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रोडॉल्फ़ो वॉल्श हमसे क्या उम्मीद रखते: तेरहवाँ न्यूज़लेटर (2025)

पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। हम आर्जेंटीना के रोडॉल्फ़ो वॉल्श को याद करते हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सैन्य तानाशाही का मुक़ाबला किया।

Nuevo orden (नई व्यवस्था), डेमेट्रीयो उर्रचुआ (अर्जेंटीना), 1939.

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

सितंबर 2024 की एक शाम को अर्जेंटीना के राष्ट्रपति हावियर मिलई ब्यूएनोस ऐरेस के पार्क लेज़ामा में भीड़ के सामने खड़े थे। उन्होंने हमेशा की तरह एक गहरे रंग के चमड़े की जैकेट पहनी हुई थी और चिल्ला-चिल्लाकर भाषण दे रहे थे, वहाँ जमा लोग उनका एक-एक शब्द जैसे घोटकर पीते जा रहे था। उन्होंने कहा ‘ये हैं ट्रोल्स, भ्रष्ट पत्रकार, डांवाडोल चरित्र वाले लोग। यही हैं ट्रोल्स’। इसके बाद राष्ट्रपति मिलई ने भीड़ की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये अदृश्य रहते हैं क्योंकि पत्रकारों का ‘कलम पर एकाधिकार है’। मिलई पत्रकारों के प्रति अपनी घृणा दिखा रहे थे। ऐसा ही बयान डॉनल्ड ट्रम्प ने भी दिया था जब उन्होंने पत्रकारों को ‘जनता का दुश्मन’ बताया था। 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अपने सलाहकार हेन्री किसिंज़र को अपने एक बयान में यही लिखा था: ‘प्रेस हमारा दुश्मन है। संस्थान हमारे दुश्मन हैं। प्रोफ़ेसर हमारे दुशमन हैं। प्रोफ़ेसर दुशमन हैं। यह बात अच्छी तरह से गाँठ बांध लो और कभी भूलना मत’। ऐसे बयानों के ख़तरनाक परिणाम होते हैं। मिलई ने दिसंबर 2023 से जब से राष्ट्रपति पद संभाला है तब से पत्रकारों पर हमले बढ़ गए हैं।

अर्जेंटीना का एक दुखद इतिहास है। पिछली सदी का लगभग एक चौथाई हिस्सा इस देश ने सैन्य शासन में गुज़ारा है: 1930–1932, 1943–1946, 1955–1958, 1962–1963, 1966–1973, and 1976–1983। इनमें से आख़िरी साल सबसे क्रूर थे जब थल, जल और वायु सेना के जुंटा [निरंकुश सैन्य शासन] ने कोई 30,000 लोगों को ग़ायब कर दिया (यह हत्या कर दी कहने का एक शालीन तरीक़ा है) और वामपंथी परिवारों के सैकड़ों बच्चों को चुरा लिया गया। मेरी पीढ़ी के लगभग सभी वामपंथियों की उस तानाशाही शासन ने हत्या कर दी थी।

इस तानाशाही शासन को ‘राष्ट्रीय पुनर्गठन प्रक्रिया’ का नाम दिया गया था। जिसका उद्देश्य था पूरे देश से वामपंथ को उखाड़ फेंकना, मज़दूर यूनियन वालों से लेकर कम्युनिस्टों और पत्रकारों तक सबको ख़त्म कर देना (इस न्यूज़लेटर के सभी चित्र अर्जेंटीना के कम्युनिस्ट चित्रकारों और फ़ोटोग्राफ़रों के हैं, यह उनके टैलेंट को हमारी ओर से एक श्रद्धांजलि है)। इन सामूहिक हत्याओं के बारे में पत्रकार रोडॉल्फ़ो  वॉल्श ने देश के सैन्य नेताओं को एक ख़त लिखकर कहा कि ‘तुम सबसे ऊँचे स्तरों पर बैठ कर इन [हत्याओं] की योजना बनाते हो, कैबिनेट मीटिंगों में इन पर चर्चा करते हो, तीनों [सैन्य] शाखों के कमांडरों के तौर पर इनके आदेश देते हो और जुंटा सरकार के सदस्य होने के नाते इन्हें स्वीकृति देते हो’।

वॉल्श ने जुंटा को लिखे उक्त ख़त की बहुत सारी प्रतियाँ बाँटी। इसके तुरंत बाद सैनिक उन्हें ढूँढने निकाल पड़े और ब्यूएनोस ऐरेस में सैन युआन ऐवन्यू व एंट्रे रीयोस ऐवन्यू के चौराहे पर सैनिकों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाईं। 25 मार्च 1977 को पचपन वर्षीय रोडॉल्फ़ो  वॉल्श की नेवी स्कूल ओफ़ मकैनिक्स (ESMA) में मृत्यु हो गयी। उन पर गोलियाँ दागने वालों में से एक अर्नेस्टो वेबर ने दशकों बाद सुनवाई के दौरान बताया, ‘हमने वॉल्श को मारा। वो हरामज़ादा पेड़ के पीछे छिपा था और बचाव के लिए .22 [पिस्तौल का एक प्रकार] का इस्तेमाल कर रहा था। हमने उस पर कई बार गोलियाँ चलाईं लेकिन वो हरामज़ादा मर ही नहीं रहा था’।

Juanito ciruja (स्कैवेंजर ह्वानीता), होज़े ऐंटोनीयो बर्नी, 1978.

सालों पहले एक युवा पत्रकार ने मुझसे उन पत्रकारों की लिस्ट माँगी जिन्हें मैं पसंद करता हूँ। मैंने हाल ही में मैं अपनी एक पुरानी नोटबुक खँगा रहा था और वो लिस्ट मेरे सामने आ गई जो मैंने उस युवा पत्रकार को दी थी। लिस्ट बहुत लंबी नहीं है इसमें बस दस नाम हैं: विल्फ़्रेड बर्चेट, एड्वार्डो गलीआनो, रिषार्ड कापुश्चिंस्की, गेब्रीयल गार्सीआ मार्केज़, जॉन रीड, ऐग्नेस स्मेड्ली, एड्गर स्नो, हेलेन फ़ॉस्टर स्नो, रोडॉल्फ़ो  वॉल्श और आइडा बी. वेल्स। इन सभी पत्रकारों के काम में कुछ एक जैसी बातें हैं: पहला, ये सभी पूँजीवादी प्रेस के क़ायदों को न मानकर मज़दूरों और किसानों के नज़रिए से दुनिया की कहानी कहते थे; दूसरा, इन्होंने सिर्फ़ घटनाओं का वर्णन नहीं किया बल्कि हमारा दौर किन प्रक्रियाओं से गुज़र रहा है उनकी पृष्ठभूमि में घटनाओं को पेश करते हैं; तीसरा इन्होंने सच्चाई को सपाट शब्दों में परोसा भर नहीं बल्कि पाठक को क्या जानना चाहिए इसका ख़्याल रखते हुए भावनात्मकता के साथ वास्तविकताओं को शब्दों में साकार किया; और आख़िरी, इन्होंने शोषितों के नज़रिए से लिखा भर नहीं बल्कि उन पर भरोसा  किया और हमारी दुनिया के संघर्षों के बारे में व्यंग्यात्मक रूप से नहीं बल्कि ईमानदारी से लिखा। ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार विल्फ़्रेड बर्चेट हिरोशिमा जाने वाले पहले ग़ैर-जापानी थे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने परमाणु बम के वास्तविक परिणाम बाहरी दुनिया के सामने रखे; कोलंबिया के मार्केज़ अपनी सरकार के झूठों का पर्दाफ़ाश करते हुए 1955 में कैरिबियन महासागर में जल सेना के जहाज़ Caldas पर मारे गए लोगों की असली कहानी सबके सामने लाए; अमेरिका के वेल्स ने लिंचिंग की भयानक घटनाओं के ब्यौरे दिए, जिसके ज़रिए नस्लभेद को अधिकारिक रूप से ख़त्म किए जाने के बाद भी दासप्रथा को जारी रखा जाता था। ये सब महान लेखक थे जिनके पास बताने को अनगिनत कहानियाँ थीं। इनसे प्रेरित न होना असंभव है।

इन्हीं लेखकों में से एक थे वॉल्श। हालाँकि मैंने उनकी एक किताब Operación Masacre (ऑपरेशन क़त्लेआम, 1957) और हत्या से पहले लिखे गए उनके आख़िरी ख़त ही पढ़े थे लेकिन उस एक घटना पर लिखी उनकी एक क़िताब ही उन्हें पसंद कर लेने के लिए काफ़ी थी।

वॉल्श वामपंथ से अटूट रूप से जुड़े व्यक्ति नहीं थे। उन्हें शतरंज और पहेलियाँ पसंद थीं। एक शाम को किसी कैफ़े में वे शतरंज खेल रहे थे तभी उन्होंने सुना कि ब्यूएनोस ऐरेस में 1955 में राष्ट्रपति ह्वान पेद्रों को पैड से हटाने वाले सैन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ सशस्त्र विद्रोह छेड़ने के आरोप में जिन युवकों की निर्मम हत्या की गयी थी उनमें से एक बच गया था। कुछ दिनों में वॉल्श ने उस शख़्स को खोज लिया। उसका नाम था ह्वान कार्लोस लिवरगा और वॉल्श ने उससे उसकी कहानी सुनी। इसके बाद सब बदल गया। वॉल्श एक ऐसे पत्रकार बन गए जो इस एक कहानी की तह तक जाना चाहते थे।

यह कहानी शुरू होती है 9 जून 1956 से जब फ़्लोरिडा के एक इलाक़े में कई युवक रेडियो पर बॉक्सिंग मैच सुनने के लिए इकट्ठा हुए थे। वो कोई आम बॉक्सिंग मैच नहीं था। अर्जेंटीना के एड्वार्डो होर्हे लाउस का चिली के मिडलवेट चैम्पीयन हमब्रेतो लोआयज़ा के साथ ब्यूएनोस ऐरेस के एस्तादियो लुना पार्क में मुक़ाबला हो रहा था। एड्वार्डो ने उस साल सितंबर में क्यूबा के मशहूर किड गविलान को भी हराया था। वे युवक जो रेडीयो पर मुक़ाबला सुन रहे थे नहीं जानते थे कि अपदस्थ हुए राष्ट्रपति ह्वान पेरों के वफ़ादार सैन्य अधिकारी उसी रात विद्रोह करने वाले थे। रेडीयो पर मुक़ाबले का मज़ा ले रहे युवकों को इस बात की कोई भनक नहीं थी। फिर भी सैनिक उनके दरवाज़े तक आए, उन्हें गिरफ़्तार करके एक वीरान जगह ले गए, वहाँ उन्हें भागने को कहा और फिर उन पर गोलियाँ बरसा दीं। उनमें से सात ही युवक बच पाए, जो या तो भागने में कामयाब रहे थे या मरने का नाटक कर बच गए थे।

जब वॉल्श को ये ख़बर मिली तो उन्होंने एन्रीकेता मुनीज़ (1934-2013) नाम की एक पत्रकार को अपने साथ इस ख़बर पर काम करने के लिए रख लिया। मुनीज़ की नोटबुक 2019 में Historia de una investigación. Operación masacre de Rodolfo Walsh: una revolución de periodismo (y amor) [एक पड़ताल का इतिहास. रोडॉल्फ़ो  वॉल्श का ऑपरेशन हत्याकांड: पत्रकारिता (और प्रेम) की एक क्रांति] नाम से छपी। इसमें उन्होंने बच गए लोगों व उनकी कहानियों की जो खोजबीन की उसकी पद्धति का ब्यौरा था। उदाहरण के लिए वॉल्श को पता चला कि आपातकाल लागू होने से पहले ही उन लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन हत्याएँ उसके बाद हुईं। इसका मतलब है कि उस रात सेना ने श्रमिक वर्ग के ऐसे युवकों की निर्मम हत्या की थी जिनका उस रात के राजनीतिक घटनाक्रम से कुछ लेना-देना नहीं था। वे तो बस अपने पसंदीदा मुक्केबाज़ की जीत की ख़बर सुनने की उम्मीद में वहाँ इकट्ठा हुए थे।

Maizal (मक्के की फ़सल), ह्वान कार्लोस कास्तगनीनो (अर्जेंटीना), 1948.

किसी भी बड़े अख़बार या मैगज़ीन को वॉल्श की कहानी में दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने छोटे-छोटे अख़बारों में कई लेख छपवाए जैसे Mayoría और Revolución Nacional। आख़िरकार Ediciones Sigla ने Operación Masacre छापी (वॉल्श ने यह मुनीज़ को संपर्पित की)। वॉल्श और मुनीज़ चाहते थे कि उन हत्याओं के दोषियों को सज़ा हो लेकिन ऐसा नहीं हो सका। एक आरोपी, पुलिस प्रमुख कर्नल डेसीडेरीयो फ़र्नैंडेज़ स्वारेज़, बिना किसी तंग-परेशानी या मुक़द्दमे के 2001 तक जिया।  

1959 में वॉल्श क्यूबा गए, वहाँ उनका क्रांति से संबंध बना, और चे ग्वेरा से मिले। पहेलियाँ बुझाने के उनके शौक़ के चलते उन्होंने अमेरिका के गुप्त संदेशों का भेद खोला और क्यूबा की सरकार को 1961 में बे ऑफ़ पिग़्स में होने वाले हमले के बारे में चेतावनी दी। क्यूबा में वॉल्श वहाँ की सरकारी न्यूज़ अजेंसी Prensa Latina में काम करते थे, इसके बाद वे Problemas del Tercer Mundo (तीसरी दुनिया की समस्याएँ, अर्जेंटीना की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा निकाले जाने वाला अख़बार) के संपादक मंडल में शमिल हुए और इसके बाद उन्होंने अर्जेंटीना के General Confederation of Trade Unions (मज़दूर संगठनों की जनरल कन्फ़ेडरेशन, CGT) के अख़बार का संपादन किया जो मई 1968 से फ़रवरी 1970 तक निकाला गया। CGT में काम करते हुए वॉल्श ने 13 मई 1966 में रोसेंडो गार्सीया की हत्या की पड़ताल की। गार्सीया खनिज मज़दूरों की यूनियन के नेता एक नेता थे। उनकी मौत अपने साथी यूनियन के लोगों के साथ एक गोलीबारी में हुई जिनका नितृत्व ऑगस्तो टिमोटेयो वांडोर कर रहे थे। 1969 में इनकी भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इन हत्याओं ने अर्जेंटीना की राजनीति को आकार दिया, वॉल्श ने इन पर दो क़िताबें लिखीं: गार्सीया की हत्या के बारे में ¿Quién mató a Rosendo? (रोसेंडो की हत्या किसने की?, 1969) और कासो स्तानोवस्की (स्तानोवस्की मामला, 1973)। दूसरी क़िताब देश के ख़ुफ़िया विभाग द्वारा 1957 में वक़ील मार्कोस स्तानोवस्की की हत्या के बारे में थी।

La terraza (छत/बरामदा), लीनो ईनीया सपिल्लिंबेर्गो (अर्जेंटीना), 1930.

1969 में एक इंटरव्यू के दौरान वॉल्श से उनकी राजनीति के बारे में सवाल किया गया। वॉल्श ने जवाब दिया ‘ज़ाहिर है मैं कहूँगा मैं एक मार्क्सवादी हूँ, लेकिन मैं एक बुरा मार्क्सवादी हूँ क्योंकि मैं बहुत कम पढ़ता हूँ: मेरे पास ख़ुद को विचारधरात्मक रूप से शिक्षित करने का समय नहीं है। मेरी राजनीतिक संस्कृति अनुभवजन्य अधिक और अमूर्त कम है’। यह एक ईमानदार जवाब था। वॉल्श स्वाभाविक रूप से क्यूबा की क्रांति की ओर आकर्षित हुए। वे राजनीतिक संगठन में शामिल हुए लेकिन उनका मन पत्रकारिता में ही था। जब अमेरिकी सरकार के ऑपरेशन कांडॉर के तहत सेना अर्जेंटीना में घुसने लगी तब वॉल्श ने Clandestine News Agency (ANCLA) शुरू की। इसमें उनके साथ थे कार्लोस अजनारेज़ (जो अब Resumen Latinomericanoचलाते हैं) और लाइला विक्टोरिया पास्टोरिज़ा (जिन्होंने सैन्य जुंटा के दौरान यातना झेली थी और अब Revista Haroldo के लिए लिखती हैं)। वॉल्श की बेटी मारिया विक्टोरिया तानाशाही के ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष का हिस्सा थीं। जब उन्हें और ऐल्बेर्टो मोलीना को ब्यूएनोस ऐरेस में सेना ने घेर लिया तो उन्होंने अपने हाथ हवा में उठाते हुए कहा: ‘ustedes no nos matan; nosotros elegimos morir’ (तुम हमें मार नहीं रहे, हम ख़ुद मौत को गले लगा रहे हैं) और ख़ुद को गोली मार ली। इसके बाद वॉल्श टाइपराइटर के सामने बैठे और उन्होंने अपना लंबा ख़त लिखना शुरू किया जो उन्होंने सैन्य तख़्तापलट की सालगिरह पर भेजा था। हर किसी को यह ख़त ज़रूर पढ़ना चाहिए।

यह ख़त अनुभव से जन्मा एक अद्भुत ख़त है: अगस्त 1976 में कॉर्डबा के सैन रोक लेक में एक स्थानीय व्यक्ति को पानी के नीचे एक क़ब्रिस्तान मिला। वह व्यक्ति पुलिस स्टेशन गया, उसकी रिपोर्ट किसी ने नहीं लिखी और फिर उसने अख़बारों को इसके बारे में लिखा और किसी ने इसे नहीं छापा’।

Madre e hija de Plaza de Mayo (प्लाज़ा डी मायो की माँ और बेटी), ऐड्रीआना लेस्टतिडो (अर्जेंटीना), 1982.

अख़बार आज भी कई हत्याओं और गिरफ़्तारियों के बारे में नहीं छापते। वे तो ओस्कर अवार्ड और पेरिस फ़ैशन वीक की चकाचौंध में डूबे हुए हैं। उनके पास मिलई के पागलपन के लिए वक़्त नहीं, न ही चंद अमीरों के फ़ायदे के लिए संस्थानों को बर्बाद करने की साज़िश के बारे में लिखने के लिए समय है। अगर मीडिया कुछ लिखती भी है तो मिलई और ट्रम्प जैसे नेता उन्हें ‘जनता के दुश्मन’, या किसी सरकार का एजेंट कहते हैं।

इस सबके बीच इंसानी मुखौटा पहने ये राक्षस अपने ही लोगों को राष्ट्रवाद के नाम पर धोखा दे रहे हैं और देश की संपदा एक ऐसे वर्ग के क़ब्ज़े में पहुँचाते जा रहे हैं जो हमारे साथ कुछ भी बाँटना नहीं चाहता। वॉल्श होते तो इसी बारे में लिखते। वॉल्श हमसे उम्मीद करते हैं कि हम उनकी जगह इस बारे में लिखे।

सस्नेह,

विजय