Skip to main content
newsletter

जब फ़्रांस का क़र्ज़ चुकाने में बर्बाद हो गया हैती: सत्रहवाँ न्यूज़लेटर (2025)

1804 से अब तक हैती को अपनी आज़ादी का भारी क़र्ज़ चुकाना पड़ा है। लेकिन याद रहे कि साम्राज्यवाद विरोधी पहली सफल क्रांति यहाँ ही हुई थी।

L’ennemi attaqué chacun de sa propre volonté se tient debout pour défendre sa patrie (जब दुश्मन हमला करे जब, सब मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी आज़ाद इच्छा के बल पर खड़े हो जाओ), ज़्याँ क्लौद सिवीर, 1970

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

अगस्त 1719 की एक तूफ़ानी रात में डुट्टी बोकमान (1767-1791) और सिसील फ़तिमन (1771-1883) ने फ़्रांस के क़ब्ज़े वाले हिस्पानियोला के उत्तरी सेंट डोमिंग के बोईस कैमान में एक वोडू रस्म (एक अफ्रीकी प्रवासी धर्म) की। बोकमान को सेनेगांबिया (अब सेनेगल और गांबिया) में पकड़ा गया था। फ़तिमन की माँ कांगो (जैसा कि एमी कसारे ने लिखा) से थीं और पिता कोर्सिका से। उन्होंने जो रस्म दो सौ से ज़्यादा अफ्रीकी ग़ुलामों के बीच की उसने पूरे फ़्रांसीसी बाग़ानों में बड़े जनविद्रोह को प्रेरित किया। क्रियोल में बोकमान में जो कहा वो आगे वाली कई पुश्तों को याद रहा और अंतत: इतिहास की किताबों में भी दर्ज हुआ (जैसे 1938 में आई सी.एल.आर. जेम्स की क्लासिक क़िताब द ब्लैक जैकोबिन्स  में):

ईश्वर ने सूरज बनाया जो हमें प्रकाश देता है, जिसकी वजह से लहरें उफनती हैं और जो तूफ़ानों पर राज करता है, कभी-कभी वो बादलों में छिपा रहता है, लेकिन फिर भी उसकी नज़र हम पर हमेशा रहती है। वह देख रहा है कि श्वेत लोग क्या कर रहे हैं। श्वेतों का ईश्वर उन्हें गुनाह करने के लिए प्रेरित करता है लेकिन हमारा ईश्वर हमें अच्छे कर्म करने को कहता है। वह हमें रास्ता दिखाता है और हमारी मदद करता है। श्वेतों के ईश्वर के प्रतीक फेंक दो जिसकी वजह से हम जाने कितनी बार रोए हैं, और आज़ादी की आवाज़ सुनो जो हम सबके दिलों में मौजूद है।

बोकमान और फ़तिमन ने जो रस्म की थी उसमें 1789 की फ़्रांसीसी क्रांति की भी कुछ झलक थी। लेकिन उनके भीतर अपनी परंपरा ज़्यादा प्रबल थी। यह परंपरा उन्हें विरासत में मिली थी और अफ्रीकी व इस्लामी आस्थाओं से निकली थी। ग़ुलाम अफ्रीकी उठ खड़े हुए। उन्होंने बाग़ान जला दिए और उन लोगों को मार डाला जो उन्हें अपना ग़ुलाम मानते थे। उनका ढंग बर्बरतापूर्ण था, लेकिन उन्होंने जो अमानवीय व्यवहार झेले थे उनके मुक़ाबले वह कुछ नहीं था। बाग़ान के मालिकों की मानसिकता को समझने के लिए एंटीगुआ के एक अँग्रेज़ मालिक द्वारा कैप्टन जॉन न्यूटन, जो ग़ुलामों का सौदा करते थे पर बाद में दास-प्रथा के ख़िलाफ़ हो गए, से कहे गए शब्द याद किए जा सकते हैं। कैप्टन न्यूटन ने ऐसे कई बयानों को 1787 में छपे अपने पर्चे Thoughts Upon the African Slave Trade (अफ़्रीका में ग़ुलामों के व्यापार पर विचार) में दर्ज किया था:

क्या हम उन्हें कम मेहनत वाला काम दें, कई सहूलियतें दें और उनसे ऐसा व्यवहार करें कि वे वृद्धावस्था तक पहुँच पाएँ? या उनकी शक्ति को पूरी तरह निचोड़ लें, कम-से-कम आराम दें, हड़तोड़ काम करवाएँ, भरसक इतेमाल करें ताकि वे उस उम्र तक पहुँच ही न पाएँ जिसमें वे अनुपयोगी हो जाएँ या काम न कर सकें; और फिर उनकी जगह लेने के लिए नए [ग़ुलाम] ख़रीदें?

The Handshake and Hopeful Suitors (हाथ मिलाना और आशावान दावेदार), पियर-लूई रिच (हैती), n. d.

उस रात की रस्म के बाद टूसेंट लौवरचर (1743-1803) के नेतृत्व में एक विद्रोह शुरू हुआ। लौवरचर को उनके गॉडफादर ने पढ़ना सिखाया था और 1791 तक उन्होंने एक बाग़ान में बैरे का काम किया (अपने काम की वजह से वे कई किताबें पढ़ पाए, जिनमें जूलीयस सीज़र की Commentaries on the Gallic Wars भी शामिल थी जिससे उन्हें सैन्य शास्त्र के बारे में पता चला)। लौवरचर और विद्रोह के अन्य नेताओं ने फ्रांस को हराने के मकसद से कुछ समय के लिए स्पेन से हाथ मिला लिया। लेकिन स्पेन ने बाद में खुद ही मदद हासिल करने के लिए ब्रिटेन का रुख किया। असल में यूरोपीय मुल्क गुलाम अफ्रीकियों के विद्रोह को असली खतरे के रूप में देख रहे थे और उससे निपटने के लिए अपने छोटे मोटे मतभेद भुलाने को तैयार थे। पेरिस में मैक्सिमिलियन रोबेस्पिएरे के नेतृत्व में जारी जैकोबिन्स विद्रोह के साथ यह ख़तरा और भी बढ़ता जा रहा था। फ़रवरी 1794 में रोबेस्पिएरे और जैकोबिन्स ने फ़्रांसीसी उपनिवेशों में दासप्रथा को ख़त्म करने के लिए एक राष्ट्रीय सम्मेलन के आदेश का समर्थन किया। इससे फ़्रांसीसी सेना और लौवरचर के नेतृत्व वाली शक्तियों में स्पेन और ब्रिटेन के ख़िलाफ़ एक समझौता हो गया। Aux armes, citoyens! (हथियार उठाओ, लोगों!) अब तक ग़ुलाम रहे अफ्रीकी यह क्रियोल भाषा में लौवरचर के पीछे चलते हुए गाते थे।

लेकिन रोबेस्पिएरे का जल्द तख़्तापलट कर दिया गया। 1799 में नेपोलियन बोनापार्ट फ़र्स्ट काउन्सिल के रूप में सत्ता में आया और फ़्रांस तथा अफ्रीकी क्रांतिकारियों के बीच के सभी समझौते तोड़ दिए, इसमें दासप्रथा के अंत का आदेश भी शामिल था। 1802 से 1803 तक फ़्रांस के विस्कोंट ऑफ़ रोशमबो ने सेंट-डोमिंग के उत्तरी क्षेत्रों में आतंक फैलाया ताकि फ़्रांस का उपनिवेश फिर से स्थापित किया जा सके। इसके लिए उसने 1,500 क्यूबाई मैस्टिफ़ कुत्तों का भी इस्तेमाल किया, जो अफ़्रीकियों को सूंघकर खोज निकालते थे। और इसके अलावा नौकाओं में सल्फ़र जलाया जाता ताकि विद्रोही क़ैदी दम घुटने से मर जाएँ। रोशमबो फ़्रांसीसी सैनिकों से कहता ‘मैं तुम्हारी बहादुरी नहीं देखना चाहता। मैं तुम्हारे ग़ुस्से का प्रचंड रूप देखना चाहता हूँ’। ले कैप (अब कैप-हेतिन) के पास पानी में जाने कितनी लाशें फेंकी गई थीं। लम्बे समय के लिए लोगों ने वहाँ की मछलियाँ खाना बंद कर दिया था। लौवरचर को फ़्रांसीसियों ने 1802 में पकड़ लिया, अगले साल स्विस सीमा के पास जुरा माउंटेनस में कारावास के दौरान उनकी मौत हो गयी। उनकी सेना का नेतृत्व  फिर जीन-जैक डेस्सलिनेस के हाथ में गया और उनकी लड़ाई जारी रही। 1804 में नए साल से पिछली रात कोडेस्सलिनेस की सेना ने फ़्रांस से आज़ादी की घोषणा कर दी। उन्होंने अपने आज़ाद देश का नया नाम हैती रखा (इसे तब Hayti लिखा गया लेकिन अब Haiti लिखा जाता है, और तैनो भाषा में इसका अर्थ है ‘पहाड़ों की भूमि’)।

हैती के लोगों ने तीसरी दुनिया की पहली सफल क्रांति को अंजाम दिया। इस लड़ाई के अंतिम महीनों में डेस्सलिनेस ने अपनी गॉडडॉटर कैथ्रिन फ़्लों से फ़्रांस के झंडे में से सफ़ेद हिस्सा निकालकर लाल और नीले हिस्सों को जोड़कर उस पर La liberté ou la mort (स्वतंत्रता या मृत्यु) लिखने को कहा था। जब देश ने आज़ादी हासिल कर ली तो ये शब्द झंडे से हटा दिए गए।

जेनेसिस, प्रॉस्पर पियर-लूई (हैती), 1985.

लेकिन आज़ादी क़ायम रखना इतना आसान नहीं होता।

दासप्रथा की नींव पर खड़े हाल ही में आज़ाद हुए संयुक्त राज्य (अमेरिका) को डर था कि हैती की क्रांति कहीं उसकी ज़मीन तक न पहुँच जाए। 1792 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने अपने विदेश मंत्री थोमस जेफ़र्सन को आदेश दिए कि विद्रोहों द्वारा बर्बाद किए गए बाग़ान मालिकों की मदद के लिए ढाई लाख डॉलर भेजे जाएँ। जुलाई 1802 तक थोमस जेफ़र्सन अमेरिका के राष्ट्रपति बन चुके थे, उन्होंने ब्रिटेन में अमेरिका के राजनयिक रूफ़स किंग को लिखा, ‘वेस्ट इंडीज़ के पास के टापुओं पर जो हो रहा है उससे अमेरिका के अलग-अलग हिस्सों में ग़ुलामों के ज़हन में काफ़ी कुछ चल रहा है। उनमें भी विद्रोह की भावना ने जगह बना ली है’। इसीलिए जेफ़र्सन और उनके मंत्रियों ने हैती की क्रांति को कुचलने का काम शुरू किया। 21 फ़रवरी 1806 को जेफ़र्सन ने ‘सेंट डमिंगो टापू [यानी हैती] के कुछ क्षेत्रों’ के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। 1824 में साउथ कैरलाइना के सेनेटर रॉबर्ट हैन ने साफ़ कहा था कि: ‘हैती को लेकर हमारी नीति सरल है। हम कभी भी उनकी स्वतंत्रता को स्वीकृति नहीं दे सकते। हमारे अपने संघ के एक बड़े भाग में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए इसके ज़िक़्र की भी हमें मनाही है’। हैती की आज़ादी अमेरिका में दासप्रथा के लिए ख़तरा थी।

1825 में जबर और बलप्रयोग पर टिकी कूटनीति का प्रदर्शन करते हुए फ़्रांस के राजा चार्ल्ज़ दशम ने हैती के समुद्र में लड़ाकू जहाज़ों की टुकड़ी भेजी और माँग की कि हाल ही में बना यह राष्ट्र फ़्रांस को उसका उपनिवेश और बंधुआ मज़दूर खो जाने के बदले 15 करोड़ फ़्रांक ‘मुआवज़े’ के तौर पर दे। यह राशि हैती के सालाना बजट का दस गुना थी और अमेरिका ने जितना धन लूईज़ीआना को ख़रीदने के लिए दिया था उसके बराबर थी। हैती ने फ़्रांसीसी बैंकों से क़र्ज़ा लेकर यह मुआवज़ा चुकाया और ख़ुद को क़र्ज़ के अनंत जाल में फँसा लिया। 1825 में लिया गया यह क़र्ज़ 1947 में जाकर पूरी तरह से हैती के सर से उतरा। देश की अस्सी प्रतिशत संपत्ति – यानी लगभग 21 अरब डॉलर – इसे चुकाने में लग चुकी थी और देश पूरी तरह संकट में आ चुका था (एक अनुमान के अनुसार हैती के लोगों को जितनी क्षतिपूर्ति देनी थी उन्होंने उसके दुगुने से ज़्यादा चुकाया था)। लेकिन इस घिनौनी हरकत के लिए न फ़्रांस ने कभी माफ़ी माँगी और न ही इस क़र्ज़ को वसूलने वाले सिटीबैंक ने।

Ville imaginaire (कल्पित शहर), परेफ़ेट दफ़्फ़ौ (हैती), 1994.

हैती ने जितनी बार अपने पैरों पर खड़ा होना चाहा, उसे धकेलकर गिरा दिया गया।

1915 में अमेरिका के क़रीब रहे राष्ट्रपति जीन विल्बरन गीओम सैम की हत्या के बाद जब हैती की नई सरकार ने अपनी संप्रभुता स्थापित करने की कोशिश की तो अमेरिकी सेनाओं ने हस्तक्षेप कर दिया और इस टापू राष्ट्र पर 1934 तक उन्नीस साल क़ब्ज़ा किए रखा। और इसके बाद डूवॉलीए का क्रूर निरंकुश शासन स्थापित करवा दिया, जिसने 1957 से 1986 के बीच अमेरिका के बदले यहाँ राज किया। दिसंबर 1990 में कृषक जनता का लोकप्रिय आंदोलन शुरू हुआ, जिसके परिणामस्वरूप जनता ने सत्तर प्रतिशत वोटों के साथ पादरी रह चुके जीन-बर्ट्रेंड एरिस्टाइड को राष्ट्रपति बना दिया। इससे पहले हैती में कभी किसी के पास इतना भारी जनादेश नहीं रहा था। ऐसा लगता था कि लौवरचर का दौर या 1844 के पिकेट विद्रोह की L’Armée souffrante (पीड़ितों की सेना) का समय लौट आया था। एरिस्टाइड ने कृषि पर निर्भर जनता के प्रति जो प्रतिबद्धता दिखाई और जिस प्रकार उनका नेतृत्व किया वह हैती की आज़ादी के दुश्मनों के लिए पहले घट चुकी इन क्रांतिकारी घटनाओं जैसी ही ख़तरनाक थी।

आठ महीने बाद 30 सितंबर 1991 को अमेरिका के समर्थन से सेना और पुलिस ने एरिस्टाइड की सरकार गिरा दी। बाद में दुनिया के अन्य देशों के दबाव के चलते एरिस्टाइड को 1994 से 1996 तक अपना कार्यकाल पूरा करने की अनुमति मिली, लेकिन बड़े कड़े प्रतिबंधों के साथ।

2000 में एरिस्टाइड नब्बे प्रतिशत वोट प्राप्त कर फिर राष्ट्रपति बने। अपने पहले कार्यकाल में सैन्य तख़्तापलट और अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से वे अब पहले से भी ज़्यादा क्रांतिकारी हो चुके थे। उन्होंने हैती द्वारा क्षतिपूर्ति के मुआवज़े के तौर पर चुकाई धनराशि के लिए फ़्रांस को अब 22 अरब डॉलर का मुआवज़ा चुकाने को कहा। फ़्रांस का कहना था कि यह मसला उन्नीसवीं सदी में ही संधियों के ज़रिए हल हो चुका था और अब किसी तरह का कोई मुआवज़ा नहीं चुकाया जाएगा। 2004 में फ़्रांस और अमेरिका के समर्थन से एरिस्टाइड का तख़्तापलट कर दिया गया और इसके बदले एक सैन्य शासन बैठा दिया गया जिसने मुआवज़े की हैती की माँग को वापस ले लिया। उसके बाद से चक्रवातों; भूकंपों; तख़्तापलट के बाद संयुक्त राष्ट्र के शांतिदूतों के दख़ल व उसकी वजह से फैले हैजे और यौन हिंसा; बाहरी ऋण के बोझ; आर्थिक संकुचन; न्यूनतम वेतन क़ानून का विरोध; एक अनिर्वाचित राष्ट्रपति की हत्या और बढ़ती गैंग हिंसा जैसी समस्याओं के नीचे क्षतिपूर्ति का पूरा मामला कहीं दब गया है।

इन सब मसलों का कारण एक ही है, कि साम्राज्यवादियों ने हैती को कभी चैन की साँस नहीं लेने दी। वे कभी इस बात के लिए हैती की जनता को माफ़ नहीं कर सके कि इन्होंने दुनिया में सबसे पहले साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ सफल क्रांति की।

Silhouettes (छाया-आकृतियाँ), फ़्रंकेटियेन (हैती)

20 फ़रवरी 2025 को हैती के एक कवि और चित्रकार 88 वर्षीय फ़्रंकेटियेन की पोर्ट-औ-प्रिन्स के डेल्मा शहर में मौत हो गई। जीवनभर उन्होंने इस बात पर बहुत विचार किया था कि 1936 में उन्हें जिस माँ ने जन्म दिया था, एक अमेरिकी पुरुष ने उनका बलात्कार किया था। फ़्रंकेटियेन हमेशा अपने देश में ही रहे भले ही वहाँ जितने भी उतार-चढ़ाव आए हों, वे उन लोगों की आवाज़ बने जो एक बेहतर भविष्य के लिए तड़प रहे थे। डूवॉलीए के बर्बर शासन के अंतिम दौर में लिखी अपनी बेहतरीन क़िताब Fleurs d’insomnie (निद्रालोप के फूल, 1986) में फ़्रंकेटियेन ने लिखा:

सपने देखना ही बेशक आज़ादी की ओर पहला कदम है।
सपने देखना मतलब आज़ाद होना।

सस्नेह,
विजय