दुनिया में लाखों लोग भुखमरी का शिकार हैं: बाइसवाँ न्यूज़लेटर (2025)
दुनिया में इतना खाद्यान्न पैदा होता है कि 11 अरब लोगों का पेट भर सकता है। फिर इसकी 8 अरब की आबादी का बड़ा हिस्सा भुखमरी का शिकार क्यों?

चूल्हा, मक़सूद मिर्मुहम्मदोव (ताजिकिस्तान), 2020
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
इस न्यूज़लेटर में मैं जो लिख रहा हूँ वह पहले भी लिख चुका हूँ। और लगता है कि हर बार खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट जारी होने पर लिख सकता हूँ। इस रिपोर्ट के चार प्रमुख बिंदु हैं:
- पिछले साल के मुक़ाबले भूख से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ी है।
- पिछले साल के मुक़ाबले ज़्यादा खाद्यान्न पैदा किया गया है।
- इतना खाद्यान्न मौजूद है कि दुनिया की पूरी आबादी का पेट भरने के बाद भी बच जाएगा।
- तो इस बात को कैसे समझा जाए कि लोग भूखे रहने पर क्यों मजबूर हैं?

बचा-खुचा, साओ स्रेमायो (कंबोडिया), 2017
आइए हिसाब लगाते हैं।
बिंदु 1: खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के अध्ययनों के मुताबिक़ साल 2023 में 73.3 करोड़ लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ा।
बिंदु 2: एफएओ की रिपोर्ट है कि साल 2022 में दुनिया के किसानों और कृषि व्यापारियों ने 11 अरब मेट्रिक टन भोजन का उत्पादन किया (इसमें मांस, मछली मक्का, चावल और गेहूँ जैसे प्रमुख खाद्यान्न शामिल हैं)।
बिंदु 3 को एक आधार पर टिके सीधे से आकलन से स्पष्ट किया गया है।
आधार: एक व्यक्ति सालाना एक टन या 1,000 किलोग्राम खाना खाता है (वैश्विक औसत खाद्य उपभोग के लिए एफएओ मानक प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2,800 किलो कैलोरी है)।
आकलन: यदि प्रति व्यक्ति एक टन खाद्य सामग्री की ज़रूरत है और खाद्य उत्पादन 11 अरब टन है तो ग्यारह अरब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन मौजूद है।
निष्कर्ष: इस धरती पर अभी आठ अरब इंसान हैं। यानी पूरी दुनिया की आबादी के लिए पर्याप्त भोजन मौजूद है बल्कि यदि तीन अरब अतिरिक्त लोग भी होते तब भी भोजन पर्याप्त होता।
बिंदु 4: इसके बावजूद लोग भुखमरी का शिकार क्यों हैं?
भुखमरी के कई कारण हैं, लेकिन बढ़ती आबादी की वजह से खाद्य सामग्री अपर्याप्त होना क़तई इसकी वजह नहीं, जैसा कि अर्थशास्त्री थॉमस रॉबर्ट माल्थस का अनुसरण करने वाले मानते हैं। माल्थस का विश्वास था कि जनसंख्या वृद्धि खाद्य उत्पादन के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से हो रही है।
दुनिया के कई हिस्सों में लगभग अकाल जैसी स्थिति होने के तीन कारण हैं।
- पहला, युद्ध कृषि और खाद्य वितरण प्रणालियों को बर्बाद कर देते हैं। यह भुखमरी का सबसे स्पष्ट कारण है। यही वजह है कि अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे ज़्यादा कृषि योग्य ज़मीन वाला राष्ट्र होने के बावजूद सूडान अकाल की चपेट में है। अगर यहाँ युद्ध न हो रहा होता तो यह अफ्रीका में खाद्यान्न उत्पादन का केंद्र हो सकता था। युद्ध के बावजूद सूडान तिलहन (मूँगफली, कुसुम, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी) का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है। दुनिया का लगभग 80% गोंद सूडान के ग्रामीण इलाक़ों में पैदा किया जाता है। लेकिन युद्ध की वजह से यहाँ के अधिकांश खेतों में कृषि कार्य नहीं हो पा रहा है और कई किसान अपनी ज़मीन छोड़ने या बंदूक़ उठा लेने पर मजबूर कर दिए गए हैं।

शब्द और प्रतीक, के.सी.एस. पाणिकर (भारत), 1968
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दूसरा, खाना की बर्बादी। हमारी खाद्य सामग्री का पाँचवाँ हिस्सा बर्बाद हो जाता है (यानी हर दिन एक अरब थालियों के बराबर)। अमीर देश उपभोग के स्तर पर खाने की बर्बादी के दो-तिहाई के ज़िम्मेदार हैं और दुनिया भर में 60% खाने की बर्बादी घरों में होती है। अमीर देशों में अधिकांश भोजन रिटेल और उपभोग के स्तर पर बर्बाद होता है, इसकी मुख्य वजह है यहाँ भोजन को अत्यधिक प्रॉसेस और पैकेज किया जाना; इसके साथ ही घरों और रेस्तराँ में भी लोग काफ़ी खाना प्लेट में छोड़कर बर्बाद कर देते हैं। ग़रीब देशों में ज़्यादातर खाद्य सामग्री या तो उत्पादन के स्तर पर बर्बाद होती है (वजह है ख़राब मौसम, कीड़ा लगना और बीमारियाँ) या भंडारण के दौरान (गोदाम ठीक नहीं होते, वहाँ खाद्य सामग्रियों को ठीक से रेफ्रीज़रेट नहीं किया जाता और साथ ही माल ढुलाई की व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं होती)।

XALÉ TEY – Enfants d’aujourd’hui, अलीयोन दीयगने (सेनेगल), 2020
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खाना न खा पाने की तीसरी मुख्य वजह है कि लोगों के पास पैसे नहीं होते। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आर्थिक असमानता भूख को जन्म देती है। आइए एक बार फिर ठोस तथ्यों पर नज़र डालते हैं:
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दुनिया में 70 करोड़ से ज़्यादा लोग प्रतिदिन 2.15 डॉलर से कम पर गुज़ारा करने को मजबूर हैं और वे खाना ख़रीद ही नहीं सकते।
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3.4 अरब लोग प्रतिदिन 5.50 डॉलर से कम पर जीने को मजबूर हैं, यानी मुमकिन है कि वे भोजन नहीं ख़रीद सकते।
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साल 2023 में दुनिया की कुल संपत्ति लगभग 432 खरब डॉलर थी। इसका 47.5% दुनिया की वयस्क आबादी के सबसे अमीर 1% के पास था यानी 213 खरब डॉलर (औसतन प्रति व्यक्ति 2.7 खरब डॉलर)। दुनिया की आबादी के ग़रीब 50% यानी 4 अरब जनता के पास वैश्विक संपत्ति का महज़ 1% से भी कम था यानी 4.5 खरब (प्रतिव्यक्ति 1,125 डॉलर)। आर्थिक असमानता की यह विशाल खाई हर साल और गहरी होती जा रही है।
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जिन लोगों की आय कम है वे भोजन ख़रीद ही नहीं पा रहे क्योंकि खाद्य सामग्रियों और तेल के बढ़ते दाम उनके बजट के बाहर होते जा रहे हैं।
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महिलाओं में पुरुषों के मुक़ाबले भुखमरी की दर ऊँची है क्योंकि जब किसी घर में खाने की कमी होती है तो महिलाएँ कम खाना खाने लगती हैं। जिन घरों की मुखिया महिलाएँ हैं उनमें भूखमरी की दर और भी ऊँची है।
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दुनिया की आबादी में आदिवासियों का हिस्सा सिर्फ़ 5% है लेकिन अति ग़रीब जनता में 15% आदिवासी हैं और दूसरे समुदायों के मुक़ाबले इनमें भुखमरी की दर काफ़ी अधिक है।
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एफएओ ने 2021 में कहा था कि ‘दुनिया में खाद्य असुरक्षा का सबसे बड़ा कारण ग़रीबी ही है क्योंकि खाद्य सामग्रियों की मौजूदगी के बावजूद लोगों के पास भोजन ख़रीदने के लिए संसाधनों की कमी है’।

सूर्य की स्तुति V (ओल्मेक-माया और वर्तमान), ऑब्री विल्यम्स (गुयाना), 1984
आँकड़ों पर आधारित इस तरह का कोई भी न्यूज़लेटर यह नहीं समझा सकता कि ग़रीबी मानव मूल्यों को किस कदर बर्बाद कर देती है। ग़रीबी का दंश एक क़िस्म का नियतिवाद पैदा करता है जिसकी वजह से ग़रीब जनता अपनी परिस्थितियों को समझ पाने में असमर्थ हो जाती है। निरे आँकड़ों के सहारे ग़रीब जनता को उनके वे हालात नहीं समझाए जा सकते जिनमें वे जी रहे हैं। ग़रीबी के पूँजीवादी ढाँचे और मानव मूल्यों पर इसके दुष्प्रभाव को सही से समझने के लिए कई बार कविता का सहारा लेना पड़ता है।
क्यूबा की क्रांति से पहले और बाद में भी निकोलस गूइलेन (1902-1989) महानतम कवियों में शुमार रहे। 1931 में उनके कविता संग्रह Sóngoro Cosongo में ‘Caña’ (गन्ना/ईख) नाम की कविता छपी, संग्रह का शीर्षक ऐफ़्रो-क्यूबन ड्रम की आवाज़ पर रखा गया था:
El negro junto al cañaveral.El yanqui sobre el cañaveral. La tierra ¡Sangre |
अश्वेत आदमी
गन्ने के खेत के किनारे। यैंकी [अमरिकी] गन्ने के खेत के ऊपर। ज़मीन गन्ने के खेत के नीचे। ख़ून जो हमसे दूर होता जा रहा है! |
क्या यह सच नहीं है?

स्वतंत्रता की शाख, साईडो डिको (बुर्किना फ़ासो), 2018
अगर भुखमरी को ख़त्म करना है तो ग़रीबी को मिटाना ही होगा। 2021 में चीन के लोगों ने चीनी लोगों ने अपने देश में ग़रीबी पूरी तरह समाप्त कर दी। नवंबर 2025 तक, केरल राज्य के लोग अत्यधिक ग़रीबी समाप्त कर चुके होंगे – अपने लक्ष्य से एक वर्ष पहले। वियतनाम भी निर्धनता को पूरी तरह ख़त्म करने की ओर बढ़ रहा है। थॉमस संकारा (1949-1987) के दौर में बुर्किना फ़ासो की भी यही आकांक्षा थी जो इस देश के नए नेता, कैप्टन इब्राहिम ट्रोरे, के साथ एक बार फिर उभरी है। ग़रीबी का यह ख़ात्मा दान या विदेशी सहायता के बल पर नहीं बल्कि आत्म-निर्भरता के आधार पर होगा। 4 अप्रैल 1986 को औगाडौगू में कमेटीज़ फ़ॉर द डिफ़ेंस ऑफ़ द रेवलूशन के राष्ट्रीय सम्मेलन में संकारा ने घोषणा की थी ‘हमें उत्पादन बढ़ाना ही होगा – उत्पादन बढ़ाना होगा क्योंकि जो तुम्हारे मुँह में निवाला डालेगा वो ज़ाहिर है तुम पर अपनी मर्ज़ी भी थोपेगा’। 2023 में ट्रोरे ने संकारा की ही इच्छा को दोहराते हुए कहा ‘हमारे पूर्वजों ने हमें एक चीज़ सिखायी है: एक ग़ुलाम जो ख़ुद विद्रोह नहीं कर सकता वह किसी की दया के लायक़ नहीं। हमें ख़ुद पर दया नहीं करनी, हम किसी को ख़ुद पर दया करने को नहीं कह रहे। बुर्किना फ़ासो की जनता ने लड़ने का फ़ैसला कर लिया है, आतंकवाद के ख़िलाफ़ ताकि वे अपनी विकास यात्रा को फिर से शुरू कर पाएँ’। उन्होंने यह भी कहा कि आज बुर्किना फ़ासो की जनता कुछ सवाल कर रही है:
हमें समझ नहीं आ रहा कि हमारी मिट्टी में इतनी संपदा है, प्रकृति की भरमार है, पानी है, सूरज की इतनी रौशनी है – फिर भी अफ्रीका आज सबसे ग़रीब महाद्वीप कैसे है। अफ्रीका भुखमरी का महाद्वीप है। क्यों इसके कई राष्ट्रों के नेता सारी दुनिया में हाथ फैलाए घूम रहे हैं? हम ख़ुद से ये सवाल पूछ रहे हैं और अब तक हमारे पास इनके कोई जवाब नहीं।
लेकिन इनके पास जल्द ही इन सवालों के जवाब होंगे और उसके बाद वे नए सवाल पूछेंगे और ऐसे ही इतिहास आगे बढ़ेगा।
सस्नेह,
विजय