आईएमएफ में वैश्विक उत्तर के पास दक्षिण के मुक़ाबले वोट करने की नौ गुना ज़्यादा ताक़त है: दसवाँ न्यूज़लेटर (2025)
वैश्विक दक्षिण आईएमएफ के शिकंजे में फंसा है। इसमें सुधार की कोशिशों को वैश्विक उत्तर नाकाम कर रहा है, इसलिए ग़रीब मुल्क ब्रिक्स जैसे संस्थान बना रहे हैं।

प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
जी हाँ, आपने बिलकुल सही पढ़ा।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के लिए वैश्विक उत्तर का हरेक व्यक्ति वैश्विक दक्षिण के नौ व्यक्तियों के बराबर है। यह हिसाब हमने आईएमएफ़ में वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण के देशों की जनसंख्या और संस्थान में उनके वोट की ताक़त के अंतर्संबंध से जुड़े डाटा के आधार पर लगाया। आईएमएफ़ के मुताबिक़ हर देश को उसकी ‘सापेक्षिक आर्थिक स्थिति’ के आधार पर आईएमएफ़ के एग्ज़ीक्युटिव बोर्ड या कार्यकारी बोर्ड के लिए प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिलता है। यह बोर्ड ही आईएमएफ़ के सभी अहम फ़ैसले लेता है। इस बोर्ड के सदस्यों पर सरसरी नज़र डालने से ही पता चल जाता है कि क़र्ज़ लेने वाले देशों के लिए आवश्यक इस बहुपक्षीय संस्थान में वैश्विक उत्तर का प्रतिनिधित्व बहुत ज़्यादा है।
उदाहरण के लिए अमेरिका के पास आईएमएफ के बोर्ड के 16.49% वोट हैं, जबकि दुनिया की आबादी में इसका हिस्सा सिर्फ़ 4.22% है। आईएमएफ़ के समझौते से संबंधित अनुच्छेद के अनुसार किसी भी तरह के परिवर्तन के लिए समर्थन में 85% वोट अनिवार्य हैं। इस लिहाज़ से आईएमएफ के फ़ैसलों में अमेरिका के पास वीटो या निषेध का अधिकार है। नतीजतन अमेरिकी सरकार द्वारा बनाई सभी नीतियों को आईएमएफ के वरिष्ठ अधिकारी स्वीकार कर लेते हैं और चूँकि इस संस्थान का दफ़्तर वॉशिंगटन डीसी में है इसलिए यह निरंतर अमेरिका के वित्त विभाग से अपने नीतिगत ढाँचे और तमाम नीतिगत फ़ैसले पर सलाह लेता है।

पशु फार्म, अरमांडो रेवेरों (वेनेज़ुएला), 1993
उदाहरण के तौर पर 2019 में अमेरिका ने एकतरफ़ा फ़ैसला लेते हुए जब वेनेजुएला की सरकार की मान्यता रद्द कर दी तो इसने आईएमएफ को भी ऐसा करने के लिए बाध्य किया। वेनेजुएला आईएमएफ के संस्थापक सदस्यों में से एक है और इसने कई बार आईएमएफ से मदद ली है। 2007 में वेनेजुएला ने आईएमएफ का सारा बकाया क़र्ज़ चुका दिया और फिर कभी इससे लघु-अवधि के ऋण न लेने का फ़ैसला किया (वेनेजुएला की सरकार ने बैंक ऑफ़ द साउथ खड़ा करने में अपना ध्यान लगाया जो क़र्ज़ न चुका पाने की स्थिति में देशों की मदद करे)। वैश्विक महामारी के दौरान ज़्यादातर देशों की तरह वेनेजुएला ने भी चाहा कि वह विशेष स्थिति में धन निकाल पाने के अधिकार के तहत इसके पाँच सौ करोड़ डॉलर के रिज़र्व से कुछ धनराशी निकाल ले। वैश्विक स्तर पर चल निधि की स्थिति बेहतर करने के लिए आईएमएफ़ के कार्यक्रम के तहत वेनेजुएला के पास इस रिज़र्व का इस्तेमाल करने का अधिकार था।लेकिन आईएमएफ़ ने अमेरिका के दबाव में यह धनराशि नहीं देने का फ़ैसला किया। इससे पहले भी वेनेजुएला को विशेष स्थिति में धन निकाल पाने के अधिकार के तहत 40 करोड़ डॉलर के इसके रिज़र्व इस्तेमाल नहीं करने दिया गया था।
हालाँकि अमेरिका ने कहा कि वेनेजुएला के असल राष्ट्रपति जुआन गुइदो हैं लेकिन आईएमएफ़ ने अपनी वेबसाइट पर वेनेजुएला के प्रतिनिधि के तौर पर तत्कालीन राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की सरकार में वित्तमंत्री सिमोन ऐलेहांड्रो ज़ेरपा डेलगादो को ही मान्यता दी। आईएमएफ के प्रवक्ता रफ़ाएल ऐन्स्पॉक को हमने मार्च 2020 में फंड न देने के संबंध एक ईमेल भेजा था जिसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन उन्होंने एक अधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि आईएमएफ ‘का किसी सदस्य देश से संबंध अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा उस देश की सरकार की अधिकारिक मान्यता पर आधारित होता है’। ऐन्स्पॉक ने लिखा चूँकि इस मामले में यह मान्यता ‘स्पष्ट नहीं’ है इसलिए महामारी के दौरान आईएमएफ वेनेजुएला को उसके विशेष स्थिति में धन निकालने के अधिकार का प्रयोग करने नहीं दे सकता। इसके बाद अचानक आईएमएफ ने अपनी वेबसाइट से ज़ेरपा का नाम हटा दिया। यह पूरी तरह अमेरिका के दबाव में हुआ।
2023 में शंघाई स्थित न्यू डेवेलपमेंट बैंक (ब्रिक्स बैंक) के मंच पर चर्चा में ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइस इनासियो लूला डी सिल्वा ने कहा कि ग़रीब देशों के मामले में आईएमएफ की नीति ‘दमघोंटू’ है। अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए लूला ने कहा ‘अगर क़र्ज़ की तलवार किसी सरकार के सिर पर लटक रही हो तो वह काम नहीं कर सकती। बैंकों को संयम बनाए रखना होगा और अगर ज़रूरत पड़े तो समझौतों का नवीनीकरण किया जाए। जब आईएमएफ या कोई दूसरा बैंक तीसरी दुनिया के किसी देश को क़र्ज़ देते हैं तो लोगों लगता है उन्हें उस देश को आदेश देने और उसकी वित्तीय नीतियों को नियंत्रित करने का अधिकार मिल गया – मानो वह देश क़र्ज़ देने वालों का बंदी हो गया’।

नर्तक, बेन एनवोंवु (नाइजीरिया) 1962
लोकतंत्र की सब बातें धरी रह जाती हैं जब दुनिया में शक्ति के असल आधार की बात आती है: पूँजी पर नियंत्रण। पिछले साल ऑक्सफैम ने दिखाया कि ‘दुनिया के सबसे अमीर 1% लोगों के पास 95% जनता से ज़्यादा संपत्ति है’ और ‘दुनिया के सबसे बड़े 50 कॉरपोरेशनों के एक तिहाई से ज़्यादा – जिनकी संपत्ति 13.3 खरब डॉलर है – का नियंत्रण किसी अरबपति के पास है या किसी अरबपति के पास इनके सबसे ज़्यादा शेयर हैं’। इन अरबपतियों में से दर्जन भर से ज़्यादा अब अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की कैबिनेट में हैं; वे अब 1% अमीरों का नहीं बल्कि 0.0001% का प्रतीक हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा तो इस दशक के अंत तक दुनिया में पाँच खरबपति तैयार हो जाएँगे। ये वहीं हैं जो सरकारों में दबदबा रखते हैं और इसके चलते बहुपक्षीय संगठनों पर इनका बहुत प्रभाव है।
1963 में नाइजीरिया के विदेश मंत्री जाजा अनूचा एंडबीज़ी वाचूकू ने संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य बहुपक्षीय संगठनों के बारे में अपनी निराशा ज़ाहिर की। उन्होंने कहा कि अफ्रीकी देशों के पास ‘संयुक्त राष्ट्र के महत्त्वपूर्ण अंगों में किसी भी विषय पर अपने विचार पेश करने का कोई अधिकार नहीं है’। किसी भी अफ्रीकी देश या लैटिन अमेरिकी देश के पास संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता नहीं थी। आईएमएफ और विश्व बैंक में कोई भी अफ्रीकी देश कोई अजेंडा आगे नहीं ले जा सकता। वाचूकू ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में ‘क्या हमें सिर्फ़ दालान में ही खड़ा रखा जाएगा?’ 2024 में आईएमएफ ने एक और अफ्रीकी प्रतिनिधि के लिए स्थान जोड़ा लेकिन इस महाद्वीप के लिए यह नाकाफ़ी है। क्योंकि किसी भी दूसरे महाद्वीप के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा आईएमएफ सदस्य देश अफ़्रीका के हैं (190 देशों में से 54) और यहाँ ही आईएमएफ़ के सबसे ज़्यादा क़र्ज़ से जुड़े कार्यक्रम भी चल रहे हैं (2000 से 2023 के बीच 46.8%), लेकिन इस महाद्वीप के पास ओशिनिया के बाद सबसे कम वोट प्रतिशत है। अपने दो सदस्यों के साथ उत्तरी अमेरिका के पास 943,085 वोट हैं जबकि उप-सहारा के 54 सदस्यों के पास 326,033 वोट हैं।

जीवित बच गए लोग, अलीयोने दीयगने (सेनेगल), 2023
2007 के आर्थिक संकट के बाद और तीसरे आर्थिक संकट की शुरुआत पर आईएमएफ ने सुधार की प्रक्रिया शुरू करने का फ़ैसला लिया। इस सुधार के पीछे विचार यह था कि जब कोई देश ब्रिज लोन (एक प्रकार का अल्पकालिक ऋण) लेने जाता था – जिसे ग़ैर-पक्षपाती माना जाना चाहिए – तो पूँजी बाज़ार में उस देश का नुक़सान होता था क्योंकि ऋण लेने का मतलब है कि उसका प्रदर्शन ख़राब है। इसलिए उस देश को ऊँची ब्याज दरों पर ऋण दिया जाता जिससे वह संकट और गहरा जाता जिसकी वजह से ब्रिज लोन लेने की ज़रूरत पड़ी थी।
इस समस्या के पीछे एक और बड़ी समस्या छिपी है: आईएमएफ के सभी मैनेजिंग डायरेक्टर यूरोप से रहे हैं जिसका मतलब है कि आईएमएफ के शीर्ष नेतृत्व में वैश्विक दक्षिण की कोई नुमाइंदगी नहीं रही है। आईएमएफ में वोट देने का पूरा ढाँचा कोटे से ग्रस्त है (यह निर्धारित होता है अर्थव्यवस्था के आकार और आईएमएफ को दिए गए वित्तीय अंशदान के आधार पर) और इसी का प्रभाव बढ़ता जा रहा है जबकि दूसरी ओर ‘सामान्य वोट’ (एक देश, एक वोट) जो ज़्यादा लोकतांत्रिक हैं वे धराशायी हो गए। ये विभिन्न वोट दो तरीक़े से गिने जाते हैं: कैल्क्युलेटेड कोटा शेयर (CQS) जिनके निर्धारण का एक फ़ॉर्मूला है, और दूसरा, वास्तविक वोट शेयर (AQS) जिन्हें राजनीतिक बातचीत के आधार पर निर्धारित किया जाता है। उदाहरण के लिए 2024 की एक गणना के मुताबिक़ चीन के पास 6.39% AQS हैं जबकि इसका CQS 13.72% है। चीन का AQS इसके CQS के बराबर लाने के लिए अमेरिका जैसे दूसरे देशों का AQS घटाना पड़ेगा। अमेरिका का AQS है 17.40% जिसे घटाकर 14.94% करना होगा ताकि चीन के AQS में बढ़ोतरी की जा सके। अगर ऐसा होता है तो अमेरिका को अपने वीटो या निषेध के अधिकार से हाथ धोना पड़ेगा। इसलिए अमेरिका ने 2014 में आईएमएफ के सुधार के अजेंडे को विफल कर दिया। 2023 में एक बार फिर सुधार की कोशिश नाकाम कर दी गई।

मेरा समुद्रतट कहाँ गया? उसे समुद्र निगल गया, ऐंटोनीओ सूज़ा (ब्राज़ील), 2019।
इस चित्र में ऊपर दायीं ओर से नीचे बायीं ओर लिखा है ‘प्रेम’, ‘शांति’, ‘हम और समुद्र’, ‘रक्षा’, ‘ग्रह’
पाउलो नोगीरा बतिस्ता जूनियर 2007 से 2015 के बीच आईएमएफ में ब्राज़ील और कई अन्य देशों के इग्ज़ेक्युटिव डायरेक्टर रहे, 2015 से 2017 तक न्यू डेवेलपमेंट बैंक के उपाध्यक्ष रहे और चीनी भाषा में निकलने वाले एक महत्त्वपूर्ण पत्र वेनहुआ ज़ोंगहेंग में लिखते हैं। ‘आईएमएफ़ सुधारों के लिए एक रास्ता’ शीर्षक से अपने एक लेख में बतिस्ता ने सुधारों के लिए सात बिंदु पेश किए हैं:
- ऋण की शर्तों को कम सख़्त बनाया जाए।
- दीर्घकालिक ऋणों पर सरचार्ज घटाया जाए।
- ग़रीबी उन्मूलन के लिए रियायती दरों पर ऋण दिया जाए।
- आईएमएफ के कुल संसाधनों को बढ़ाया जाए।
- सामान्य वोट की शक्ति बढ़ायी जाए जिससे ग़रीब देशों का प्रतिनिधित्व हो सके।
- बोर्ड में एक तिहाई सीटें अफ़्रीका महाद्वीप को दी जाएँ।
- पाँचवे मैनेजिंग डायरेक्टर का पद बनाया जाए, यह किसी ग़रीब देश के लिए सुरक्षित रखा जाए।
बतिस्ता का मत है कि अगर वैश्विक उत्तर इतने बुनियादी, समझदारी वाले सुधार भी नहीं मानते तो ‘विकसित देश एक खोखले संस्थान के इकलौते मालिक बन कर रह जाएँगे’। उनका अंदेशा है कि वैश्विक दक्षिण आईएमएफ छोड़ देगा और ब्रिक्स जैसे नए मंचों के तहत नए संस्थान बनाएगा। बल्कि ऐसे संस्थान बनने शुरू हो चुके हैं जैसे ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (CRA) जो 2014 में आईएमएफ में सुधार लाने की विफलता के बाद बनाया गया। बतिस्ता लिखते हैं कि CRA ‘प्रायः जड़ ही रहा है’।
जब तक CRA कुछ सक्रिय नहीं होता तब तक ग़रीब देशों के पास अपनी वित्तीय ज़रूरतों के लिए आईएमएफ के अलावा कोई और विकल्प नहीं। इसलिए प्रगतिशील सरकारें भी ऋण के लिए वॉशिंगटन जाने को मजबूर हैं। इसका एक उदाहरण श्रीलंका है जहाँ 2025 के कुल व्यय का 41% सिर्फ़ ब्याज के रूप में है। वाइट हाउस और आईएमएफ मुख्यालय के बीच एक नापाक गठजोड़ है।
सस्नेह,
विजय