दुःख भरी दुनिया में समाजवाद अब भी संभावना हैः पचीसवाँ न्यूज़लेटर (2025)
ट्राईकॉन्टिनेंटल एशिया, अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका से न्यूज़लेटर की शृंखला निकालता है जो पल-पल बदलती दुनिया को समझने का ज़रिया हैं।

शीर्षकहीन, पीटर मलिंडवा (यूगांडा), 1981
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
हर सुबह मैं अख़बार देखता हूँ (इन दिनों ज़्यादातर किसी ऐप पर) और दुनियाभर में हो रहे अत्याचारों के बारे में पढ़ता हूँ। ग़ज़ा में जारी जनसंहार से लेकर सूडान युद्ध तक और म्यांमार में चल रही हिंसा, जिसकी कोई बात नहीं करता- सब ओर दुःख बढ़ता जा रहा है। ये टकराव अंतहीन लग सकते हैं या जिन्हें इनके बारे में ज़्यादा जानकारी न हो उन्हें ये भ्रामक भी लग सकते हैं।
सूडान युद्ध अभी जिस दौर में है उसकी शुरुआत अप्रैल 2023 में हुई थी जब सूडानीज़ आर्म्ड फ़ोर्सेज (जनरल अब्देल फत्ताह अल-बुरहान के नेतृत्व में) ने रेपिड सपोर्ट फ़ोर्सेज (कमांडर मोहम्मद ‘हेमेदती’ हमदान डगालो के नेतृत्व में) के ख़िलाफ़ गोलबंदी शुरू कर दी। म्यांमार में अक्टूबर 2023 में तनाव बढ़ा जब चिनलैंड डिफ़ेन्स फ़ोर्स, पीपल्स डिफ़ेन्स फ़ोर्स और थ्री ब्रदरहुड अलायंस ने सेना (जिसे तात्मदाव के नाम से जाना जाता है) को चुनौती देना शुरू कर दिया, मई 2024 तक देश का एक-तिहाई से कुछ अधिक क्षेत्र इन तीन संगठनों के क़ब्ज़े में आ गया। जबकि ग़ज़ा में इज़राइल, यूएस और यूरोप की तिकड़ी द्वारा फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार भी जारी है। अख़बारों तक ने इन अत्याचारों का ब्योरा देना बंद कर दिया है, इनके पाठक मौत और बर्बादी की इन कहानियों से मुँह फेर चुके हैं। यूएस राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प और उनके भूतपूर्व प्रधानसेवक इलॉन मस्क का चुनाव इनके लिए हज़म कर पाना ज़्यादा आसान था।

शीर्षकहीन, महमूद अल ओबादी (इराक़), 2008
दुनिया में चल रहे युद्धों की वजह से पिछले साल के मुक़ाबले इस साल ज़्यादा लोग भुखमरी का शिकार होंगे – हालाँकि वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। फिर भी संरचनातमक ढाँचे की ख़ामियों की वजह से भूख से होने वाली हत्याओं और युद्ध की वजह से खड़े हुए हालात में होने वाली हत्याओं में फ़र्क़ नहीं है। दुनिया में दुःख और पीड़ा सबसे ज़्यादा अब भी वैश्विक दक्षिण के ही हिस्से में है। लेकिन यह पीड़ा बेतुकी नहीं है। फ़िलिस्तीन, सूडान, म्यांमार – सबकी अपनी एक कहानी है। इस हिंसा को देख कमज़ोर मन वाले शायद निराश होकर नियति या मानव प्रवृत्ति को इसका क़ुसूरवार ठहराने लगे। यह रवैया नैतिकता के ठेकेदारों को असलियत से भाग पाने में और नैतिकता का ऐसा नपा-तुला चित्र खींच पाने में मदद करती है कि इसके बारे में कोई फ़ैसला करने की अनिवार्यता ही ख़त्म हो जाए।
क्या वे खुलकर सीधे शब्दों में हत्यारों की निंदा करने से डरते हैं? इन हत्यारों में हथियारों के कारोबारी हैं जो अपने गुनाह से यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि वे तो बस हथियार बेचते हैं। बंदूक़ की गोलियाँ बेचने वालों को भी सेहत ख़राब करने वाली खाने की चीज़ें बेचने वालों जितना ही ख़तरनाक माना जाता है।

यूनीकॉर्न इन द रूम, नाकरोब मूनमानस (थाईलैंड), 2024
हमारे संस्थान और इस न्यूज़लेटर का एक उद्देश्य यह भी है कि जितना ज़्यादा हो सके दुनिया में हो रहे अन्याय को पहचाना जाए और इनके ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलनों को उजागर करके मानवता के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा का पर्दाफ़ाश किया जाए। उम्मीद है हमारे न्यूज़लेटर आपको उपयोगी लगते हों, इन्हें आप औरों के साथ साझा करें और उन्हें भी सब्स्क्राइब करने के लिए कहें। हम आमतौर पर आपसे इस तरह की सहायता नहीं माँगते और न ही अपना संस्थान चलाने के लिए संसाधनों के लिए मदद माँगते हैं।
हमारे संस्थान की मदद करने के दो सीधे तरीक़े हैं: पहला, भौतिक संसाधनों के ज़रिए (जैसे यदि आप हमारी आर्थिक मदद करना चाहें तो हम आपके बहुत शुक्रमंद होंगे), और दूसरा, अपनी रिसर्च, संपादन, अनुवाद इत्यादि के कौशल के ज़रिए। अगर आप नियमित रूप से हमें आर्थिक सहायता देना चाहते हैं तो आप इस लिंक पर जाकर कर सकते हैं या हमारे ऑपरेशंस विभाग प्रमुख Tariro Takuva को [email protected] पर मेल लिख सकते हैं। हम उन तमाम कलेक्टिव, वालंटियरों और प्रकाशकों के शुक्रमंद हैं जो लगातार हमारे दस्तावेज़ों का अरबी, हिंदी, स्पैनिश, पुर्तगाली, चीनी, इटालियन, फ़्रेंच, कोरियाई, जर्मन और रोमानियाई में अनुवाद करते हैं। उनके काम से हमें प्रोत्साहन मिलता है। अगर आप भी हमारे दस्तावेज़ों का किसी भाषा में अनुवाद करके हमारी मदद करना चाहते हैं या संपादन में सहायता देना चाहते हैं तो कृपया [email protected] पर मेल भेजें। अगर आप अपने रिसर्च के ज़रिए मदद करना चाहते हैं तो मुझे [email protected] पर मेल भेज सकते हैं। अगर आप एक दुभाषिये (इंटरप्रेटर) के रूप में सहयोग करना चाहते हैं तो [email protected] पर मेल कर सकते हैं।

शीर्षकहीन, Aboudia (Côte d’Ivoire) 2017
इस साप्ताहिक न्यूज़लेटर के साथ-साथ हमारा संस्थान चार अन्य न्यूज़लेटर भी निकालता है – इनमें से तीन, तीन महाद्वीपों (एशिया, अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका) में हमारे काम से जुड़े होते हैं और एक हमारे यूरोपीय साथी ज़ेटकिन फ़ोरम फ़ॉर सोशल रिसर्च की ओर से निकलता है और साथ ही एक आर्ट बुलेटिन भी:
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ट्राईकॉन्टिनेंटल पैन [अखिल] अफ़्रीका। ट्राईकॉन्टिनेंटल पैन अफ़्रीका की ओर से निकलने वाले मासिक न्यूज़लेटर में पूरे महाद्वीप में तमाम मुद्दों पर उठने वाली आवाज़ें होती हैं जैसे सामाजिक कल्याण पर सरकारी ख़र्च में कटौती पर मैरीयन ओऊमा का लेख और घाना चुनावों पर ब्लेज़ डी. के. टुलो के विचार। हालिया न्यूज़लेटर में संगीतकार सीन कुती ने अपने नए अल्बम Egypt 80 की रचना प्रक्रिया और कला तथा समाजवादी विचारों के आपसी संबंध की अनिवार्यता के बारे में Heavier Yet (Lays the Crownless Head) में लिखा है:
“पिछले दस वर्षों में, मैंने ग़रीबों और मज़दूर वर्ग का नज़रिया सामने रखने वाले अल्बम बनाने की कोशिश की है। संगीत जीवन के आनंद के बारे में हो सकता है, लेकिन यह हमारे संघर्षों की पूरी कहानी नहीं बताता। ज़्यादातर संगीत सुख-सुविधाओं में डूबा हुआ होता है और एक तरह का ‘एनेस्थीसिया‘ बन जाता है। मैं अक्सर अपने दोस्तों से कहता हूँ कि अगर कोई एलियन पृथ्वी पर आए और मुख्यधारा की अफ्रीकी कला देखे तो उसे लगेगा कि सब कुछ ठीक है। कहने को तो यह सही होगा कि उस एलियन के सामने हमारी सकारात्मक छवि बने क्योंकि अफ्रीकी लोग ख़ुद भी अपनी इस संकटग्रस्त छवि से परेशान हो चुके हैं। लेकिन फिर हमारे जीवन को लेकर उस एलियन की समझ अधूरी और ग़लत होगी। कला में ईमानदारी होनी चाहिए। ईमानदारी की यही अनिवार्यता मुझे अपने संगीत में उन चीज़ों के बारे में खुलकर बोलने की हिम्मत देती है जिन्हें मुख्यधारा का नैरटिव छिपाए रखता है।”
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ट्राईकॉन्टिनेंटल एशिया। एशिया टीम की ओर से महीने में दो बार जो न्यूज़लेटर आते हैं उनमें भी विषयों का एक बड़ा विस्तार मिलता है जैसे एलिज़ाबेथ ऐलेग्ज़ैंडर का दक्षिण एशिया में पितृसत्तात्मक पूँजीवाद के विरुद्ध लिखा लेटर है और शांति को लेकर अतुल चंद्र के विचार। हाल ही में आए एक न्यूज़लेटर में अखिल नेपाल किसान महासंघ के भूतपूर्व महासचिव परमेश पोखरेल ने देश के संवैधानिक संकट के कारणों का विश्लेषण किया है, जिसने राजशाही परस्त विपक्ष को मज़बूत और वामपंथ को कमज़ोर किया है। परमेश लिखते हैं ‘दुनिया देख रही है कि नवघोषित गणराज्यों में से एक कैसे इस अनिश्चित समय से ख़ुद को निकालने पाने की कोशिश कर रहा है’। वे उम्मीद करते हैं कि यह संकट नेपाल के विषय में विश्लेषण की शुरुआत करेगा और विचारों के युद्ध को सुदृढ़ करेगा तथा वर्ग संघर्ष को मज़बूती देगा।

उम्मीद #2, अगस सपुत्रा (इंडोनेशिया), 2020
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ट्राईकॉन्टिनेंटल नूएस्तरा अमेरिका (Nuestra América)। एक दशक पहले जब डिलेमास ऑफ़ ह्यूमैनिटी के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हमारा यह संस्थान आकार ले रहा था तो हमने तय किया कि ब्यूनस आयर्स और साओ पाउलो में अपने दफ़्तर खोलेंगे। इसकी मुख्य वजह थी कि हम इस महाद्वीप के स्पैनिश और पुर्तगाली भाषी दोनों जनता से जुड़ना चाहते थे और साथ ही इसके सबसे बड़े देश ब्राज़ील से भी, जहाँ भूमिहीन मज़दूर आंदोलन (एमएसटी) है: इस क्षेत्र का सबसे बड़ा जन आंदोलन। पिछले कुछ सालों में हमने अपना काम और सहयोगियों के नेटवर्क का विस्तार किया है और एक अजेंडा तैयार किया पूरे Nuestra América – ‘हमारा अमेरिका’ के लिए। मीगेल एनरीके (ट्राईकॉन्टिनेंटल) और स्टेफ़नी वेदरबी ब्रिटो (इंटरनेशनल पीपल्स असेंबली) के लिखे पहले न्यूज़लेटर में डिलेमास ऑफ़ ह्यूमैनिटी के चौथे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के बारे में रिपोर्ट किया गया, जो अप्रैल 2025 में साओ पाउलो में हुआ था। इस सम्मेलन का उद्देश्य था कि वैश्विक दक्षिण के लिए विकास के एक नए सिद्धांत का निर्माण, जिसके बारे में न्यूज़लेटर में कहा गया है कि इसे ‘लोकप्रिय आंदोलनों से जुड़ा होना चाहिए, हालात के हिसाब से ख़ुद को ढाले और सबसे महत्त्वपूर्ण उन अनिवार्य ताक़तों को जन्म दे जो इस सबको वास्तविकता बना सकें। हम सभ्यता के जिस संकट का सामना कर रहे हैं, समाजवाद कोई दूर का यूटोपिया नहीं: बल्कि यह एकमात्र ज़रिया है जो हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जा सकता है जहाँ अर्थव्यवस्था जनता के लिए काम करे न कि पूँजी के लिए’।
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ज़ेटकिन फ़ोरम फ़ॉर रिसर्च। यूरोप में हमारे सहयोगी का दफ़्तर बर्लिन में है और यहाँ से हर महीने जर्मन और अंग्रेज़ी में न्यूज़लेटर निकलता है। इनके नवीनतम न्यूज़लेटर में ज़ेटकिन फ़ोरम के नए जर्नल Fascism Rising [फ़ासीवाद का पुनरुत्थान] के कुछ अंश छपे हैं। यह फ़ोरम और इनका जर्नल दोनों ही 20 से 22 जून को होने वाले सम्मेलन Fascism Back in Europe? [यूरोप में फ़ासीवाद की वापसी?] में हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। आपसे वहाँ मुलाक़ात होगी।
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ट्राईकॉन्टिनेंटल आर्ट बुलेटिन। पिछले दशक में हमारे संस्थान ने विचारों के युद्ध को भावनाओं के युद्ध के साथ मिलाने के लिए बहुत मेहनत की है। हमारे लिए कला सिर्फ़ सजावट का सामान नहीं। मार्च 2024 से हमारा कला विभाग हर महीने एक बुलेटिन निकालता है ताकि राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों की परम्परा से जुड़ी कला को एक बेहतर पृष्ठभूमि में पेश किया जा सके। हमारी कला निदेशक टिंगस चाक समकालीन कलाकारों से बातचीत के आधार पर या दुनिया भर की क्रांतिकारी कला कृतियों के आर्काइव के आधार पर लिखती हैं। नवीनतम बुलेटिन ‘Poetry against Fascism’ [फ़ासीवाद विरोधी कविता] की शुरुआत होती है सोवियत संघ की ओल्गा बेरघोलज़ की चर्चा से और अंत होता है भारत की सरोजिनी नायडू से। नायडू ने लिखा था ‘हम, जो अब तक आज़ाद नहीं, सलाम करते हैं तुम्हें, जिन्होंने तानाशाह को मिटा दिया’।

शहरी परिदृश्य, ज़ुबैदा आग़ा (पाकिस्तान), 1982
ये दस्तावेज़ और यह एक न्यूज़लेटर जो आपको हर हफ़्ते मिलता है – ये हमारे सामने पल-पल बदलती दुनिया को समझने के मक़सद से लिखे जाते हैं। हमारे शोधकर्ता सिर्फ़ व्यापक परिदृश्य पर ही नज़र नहीं रखते बल्कि मानव जीवन के हर पहलू, अर्थव्यवस्था से लेकर संस्कृति तक पर उनकी नज़र रहती है, और साथ ही इस पर भी कि ये सब आपस में मिलकर कैसे व्यापक वास्तविकता को गढ़ते हैं। इनमें से किसी भी घटक को बाक़ियों से काटकर नहीं देखा जा सकता जैसे कि इसका दूसरों से कोई संबंध ही न हो।
डिलेमास ऑफ़ ह्यूमैनिटी के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद के एक दशक में हमने अपने समय के आंदोलनों से जुड़े कई शोध किए हैं जिनमें समग्रता से स्थितियों को देखा है, नवउपनिवेशवादी ढाँचे में आ रहे बदलावों को पहचाना है और अपने समय के ऐतिहासिक क्षणों को आकार देने वाले विचारों के युद्ध में शिरकत की है। हमें अभी और बहुत काम करना है: सामाजिक परिवर्तन की शक्तियों से संवाद स्थापित करते हुए मौजूदा समय से जुड़ी जानकारियों को इकट्ठा करना। उम्मीद है आप इस सफ़र में हमारे साथ रहेंगे।
सस्नेह,
विजय