चाबिया तलाल (मोरक्को), मोन विलेज, चटौका, 1990.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन। 

17 अक्टूबर को यूएस अफ़्रीका कमांड (AFRICOM) के प्रमुख, यूएस मरीन कॉर्प्स जनरल माइकल लैंगली ने मोरक्को का दौरा किया। लैंगली ने मोरक्को के सशस्त्र बलों के महानिरीक्षक बेलखिर एल फ़ारूक़ सहित मोरक्को के वरिष्ठ सैन्य नेताओं से मुलाक़ात की। 2004 से, AFRICOM ने अपना ‘सबसे बड़ा और प्रमुख वार्षिक अभ्यास’, अफ़्रीकन लायन, आंशिक रूप से मोरक्को की धरती पर आयोजित किया है। पिछले जून में दस देशों ने अफ़्रीकन लायन 2022 में भाग लिया, जिसमें (पहली बार) इज़राइल के पर्यवेक्षक और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) शामिल थे।

 

सलाह एल्मुर (सूडान), द ग्रीन रूम, 2019.

 

लैंगली की यात्रा अफ़्रीकी महाद्वीप पर पड़ने वाले एक व्यापक अमेरिकी दबाव का हिस्सा है, जिसका उल्लेख हमने अपने डोजियर संख्या 42 (जुलाई 2021), में किया है। डिफ़ेंडिंग आवर सॉवरिन्टी: यूएस मिलिट्री बेसेस इन अफ़्रीक़ा एंड द फ़्यूचर ऑफ़ अफ़्रीकन यूनिटी, शीर्षक से प्रकाशित डोजियर को द सोशलिस्ट मूवमेंट ऑफ़ घाना के रिसर्च ग्रुप के साथ मिलकर प्रकाशित किया गया है। उस डोजियर में हमने लिखा था कि पैन-अफ़्रीकीवाद के दो महत्वपूर्ण सिद्धांत राजनीतिक एकता और क्षेत्रीय संप्रभुता हैं और तर्क दिया था कि ‘विदेशी सैन्य ठिकानों की स्थायी उपस्थिति न केवल एकता और संप्रभुता की कमी का प्रतीक है; यह महाद्वीप के लोगों और सरकारों के विखंडन और अधीनता को भी समान रूप से दर्शाता है’। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफ़ील्ड ने अगस्त में घाना, युगांडा और केप वर्डे की यात्रा की। उन्होंने अपनी यात्रा से पहले कहा, ‘हम अफ़्रीकियों को संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस में से कोई एक विकल्प चुनने के लिए नहीं कह रहे हैं’, लेकिन, उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए, यह विकल्प आसान होगा’। फिर भी अमेरिकी कांग्रेस कोई विकल्प नहीं दे रही है क्योंकि यह काउंटरिंग मलाइन रशियन एक्टिविटीज़ इन अफ़्रीका एक्ट के माध्यम से अफ़्रीकी देशों पर इस बात के लिए रोक लगा रहा है वह रूस के साथ किसी तरह का व्यापार न करे (और संभवतः भविष्य इसका दायरे और विस्तृत करके चीन को भी इसमें शामिल किया जा सकता है)।

इस उभरती हुई स्थिति को समझने के लिए नो कोल्ड वॉर के हमारे दोस्तों ने अपना ब्रीफ़िंग संख्या 5 तैयार किया है। इस ब्रीफ़िंग का शीर्षक है नाटो क्लेम्स अफ़्रीका एज़ इट्स ‘सदर्न नेबरहुड’ , जिसमें यह दिखाया गया है कि कैसे नाटो ने अफ़्रीका के बारे में एक मालिकाना दृष्टिकोण विकसित करना शुरू कर दिया है और कैसे अमेरिकी सरकार अफ़्रीका को अपने वैश्विक मुनरो सिद्धांत का एक अग्रिम मोर्चा मानती है। उस ब्रीफ़िंग को नीचे पूरा पढ़ा जा सकता है और यहाँ से डाउनलोड किया जा सकता है:

अगस्त 2022 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफ़्रीका को लक्ष्य करके एक नयी विदेश नीति रणनीति प्रकाशित की। 17-पृष्ठ के इस दस्तावेज़ में चीन और रूस का संयुक्त रूप से 10 बार उल्लेख किया गया है, जिसमें महाद्वीप पर ‘[पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना], रूस और अन्य विदेशी शक्तियों द्वारा हानिकारक गतिविधियों का मुक़ाबला करने की प्रतिज्ञा शामिल है, लेकिन इस दस्तावेज़ में एक बार भी ‘संप्रभुता’ शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है। हालाँकि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि वाशिंगटन ‘अफ़्रीका के विकल्पों को निर्धारित नहीं करेगा’, लेकिन ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि नाटो अफ़्रीकी सरकारों पर दबाव डाल रहा है कि वे युद्घ में यूक्रेन का पक्ष लें। जैसे-जैसे वैश्विक तनाव बढ़ रहा है, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने संकेत दिया है कि वे चीन और रूस के ख़िलाफ़ नया शीत युद्ध छेड़ने के लिए इस महाद्वीप को युद्ध के मैदान के रूप में देखते हैं।

 

Richard Mudariki (Zimbabwe), The Passover, 2011.

रिचर्ड मुदारिकी (जिम्बाब्वे), द पासओवर, 2011.

 

एक नया मुनरो सिद्धांत?

जून में अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन में नाटो ने मध्य पूर्व के साथ अफ़्रीका को ‘नाटो का दक्षिणी पड़ोस’ बताया है। इससे भी आगे बढ़कर, नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने ‘हमारे दक्षिणी पड़ोस में रूस और चीन के बढ़ते प्रभाव’ को ‘चुनौती’ के रूप में रेखांकित किया। नाटो महासचिव के बाद AFRICOM के निवर्तमान कमांडर जनरल स्टीफ़न जे टाउनसेंड ने अफ़्रीका को ‘नाटो का दक्षिणी भाग’ कहा। ये टिप्पणियाँ 1823 के मुनरो सिद्धांत द्वारा समर्थित नव-औपनिवेशिक रवैये की याद दिलाती है, जिसमें अमेरिका ने दावा किया था कि  लैटिन अमेरिका उसका ‘पिछवाड़ा’ है।

ख़ुद को अफ़्रीका का सरपरस्त मानने का दृष्टिकोण आजकल वाशिंगटन में आम है। अप्रैल में, यूएस हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स ने काउंटरिंग मलाइन रशियन इन्फ्लुएंस एक्टिविटीज इन अफ़्रीका एक्ट को 415-9 के वोट से भारी बहुमत के साथ पारित किया। अफ़्रीकी देशों की संप्रभुता का अनादर करने के लिए पूरे महाद्वीप में इस बिल की व्यापक रूप से निंदा की गई है, जिस बिल का उद्देश्य यह है कि जो भी अफ़्रीकी सरकारें रूस संबंधी अमेरिका की विदेश नीति की पक्षधर नहीं होंगी उन्हें दंडित किया जाएगा, दक्षिण अफ़्रीका के विदेश मंत्री नलेदी पंडोर ने इसे ‘बेहद अपमानजनक’ बताया है।

अफ़्रीका को अपने भू-राजनीतिक संघर्षों में खींचने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा किए गए प्रयास गंभीर चिंता का विषय हैं: क्या अमेरिका और नाटो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महाद्वीप पर अपनी विशाल सैन्य उपस्थिति को हथियार बनाएँगे?

 

अमनी बोडो (DRC), ‘गैस मास्क’, 2020.

 

AFRICOM: अमेरिका और नाटो के आधिपत्य की रक्षा करना

2007 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘अफ़्रीका में हमारी बढ़ती भागीदारी और हितों के जवाब में’ अफ़्रीका कमांड (AFRICOM) की स्थापना की। केवल 15 वर्षों में, AFRICOM ने एक व्यापक नेटवर्क के हिस्से के रूप में महाद्वीप पर कम-से-कम 29 सैन्य ठिकाने स्थापित किए हैं, जिसमें कम-से-कम 34 देशों में (महाद्वीप के 60 प्रतिशत से अधिक देश) 60 से अधिक चौकी और सुविधा स्थल शामिल हैं।

अफ़्रीका में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने की वाशिंगटन की बयानबाज़ी के बावजूद, वास्तव में, AFRICOM का उद्देश्य महाद्वीप पर अमेरिकी आधिपत्य को सुरक्षित करना है। AFRICOM के घोषित उद्देश्यों में अफ़्रीका में ‘अमेरिकी हितों की रक्षा’ और ‘प्रतिस्पर्धियों पर श्रेष्ठता बनाए रखना’ शामिल है। वास्तव में, AFRICOM का निर्माण ‘क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति और प्रभाव से चिंतित लोगों’ की चिंताओं से प्रेरित था।

नाटो के तत्कालीन सुप्रीम एलाइड कमांडर जेम्स एल जोन्स जूनियर द्वारा प्रस्तुत मूल प्रस्ताव के साथ, नाटो शुरू से ही इस प्रयास में शामिल था। वार्षिक आधार पर, AFRICOM अफ़्रीकी सेनाओं तथा ‘अमेरिका और नाटो के विशेष अभियान बल’ के बीच ‘पारस्परिक सहयोग’ बढ़ाने पर केंद्रित प्रशिक्षण अभ्यास आयोजित करता है ।

अफ़्रीका में अमेरिका और नाटो की सैन्य उपस्थिति की विनाशकारी प्रकृति का उदाहरण 2011 में देखने को मिला था जब – अफ़्रीकी संघ के विरोध की अनदेखी करते हुए – अमेरिका और नाटो ने मुअम्मर गद्दाफ़ी की सरकार को हटाने के लिए लीबिया में अपने विनाशकारी सैन्य हस्तक्षेप की शुरुआत की। शासन परिवर्तन के नाम पर किए गए इस युद्ध ने उस देश को नष्ट कर दिया, जिसने पहले संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक पर अफ़्रीकी देशों में सर्वोच्च स्कोर किया था। एक दशक बाद, लीबिया में हस्तक्षेप की प्रमुख उपलब्धियाँ देश में दास मंडियों की वापसी, हज़ारों विदेशी लड़ाकों का प्रवेश और अंतहीन हिंसा रही हैं।

भविष्य में, क्या अमेरिका और नाटो अफ़्रीका में सैन्य हस्तक्षेप और शासन परिवर्तन के औचित्य के रूप में चीन और रूस के ‘दुर्भावनापूर्ण प्रभाव’ को ज़िम्मेदार बताएगा?

 

Zemba Luzamba (DRC), Parlementaires debout (‘Parliamentarians Standing’), 2019.

ज़ेम्बा लुज़ांबा (डीआरसी), ‘वर्तमान सांसद’, 2019.

 

Africa Rejects a New Cold War

अफ़्रीका एक नये शीत युद्ध को ख़ारिज करता है

इस वर्ष की संयुक्त राष्ट्र महासभा में अफ़्रीकी संघ ने अपने भू-राजनीतिक एजेंडे में महाद्वीप को मोहरे के रूप में उपयोग करने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों के ज़बरदस्त प्रयासों को दृढ़ता से ख़ारिज कर दिया। अफ़्रीकी संघ के अध्यक्ष और सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी सॉल ने कहा, ‘अफ़्रीका ने इतिहास के बोझ को काफ़ी झेला है; यह एक नये शीत युद्ध का प्रजनन स्थल नहीं बनना चाहता, बल्कि पारस्परिक रूप से लाभप्रद आधार पर खुले तौर पर अपने सभी भागीदारों के लिए स्थिरता और अवसर की धुरी होना चाहता है’। वास्तव में, शांति, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और विकास की चाह रखने वाले अफ़्रीका के लोगों को युद्ध के लिए चलाए जा रहे अभियान से कुछ भी नहीं मिल रहा है।

13 अक्टूबर को यूरोपीय डिप्लोमैटिक अकादमी के उद्घाटन के अवसर पर यूरोपीय संघ के मुख्य राजनयिक, जोसेप बोरेल ने कहा, ‘यूरोप एक बगीचा है… बाक़ी दुनिया… एक जंगल है, और जंगल बगीचे पर आक्रमण कर सकता है’। शायद इस रूपक के माध्यम से बात स्पष्ट नहीं हुई इसलिए उन्होंने आगे कहा, ‘यूरोपीय लोगों को शेष विश्व के साथ और अधिक मेलजोल बढ़ाना चाहिए। नहीं तो बाक़ी दुनिया हम पर आक्रमण कर देगी’। बोरेल की नस्लवादी टिप्पणियों की सोशल मीडिया पर निंदा की गई और बेल्जियम वर्कर्स पार्टी के मार्क बोटेंगा द्वारा यूरोपीय संसद में इसकी निंदा की, और डोमोक्रेसी इन यूरोप मवमेंट (DiEM25) द्वारा बोरेल के इस्तीफ़े की माँग वाली एक याचिका पर 10,000 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किया। बोरेल के पास इतिहास की कितनी कम जानकारी है: यह यूरोप और उत्तरी अमेरिका हैं जो अफ़्रीकी महाद्वीप पर आक्रमण करना जारी रखते हैं, और ये सैन्य और आर्थिक आक्रमण ही हैं जो अफ़्रीकी लोगों के पलायन का कारण बनते हैं। जैसा कि राष्ट्रपति सॉल ने कहा, अफ़्रीका ‘नये शीत युद्ध का प्रजनन स्थल’ नहीं बनना चाहता, बल्कि गरिमा का एक संप्रभु स्थान बनना चाहता है।

स्नेह-सहित

विजय।