Likbez (USSR), Tatar Literacy Club, 1935.

लिकबेज़ (यूएसएसआर), तातार साक्षरता क्लब.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक (यूनेस्को) एजेंसी के अनुसार, इस ग्रह पर रहने वाले लगभग हर एक बच्चे (उनमें से 80% से अधिक) की शिक्षा महामारी से बाधित हुई थी। हालाँकि यह अध्ययन चौंकाने वाला है, लेकिन स्कूलों को बंद करना निश्चित रूप से आवश्यक था क्योंकि संक्रामक कोविड-19 वायरस समाज में फैल गया था। उस निर्णय का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा है? 2017 में – महामारी से पहले – कम-से-कम 84 करोड़ लोगों के पास बिजली नहीं थी, जिसका अर्थ था कि कई बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा असंभव थी। दुनिया की एक तिहाई आबादी (2.6 अरब लोगों) के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है, ऐसे में अगर उनके पास बिजली हो तब भी उनके लिए ऑनलाइन शिक्षा संभव नहीं है। यदि हम और गहराई में जाएँ, तो पाएँगे कि जिन लोगों के पास ऑनलाइन सीखने के लिए आवश्यक गैजेट्स उपलब्ध नहीं है – जैसे कि कंप्यूटर और स्मार्टफ़ोन – उनकी दर और भी अधिक है, दो अरब लोगों के पास दोनों ही चीज़ों की कमी है। इसलिए, भौतिक स्कूलों को बंद करने के परिणामस्वरूप, दुनिया भर में करोड़ों बच्चे लगभग दो वर्षों से स्कूल से वंचित रहे हैं।

इस तरह के स्थूल आँकड़े एक तरह का उदाहरण तो पेश करते हैं लेकिन भ्रामक भी हैं। जो लोग बिजली और इंटरनेट के बिना ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं उनमें से अधिकांश लोग अफ़्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में रहते हैं। उदाहरण के लिए, महामारी से पहले, उप-सहारा अफ़्रीका, पश्चिमी एशिया और दक्षिणी एशिया में पाँच में से एक बच्चे ने कभी प्राथमिक विद्यालय की कक्षा में प्रवेश नहीं किया था। उत्तरी अफ़्रीका और पश्चिमी एशिया में तीन में से एक लड़की को शिक्षा नहीं मिल पा रही थी जबकि उसकी तुलना में पच्चीस लड़कों में से एक को शिक्षा नहीं मिल रही थी। अनुमानों से पता चलता है कि दक्षिणी एशिया में चार बच्चों में से एक (अनुमानित जनसंख्या 2 अरब) और अफ़्रीका (अनुमानित जनसंख्या 1.2 अरब) और पश्चिमी एशिया में (अनुमानित जनसंख्या 30 करोड़) में पाँच बच्चों में से एक संभवतः स्कूल नहीं जा पाएँगे। दस साल से कम उम्र के बच्चों के पढ़ने के स्तर का अध्ययन असमानताओं की हमारी भावनाओं को और गहरा करती हैं: निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, 53% बच्चे प्राथमिक स्कूल के अंत तक एक साधारण कहानी को पढ़ और समझ नहीं सकते हैं, जबकि ग़रीब देशों में यह संख्या बढ़कर 80% हो जाती है (उच्च आय वाले देशों में यह केवल 9% है)।

निम्न और उच्च आय वाले देशों का भौगोलिक वितरण उसी पुराने विभाजन को प्रकट करता है। डोजियर संख्या 43 (कोरोनाशॉक तथा ब्राज़ील में शिक्षा: डेढ़ साल बाद, अगस्त 2021), इसी पर केंद्रित था,  ब्राज़ील में शिक्षा के वर्तमान और भविष्य पर हमारे सात शोध में इसे सार रूप में प्रस्तुत किया गया है। ये क्षेत्रीय और लैंगिक असमानताएँ महामारी से पहले भी थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण और बढ़ गई हैं।

 

Aya Takano (Japan), Convenience Store, 2016.

अया ताकानो (जापान), सुविधा स्टोर, 2016.

 

अभी सुधार के संकेत नहीं दिख रहे हैं। इस साल की शुरुआत में, विश्व बैंक और यूनेस्को ने उल्लेख किया कि कोविड-19 महामारी के उभरने के बाद से, दो-तिहाई विकासशील देशों ने अपने शिक्षा बजट में कटौती की है। यह दुनिया के बड़े हिस्से के लिए विनाशकारी साबित होने वाला है जहाँ छात्र निजी शिक्षा पर नहीं बल्कि सार्वजनिक शिक्षा पर निर्भर हैं। महामारी के पहले से ही ये अंतर काफ़ी अधिक था: उच्च आय वाले देशों में, सरकारों ने स्कूल आने वाली आयु के बच्चे के प्रत्येक बच्चे के लिए 8,501 डॉलर ख़र्च किए, जबकि ग़रीब देशों में यह राशि केवल 48 डॉलर प्रति बच्चा था। विकासशील देशों पर महामारी के नकारात्मक आर्थिक प्रभावों का मतलब है कि यह अंतर और अधिक होगा, जिसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है। नतीजतन, बिजली, डिजिटल और गैजेट के विभाजन को पाटने के लिए कम संसाधन होंगे, उदाहरण के लिए, स्मार्टफ़ोन के साथ काम करने लायक़ पुस्तकालय बनाने के लिए शायद बिलकुल भी पैसा नहीं होगा, और दो साल बाद स्कूल वापस लौटने वाले बच्चों को संभालने लायक़ शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए बहुत कम संसाधन होंगे। चूँकि कम आय वाले देशों में टीकाकरण दर अब भी बहुत ख़राब है, इसलिए बंद अनिश्चित काल तक जारी रहेगा या स्कूलों में संक्रमण फैलने का ख़तरा होगा।

 

Mehdi Farhadian (Iran), Cannons and Ballerinas, 2018.

मेहदी फरहादियन (ईरान), तोप और बैलेरिना, 2018.

 

हाल ही में, भारत सरकार ने अपनी वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2021 जारी की, जिसमें दिखाया गया कि पिछले साल बड़ी संख्या में बच्चों के पास कोई स्कूल नहीं था और एक चौथाई से भी कम बच्चे ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम थे। महामारी के दौरान जैसे-जैसे मध्यम वर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती गई, निजी स्कूलों में नामांकन में गिरावट आई और सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा। सार्वजनिक शिक्षा पर घटते सरकारी ख़र्च के मद्देनज़र इस बदलाव से छात्रों और सरकारी स्कूल के कर्मचारियों, विशेषकर शिक्षकों पर दबाव बढ़ेगा।

स्टुडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफ़आई) के एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में अपने मोबाइल फ़ोन के माध्यम से इंटरनेट का उपयोग करने वालों के बीच 50% के लैंगिक अंतर के साथ उच्च शिक्षा में ये असमानताएँ जारी हैं (42 प्रतिशत पुरुष बनाम 21 प्रतिशत महिलाएँ)। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, जनजातीय विशेष फ़ोकस वाले ज़िलों में केवल 3.47% स्कूलों में सूचना संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) की व्यवस्था है। विश्वविद्यालय के छात्रावासों को बंद करने से स्थिति और भी बदतर हुई है, युवा महिलाओं को घर से बाहर रहने की वजह से पितृसत्ता के विविध रूपों, बाल विवाह, प्रजनन श्रम के दबाव आदि से राहत मिल जाती थी।

इस बीच, केरल से उम्मीद की रौशनी दिखाई दी है, लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट (एलडीएफ़) द्वारा शासित इस राज्य में शिक्षा दर 90% है। एलडीएफ़ सरकार ने राज्य में शिक्षा के बजट में वृद्धि की है और स्थानीय स्व-शासित निकायों को यह तय करने की अनुमति दी है कि इसे कैसे ख़र्च किया जाए। महामारी से पहले, केरल की एलडीएफ़ सरकार ने हाई-टेक क्लासरूम बनाए; एक बार महामारी आने के बाद, इसने ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा तैयार किया। महामारी के दौरान, 45 लाख से अधिक छात्रों ने स्मार्टफ़ोन और कंप्यूटर के माध्यम से नहीं, बल्कि सुबह 8:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक टेलीकास्ट फ़र्स्ट बेल के माध्यम से स्कूल में भाग लिया, जो सरकार के स्वामित्व वाले बहुमुखी आईसीटी सक्षम संसाधन (VICTERS) टेलीविज़न चैनल पर प्रसारित होता था। परिवारों के लिए अधिक महंगी डिजिटल तकनीक का उपयोग करने की तुलना में टेलीविज़न का उपयोग करना बहुत आसान है। केरल का उदाहरण एक समुदाय की मौजूदा क्षमताओं के इर्द-गिर्द शिक्षा को केंद्रित करने की शक्ति को दर्शाता है।

शिक्षा केवल उपकरणों और कक्षाओं से नहीं दी जाती है। इसका ज़ोर इस बात पर है कि शिक्षण कैसे होता है और क्या पढ़ाया जाता है (महान शिक्षक पाउलो फ़्रेयर की जन्म शताब्दी के दौरान ध्यान देने योग्य एक बिंदु, जिसकी विरासत पर हम अपने डोजियर संख्या 34, पाउलो फ़्रेयर और दक्षिण अफ़्रीका में लोकप्रिय संघर्ष में चर्चा कर चुके हैं)। केरल में इतनी सारी सफलताएँ एक समाजवादी संस्कृति का परिणाम हैं जो प्रत्येक बच्चे में विश्वास करती है और मज़दूर वर्ग और किसानों की संस्कृतियों को बदनाम करने के बजाय ऊपर उठाने के महत्व में विश्वास करती है।

 

Cuban Literacy Campaign, 1961.

क्यूबा साक्षरता अभियान, 1961.

 

ब्राज़ील से ख़बर आई है कि भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) ने पिछले सैंतीस वर्षों में 100,000 से अधिक लोगों को साक्षर बनाया है। एमएसटी लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन शैक्षणिक संस्थान (आईपीएलएसी) द्वारा विकसित शिक्षा के फ़्रेरियन तकनीकों और क्यूबा योसी पुएडो (‘यस आई कैन’) मॉडल का उपयोग करता है। सितंबर 1960 में फ़िदेल कास्त्रो द्वारा साक्षरता दर को 100% तक बढ़ाने की प्रतिज्ञा के बाद यह मॉडल उभरा। क्यूबा साक्षरता अभियान के माध्यम से आठ महीनों में देश को लगभग पूरी तरह साक्षर किया गया। ढाई लाख लोगों ने, जिनमें से आधे अठारह वर्ष से कम थे, स्वेच्छा से ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर रात गुज़ारने और सप्ताह में एक दो दिन बिताने के लिए तैयार हुए। इस दौरान वे युवा खेती किसानी के बारे में जानकारी हासिल करते थे। उन्होंने ज्ञान देने के लिए ज्ञान के उन तरीक़ों का इस्तेमाल किया जो क्यूबा के लोगों के पास पहले से मौजूद था, और इसके महत्व को समझाया कि पढ़ना लिखना सीखकर इस ज्ञान को कैसे और अधिक बढ़ाया जा सकता है, बजाये इसके यह जताने के कि निरक्षरों को पढ़ने के लिए कहा जाए। साक्षरता अभियान के मूल युवा स्वयंसेवकों में से एक, लियोनेला रेलीज़ डियाज़ ने 2000 में योसी पुएडो पाठ्यक्रम विकसित किया। अब इस कार्यक्रम में पहले से रिकॉर्ड किए हुए सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट विडियो का उपयोग किया जाता है, बहुत ही ऊर्जावान तथा प्रशिक्षित प्रशिक्षक लोगों के आत्मविश्वास और कौशल को बढ़ाने में मदद करते हैं। इस कार्यक्रम का उपयोग 2003 से वेनेजुएला में भी किया जा रहा है, जहाँ इसने 14.8 लाख वयस्कों को पढ़ना और लिखना सिखाने में मदद की, जिससे दो वर्षों में निरक्षरता समाप्त हो गई।

महामारी के दौरान, समाजवादी परियोजनाएँ – जैसे कि केरल में एलडीएफ़ सरकार, क्यूबा के शैक्षिक कार्यक्रम और एमएसटी साक्षरता अभियान – फल-फूल रहे हैं, जबकि अन्य सरकारों ने अपने शैक्षिक वित्त पोषण में कटौती की है। एमएसटी साक्षरता कार्यक्रम कहता है, ‘हर समय सीखने का समय है’, लेकिन यह कहावत हर जगह उपयोग में नहीं है।

 

Michael Armitage (Kenya), The Fourth Estate, 2017.

माइकल आर्मिटेज़ (केन्या), द फ़ोर्थ एस्टेट, 2017.

 

महामारी के दौरान केन्या में नैरोबी विश्वविद्यालय ने अपने साहित्य विभाग को बंद करने का फ़ैसला किया। इस विभाग ने उत्तर-औपनिवेशिक अध्ययन का बीड़ा उठाया था जब इसके संकाय ने औपनिवेशिक अंग्रेज़ी विभाग में आमूलचूल परिवर्तन किया, जिससे विद्वानों और शिक्षार्थियों को अफ़्रीकी कल्पना की क्षमता को अवशोषित करके केन्याई कला और संस्कृति को गहराई से समझने का अवसर मिला। नये विभाग के शिल्पकारों में से एक लेखक न्गूगी वा थिओंग थे, जिन्होंने किबेरा के पास रहने वाले मज़दूर वर्ग की कला को समझा और किबेरा के सौंदर्य को विश्वविद्यालय में लेकर आए। उसकी वजह से 1978 में वा थिओंग को निकाल दिया गया और जेल में डाल दिया गया। विभाग के बंद होने पर कविता की वो पंक्तियाँ याद हो आईं जो उन्होंने ‘आईएमएफ़: इंटरनेशनल मिटुम्बा फ़ाउंडेशन’ कविता में लिखी। मिटुम्बा स्वाहिली भाषा का शब्द है, जिसका आर्थ होता है ‘सेकेंड-हैंड’, यहाँ इसका इस्तेमाल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का मज़ाक़ उड़ाने के लिए किया गया है; माटुम्बो शब्द का अर्थ है ‘पेट’।

 

आईएमएफ़: इंटरनेशनल मिटुम्बा फ़ाउंडेशन

सबसे पहले, उन्होंने हमें अपनी ज़ुबान दी।

हमने कहा, ठीक है, हम उन्हें अपना बना सकते हैं।

फिर उन्होंने कहा कि हमें पहले अपनी ज़ुबान को ख़त्म करना चाहिए।

और हमने कहा कि यह ठीक है क्योंकि उनके लिए हम उनके लिए ख़ास हैं।

सबसे पहले उनके विमान और युद्धक यंत्र ख़रीदे।

सबसे पहले उनकी कार और कपड़े ख़रीदे।

सबसे पहले उन चीज़ों को ख़रीदा जो हमारे ही सर्वश्रेष्ठ समानों से बनते हैं।

लेकिन जब हमने कहा कि हम उन्हें सर्वश्रेष्ठ बना सकते हैं

अपनी सर्वश्रेष्ठ चीज़ों से सर्वश्रेष्ठ बनाकर

अपनी ही चीज़ों से अपने लिए

उन्होंने कहा नहीं, आपको हमसे ख़रीदना होगा

भले ही आपने अपनी सर्वश्रेष्ठ चीज़ों से सर्वश्रेष्ठ बनाया हो।

अब वे हमें वह सर्वश्रेष्ठ चीज़ें ख़रीदने को कहते हैं जो वे पहले ही उपयोग कर चुके हैं

और जब हमने कहा कि हम वापस लड़ सकते हैं और अपना बना सकते हैं

वे हमें याद दिलाते हैं कि वे हमारे हथियारों के सभी रहस्यों को जानते हैं।

हाँ, वे हमें वे सर्वश्रेष्ठ चीज़ें ख़रीदने को कहते हैं जो वे पहले ही उपयोग कर चुके हैं

सेकेंड हैंड, वे इसे कहते हैं।

स्वाहिली में उन्हें मिटुम्बा कहा जाता है।

मिटुम्बा हथियार।

मिटुम्बा कारें।

मिटुम्बा कपड़े।

और अब आईएमएफ़ मिटुम्बा विश्वविद्यालयों को निर्देशित करता है

मिटुम्बा बुद्धिजीवियों का उत्पादन करने के लिए।

वे माँग करते हैं कि हम सभी विभागों को बंद कर दें

ऐसा कहते हैं

हमें अपनी ज़मीन पर खड़ा होना है,

सबसे अच्छा मैदान जहाँ से सितारों तक पहुँचें।

लेकिन मितुंबा के नेताओं ने आईएमएफ़ के सामने घुटने टेके,

इंटरनेशनल मिटुम्बा फ़ाउंडेशन,

और चिल्लाओ

हाँ साहब

हम नव-औपनिवेशों के लिए मिमिक्री सबसे अच्छी बख़्शीश है।

मितुंबा संस्कृति ने बनाया माटुंबोकुबवा

कुछ के लिए मितुंबा दिमाग़ के साथ।

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स्नेह-सहित,

विजय।