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साफ़ पानी और हरे-भरे पहाड़ भी सोने-चाँदी के भंडार जितने ही मूल्यवान हैं: सातवाँ न्यूज़लेटर (2025)

अनेक लेखकों ने अपने साइंस फिक्शन में ऐसी आदर्श दुनिया की कल्पना की, जो औपनिवेशिक व्यवस्था से बेहतर थी।

सुलतान का ख़्वाब, डरम प्रेस द्वारा प्रकाशित 27 लिनोकट की एक शृंखला, चित्रा गणेश, 2018, © Chitra Ganesh.

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

1835 में कैलाश चंद्र दत्त (1817-1859) ने ए जर्नल ऑफ फोर्टी एट ऑवर्स ऑफ 1945’ (1945 के अड़तालीस घंटों का रोजनामचा) शीर्षक से एक कहानी लिखी। यह कहानी जब द कलकत्ता लिटरेरी गजट  में छपी तब फ़्रेंच भाषा के प्रसिद्ध साइंस फ़िक्शन लेखक जूल्ज़ वर्न (1828-1905) सिर्फ़ सात साल के थे। दत्त की कहानी पूरी तरह साइंस फ़िक्शन तो नहीं लेकिन काफ़ी हद तक भविष्य का वर्णन ज़रूर करती है। उस अठारह साल के लेखक ने अपनी कहानी की शुरुआत इस वाक्य से की: ‘भारत के लोग और ख़ासतौर से महानगरों के वे लोग जो पिछले पचास सालों से सबाल्टर्न शोषण के हर रूप को झेलते आए हैं।…एक विद्रोह की आग़ बहुत तेज़ी से इन लोगों के बीच फैल रही है, जो किसी ज़माने में बड़े शांत हुआ करते थे’। वे लोग अब विद्रोह करने को तैयार बैठे थे। इसमें 1945 के दो दिनों की काल्पनिक घटनाओं का वर्णन है, जब पच्चीस साल का भुवन मोहन ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ एक विद्रोह का नेतृत्व करता है पर आख़िर उसकी हार होती है और उसकी हत्या कर दी जाती है। दशकों तक बंगाल में कई किताबें लिखी गईं जो उपनिवेशवादी दुनिया से परे की एक दुनिया की कल्पना पेश करती हैं। दत्त के एक भाई शोशी चंद्र दत्त ने 1845 में ‘ द रिपब्लिक ऑफ उड़ीसाः ऐनल्स फ्रॉम द पेजेज ऑफ द ट्वेंटीथ सेंचुरी’ (उड़ीसा गणतंत्र: बीसवीं सदी के वार्षिक वृत्तांत) लिखी; 1882 में हेमलाल दत्ता की रहस्य छपी; पंडित अम्बिका दत्त व्यास ने 1884-1888 के बीच आश्चर्य वृत्तांत लिखी; 1896 में आयी जगदीश चंद्र बोस की निरुद्देशेर कहिनी (गुमशुदा की कहानी) और 1905 में बेग़म रुकैया सखावत की सुलतान का ख़्वाब  छपी। बेग़म रुकैया की लिखी कहानी सबसे ज़्यादा साइंस फ़िक्शन के क़रीब थी क्योंकि उन्होंने इसमें एक ऐसी दुनिया गढ़ी जहाँ तकनीक (उड़ती गाड़ियाँ, सौर ऊर्जा, रोबॉट की मदद से खेती) से इंसानों को पितृसत्ता से मुक्त किया जा सकता था।

भारत की ही तरह चीन के लेखकों में विद्रोह और आज़ादी की इच्छा पैदा हुई, ये लेखक अपने देश पर छिंग साम्राज्य के अंतिम दौर और अर्द्ध-उपनिवेशवादी क़ब्ज़े को महसूस कर रहे थे। 1902 में लियांग छीछाओ का जूल्ज़ वर्न की ट्वेंटी थाउजैंड लीग्स अंडर द सी  (1869–1870) का चीनी अनुवाद छपा; इसके साथ ही अपनी कहानी Xin Zhongguo weilaiji (नए चीन का भविष्य) भी। विज्ञान कैसे मानवजाति को मुक्ति दिलाएगा, इसे लेकर वर्न ने जो भविष्यवाणी की उसने लियांग छीछाओ के लिए प्रेरणा का काम किया, लू शुन के लिए भी, जो अपनी पीढ़ी के सबसे महत्त्वपूर्ण लेखकों में से एक थे। लू शुन ने वर्न के 1865 में लिखे उपन्यास ‘फ्रॉम द अर्थ टू द मून’ (पृथ्वी से चाँद तक) का अनुवाद किया, जो 1903 में छपा। लियांग छीछाओ की कहानी में 60 के दशक के शंघाई में वर्ल्ड एक्स्पो की कल्पना की गई है जब चीन दुनिया के सबसे अहम देशों में से एक होगा। जैसे बेग़म रुकैया ने कल्पना की थी कि सौर ऊर्जा ही बंगाल की आज़ादी की कुंजी है, चीन की मुक्ति के लिए छिंग साम्राज्य के अंतिम दौर के चीनी विज्ञाम लेखकों की कल्पना थी पानी के अंदर यात्रा, वायु ऊर्जा से चलने वाली रेलगाड़ियाँ और हाइड्रोजन वाले ग़ुब्बारे।

उपनिवेशवाद विरोधी कल्पना में विज्ञान एक काल्पनिक आदर्श या यूटोपिया रचने का ज़रिया था।

Wenhua Zongheng: A Journal of Contemporary Chinese Thought 
के नए अंक में छपे लेखों को पढ़ते हुए मुझे बार-बार विज्ञान लेखकों की यह मज़बूत परंपरा याद आती रही। यह अंक चीन के पर्यावरण संबंधी बदलाव के बारे में है। वैसे तो इसमें छपी ज़्यादातर रिपोर्ट चीन के उन क्षेत्रों से जुड़ी हैं जिनमें बड़े परिवर्तन होने वाले हैं लेकिन इसके तीन लेख किसी साइंस फ़िक्शन से कम नहीं हैं। लगभग एक दशक पहले बीजिंग में हवा की गुणवत्ता बेहद ख़राब थी। कभी-कभार तो हवा इतनी ख़राब होती थी कि लोगों के चेहरों पर एक अनजान केमिकल की काली परत चढ़ जाती थी। इस संकट की वजह से राज्य काउन्सिल ने 14 जून 2013 को 2013-2017 Air Pollution Prevention and Control Action Plan (वायु प्रदूषण निवारण और नियंत्रण के लिए ऐक्शन प्लान) की घोषणा की। इसमें दस नीतिगत उपाय थे और उनके लिए लगभग 1.7 ख़रब आरएमबी(लोगों की मुद्रा) का प्रस्ताव दिया गया। एक दशक के भीतर राजधानी की हवा में नाटकीय परिवर्तन आयाइसकी मुख्य वजह रही कार्बन ईंधन का प्रयोग कम करने पर ज़ोर देना। तत्कालीन पर्यावरण सुरक्षा उप मंत्री फान यूए  2004 में एक ज़रूरी शोध में शामिल हुए जिसने ग्रीन जीडीपी’ या बिना पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाए प्रगति की एक बेहतर योजना का अनुमान पेश किया। 2012 में हुई चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस ने पर्यावरण आधारित सभ्यता’ (文明के नाम से विकास की एक नई रूपरेखा का प्रस्ताव रखा। 2005 में शी जिनपिंगजो तब च-च्यांग प्रविंशियल पार्टी कमेटी के सचिव थेने एक दृष्टिकोण पेश किया जो अब काफ़ी लोकप्रिय हो चुका है – साफ़ पानी और हरे-भरे पहाड़ भी सोने और चाँदी के ढेर जितने ही मूल्यवान हैं’ (綠水青山就是金山)

शेष जल- 1, शांग यांग (चीन), मिक्सड मीडिया, 2015.

Wenhua Zongheng के संपादक मंडल और ट्राईकॉन्टिनेंटल के सदस्य शीआंग चिये और टिंग्स चाक की रिपोर्ट बताती है कि चीन की सबसे प्रदूषित झीलों में से युन’नान प्रांत की अरहाय लेक सबसे साफ़ झीलों में से एक कैसे हो गई। इसकी सफ़ाई से जुड़े चार महत्त्वपूर्ण पहलू हैं: झील के पास रहने वाले लोगों की इसे बचाने की प्रबल इच्छा; लोगों की तात्कालिक ज़रूरतों और पर्यावरण की दीर्घकालिक ज़रूरतों के बीच संतुलन बनाने के लिए स्थानीय प्रशासन की दृढ़ता; स्थानीय वैज्ञानिकों की निपुणता जिन्होंने झील के प्रदूषण के कारणों पर शोध किया और इसकी सफ़ाई के लिए एक तथ्य आधारित योजना तैयार की; तथा सरकार की वैज्ञानिक नीतियों को लागू करने के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के काडर की मेहनत। मुझे यह रिपोर्ट इसलिए दिलचस्प लगी क्योंकि इसमें जो कुछ भी बताया गया है उसका प्रयोग ग्लोबल दक्षिण की किसी भी प्रदूषित झील की सफ़ाई के लिए आसानी से किया जा सकता है।

पेंग्विन्स, फान यूलियांग (चीन),1942.

प्रोफ़ेसर टिंग लिंग (अनहुई नॉर्मल यूनिवर्सिटी) और प्रोफ़ेसर शू चुन (सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क) के लेखों के साथ-साथ जाओ पेद्रो स्तेदिल ( भूमिहीन श्रमिक आंदोलन, एमएसटी, ब्राज़ील) का परिचयात्मक लेख पारिस्थितिकी खेती की बात करता है, जो फ़सलें बेहतर करने और पर्यावरण की सुरक्षा दोनों ही ज़रूरतों का ध्यान रखती है। लेकिन यह संभव कैसे होगा? इसका एक उदाहरण यह हो सकता है, वानच ज़िले में क्रे मछली के दाम ऊँचा होने की वजह से तोंगपा विलेज कोऑपरेटिव के किसानों के लिए सीधा तालाबों में मछली पालन करना ज़्यादा लाभप्रद होता। लेकिन कोऑपरेटिव ने मछली पालन के एक मिले-जुले मॉडल को अपनाने का राजनीतिक फ़ैसला किया जिसके तहत धान उगाने और क्रे मछली पालने को दो कारणों से एक-दूसरे से जोड़ा गया। पहला, कोऑपरेटिव के लिए धान उगाना ज़रूरी है, यह इस क्षेत्र का मुख्य खाद्यान्न है, और खाद्य सुरक्षा के लिए यह क़दम अच्छा है। दूसरा, वे धान से अलग हुए भूसे को खेती के अगले मौसम में पैदा होने वाली क्रे मछलियों के लिए अच्छे चारे के रूप में खेत में ही वापस डाल देते हैं, जिससे मछलियों की तादाद भी अच्छी होती है। पानी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक लगातार आकर लाभकारी शैवाल और बैक्टीरिया छोड़ते हैं। इनकी सफलता इसी से पता चलती है कि इस इलाक़े में इग्रिट पक्षी लौट आए हैं जो पहले कभी-कभार दिखाई दिया करते थे।

तीसरे लेख में, प्रोफ़ेसर फ़ंग खाएतोंग (पेकिंग यूनिवर्सिटी) और छन चुनथिंग (पेकिंग यूनिवर्सिटी) चीन के नए ऊर्जा से चलने वाले वाहनों, ज़ाहिर है इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उद्योग का एक बेहतरीन समग्र परिदृश्य पेश करते हैं। टेस्ला दुनिया का जाना-माना ब्रांड है लेकिन इसे विश्व बाज़ार में चुनौती मिल रही है चीन में इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ बनाने वाले ब्रांड से जैसे ओमोडा और एमजी (दोनों ही सरकारी हैं), बीवाईडी और ओरा। एशिया में पहले से ही पश्चिमी ब्रांड से ज़्यादा इनकी बिक्री होती है और ये अधिकतर चीनी तकनीक से बनायी जाती हैं। नॉर्वे के ओस्लो में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का प्रति व्यक्ति प्रतिशत दुनिया में सबसे ज़्यादा है लेकिन चीन के दो मुख्य शहरों बीज़िंग और शंघाई में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या सबसे ज़्यादा है। यहाँ की सड़कों पर हैरान कर देने वाली ख़ामोशी है क्योंकि इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ और मोटरसाइकिल शोर नहीं करतीं। चीन इसलिए पेट्रोल/डीज़ल से चलने वाले इंजन के चक्रव्यूह से निकल पाया क्योंकि यहाँ की सरकार पेट्रोकेमिकल कंपनियों के शिकंजे में नहीं फँसी हुई और देश के तकनीकी क्षेत्र (मसलन यातायात और सूचना तकनीक में) एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं और ख़ुद को अलग-अलग मुनाफ़ा कमाने वाले उद्योगों की तरह नहीं देखते।

विकास की ज़मीन, हुआंग यूशिंग (चीन), 2015-2016.

2019 में छन छीयूफ़ान का एक बेहतरीन डिस्टोपीअन साइंस फ़िक्शन वेस्ट टाइड (व्यर्थ का ज्वार) छपा। यह उपन्यास सिलिकन द्वीप के बारे में है, एक ऐसी जगह जो इलेक्ट्रॉनिक कचरे से पटी हुई है और इससे यहाँ के लोगों और जानवरों में बाओकेमिकल विकृतियाँ पैदा हो गई हैं। द्वीप के ‘बेकार लोग’ जेली फ़िश से घिरे हुए हैं जिससे ‘नीली हरी LED रौशनी’ निकलती है। ज़िंदा रहने के लिए वे लोग ज़हरीले पानी से चीज़ें चुनते हैं, पानी में देर तक रहने की वजह से उनकी खाल उखड़ने लगती है। कहानी में एक जगह इसकी नायिका मिमी को एक मरा हुआ कुत्ता मिलता है जो मिमी के उसके पास जाने से अपनी पूँछ हिलाने लगता है, वह केमिकल और फेंक दिए गए यंत्रों के कचरे से पुनर्जीवित हो गया था। छन का उपन्यास पर्यावरण की बर्बादी की भयावहता को बख़ूबी दर्शाता है। यह किसी साइंस फ़िक्शन जैसा कम और एक ज़मीनी रिपोर्ट जैसा ज़्यादा लगता है, मानो यह ई-कचरे के निपटान का केंद्र रहे कुआंगतोंग प्रांत के कुएयू शहर पर बनी डॉक्यूमेंटरी हो या ग्रेट पैसिफ़िक प्लास्टिक पैच (2 करोड़ वर्ग किलोमीटर का प्लास्टिक कचरा जो उत्तरी प्रशांत महासागर में फँसा हुआ है) पर जीवन कैसा होगा, इसका एक उदाहरण। छन ने कहा है कि यह उपन्यास कुछ-कुछ कुएयू की वास्तविकता से प्रेरित है जहाँ की मिट्टी और हवा डिजिटल समाज के मेटल और केमिकलों से प्रदूषित हो चुकी थी।

2013 में कुएयू की स्थानीय सरकार ने एक इंडस्ट्रियल पार्क बनाया जिसमें रिसाइकल करने वाली इकाइयाँ लगाई गईं ताकि उनके कार्यों को बेहतर ढंग से संचालित किया सके। जब दो साल बाद पार्क बनकर तैयार हुआ तो ऐसी सभी छोटी इकाइयाँ बंद हो गयीं और बड़ी इकाइयाँ इस पार्क में आ गईं। 2018 में चीनी सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक कूड़े, प्लास्टिक कचरे और कपड़ा उद्योग के कचरे समेत चौबीस तरह के कचरों (जो अधिकतर ग्लोबल उत्तर देशों से आता था) के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद कुएयू को सिर्फ़ पहले के कचरे से हुई पर्यावरण की बर्बादी से ही निपटना था, वहाँ अब और नया कचरा नहीं आएगा। कुएयू का वास्तविक इतिहास छन छीयूफ़ान के इस उपन्यास का एक नया अंत लिख रहा है।

सस्नेह,
विजय