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वेस्ट बैंक में इज़राइल के अपराध: उन्नीसवाँ न्यूज़लेटर (2025)

वेस्ट बैंक में ज़रूरत की चीज़ें न पहुँचने देना, विस्थापन, सामूहिक हत्याएँ आदि इज़राइल की जनसंहार की नीति का हिस्सा हैं।

अगर ज़ैतून का पेड़ जानता, मलक मत्तर (फ़िलिस्तीन), 2025

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

1948 में नवघोषित इज़राइल की सरकार ने फ़िलिस्तीनी ज़मीन का 78% क़ब्ज़ा लिया और उनकी आधी से ज़्यादा आबादी (750,00 लोगों) को उनके गाँवों और शहरों से बेदख़ल कर दिया। यह संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के प्रस्ताव 181 (1947) के पूरी तरह ख़िलाफ़ था जिसमें उपनिवेशवादी ब्रिटिश आदेश को रद्द करने और फ़िलिस्तीन का बँटवारा कर एक फ़िलिस्तीनी और एक यहूदी राष्ट्र बनाए जाने की मंशा को अस्वीकार किया गया था। इस बेदख़ली की प्रक्रिया को नक़बा (तबाही) का नाम दिया गया।

फ़िलिस्तीनी ग़ज़ा, वेस्ट बैंक, पूर्वी जेरूसलम और पड़ोसी अरब देशों में चले गए, इसी उम्मीद में कि वे जल्दी अपने घरों को लौट जाएँगे। संयुक्त राष्ट्र आम सभा के प्रस्ताव 194 (1948) में यह माना गया कि जो शरणार्थी अपने घर वापस जाकर शांति से रहना चाहते हैं जल्द-से-जल्द उन्हें लौटने की इजाज़त दे दी जानी चाहिए और उन्हें मुआवज़ा भी दिया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ – फ़िलिस्तीनी अब तब जल्द-से-जल्दअपने घरों को लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं।

सितंबर 1948 में फ़िलिस्तीनियों ने ग़ज़ा में जल्दबाज़ी में ऑल-फ़िलिस्तीन सरकार का गठन किया, यह उनकी चोरी की गई ज़मीन पर फिर से संप्रभुता स्थापित करने का एक सांकेतिक प्रयास था। इस सरकार के प्रधानमंत्री अहमद हिल्मी पाशा अब्द अल-बाक़ी (1882-1963) और विदेश मंत्री जमाल अल-हुसैनी (1894-1982) सहित कई अधिकारी कुलीन वर्ग के फ़िलिस्तीनी परिवारों से थे। इनकी राजनीतिक समझ इनकी देखी हुई बर्बादी से बनी थी। 1948 में इज़राइल और इसके पड़ोसी अरब देशों – मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया – के बीच युद्ध हुआ। जिसके बाद 1949 में एक युद्धविराम समझौता हुआ जिसके तहत जिन इलाक़ों पर इज़राइल ने क़ब्ज़ा नहीं किया था उनमें से ज़्यादातर जॉर्डन और मिस्र के नियंत्रण में आ गए: जॉर्डन के अधीन आए वे क्षेत्र जिन्हें अब वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम कहा जाता है तथा ग़ज़ा पट्टी का शासन मिस्र को मिला।

फसल कटाई नं. 1, समा शिहादी (फ़िलिस्तीन), 2017

1967 में इज़राइल ने वेस्ट बैंक, पूर्वी जेरूसलम और ग़ज़ा पर क़ब्ज़ा कर लिया। संयुक्त राष्ट्र के शांतिदूत इन इलाक़ों से भाग गए। कम-से-कम 750,000 फ़िलिस्तीनियों को अपनी घरों से खदेड़ दिया गया, इसे बाद में नक़बा कहा गया। इसी साल संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव 242 पारित किया और इन तीन क्षेत्रों से इज़राइल से क़ब्ज़ा हटाने को कहा। उस समय से इन इलाक़ों को संयुक्त राष्ट्र ‘1967 से इज़राइल द्वारा क़ब्ज़ाए हुए क्षेत्रकहता है। आपात स्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा ओसीएचए की स्थापना के अगले साल, अक्टूबर 1999 में संयुक्त राष्ट्र ने पूर्वी जेरूसलम सहित ग़ज़ा और वेस्ट बैंक क्षेत्रों के लिए औपचारिक तौर पर अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र’ (ओपीटी) शब्दावली का प्रयोग करना शुरू कर दिया। इस तरह संयुक्त राष्ट्र ने सीधे तौर से 1949 में हुए चौथे जिनेवा सम्मेलन में इस्तेमाल हुए अधिकृत क्षेत्रोंसंबोधन को उद्धृत किया। इस औपचारिक नामकरण के बाद से ओपीटी पर जारी इज़राइल का क़ब्ज़ा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून में अवैधानिक बन गया, इनमें वेस्ट बैंक की बसावट, वेस्ट बैंक के इर्द-गिर्द इसके द्वारा खड़ी की गयी दीवार, पूर्वी जेरूसलम पर क़ब्ज़ा और ग़ज़ा को चारों ओर से घेर लेना, सब शामिल हैं।           

अक्टूबर 2023 से इज़राइल द्वारा ग़ज़ा में जारी फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार को और भी तेज़ कर दिया गया है। ओपीटी के अन्य इलाक़ों – वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम – में भी इज़राइल की कार्रवाइयाँ तेज़ हुई हैं, लेकिन ग़ज़ा में जो किया जा रहा है वह इतना भयावह है कि इस ओर ध्यान कम जा रहा है। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने बिसान सेंटर फ़ॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट (रामल्लाह, फ़िलिस्तीन) के साथ मिलकर वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम के हालात पर रेड अलर्ट नं 19, ‘वेस्ट बैंक में इज़राइल के अपराध’, निकाला है। 1989 में अपनी स्थापना के समय से बिसान सेंटर ने महिलाओं के अधिकारों पर ख़ास ध्यान दिया है और फ़िलिस्तीन में यह सामाजिक शोध में अग्रिम संस्थानों में से एक है (मसलन, 2011 की इनकी रिपोर्ट ओपीटी में लिंग आधारित हिंसा के विषय पर एक मील का पत्थर है)। संयुक्त राष्ट्र ने ओपीटी के इन इलाक़ों में फ़िलिस्तीनी समाज पर हो रहे हमलों से जुड़े जो तथ्य इकट्ठा किए हैं हमने इस रेड अलर्ट में बस उन्हें ही सबके सामने पेश किया है।

ओसलो II और अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र 

सितंबर 1995 में फ़िलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) और इज़राइल की सरकार ने वेस्ट बैंक और ग़ज़ा पट्टी के लिए इज़राइली-फ़िलिस्तीनी अंतरिम समझौते पर हस्ताक्षर किए (ओसलो II)। इसका मक़सद अंतत: इज़राइल से लगे हुए ओपीटी के इलाक़ों में एक फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का निर्माण करना था। ऐतिहासिक तौर पर फ़िलिस्तीन (ब्रिटिश नियंत्रण में जो क्षेत्र था उसके आधार पर) जितना बड़ा था ओपीटी उसका सिर्फ़ 22% है। दूसरे शब्दों में कहें तो फ़िलिस्तीनियों के पास ऐतिहासिक रूप से जितनी ज़मीन थी उसकी एक चौथाई से भी काम रह गई, और इस पर भी उनका कोई अधिकार नहीं था। इस अंतरिम समझौते के बाद वेस्ट बैंक को तीन हिस्सों में विभाजित कर दिया गया: 

  1. एरिया ए, फ़िलिस्तीनी अथॉरिटी के तहत होने की वजह से नागरिक मामलों और सुरक्षा मामले में यह पूरी तरह फ़िलिस्तीनियों के अधिकार में है। इसमें वेस्ट बैंक का लगभग 18% भाग है, ऐतिहासिक रूप से फ़िलिस्तीन कहे जाने वाले राष्ट्र का 3.96% हिस्सा।
  2. एरिया बी, फ़िलिस्तीनी अथॉरिटी के तहत होने की वजह से यहाँ नागरिक मामलों पर तो फ़िलिस्तीनियों का अधिकार है लेकिन सुरक्षा के नज़रिए से यह वास्तव में इज़राइल के नियंत्रण में है। वेस्ट बैंक का 22% भाग इसी श्रेणी में आता है, ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन का 4.62%
  3. एरिया सी, पूरी तरह से इज़राइल के नियंत्रण में है। वेस्ट बैंक का 60% हिस्सा इसी में है और ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन का 13.42%

इस तरह ओसलो II के तर्क के हिसाब से पूर्वी जेरूसलम को अपने में मिला लेने और ग़ज़ा पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद इज़राइल ऐतिहासिक फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के 97% पर नियंत्रण रखता है।

अली की घुटन नं. 2, रहफ़ हज (फ़िलिस्तीन), 2024

वेस्ट बैंक में घुटते फ़िलिस्तीनी

वेस्ट बैंक में इज़राइल ऐसी कार्रवाइयाँ करता है जिससे वहाँ फ़िलिस्तीनियों का रहना मुश्किल हो जाए। इस फ़िलिस्तीनियों के एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने पर इतना नियंत्रण और प्रतिबंध है कि उनके बच्चों के लिए पढ़ना और नौजवानों का रोज़गार हासिल कर पाना लगभग नामुमकिन है। अक्टूबर 2023 से पहले वेस्ट बैंक में इज़राइल ने 590 रोडब्लॉक और नाके लगाए हुए थे, जो तब से अब तक बढ़कर 900 के क़रीब पहुँच गए हैं। इनकी वजह से न्यूनतम इंसानी आवाजाही भी लगभग बंद हो चुकी है। फ़िलिस्तीनियों के लिए पानी और खेतों तक पहुँच पाना भी असंभव हो गया है, साथ ही उन्हें पीने लायक़ पानी तक नहीं मिल पा रहा। संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) को इज़राइल जिस तरह मुजरिम के तौर पर पेश कर रहा है उससे इस संस्था के काम में बहुत अड़चन पैदा हो गई है। इसके चलते फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों (वेस्ट बैंक में रहने वाले लगभग एक चौथाई फ़िलिस्तीनी) को बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसर भी नहीं मिल पा रहे।

विस्थापन और ज़ब्ती

वेस्ट बैंक में इज़राइल जातीय संहार कर रहा है और इसके लिए वह गोलीबारी, फ़साद, यौन हिंसा और लोगों को उनकी जगह से जल्दी-जल्दी विस्थापित करने के लिए उनके घरों और खेतों को बर्बाद कर देने जैसे हथकंडे अपनाता है। जनवरी 2025 से जब से ऑपरेशन आयरन वॉल शुरू हुआ है इज़राइली सेना ने 8,255 फ़िलिस्तीनी परिवारों को उनके घरों से जबरन खदेड़ दिया, जेनिन के शरणार्थी कैंप से 3,840 परिवार, नूर शम्स से 1,910 परिवार और तुल्कार्म से 2,505 परिवार विस्थापित कर दिए गए। ये परिवार उन्हीं फ़िलिस्तीनियों के वंशज हैं जिन्हें 1948 के नक़बा में उनके घरों से भगा दिया गया था और जिन्हें तब से अब तक वापस लौटने नहीं दिया गया है। क़ब्ज़ा करने वाली इज़राइली ताक़तों में इज़राइली सेना और हथियारबंद इज़राइली सेट्लर (वे इज़राइली लोग जो फ़िलिस्तीनियों के घरों और ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करके वहाँ रहने लगते हैं) दोनों शामिल हैं। इन ताक़तों ने जनवरी 2022 और सितंबर 2023 के बीच 28 फ़िलिस्तीनी समुदायों को उनकी ज़मीनों से बेदख़ल किया है। साथ ही वेस्ट बैंक में अक्टूबर 2023 से अप्रैल 2025 के बीच 3,500 इमारतें तबाह की हैं जिनमें घर, तबेले और जलकुंड शामिल हैं।

विरोध, हनीन नज़्ज़ल (फ़िलिस्तीन), 2022

मौत, गिरफ़्तारी और यातना

अक्टूबर 2023 से क़ब्ज़ा करने वाली इज़राइली ताक़तों ने वेस्ट बैंक में लगभग 900 फ़िलिस्तीनियों की हत्या की है जिनमें 190 बच्चे भी शामिल हैं और 8,400 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों को घायल किया है। संभव है कि ये संख्या इनसे भी ज़्यादा हों क्योंकि इज़राइल द्वारा जारी जनसंहार और क़ब्ज़े के गहरे प्रभावों को सही से दर्ज करने के लिए मानवतावादी संगठन भी कम हैं। साल 2023 के आख़िरी महीनों से अब तक इज़राइल 15,000 फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार कर चुका है, इनमें से कइयों को प्रशासनिक हिरासतकी श्रेणी में रखा गया है जिसके लिए किसी औपचारिक आरोप की ज़रूरत नहीं होती (क़ानूनी प्रतिनिधित्व पर इतने सख़्त प्रतिबंध हैं इसलिए संभव है कि यह आँकड़ा वास्तविक आँकड़े से कम है)। 7 अक्टूबर 2023 के बाद से इज़राइली जेल, डिटेन्शन केंद्रों और यातना शिविरों में फ़िलिस्तीनियों की हत्या के 65 से ज़्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं। यौन हिंसा इन कैंपों में आम बात है।

बिसान सेंटर फ़ॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट, इंटरनेशनल पीपल्स असेम्ब्ली और ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान बुद्धिजीवियों, नागरिक समाज और राजनीतिक तथा सामाजिक संगठनों से विनय करते हैं कि वे सिर्फ़ ग़ज़ा के हालात पर ही ध्यान न दें बल्कि ओपीटी के अन्य क्षेत्रों पर भी नज़र बनाए रखें। मानवता के ख़िलाफ़ जारी जनसंहार और अपराधों को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता और न ही इन्हें बिना किसी रुकावट और न्यायोचित सज़ा के जारी रहने दिया जा सकता है।

ग़ज़ा, आऊडे अबु नसर (लेबनान), 2023

फदवा हाफ़िज़ तुक़ान का जन्म 1917 में फ़िलिस्तीनी शहर नब्लस में हुआ था। 2003 में जब उनकी मृत्यु हुई, तब उनका शहर, क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के हिस्से के रूप में इज़रायली सैन्य शासन के अधीन था। प्रसिद्ध कवि महमूद दरवेश ने उनकी याद में यह सोचते हुए लिखा कि उन्हें कैसे 1948 और 1967 की बेहद दर्दनाक घटनाओं के बीच कविता लिखनी पड़ी होगी, ऐसा ही दूसरों को भी करना पड़ा होगा। दरवेश ने पूछा ‘बर्बादी के दौर में कवि क्या कर सकता है? अचानक कवि को अपने भीतर से निकलकर बाहर आना पड़ता है और कविता इस सबकी गवाह बन जाती है। तुक़ान की सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है ‘The Seagull and the Negation of the Negation’ [समुद्री गुल और निषेध का निषेध]। यह 15 नवंबर 1979 को जेरूसलम के साप्ताहिक अख़बार Attali’ah में प्रकाशित थी। यह अख़बार 1977 से 1995 तक चलता रहा और बचे हुए फ़िलिस्तीनियों की आवाज़ लोगों तक पहुँचाता रहा। 

 

उसने क्षितिज पार किया और अंधेरे को चीरता हुआ,

नीलाकाश पर फ़तह करता, रौशनी के परों पर सवार – 

चक्कर खाता, घूमता और घूमता हुआ।

उसने मेरी वीरान खिड़की पर दस्तक दी और हाँफते हुए सन्नाटे ने कुछ हरकत की:

परिंदे, क्या कोई खुशख़बरी लाए हो?

उसने बिन बोले मुझे अपने राज़ बता डाले।

फिर, समुद्री गुल ग़ायब हो गया।

 

परिंदे, मेरे समुद्री परिंदे, मैं अब जान गयी हूँ

कि मुश्किल दौर में, सन्नाटे की गुफ़ा में खड़े हुए,

सब बदल जाता है।

मुर्दों की छाती में भी कोंपलें फूटती हैं,

अंधेरों से उजाले फूटते हैं।

मैं अब जान गयी हूँ,

कि जब मैं घोड़ों का दौड़ना सुन रही हूँ, किनारों से पुकारती मौत की आवाज़ सुन रही हूँ,

कि बाढ़ जब आती है,

तो दुनिया के सब दुःख धुल जाते हैं।

 

परिंदे, मेरे समुद्री परिंदे, गहरे अंधेरे से निकलते हुए

तुम पर ख़ुदा की नेमत हो जो मेरे लिए खुशख़बरी लाए।

अब मैं जान गयी हूँ 

कुछ हुआ हैक्षितिज फटा और मेरे घर में सवेरा उतर आया है।

 

सस्नेह,

विजय