Reference photograph: Sandinistas at the Walls of the National Guard Headquarters: ‘Molotov Man’, Estelí, Nicaragua, July 16th, 1979, by Susan Meiselas/Magnum Photos

तस्वीर: नेशनल गार्ड मुख्यालय की दीवारों पर सैंडिनिस्टा:
मोलोटोव पुरुष‘, एस्टेली, निकारागुआ, 16 जुलाई 1979, सुसान मीसेलस/मैग्नम फ़ोटोज़

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2022-23 दुनिया भर के अरबों लोगों के लिए वास्तविक मज़दूरी के भयानक पतन को उजागर करती है। दुनिया के सबसे अमीर 1% अरबपतियों [जो जल्दी खरबपति बनने वाले हैं] की आय और संपत्ति तथा बाक़ी 99% आबादी की आय और संपत्ति के बीच की खाई घृणास्पद है। दुनिया के दस सबसे अमीर लोगों की संपत्ति महामारी के दौरान दोगुनी हुई। अब पूरी तरह से सामान्य हो चुकी इस धन असमानता ने दुनिया में बड़ेऔर ख़तरनाकसामाजिक दुष्परिणाम उत्पन्न किए हैं।

आप दुनिया के किसी भी देश के किसी भी शहर में टहलने निकलें, आपको ऐसे बड़ेबड़े इलाक़े दिखेंगे जो ग़रीबी से भरे हुए हैं। इनके कई नाम हैं: बस्तियाँ, बिडोनविले, बिन्हमिन्हचुन, फ़वेला, स्लम, और सोदोम और अमोरा। यहाँ, अरबों लोगों को ऐसी परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है जो विशाल सामाजिक संपत्ति और नवीन प्रौद्योगिकी वाले हमारे इस युग में अनावश्यक है। लेकिन जल्द खरबपति बनने वाले सेठ सामाजिक संपत्ति को हड़प जाते हैं और सरकारों के ख़िलाफ़ अपनी आधी सदी से जारी कर हड़ताल को लगातार खींच रहे हैं; यह एक ऐसी हड़ताल है जो सार्वजनिक वित्त को पंगु बनाकर मज़दूर वर्ग पर स्थायी हमले के रूप में नवउदारवादी नीतियाँ लागू करती हैं। नवउदारवादी कटौतियों की स्थितियाँ फ़वेला और बस्तियों की दुनिया को परिभाषित करती हैं, जहाँ लोग भूख और ग़रीबी, पीने के पानी और सीवेज की भारी कमी, और शिक्षा चिकित्सा देखभाल की बदहाली का सामना करते हुए संघर्ष करते हैं। इन्हीं बिडोनविले और स्लम इलाक़ों में लोगनवउदारवादी नीतियों ने जिनके सामज को बिखेरकर रख दिया है –  रोज़मर्रा के अस्तित्व और इस धरती पर अपने भविष्य में विश्वास के नये रूपों का निर्माण करते हैं।

 

Neighbourhood residents and other guests participate in a popular bible study in Petrolina, in the state of Pernambuco, 2019. Reference photograph sourced from the Popular Communication Centre

इलाक़े के निवासी और बाक़ी अतिथि पेरनामबुको राज्य के पेट्रोलिना शहर में सार्वजनिक तौर पर बाइबिल पाठ में भाग लेते हुए, 2019. लोकप्रिय संचार केंद्र से प्राप्त तस्वीर.

 

रोज़मर्रा के संघर्ष का एक रूप स्वयं सहायता संगठनों की व्यापक मौजूदगी में देखा जा सकता है, जो अक्सर महिलाओं द्वारा चलाए जाते हैं। ये संगठन सबसे विषम परिस्थितियों वाली बस्तियों में काम करते हैं, जैसे किबेरा (नैरोबी, केन्या) में, या कोमुना अल्टोस डी लिडिस (कराकास, वेनेजुएला) जैसे इलाक़ों में, जहाँ की सरकारों के पास बहुत कम संसाधन है। पूँजीवादी दुनिया में नवउदारवादी राज्य राहत प्रदान करने की अपनी प्राथमिक जवाबदेही से आज़ाद हो जाता है और ग़ैरसरकारी तथा चैरिटी करने वाले संगठनों के लिए दरवाज़ा खोल देता है, जिनके प्रावधान अत्यधिक तनाव में जी रहे समाज के लिए बेहद ज़रूरी मरहम का काम करते हैं।

चैरिटी और स्वयं सहायता संगठनों की ही तरह इन बस्तियों की एक और सच्चाई हैं गैंग, जो संकट से भरी दुनिया में रोज़गार एजेंसियों की तरह काम करते हैं। ये गैंग कई प्रकार की अवैध गतिविधियों (ड्रग्स, सेक्स ट्रैफ़िकिंग, संरक्षण रैकेट, जुआ) का प्रबंधन करने के लिए सबसे ज़्यादा परेशान लोगोंज़्यादातर पुरुषोंको इकट्ठा करते हैं और रोज़गार की बेहद कमी के बीच कुछ रोज़गार प्रदान करते हैं। स्यूडाड नेज़ाहौलकोयोल (मेक्सिको सिटी, मैक्सिको) से खयेलित्शा (केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका) और ओरांगी टाउन (कराची, पाकिस्तान) तक, छोटे चोरों से लेकर बड़े गिरोहों के सदस्यों की तरह काम करने वाले दरिद्र गैंगस्टरों का दिखना आम बात है। रियो डी जनेरियो (ब्राज़ील) में, ऐंटारेस के फ़वेलावासी अपने इलाक़े के प्रवेश द्वार को बोकास (मुँह) कहते हैं; वह मुँह जिससे ड्रग्स ख़रीदे जा सकते हैं और वह मुँह जिसे ड्रग व्यापार खिलाता है।

 

Bishop Sérgio Arthur Braschi of the Diocese of Ponta Grossa (in the state of Paraná) blesses food that Brazil’s Landless Workers’ Movement (MST) donated to 500 families in need, 2021. Reference photograph: Jade Azevedo (MST-Paraná)

पराना राज्य में पोंटा ग्रॉस धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष सर्जियो आर्थर ब्राची 2021 में ब्राज़ील के भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) द्वारा 500 ज़रूरतमंद परिवारों को बाँटे गए भोजन को आशीष दे रहे हैं। तस्वीर: जेड अजेवेदो (एमएसटीपराना).

 

अत्यधिक ग़रीबी और सामाजिक विखंडन के इस माहौल में ही लोग राहत के लिए विभिन्न प्रकार के लोकप्रिय धर्मों की ओर रुख़ करते हैं। इस झुकाव के व्यावहारिक कारण हैं, क्योंकि चर्च, मस्जिद और मंदिर भोजन और शिक्षा के साथसाथ सामुदायिक समारोहों और बच्चों की गतिविधियों के लिए जगह उपलब्ध कराते हैं। चूँकि राज्य ज़्यादातर एक पुलिस अधिकारी के रूप में ही दिखाई पड़ता है, तो शहरी ग़रीब चैरिटी संगठनों में शरण लेते हैं जो अक्सर किसीकिसी तरह से धार्मिक आदेशों से संबंधित होते हैं। लेकिन ये संस्थान/संगठन लोगों को सिर्फ़ और सिर्फ़ गरम खाने या शाम के मीठे गीत के लिए ही आकर्षित नहीं करते; इस झुकाव में आध्यात्मिक आकर्षण को कम करके नहीं देखा जाना चाहिए।

ब्राज़ील में हमारे शोधकर्ता पिछले कुछ वर्षों से पेंटेकोस्टल मूव्मेंट का अध्ययन करते हुए देश में तेज़ी से बढ़ रहे इस संप्रदाय के आकर्षण को ठीक से समझने के लिए पूरे देश में एथ्नोग्राफ़ी कर रहे हैं। पेंटेकोस्टलवाद, इंजील को मानने वाले ईसाई धर्म का एक रूप, इसलिए चिंता का विषय बन गया है क्योंकि यह कई देशों में पारंपरिक विचारों के साथ शहरी ग़रीबों और श्रमिक वर्ग की चेतना को आकार दे रहा है (और कहीं कहीं इस बड़ी आबादी को दक्षिण पंथ के आधार के रूप में परिवर्तित कर रहा है) हमारी शोध टीम का अध्ययन हमारे नवीनतम डोज़ियर रिलिजियस फ़ंडामेंटलिज़्म एंड इम्पीरीयलिज़्म इन लैटिन अमेरिका: ऐक्शन एंड रेज़िस्टैन्स‘ (डोजियर संख्या 59, दिसंबर 2022) में प्रकाशित हुआ है। इस डोज़ियर में पेंटेकोस्टल मूव्मेंट के उदय को लैटिन अमेरिका के नवउदारवादी चरण के साथ जोड़ते हुए इन नयी आस्था परंपराओं के उदय दक्षिणपंथी वर्गों के साथ उनके जुड़ाव (जैसे कि ब्राज़ील के संदर्भ में, जेयर बोल्सोनारो और बोल्सोनारो के समर्थकों के राजनीतिक भाग्य के साथ उनके जुड़ाव) का बारीक अध्ययन पेश किया गया है।

 

Participants of a march and vigil organised by the Love Conquers Hate Christian Collective light candles during a prayer with believers of various faiths in Rio de Janeiro in 2018, ‘joined together for the same values: life, liberty and the defence of human dignity as Christ taught us’, they declared. Reference photograph by Gabriel Castilho

2018 में रियो डी जनेरियो में विभिन्न धर्मों को मानने वाले एक साथ लव कॉन्क्वेर्स हेट क्रिस्चियन कलेक्टिवद्वारा आयोजित एक मार्च में शामिल हुए। मोमबत्तियाँ जलाकर उन्होंने घोषणा की कि जीवन, स्वतंत्रता और मानव गरिमा के समान मूल्यों के लिए हम एकजुट हैं: जैसा कि ईसा मसीह ने हमें सिखाया था गेब्रियल कैस्टिलो द्वारा ली गई तस्वीर.

 

युवा कार्ल मार्क्स ने उत्पीड़ितों के बीच धार्मिक इच्छा के सार को पकड़ लिया था: उन्होंने लिखा, ‘धार्मिक पीड़ा एक ही समय में, वास्तविक पीड़ा की अभिव्यक्ति और वास्तविक पीड़ा के ख़िलाफ़ विरोध है। धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह है, हृदयहीन संसार का हृदय है, और उत्साहहीन परिस्थितियों में उत्साह है। यह लोगों की अफ़ीम है।यह मान लेना ग़लत है कि धर्म की ओर लोगों के झुकाव का कारण केवल उन चीज़ों को प्राप्त करने की बेताबी है जिन्हें नवउदारवादी राज्य प्रदान करने के लिए तैयार नहीं हैं। यहाँ और भी कुछ दाँव पर लगा है। जो कि पेंटेकोस्टलवाद, जिसने अभी हमारा ध्यान आकर्षित किया है, से बहुत बड़ा है। क्योंकि शहरी ग़रीबों की मलिन बस्तियों में इस तरह का काम करने वाला यह इकलौता संस्थान नहीं है। पेंटेकोस्टलवाद जैसे ट्रेंड उन समाजों में भी दिखाई दे रहे हैं जिन पर अन्य धार्मिक परम्पराओं का प्रभुत्व है। उदाहरण के लिए, अरब दुनिया में अम्र ख़ालिद जैसे दावा (प्रचारक) उसी तरह का बाम लगाते हैं, और भारत में, आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउंडेशन, तरहतरह के साधु तथा तब्लीग़ी जमात लोगों को अपने हिसाब से सांत्वना प्रदान करते हैं।

ये नयी सामाजिक ताक़तें पुरानी धार्मिक परंपराओं को नियंत्रित करने वाले नरक और स्वर्ग के सिद्धांत, यानी मृत्यु और न्याय पर ज़ोर नहीं देतीं। ये जीवन पर और जीने पर ज़ोर देती हैं (मैं पुनरुत्थान हूँ, मैं जीवन हूँ‘ – जॉन 11:25 – पेंटेकोस्टलवादियों का पसंदीदा वाक्य है) जीना इस दुनिया में जीना है, दौलत और शोहरत की तलाश में जीना है, जिसमें नवउदारवादी समाज की सभी महत्वाकांक्षाएँ धर्म में शामिल हो जाती हैं, अपनी आत्मा को बचाने के लिए नहीं बल्कि ज़्यादा कमाई के लिए प्रार्थना की जाती है। इसे जीने का धर्मसिद्धांत या समृद्धि का धर्मसिद्धांत कहा जाता है, जिसे आप अम्र ख़ालिद के इन प्रश्नों से समझ सकते हैं: हम पूरे चौबीस घंटों को लाभ और ऊर्जा में कैसे बदल सकते हैं? हम चौबीस घंटों को सबसे बेहतर तरीक़े से कैसे उपयोग कर सकते हैं?’, और इसका उत्तर है, उत्पादक कार्य और प्रार्थना का संयोग, जिसे भूगोलवेत्ता मोना आतिया पवित्र नवउदारवादकहती हैं।

 

Members of the Gullah community in Georgia (United States) participate in a ‘ring shout’ during a service in a ‘praise house’, ca. 1930s. Reference photograph: Doing the Ring Shout in Georgia, photographer unknown, sourced from the Lorenzo Dow Turner Papers, Anacostia Community Museum Archives, Smithsonian Institution.

1930 के दशक में जॉर्जिया (संयुक्त राज्य अमेरिका) में गुल्ला समुदाय के सदस्य एक स्तुति गृहमें सेवा के दौरान रिंग शाउटमें भाग लेते हुए। फ़ोटोग्राफ़: जॉर्जिया में रिंग शाउट करते हुए, फ़ोटोग्राफ़र: अज्ञात, लोरेंजो डॉव टर्नर पेपर्स, एनाकोस्टिया कम्युनिटी म्यूज़ियम आर्काइव्स, स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन से प्राप्त.

 

नवउदारवादी कटौतियों की वजह से ग़रीबी और उससे उत्पन्न निराशा के बीच ये नयी धार्मिक परंपराएँ उम्मीद की एक किरण की तरह दिखाई देती हैं; समृद्धि का संदेश सुनाती हैं, कि भगवान कहते हैं कि संघर्ष करने वाले इस दुनिया में धन प्राप्त करते हैं, जहाँ आपकी तपस्या मृत्युउपरांत जीवन में ईश्वरीय कृपा से नहीं बल्कि जीवित वर्तमान जीवन में बैंक खातों से नापी जाती है। उम्मीद पर प्रभाव जमाकर, ये धार्मिक संस्थाएँकुल मिलाकरसामाजिक जीवन का ऐसा दक़ियानूसी दर्शन प्रस्तुत करती हैं कि जो सामाजिक प्रगति (विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों और यौन स्वतंत्रता) से ख़ासी घृणा करता है।

हमारा डोजियर, शहरी ग़रीबों की दुनिया में इन धार्मिक संस्थानों के उद्भव को समझने की शुरुआती कोशिश है। अरबों लोगों की उम्मीद पर इन संस्थानों की पकड़ को मज़बूती से पेश करते हुए हमारे शोधकर्ता डोज़ियर में लिखते हैं कि, ‘भविष्य के प्रगतिशील सपनों और दृष्टियों के निर्माण के लिए, हमें लोगों में उम्मीद जगानी चाहिए जिसे वे अपनी दैनिक वास्तविकता में जी सकें। हमें अपने वास्तविक इतिहास और सामाजिक अधिकारों के लिए हमारे संघर्ष को शिक्षा, संस्कृति और समुदाय की जगहें विकसित करते हुए लोकप्रिय संगठनों का हिस्सा बनाना चाहिए, जहाँ लोग वास्तविकता की बेहतर समझ हासिल कर सकें और सामूहिक एकजुटता, आराम (leisure) और उत्सव के दैनिक अनुभव में शामिल हो सकें। इन प्रयासों में, यह महत्वपूर्ण है कि दुनिया की व्याख्या के नये या अलग तरीक़ों, जैसे कि धर्म के माध्यम से, की उपेक्षा या उन्हें ख़ारिज किया जाएबल्कि, साझा प्रगतिशील मूल्यों पर एकता बनाने के लिए उनके बीच खुले दिमाग़ के साथ सम्मानजनक संवाद को बढ़ावा दिया जाए यह पवित्र नवउदारवादके आगे कामगार वर्ग की उम्मीदों के आत्मसमर्पण के बजाय नवउदारवादी कटौतियों की स्थिति से पार पाने के संघर्षों में निहित आशा के बारे में बातचीत का निमंत्रण है।

 

पूरे ब्राज़ील से आई लगभग 100,000 से भी अधिक महिलाओं ने 2019 में लोकप्रिय संप्रभुता, लोकतंत्र, न्याय, समानता स्थापित करने और हिंसा को समाप्त करने की मांग करते हुए देश की राजधानी ब्रासीलिया में मार्च ऑफ़ डेसीज (मार्चा दास मार्गरिदास) में भाग लिया। फ़ोटोग्राफ़र: नतालिया ब्लैंको (कोईनोनिया एक्युमेनिकल प्रेज़ेन्स एंड सर्विस) ACT ब्राज़ील एक्युमेनिकल फ़ोरम (FEACT) से प्राप्त.

 

फ़रवरी 2013 मेंसीरिया में अलक़ायदा से संबद्ध जबात अलनुसरा के लोग मरात अलनुमान शहर गए और 11वीं शताब्दी के कवि अबू अलअला अलमाअरी की सत्तर साल पुरानी मूर्ति का सिर काट दिया। पुराने कवि से वे नाराज़ थे क्योंकि उन्हें नास्तिक माना जाता है, जबकि वे मुख्य रूप से पुरोहितविरोधी थे। अपने लुज़ुम मा ला यलज़म में, अलमाअरी ने पंथों के ढहते खंडहरके बारे में लिखा था, जिसमें एक स्काउट गाता है कि यहाँ चरागाह तकलीफ़देह मातम से भरा है उन्होंने लिखा कि, ‘हमारे बीच झूठ की घोषणा ज़ोर से की जाती है‘, ‘लेकिन सच फुसफुसाया जाता हैऔर अधिकार तथा तर्क [की माँग करने वाले] कफ़न से वंचित कर दिए जाते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं कि निश्चितता के अपने सिद्धांत से प्रेरित उन नौजवान आतंकियों ने सीरियाई मूर्तिकार फथी मोहम्मद द्वारा बनाई गई मूर्ति को तोड़ा था। वे मानवता के रौशन विचार को सहन नहीं कर सके।

स्नेहसहित

विजय।