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लोगों को शांति और प्रगति चाहिए, युद्ध और बर्बादी नहीं: चौबीसवाँ न्यूज़लेटर (2025)

नाटो के सेक्रेटरी जनरल ने सदस्य राष्ट्रों को युद्धकालीन मानसिकता अपनाने के लिए कहा है। स्पष्ट है कि यह संगठन विश्व शांति के लिए बड़ा ख़तरा है।

प्रेम को जानो, शांति को जानो। प्रेम नहीं तो शांति नहीं, गोयेन चेन, 2022

24 और 25 जून को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य अपने सालाना शिखर सम्मेलन के लिए हेग में होंगे – डॉनल्ड ट्रम्प के संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका) के दोबारा राष्ट्रपति बनने और नए सेक्रेटरी जनरल मार्क रूटे के पद संभालने के बाद यह इसका पहला सम्मेलन है। 13 मार्च को रूटे ने ट्रम्प के ऑफ़िस में उनसे मुलाक़ात की, जहाँ उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति के कई कार्यों की तारीफ़ की जिनमें यूक्रेन युद्ध का मसला भी शामिल है। रूटे ने मुलाक़ात ख़त्म करते हुए ट्रम्प से कहा कि वे अपने शहरहेग में उनकी मेज़बानी के लिए उत्सुक हैं और मिलकर [नाटो सम्मेलन] को सफल बनाने, इसके ज़रिए दुनिया को अमरीकी ताक़त का जलवा दिखानेका बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं।

नाटो के बत्तीस पूर्ण सदस्य हैं, जिनमें से तीस यूरोप और दो उत्तरी अमेरिका से हैं। अमेरिका इनमें से सिर्फ़ एक सदस्य है लेकिन जैसा कि रूटे के बयान से साफ़ होता है, यही नाटो को परिभाषित करता है और यह संगठन दुनिया को अमेरिकी ताक़त दिखाने का एक ज़रिया भर है। इस तथ्य को लेकर कोई दो राय नहीं है। इसीलिए ट्रम्प ने जब धमकी दी कि अगर यूरोपीय देश अपना सैन्य ख़र्च नहीं बढ़ाते तो अमेरिका नाटो से बाहर हो जाएगा तो इस बात को गंभीरता से नहीं लिया गया। अमेरिका ही नाटो है।

शीर्षकहीनट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान, 2025

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थाननो कोल्ड वॉर कलेक्टिव और हमारे यूरोपीय साथी ज़ेटकिन फ़ोरम फ़ॉर सोशल रिसर्च ने मिलकर जून में NATO: The Most Dangerous Organisation on Earth [नाटो: दुनिया का सबसे ख़तरनाक संगठन] डोसियर निकाला है। इस शीर्षक में अतिशयोक्ति नहीं है। बल्कि यह तो तथ्यों को सबके सामने पेश करता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो ने दुनिया के कुछ सबसे भयानक युद्ध करवाए हैं और अब यह दुनिया को एक संभावित परमाणु युद्ध की धमकी दे रहा है। इस बात के भरपूर सबूत इस डोसियर में दिए गए हैं। पिछले कुछ दशकों में इस संगठन ने जो भयानक काम किए हैं यहाँ उनमें से दो उदाहरण के तौर पर पेश हैं:

  • 1999 में युगोस्लाविया के टुकड़े करने में नाटो का ही हाथ था। 
  • 2011 में लीबिया को बर्बाद नाटो ने ही किया। 

नाटो को एक स्वायत्त संगठन के तौर पर देखना भारी ग़लती होगी। रूटे ने ख़ुद ही बड़ी होशियारी से कह दिया कि यह वैश्विक पटल पर अमेरिकी ताक़त के प्रदर्शनका एक माध्यम है। शीतयुद्ध के ख़त्म होने के बाद से अमेरिका नाटो का इस्तेमाल करके पूर्वी यूरोप के देशों का एक ऐसा गुट बनाने में लगा हुआ है जो उसके हितों के सामने झुका रहे। जब यूरोपियन यूनियन ने पूर्व की ओर बढ़ना शुरू किया और स्वायत्त यूरोपीय संस्थान बनाने की कोशिश शुरू की तो नाटो उसके साथ आया और यह सुनिश्चित किया कि यूरोप के इस विस्तार की कमान अमेरिका के हाथ में रहे। शायद किसी को याद न हो कि रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से पिछले राष्ट्रपति अमेरिका परस्त बोरिस येल्तसिन ने 1995 में बोस्निया सर्ब में नाटो की बमबारी के दौरान चेतावनी दी थी कि यह इशारा है इस बात कि जब नाटो रूसी फ़ेडरेशन की सीमा तक आ पहुँचेगा तो क्या हो सकता है।पूरे यूरोप में युद्ध छिड़ सकता है1990 में सोवियत संघ ने बेमन से जर्मनी के एकीकरण और इसके नाटो में शामिल होने की रज़ामंदी दे दी बशर्ते यह संगठन पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा (अमेरिका ने जर्मनी को नाटो से अटूट रूप से जोड़कर जर्मनी को दबा कर रखनेकी चाल भी चली)। लेकिन यह समझौता तो नहीं हुआ था कि अमेरिका एकदम रूसी सीमा पर ही नाटो के इस्तेमाल से अपनी ताक़त दिखाने लगे। या फिर ऐसी भी कोई बात नहीं हुई थी कि सुदूर क्षेत्रों में नाटो आखेट करेगा, उदाहरण के लिए नेविगेशन की आज़ादी और क्षेत्रीय स्थिरता के नाम पर दक्षिण चीन सागर में चीन गणराज्य से उलझना। अपने यूरोपीय सदस्यों के हितों के ख़िलाफ़ जाकर नाटो ने उन्हें रूस और चीन के साथ ऐसे टकराव और तनाव में घसीट लिया जो अमेरिका की इस मंशा की वजह से उत्पन्न हुए थे कि वह अपने निकटम प्रतिद्वंद्वियोंको हिलाकर रख देना चाहता है। इन तनावों का यूरोप की सुरक्षा से कुछ लेना-देना नहीं है: रूस और चीन दोनों ने कभी यूरोप को धमकाया नहीं, रूस ने तो लगातार कहा है कि यूक्रेन युद्ध की वजह रूस की अपनी सीमा पर मंडरा रहा ख़तरा है और चीन इस पर ज़ोर देता है कि वह यूरोप के प्रति आक्रामकता नहीं दिखाएगा, वह केवल अपनी सुरक्षा करना चाहता है।

युद्ध केवल पीड़ा लाता है, गोयेन चेन, 2022

दिसंबर 2024 में डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद संभालने से पहले, उनकी टीम ने यूरोपीय अधिकारियों को बताया कि ट्रम्प नाटो सदस्यों को उनके सैन्य ख़र्च बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5% प्रतिशत करने को कहने वाले हैं, पहले यह लक्ष्य 2% का था। अधिकतर देश बिना अपने सामाजिक व्यय में कटौती किए अचानक यह वृद्धि नहीं कर पाएँगे (2024 के अंतिम महीनों के बाद से, पोलैंड इकलौता देश है जो अपनी जीडीपी का 4% से ज़्यादा, यानी 4.12%, अपनी सेना पर खर्च करता है, जबकि अमेरिका अधिकारिक रूप से 3.38%)। नाटो में अमेरिकी राजदूत मैथ्यू विटकर ने कहा कि इस 5% के लक्ष्य को हासिल करने की कोई निर्धारित समय सीमा नहीं है लेकिन यूनाइटेड स्टेट्स प्रत्येक सहयोगी देश से उम्मीद करता है कि वे इस 5% लक्ष्य के लिए ठोस योजना, बजट, समय सीमा [और] सैन्य साजो-सामान का पूरा ख़ाका तैयार करेंगे तथा क्षमताओं में मौजूद कमियों को ख़त्म करेंगे 

1949 में नाटो के गठन से लेकर शीतयुद्ध के दौर में भी इसके सदस्य राष्ट्रों के लिए सैन्य ख़र्च के लक्ष्य कभी नहीं रखे गए (जैसे जीडीपी का कोई निर्धारित प्रतिशत)। सैन्य स्तर पर 1952 के लिस्बन समझौते में नाटो ने मुख्य और रिज़र्व सेना की संख्या के लक्ष्य तय किए थे जो युद्धों के बाद यूरोप में व्याप्त अभावों के कारण पूरे नहीं हो सके। सत्तर के दशक में नाटो सदस्यों से एक रक्षा परियोजना प्रश्नावली भरवाई गयी ताकि राष्ट्रीय सैन्य ख़र्च के लिए हो रहे प्रयासों का जायज़ा लिया जा सके, लेकिन इसके बाद भी ख़र्च का कोई निर्धारित लक्ष्य तय नहीं किया जा सका। राष्ट्रपति रॉनल्ड रेगन के कार्यकाल (1981-1989) में जब अमेरिका अपनी जीडीपी का 6% रक्षा क्षेत्र में ख़र्च कर रहा था तब सैन्य स्तर के लक्ष्यों और रक्षा व्यय के सवाल एक बार फिर खड़े हुए, तथा यूरोपीय सदस्यों को कहा गया कि वे अपना हिस्सा अपनी जीडीपी के 4% तक बढ़ाएँ। नब्बे के दशक की शुरुआत में सोवियत संघ के विघटन के साथ वॉशिंगटन घबरा गया कि अब नाटो राष्ट्र अपने सैन्य ख़र्च में कटौती करने लगेंगे। 2002 में प्राग में हुए नाटो शिखर सम्मेलन में इसके सदस्यों ने प्राग केपेबिलिटीस कमिट्मेंट पारित किया जिसमें एक बार फिर वॉर ऑन टेरर [आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध] की पृष्ठभूमि में सैन्य आधुनिकीकरण की माँग उठाई गई लेकिन इस बार भी ख़र्च के लिए कोई लक्ष्य नहीं रखा गया।

2006 के रीगा सम्मेलन में पहली बार नाटो ने अधिकारिक रूप से 2% के लक्ष्य का समर्थन किया और इसके साथ ही पहली बार इसके सदस्यों के लिए सैन्य ख़र्च का औपचारिक मानदंड तय हो गया। 2014 में वेल्स सम्मेलन तक यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया गया था इसलिए इसके लिए दबाव बनाया गया, लेकिन फिर भी इस मामले में अधिक उत्साह देखने को नहीं मिला। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में काफ़ी कोशिश की और इशारे में कह दिया कि अगर यूरोपीय सदस्यों ने अपना सैन्य ख़र्च नहीं बढ़ाया तो अमेरिका नाटो छोड़ देगा। 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया जिसके बाद इस 2% के लक्ष्य को देखने का नज़रिया बदल गया। नाटो के तत्कालीन सेक्रेटरी जनरल येन्स स्टॉल्टेन्बर्ग के शब्दों में अब इसे अधिकतम नहीं बल्कि न्यूनतम सीमाके रूप में देखा जाने लगा। इस साल हेग में होने वाले इसके शिखर सम्मेलन से पहले नाटो के मौजूदा सेक्रेटरी जनरल मार्क रूटे ने कहा कि नाटो सदस्यों को युद्धकालीन मानसिकता को अपनाना होगा और हमारे रक्षा उत्पादन तथा रक्षा ख़र्च में भारी बढ़ोतरी करनी होगी

मुझे शांति कहाँ मिलेगी, ऑथ्मन ग़लमी, 2022

नाटो शिखर सम्मेलन के लिए कई यूरोपीय संस्थानों और आंदोलनों ने अपने दस्तावेज़ जारी करने शुरू कर दिए हैं। इनमें से एक है जर्मन इन्स्टिट्यूटस ऑफ़ पीस एंड कॉन्फ़्लिक्ट रिसर्च  की सालाना रिपोर्ट (Bonn International Centre for Conflict StudiesInstitut für Friedensforschung und SicherheitspolitikInstitut für Entwicklung und Frieden और Leibniz Institut für Friedens-und) जिसमें कहा गया है कि यूरोप को अपने सैन्य व्यय में वृद्धि करके और गैर-घातक कूटनीतिक तरीकों जैसे शस्त्र नियंत्रण एवं शांति स्थापना के उपायों को अपनाकर, अमेरिका-रहित नाटो के लिए स्वयं को तैयार करना होगा।

नाटो संकट को लेकर एक सोच यह है, लेकिन इसमें दो प्रमुख ख़ामियाँ हैं: पहली, यह नाटो में यूरोप को बराबरी का भागीदार मानकर नाटो में उसकी भूमिका का ग़लत आकलन करती है, जबकि असल में नाटो केवल एक ज़रिया है, जिससे अमेरिका अपने हितों के लिए यूरोप को अपने अधीन बनाए रखता है, और दूसरी, यूरोप में इसके सदस्य राष्ट्र अपनी जीडीपी का 5% रक्षा क्षेत्र में ख़र्च कर पाने में सक्षम ही नहीं हैं।

ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी Strategic Defence Review 2025 दिवालिया हो जाने की योजना है। ब्रिटेन के पास हाइब्रिड एयर विंग्ससे लैस एक नयी हाइब्रिड नौसेनाखड़ी करने, श्रमिक वर्ग को मकान देने ओर अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए संसाधन ही नहीं हैं। पूरे समाजके लिए काम करने की योजना के बारे में लिखना आसान है लेकिन तमाम तरह की परेशानियों से घिरे एक समाज का इन सबके लिए संसाधन जुटा पाना बहुत मुश्किल है। इसके विपरीत नेशनल यूनियन ऑफ़ रेल, मैरिटाइम एंड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स  तथा कैम्पेन फ़ॉर न्यूक्लियर डिसआर्ममेंट [परमाणु निरस्त्रीकरण आंदोलन] ने मानव सुरक्षा और सबकी सुरक्षाके लिए कुछ तार्किक मत पेश किए हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए  वे अपने Alternative Defence Review में लिखते हैं:

  1. कूटनीति, वैश्विक सहयोग और टकराव से बचने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  2. स्वास्थ्य, शिक्षा, जलवायु परिवर्तन की गति को कम करने, सामाजिक सेवाओं में निवेश किया जाना चाहिए और ऐसे रोज़गार पैदा किए जाने चाहिए जिनमें उचित आय, सुरक्षा मिले साथ ही संगठित और सामाजिक रूप से लाभदायक हों।
  3. सैन्य खर्च में भारी कटौती की जानी चाहिए।
  4. जो देश सक्रिय रूप से युद्ध या मानवाधिकार हनन में लिप्त हैं उन्हें हथियारों की बिक्री पर तुरंत रोक लगाई जाए (इज़राइल और खड़ी देशों सहित)।
  5. रक्षा क्षेत्र पर निर्भर मज़दूरों और समुदायों को दूसरे क्षेत्रों में रोज़गार देने के लिए एक न्यायोचित योजना बनायी और लागू की जाए।

एक ऐसी दुनिया के लिए, जिसके लोग शांति और प्रगति चाहते हैं न कि युद्ध और बर्बादी, ये लक्ष्य सही भी हैं और हासिल करने लायक़ भी। 

सस्नेह,

विजय