नू बैरेटो (गिनी-बिसाऊ), इंतज़ार, 2019.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

दुनिया भूख और बेकारी के ज्वार में बह रही है। जब आपके बच्चों को खाना भी नसीब न हो, तब शिक्षा, या किसी और चीज़ के बारे में सोचना मुश्किल होता है। लेकिन फिर भी, पिछले लगभग दस सालों के दौरान शिक्षा पर जिस प्रकार के तीखे हमले हुए हैं, वे हमें इस बारे में सोचने को मजबूर करते हैं कि इन बच्चों को किस तरह का भविष्य मिलेगा। 2018 में, महामारी से पहले, संयुक्त राष्ट्र ने बताया था कि स्कूली उम्र के 25.8 करोड़ बच्चे, यानी प्रत्येक छह में से एक बच्चा स्कूल से बाहर है। मार्च 2020 में, महामारी के शुरुआती दिनों में, यूनेस्को ने अनुमान लगाया था कि स्कूल बंद होने से 150 करोड़ बच्चे और युवा प्रभावित हुए हैं; यह चौंका देने वाला तथ्य है कि दुनिया भर में 91% छात्रों की शिक्षा लॉकडाउन से बाधित हुई थी।

जून 2022 में जारी संयुक्त राष्ट्र के एक नये अध्ययन में पाया गया है कि 2016 के बाद से शिक्षा में संकट का सामना करने वाले बच्चों की संख्या 7.5 करोड़ से बढ़कर 22.2 करोड़ पर आकर रुकी है जो लगभग तीन गुना अधिक है। संयुक्त राष्ट्र के एजुकेशन कैन-नॉट वेट (शिक्षा प्रतीक्षा नहीं कर सकती) कार्यक्रम ने कहा, ‘इन 22.2 करोड़ बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताएँ अलग अलग हैं: लगभग 7.82 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर हैं (जिनमें 54% लड़कियाँ हैं, 17% बच्चे कार्यात्मक कठिनाइयाँ महसूस करते हैं, और 16% जबरन विस्थापित हैं), जबकि 11.96 करोड़ बच्चे स्कूल जाने के बावजूद, प्रारंभिक कक्षाओं के स्तर के लिए आवश्यक पढ़ने या गणित की न्यूनतम दक्षता प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं’। आने वाली पीढ़ियों पर इस संकट से जो विपदा आएगी उस पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है।

विश्व बैंक ने, यूनेस्को के सहयोग के साथ, यह बताया है कि निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में शिक्षा के बजट में गिरावट आई है; इन देशों में से 41% देशों ने ‘2020 में महामारी की शुरुआत के बाद से, ख़र्च में 13.5% की औसत गिरावट के साथ, शिक्षा पर अपने ख़र्च को कम कर दिया’। हालाँकि अमीर देश महामारी से पहले के फ़ंडिंग स्तर पर वापस आ गए हैं, लेकिन सबसे ग़रीब देशों में फ़ंडिंग महामारी से पहले के औसत से भी नीचे चली गई है। शिक्षा क्षेत्र में फ़ंडिंग कम होने से जीवन भर की कमाई (लाइफ़टाइम अर्निंग) में लगभग 21 ट्रिलियन डॉलर का नुक़सान होगा, जो कि साल 2021 में अनुमानित 17 ट्रिलियन डॉलर से बहुत अधिक है। अर्थव्यवस्था गड़बड़ा रही है और पूँजी के मालिक इस सच्चाई को समझ रहे हैं कि वे – उनके लिए ‘अधिशेष आबादी’ बन चुके – अरबों लोगों को काम पर नहीं रखेंगे, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शिक्षा पर  कितना कम ध्यान है।

 

1974 में गिनी बिसाऊ के जंगलों में मुक्त क्षेत्रों में आयोजित एक पीएआईजीसी स्कूल में एक शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर लिख रहा है।
स्रोत: रोएल कॉटिन्हो, गिनी-बिसाऊ और सेनेगल फ़ोटोग्राफ़्स (1973-1974)

 

पहले के युग के राष्ट्रीय मुक्ति प्रयोगों को देखें तो अहम मूल्यों की एक बिलकुल अलग सूची सामने आती है, जिसमें भुखमरी को समाप्त करने, साक्षरता बढ़ाने और मानव गरिमा को बढ़ाने के लिए अन्य प्रकार के सामाजिक क़दम सुनिश्चित करने को प्राथमिकता दी गई थी। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने ‘स्टडीज़ इन नेशनल लिबरेशन’ नाम से अध्ययनों की एक नयी शृंखला शुरू की है। इस शृंखला में जारी पहला अध्ययन ‘पीएआईजीसी’ज़ पोलिटिकल एजुकेशन फ़ॉर लिबरेशन इन गिनी बिसाऊ, 1963-74’ सोनिया वाज़बोर्गेस के अभिलेखीय शोध पर आधारित एक शानदार लेख है। सोनिया वाज़-बोर्गेस एक इतिहासकार हैं और ‘मिलिटेंट एजुकेशन, लिबरेशन स्ट्रगल, एंड कॉन्शियसनेस: पीएआईजीसी एजुकेशन इन गिनी बिसाऊ, 1963-1978’ (पीटर लैंग, 2019) की लेखिका हैं।

पीएआईजीसी, गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए अफ़्रीकी पार्टी, जिसकी स्थापना 1956 में हुई थी। अन्य कई राष्ट्रीय मुक्ति परियोजनाओं की तरह, पीएआईजीसी की शुरुआत भी पुर्तगाली औपनिवेशिक राज्य द्वारा स्थापित राजनीतिक ढाँचे के भीतर से हुई। 1959 में, पिड्जिगुइटी बंदरगाह के मज़दूरों ने मज़दूरी बढ़ाने और बेहतर काम की परिस्थितियों की माँग के साथ हड़ताल की, लेकिन पुर्तगालियों ने बंदूक़ से जवाब दिया; लगभग पचास लोग मारे गए। इस नरसंहार के बाद पीएआईजीसी ने निश्चय कर लिया कि उन्हें सशस्त्र संघर्ष आगे बढ़ाना चाहिए; जिसके तहत उन्होंने तत्कालीन गिनी (आज के गिनी-बिसाऊ) में औपनिवेशिक शासन से मुक्त क्षेत्रों की स्थापना की।

इन मुक्त क्षेत्रों में, पीएआईजीसी ने एक समाजवादी परियोजना की स्थापना की, जिसमें निरक्षरता ख़त्म करने और जनता को एक सम्मानजनक सांस्कृतिक जीवन देने की कोशिश करने वाली एक शैक्षिक प्रणाली भी शामिल थी। उनके एक समतावादी शैक्षिक परियोजना विकसित करने के उद्देश्य ने ही हमारा ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि एक ग़रीब देश में भी, औपनिवेशिक राज्य के सशस्त्र दमन का सामना करते हुए, पीएआईजीसी ने जनता की गरिमा के निर्माण के लिए सशस्त्र संघर्ष के बावजूद शिक्षा में क़ीमती संसाधन लगाने की हिम्मत दिखाई। 1974 में, देश ने पुर्तगाल से अपनी स्वतंत्रता हासिल की; राष्ट्रीय मुक्ति परियोजना के मूल्य आज भी हमारे संघर्षों के लिए प्रासंगिक हैं।

 

मुक्त क्षेत्र में पीएआईजीसी की प्राथमिक विद्यालय की कक्षा में छात्र, 1974>
स्रोत: रोएल कॉटिन्हो, गिनी-बिसाऊ और सेनेगल फ़ोटोग्राफ़्स (1973-1974)

 

पीएआईजीसी द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय मुक्ति परियोजना के एक साथ दो उद्देश्य थे:

• दमन और शोषण की औपनिवेशिक संस्थाओं को उखाड़ फेंकना।

• लोगों की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक मुक्ति को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की एक परियोजना बनाना, जो परियोजना जनता के शरीर और दिमाग़ में औपनिवेशिक संरचनाओं द्वारा छोड़े गए ज़हरीले अवशेषों के ख़िलाफ़ लड़ेगी।

1959 तक, गिनी-बिसाऊ, जो कि 1588 से पुर्तगाली राजशाही के नियंत्रण में था, में कोई माध्यमिक विद्यालय नहीं था। 1964 में, एमिलकार कैबरल के नेतृत्व में पीएआईजीसी की पहली कांग्रेस ने वादा किया था:

सभी मुक्त क्षेत्रों में स्कूलों की स्थापना और शिक्षण का विकास करना। …मौजूदा स्कूलों में काम में सुधार करें, बहुत अधिक संख्या में विद्यार्थियों को रखने से बचें क्योंकि इससे सभी बच्चों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जा सकेगा। स्कूल बनाएँ लेकिन संसाधनों की कमी के कारण कुछ स्कूलों को बाद में बंद करने से बचने के लिए अपनी वास्तविक क्षमता को ध्यान में रखें। … शिक्षकों के राजनीतिक प्रशिक्षण को लगातार मज़बूत करें… वयस्कों को पढ़ना और लिखना सिखाने के लिए पाठ्यक्रम स्थापित करें, चाहे वे [वयस्क] लड़ाके हों या आम लोग। … धीरे-धीरे मुक्त क्षेत्रों में सरल पुस्तकालय स्थापित करें, हमारे पास जो किताबें हैं उन्हें दूसरों को उधार दें, दूसरों को किताब, अख़बार पढ़ने और जो पढ़ा जाता है उसे समझने में मदद करें।

बुनियादी साक्षरता, अपने इतिहास और राष्ट्रीय मुक्ति के लिए उनके संघर्ष के महत्व के शिक्षण के प्रयास करते हुए पीएआईजीसी के एक कैडर ने कहा था कि, जो लोग पढ़ना जानते हैं वे उन्हें ज़रूर पढ़ाएँ जो पढ़ना नहीं जानते हैं।

 

A student uses a microscope during a PAIGC medical consultation in a college in Campada, 1973. Source: Roel Coutinho, Guinea-Bissau and Senegal Photographs (1973–1974)

कम्पाडा के एक कॉलेज में पीएआईजीसी के चिकित्सकीय परामर्श के दौरान एक छात्र माइक्रोस्कोप का उपयोग करते हुए>
स्रोत: रोएल कॉटिन्हो, गिनी-बिसाऊ और सेनेगल फ़ोटोग्राफ़्स (1973-1974)

 

हमारे अध्ययन में पीएआईजीसी द्वारा स्थापित शैक्षिक प्रणाली की पूरी प्रक्रिया की व्याख्या की गई है, जिसमें शैक्षिक रूपों और तौर-तरीक़ों का आकलन भी शामिल है। अध्ययन में विशेष रूप से पीएआईजीसी के शिक्षाशास्त्र तथा उनके उपनिवेश-विरोधी और अफ़्रीका-केंद्रित पाठ्यक्रम को गहराई से समझने की कोशिश की गई है। हमारा अध्ययन कहता है:

अफ़्रीकी लोगों के अनुभव, उनका अतीत, उनका वर्तमान और उनका भविष्य इस नयी शिक्षा के केंद्र में होना चाहिए। स्कूल का पाठ्यक्रम स्थानीय समुदायों में मौजूद ज्ञान के रूपों से टकराए और उनके अनुरूप गढ़ा भी जाए। ज्ञान के इन नये दृष्टिकोणों के साथ, पीएआईजीसी का उद्देश्य था शिक्षार्थियों में स्वयं अपने प्रति, उनके साथियों और उनके समुदायों के प्रति दायित्व की व्यक्तिगत भावना पैदा करना। 1949 में ही, कैबरल ने पुर्तगाल और उसके अफ़्रीकी अधिराज्यों की कृषि स्थितियों के अपने शोध अनुभवों के माध्यम से मौजूदा अफ़्रीकी वास्तविकताओं पर केंद्रित ज्ञान उत्पादन की वकालत की थी। उन्होंने तर्क दिया कि ज़मीन की रक्षा करने के सर्वोत्तम तरीक़ों में से एक यह सीखना और समझना है कि मिट्टी का स्थायी रूप से उपयोग कैसे किया जाए और इससे होने वाले लाभों में सचेत रूप से सुधार किया जाए। ज़मीन को जानना और समझना लोगों की रक्षा करने और जीवन की स्थितियों को बेहतर बनाने के उनके अधिकार का एक रूप था।

अध्ययन आपको बाँधे रखता है; यह एक ऐसी दुनिया की ओर खिड़की खोलता है जिसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की संरचनात्मक समायोजन मितव्ययिता ने नष्ट कर दिया। जिसने 1995 से आज तक गिनी-बिसाऊ को अव्यवस्था के चंगुल में फँसा रखा है। गिनी-बिसाऊ की साक्षरता दर 50% के क़रीब है। यह इस तरह के देश के लिए बेहद चौंकाने वाला तथ्य है, जहाँ पीएआईजीसी ने कई तरह की मुक्ति संभावनाओं को गति प्रदान की थी। इस अध्ययन को पढ़ते हुए पुरानी खिड़कियाँ और उम्मीदें खुलने लगती हैं, जो कि तब तक ज़िंदा रहेंगी जब तक हमारे आंदोलन चौकस रहेंगे और बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए मूल स्रोत की ओर लौटते रहेंगे।

 

सैसेरिया एवोरा (काबो वर्डे) एमिलकार कैबरल का रेग्रेसो गाते हुए, 2010

 

पुर्तगाली उपनिवेशवाद की ऐतिहासिक हार से एक साल पहले, 20 जनवरी 1973 को पीएआईजीसी के नेता एमिलकार कैबरल की हत्या कर दी गई थी। पीएआईजीसी को अपने नेता की मौत की सच्चाई के साथ संघर्ष करना पड़ा। 1946 में, कैबरल ने एक गीतात्मक कविता, ‘रेग्रेसो’ (‘लौटना’) लिखी थी, जिसमें उन्होंने उस आंदोलन की नैतिकता की ओर इशारा किया था, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन क़ुर्बान कर दिया। कैबरल की शब्दावली में ‘लौटना’ एक महत्वपूर्ण शब्द था, वाक्यांश ‘स्रोत की ओर लौटना’ उनके विचार के केंद्र में था। उनका मानना था कि राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष द्वारा अतीत को एक संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए न कि एक गंतव्य के रूप में। केप वर्डे की महान गायिका, सैसेरिया एवोरा, को ऊपर कैबरल की कविता गाते हुए सुनें, और नीचे, मुक्तिदाई शिक्षा की उम्मीदों का रास्ता खोलती, उनकी कविता को पढ़ें भी:

बूढ़ी माँ, आ सुनें

दरवाज़े पर गिरती बारिश की धुन।

ये एक दोस्ताना धुन है

जो मेरे दिल में धड़क रही है।

 

बारिश, हमारी दोस्त, बूढ़ी माँ

बारिश जो इस तरह नहीं आई…

एक लंबे समय से। मैंने सुना है कि सिदाजे वेल्या,

पूरा द्वीप एक बगीचा बन जाएगा

कुछ ही दिनों में…

 

मैंने सुना है कि देश हरे रंग से सजा है,

सबसे सुंदर रंग से, उम्मीद के रंग से।

कि अब, मिट्टी वास्तव में केप वर्डे की तरह दिखती है –

शांति ने अब तूफ़ान की जगह ले ली है…

 

आ बूढ़ी माँ, आ जा

अपनी ताक़त जुटा और दरवाज़े पर आ जा।

बारिश, हमारी दोस्त, मुक्ति भेज रही है

और मेरे दिल को महसूस हो रही है।

स्नेह-सहित,

विजय।