्यों के खिलाफ कोई ‘discrimination’ (यानी, भेदभाव) नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, यूरोप की निर्भरता क़ायम रखने के लिए, अमेरिका यूरोपीय देशों के साथ सबसे महत्वपूर्ण सैन्य प्रौद्योगिकियों को साझा करने से परहेज करता है; यहाँ तक कि यूरोप द्वारा खरीदे गए F-35 लड़ाकू जहाज़ों से जुड़े अधिकांश डेटा और सॉफ़्टवेयर भी उनके साथ साझा नहीं किए गए।

कई वर्षों से, अमेरिका यूरोपीय सरकारों को अपना सैन्य खर्च बढ़ाने के लिए कह रहा है। 2022 में, पश्चिमी और मध्य यूरोप में सैन्य खर्च बढ़कर 316 बिलियन यूरो तक पहुँच गया। इस स्तर का सैन्य खर्च प्रथम शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से कभी नहीं देखा गया था। इसके अलावा, यूरोपीय देशों और यूरोपीय संघ के संस्थानों ने यूक्रेन को 25 बिलियन यूरो से अधिक की सैन्य सहायता भेजी। युद्ध से पहले ही, जर्मनी, ब्रिटेन और फ़्रांस दुनिया के शीर्ष दस सबसे अधिक सैन्य खर्च करने वालों देशों में शुमार थे। अब, जर्मनी ने एक विशेष सैन्य उन्नयन कोष के लिए 100 बिलियन यूरो खर्च करने की मंजूरी दी है और अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2% रक्षा मामलों पर खर्च करने का संकल्प लिया है। वहीं ब्रिटेन ने घोषणा की है कि वह अपने सैन्य खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के 2.2% से बढ़ाकर 2.5% खर्च करेगा और फ़्रांस ने घोषणा की कि वह 2030 तक अपने सैन्य खर्च को लगभग 60 बिलियन यूरो तक बढ़ा देगा, जो कि उनके 2017 के आवंटन से लगभग दोगुना होगा।

सैन्य खर्च में यह वृद्धि तब हो रही है जब यूरोप दशकों में जीवनयापन के सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है और वहाँ जलवायु संकट गहरा रहा है। पूरे यूरोप में लाखों लोग विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। सेना पर खर्च किए जा रहे सैकड़ों बिलियन यूरो इन जरूरी समस्याओं से निपटने में लगाए जाने चाहिए।

चीन से ‘decouple‘ (अलग) होना विनाशकारी होगा

अमेरिका-चीन टकराव से यूरोपीय संघ को नुकसान होगा। अमेरिका में यूरोपीय संघ से जाने वाली निर्यात वस्तुओं में चीन के महत्वपूर्ण कच्चे माल शामिल होते हैं। वहीं, चीन में यूरोपीय संघ से निर्यातित माल में अक्सर अमेरिकी कच्चे माल शामिल होते हैं। इसलिए चाहे अमेरिका चीन को होने वाले निर्यात पर सख़्त नियंत्रण लगाए या चीनी निर्यात पर, इसकी मार सिर्फ यूरोपीय संघ की कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

अमेरिका ने यूरोपीय संघ के विभिन्न देशों, कंपनियों और संस्थानों पर चीनी परियोजनाओं के साथ सहयोग कम करने या बंद करने का दबाव बढ़ा दिया है; और विशेष रूप से यूरोप पर चीन के खिलाफ अपने तकनीकी युद्ध में शामिल होने का दबाव बना रहा है। इस दबाव का असर दिखने लगा है, यूरोपीय संघ के दस देशों ने चीन की प्रौद्योगिकी कंपनी हुआवेई की भागीदारी को अपने 5जी नेटवर्क में सीमित या प्रतिबंधित कर दिया है, और जर्मनी भी इसी तरह के उपाय पर विचार कर रहा है। इस बीच, नीदरलैंड ने प्रमुख डच सेमीकंडक्टर कंपनी, एएसएमएल, से चीन को चिप बनाने वाली मशीनरी के निर्यात पर रोक लगा दी है।

2020 में, चीन ने यूरोपीय संघ के मुख्य व्यापारिक भागीदार के रूप में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया था, और 2022 में, चीन आयातित वस्तुओं के लिए यूरोप का सबसे बड़ा स्रोत और निर्यातित वस्तुओं के लिए यूरोप का तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया था। यूरोपीय कंपनियों पर चीन के साथ संबंधों को प्रतिबंधित करने या समाप्त करने के लिए अमेरिका का दबाव, यूरोप के व्यापार विकल्पों को सीमित कर देगा, और आख़िरकार वाशिंगटन पर उसकी निर्भरता को बढ़ाएगा। यह न केवल यूरोपीय संघ की स्वायत्तता के लिए, बल्कि क्षेत्रीय सामाजिक और आर्थिक स्थितियों के लिए भी हानिकारक होगा।

 

Georgi Baev (Bulgaria), Name, 1985.

जॉर्जी बेव (बुल्गारिया), नाम, 1985.

 

यूरोप को वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए, टकराव को नहीं

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से, किसी भी विदेशी शक्ति ने यूरोपीय नीति पर अमेरिका से ज़्यादा शक्ति का प्रयोग नहीं किया है। यदि यूरोप खुद को अमेरिका के नेतृत्व वाले गुट द्वारा नियंत्रित होने की अनुमति देता है, तो इससे न केवल अमेरिका पर उसकी तकनीकी निर्भरता बढ़ेगी, बल्कि क्षेत्र में वि-औद्योगिकरण भी बढ़ेगा। इसके अलावा, इससे यूरोप का चीन के साथ ही नहीं, बल्कि किसी भी गुट के साथ जुड़ने से इनकार करने वाले प्रमुख विकासशील देशों, जैसे भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ भी टकराव बढ़ेगा।

दुनिया भर में टकराव के अमेरिकी पथ का अनुसरण करने के बजाय, एक स्वतंत्र यूरोप को अपनी सुरक्षा रणनीति को क्षेत्रीय रक्षा, महाद्वीप की सामूहिक सुरक्षा और विकासशील देशों के साथ शोषणकारी व्यापार संबंधों से निर्णायक रूप से अलग होकर रचनात्मक अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाने की दिशा में पुनर्निर्देशित करना चाहिए। वैश्विक दक्षिण के साथ निष्पक्ष, सम्मानजनक और समान रिश्ते यूरोप को विविध राजनीतिक और आर्थिक सहयोगी दिला सकते हैं। यूरोप को इनकी नितांत आवश्यकता है।

एक स्वतंत्र और परस्पर रूप से संबद्ध यूरोप यूरोपीय लोगों के हित में है। इससे विशाल संसाधनों को सैन्य खर्च से हटाकर जलवायु संकट और जीवनयापन के गम्भीर संकट से निपटने की ओर लगाया जा सकेगा; जैसे कि हरित औद्योगिक आधार के निर्माण में। यूरोपीय लोगों के पास अमेरिकी प्रभुत्व और सैन्यीकरण को खारिज कर अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अधिक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था को अपनाते हुए एक स्वतंत्र विदेश नीति के विकास का समर्थन करने का हर कारण मौजूद है।

 

Aida Mahmudova (Azerbaijan), Non-Imagined Perspectives, 2018.

ऐदा महमुदोवा (अज़रबैजान), अ-कल्पित नज़रिए, 2018.

 

नो कोल्ड वॉर की यह ब्रीफ़िंग एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है: क्या एक स्वतंत्र यूरोपीय विदेश नीति संभव है? यूरोप में आज जो ताकत का संतुलन कायम है, उसे देखते हुए सामान्य निष्कर्ष यह है कि, ऐसा मुमकिन नहीं है। यहां तक कि नाटो के खिलाफ अभियान चलाने वाली इटली की धुर दक्षिणपंथी सरकार भी वाशिंगटन के दबाव का सामना नहीं कर सकी। लेकिन, जैसा कि ब्रीफ़िंग से पता चलता है, यूक्रेन में अशांति बनाए रखने की पश्चिमी नीति का नकारात्मक प्रभाव यूरोपीय जनता हर दिन महसूस कर रही है। क्या यूरोप के लोग अपनी संप्रभुता के लिए खड़े होंगे या वो वाशिंगटन की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाले अग्रिम कार्यकर्ता बने रहेंगे?

 

स्नेह-सहित,

 

विजय।