अगर दुनिया को समझ लूँ, तो इसे बदलने के लिए आगे आ सकता हूँ: आठवाँ न्यूज़लेटर (2024)

मडुअडु (विज्ञान, या ‘करके सीखें‘) कॉर्नर में अपनी बनाई तितली प्रदर्शित करते छात्र। सौजन्य: ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई गई तस्वीरें और कोलाज
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
1945 में, नवगठित संयुक्त राष्ट्र ने संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की स्थापना के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया। प्रतिनिधियों की मुख्य चिंता साक्षरता को लेकर थी, विशेषकर तीसरी दुनिया से आए लोगों की। कोलंबिया के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रेक्टर डॉ. जैमे जरामिलो अरंगो ने कहा, ‘निरक्षरता के ख़िलाफ़ दुनिया को धर्मयुद्ध‘ छेड़ने की ज़रूरत है। उनके तथा कई अन्य लोगों के लिए, निरक्षरता ‘मानवीय गरिमा के लिए सबसे बड़ी विभीषिकाओं में से एक‘ थी। यूनाइटेड किंगडम में मिस्र के राजदूत और एक चैंपियन स्क्वैश खिलाड़ी, अब्देलफत्ताह उमर ने कहा कि निरक्षरता पिछड़ेपन की व्यापक समस्या का हिस्सा थी, जैसा कि ‘तकनीशियनों की कमी और शैक्षिक सामग्री की कमी‘ से पता चलता है। इन नेताओं को यूएसएसआर से प्रेरणा मिली, जिसके लिकबेज़ (‘निरक्षरता का उन्मूलन‘) कार्यक्रम ने 1919 और 1937 के बीच वस्तुतः निरक्षरता को समाप्त कर दिया। यदि यूएसएसआर ऐसा कर सकता है, तो बड़ी आबादी वाले व्यापक कृषि समाज भी ऐसा कर सकते हैं।
दिसंबर 2023 में, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने एक आश्चर्यजनक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दिखाया गया कि 2018 के बाद से दुनिया भर में छात्रों के बीच पढ़ने और गणित में साक्षरता में गिरावट आई है। इस रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि इस स्थिति के लिए ‘कोविड-19 महामारी को केवल आंशिक रूप से ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है‘: महामारी शुरू होने से पहले पढ़ाई और विज्ञान दोनों में गिरावट आ रही थी, हालाँकि महामारी से इस गिरावट में तेज़ी आई है। ओईसीडी के अनुसार, इसका कारण यह है कि शिक्षकों तथा अभिभावकों द्वारा अपने छात्रों और बच्चों की सहायता के लिए दिए जाने वाले समय और ऊर्जा में भी कमी आई है। ओईसीडी ने इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि पिछले पचास वर्षों में सहयोग में यह गिरावट विश्व के अधिकांश समाजों पर थोपी गई नवउदारवादी व्यवस्थाओं का परिणाम है। शिक्षा बजट में कटौती कर दी गई है, जिसका मतलब है कि स्कूलों के पास अपना काम शुरू करने के लिए पर्याप्त संसाधन या कर्मचारी नहीं हैं, संघर्षरत छात्रों को अतिरिक्त सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त शिक्षक तो दूर की बात है। स्कूल फ़ंडिंग में कटौती करने के उद्देश्य से सरकारों ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि कॉर्पोरेट शिक्षा प्रदाता पाठ्यपुस्तकें और शिक्षण मॉड्यूल (ऑनलाइन सिस्टम सहित) तैयार करें, जिनसे शिक्षकों को अक्षम बनाया जाता है और उन्हें हतोत्साहित किया जाता है। चूँकि माता–पिता ठेके पर काम करते हैं और ऐसे व्यवसायों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसलिए उनके पास अपने बच्चों की शिक्षा के लिए न तो समय है और न ही ऊर्जा।

सिद्दापुरा और आसपास के गाँवों के छात्र सिद्दापुरा में 2023 जॉय ऑफ़ लर्निंग फ़ेस्टिवल के उद्घाटन के दौरान रैली में भाग लेते हुए।
दुनिया भर की सरकारें सार्वजनिक शिक्षा पर पर्याप्त मात्रा में राशि क्यों ख़र्च नहीं करना चाहती हैं? उत्तरी गोलार्ध के देशों में, जहाँ महत्त्वपूर्ण सामाजिक संपत्ति है, वहाँ के नेता सबसे अधिक आय अर्जित करने वालों तथा धन रखने वालों पर कर लगाने से कतराते हैं, इसके बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और बुज़ुर्गों की देखभाल जैसी सामाजिक सेवाओं के बजाय सैन्य प्रतिष्ठान को वित्तपोषित करने के लिए शेष क़ीमती संसाधनों का उपयोग करते हैं। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन प्रणाली के अंतर्गत आने वाले उत्तरी गोलार्ध के देश हथियारों पर खरबों डॉलर ख़र्च करते हैं (कुल वैश्विक सैन्य ख़र्च का तीन चौथाई हिस्सा) लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पर बहुत कम राशि ख़र्च करते हैं। यह ओईसीडी की रिपोर्ट में स्पष्ट है, जिसमें बेल्जियम, कनाडा और आइसलैंड जैसे देशों में गणितीय ज्ञान में भारी गिरावट देखी गई है – इनमें से कोई भी ग़रीब देश नहीं है। ओईसीडी रिपोर्ट बताती है कि इसका कारण केवल फ़ंडिंग नहीं है, बल्कि ‘शिक्षण की गुणवत्ता‘ भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। हालाँकि, रिपोर्ट यह नहीं बताती है कि यह ‘गुणवत्ता‘ नवउदारवादी नीति पर आधारित कटौती का परिणाम है जो शिक्षकों को छात्रों को पढ़ाने और उनकी मदद करने के लिए आवश्यक समय, पाठ्यक्रम संबंधी सामग्री पर अपनी राय रखने और अतिरिक्त प्रशिक्षण (विश्राम सहित) के लिए आवश्यक संसाधनों से वंचित करती है।
दक्षिणी गोलार्ध में इस गिरावट के लिए फ़ंडिंग की कमी को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। पिछले कुछ वर्षों के अध्ययन, और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के कर्मचारियों के आकलन तथा हमारी संस्था द्वारा इसके विश्लेषण से पता चलता है कि संगठन ने ग़रीब देशों पर सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तपोषण में कटौती करने के लिए दबाव डाला है। चूँकि अधिकांश शिक्षकों का वेतन सार्वजनिक क्षेत्र के वेतन बिल का हिस्सा होता है, इसलिए ऐसी किसी भी कटौती के परिणामस्वरूप शिक्षकों का वेतन कम हो जाता है और शिक्षक–छात्र अनुपात बढ़ जाता है। घाना से लेकर वियतनाम तक पंद्रह देशों में एक्शनएड संस्था द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि आईएमएफ़ ने इन देशों को अपने सार्वजनिक क्षेत्र के वेतन बिलों में कई बजट चक्रों (छह साल तक) के लिए 10 अरब डॉलर की कटौती करने के लिए मजबूर किया – जो तीस लाख प्राथमिक विद्यालय शिक्षक को रोज़गार देने की लागत के बराबर है। मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा तैयार एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि आईएमएफ़ ने 189 देशों में बजट में कटौती लागू की है जो 2025 तक लागू रहेगी, ऐसा अनुमान है कि इसके बाद दुनिया का तीन–चौथाई हिस्सा नवउदारवादी कटौतियों के अधीन आ जाएगा। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट में कहा गया है कि पच्चीस ग़रीब देशों ने 2022 में अपने राजस्व का 20 प्रतिशत बाहरी ऋण चुकाने में ख़र्च किया – जो सभी प्रकार के सामाजिक कार्यक्रमों (शिक्षा सहित) पर ख़र्च की गई राशि के दोगुने से भी अधिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन बच्चों को अपने शिक्षकों की आवश्यकता है, उनकी तुलना में धनी बांडधारकों को संतुष्ट करना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
यह भयावह स्थिति सतत विकास लक्ष्य संख्या 4 (निरक्षरता समाप्त करना) को धता बताते हुए उसे असफल बनाती है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, दुनिया को 2030 तक 6 करोड़ 90 लाख अधिक शिक्षकों को नियुक्त करने की आवश्यकता होगी। यह अधिकांश लक्ष्य देशों के एजेंडे में नहीं है।

छात्रों का एक समूह उरुटिलियोना (‘आओ गाँव के बारे में जानें‘) कॉर्नर की गतिविधि के हिस्से के रूप में एक गाँव का दौरा करने के बाद बनाया गया नक्शा प्रस्तुत करते हुए।
1946 में, ब्रिटेन की शिक्षा मंत्री एलेन विल्किंसन ने पहले यूनेस्को सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। विल्किंसन, जिन्हें ‘रेड एलेन‘ के नाम से जाना जाता था (वह 1920 में ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं), ने 1930 के दशक में बेरोज़गारों के संघर्ष का नेतृत्व किया, उन्होंने स्पेन के गणतंत्रवादियों का बढ़–चढ़कर समर्थन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने कहा था कि हमने ‘इस राक्षसी दुष्टता [‘संकीर्णतम राष्ट्रवाद‘ तथा ‘युद्ध तंत्र की अधीनता‘] के ख़िलाफ़ बौद्धिक कार्यकर्ताओं, ईमानदार पुरुषों और महिलाओं द्वारा की गई महान लड़ाई देखी‘। रेड एलेन ने बताया कि फ़ासीवादियों को पता था कि तर्क और साक्षरता उनके दुश्मन थे: ‘हर देश में जहाँ अधिनायकवादियों ने क़ब्ज़ा कर लिया, वह बुद्धिजीवी ही थे जिन्हें फ़ायरिंग दस्ते का सामना करने के लिए सबसे पहले चुना गया था – जिनमें शिक्षक, पादरी और प्रोफ़ेसर मुख्य थे। जो लोग दुनिया पर शासन करना चाहते थे वे जानते थे कि सबसे पहले उन्हें उन लोगों को मारना होगा जिन्होंने विचार को स्वतंत्र रखने की कोशिश की थी’। अब, इन शिक्षकों को फ़ायरिंग दस्ते के सामने नहीं रखा जाता है; उन्हें बस नौकरी से निकाल दिया जाता है।
लेकिन इन बौद्धिक कार्यकर्ताओं ने न तब समर्पण किया था और न अब कर रहे हैं। हमारा नवीनतम डोसियर, How the People’s Science Movement Is Bringing Joy and Equality to Education in Karnataka, India, में उन बौद्धिक कार्यकर्ताओं के कार्यों के बारे में बताया गया है, जो कर्नाटक में बच्चों के भीतर वैज्ञानिक और तर्कसंगत विचार पैदा करने के लिए अभिनव तरीके ढूँढ़ रहे हैं, ख़ासकर अपने आंदोलन ‘जॉय ऑफ़ लर्निंग फ़ेस्टिवल’, ‘नेबरहुड स्कूल’ और ‘गेस्ट–होस्ट‘ कार्यक्रमों के माध्यम से। यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत सरकार ने पाठ्यक्रम और स्कूली पाठ्यपुस्तकों से विकास (evolution), आवर्त सारणी और ऊर्जा के स्रोतों में कटौती करने का निर्णय लिया है – लगभग 5,000 वैज्ञानिकों और शिक्षकों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद, जिन्होंने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए था जिसमें ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी द्वारा सरकार से अपने फ़ैसले को पलटने का आह्वान किया गया था।
याचिका दायर करना और ‘जॉय ऑफ़ लर्निंग फ़ेस्टिवल’ समान रूप से ज्ञान को लोकतांत्रिक बनाने और भेदभावपूर्ण सामाजिक पदानुक्रम को ख़त्म करने के लिए होने वाले एक व्यापक आंदोलन का हिस्सा हैं। भारत ज्ञान विज्ञान समिति (बीजीवीएस) कर्नाटक में वैज्ञानिक शिक्षा और तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देने के लिए ‘जॉय ऑफ़ लर्निंग’ फ़ेस्टिवल आयोजित करती है, जिसकी आबादी क़रीब साढ़े छह करोड़ है – लगभग फ़्रांस के बराबर। हमारा डोजियर दिखाता है कि कैसे बीजीवीएस ने भारत में लाखों छोटे बच्चों के लिए विज्ञान शिक्षा को आनंददायक बना दिया है।

कागधाकट्टारी (शिल्प, या ‘कागज और कैंची‘) कॉर्नर में गतिविधियों में भाग लेते छात्र।
कल्पना कीजिए कि आप एक छोटा बच्चा हैं, जो कभी भी विज्ञान के नियमों से अवगत नहीं हुआ है। आप ख़ुद को कर्नाटक के एक ग्रामीण इलाक़े में बीजीवीएस उत्सव में पाते हैं, जहाँ एक स्टॉल पर साइकिल के कल पुर्ज़े बिखरे पड़े हैं। स्टॉल पर शिक्षक कहते हैं कि यदि आप साइकिल को असेंबल कर सकते हैं, तो आप इसे अपने साथ ले जा सकते हैं। आप साइकिल की चेन, गियर, फ़्रेम पर अपनी उंगलियाँ फिराते हैं। आप कल्पना करें कि एक पूरी तरह से तैयार साइकिल कैसी दिखती है और टुकड़ों को एक साथ रखने की कोशिश करें, साथ ही यह समझें कि पैडल को दबाने से ऊर्जा कैसे उत्पन्न होती है, जो गियर के माध्यम से पहियों की गति को बढ़ाती है। आप गति और घूर्णन के नियमों के बारे में सीखना शुरू करते हैं। आप मशीनों की सरलता और उनकी अपार उपयोगिता के बारे में सीखते हैं। और जब आप साइकिल के सभी टुकड़ों की पहेली को सुलझाने के लिए जूझते हैं तो आप अपने दोस्तों के साथ हँसते हैं।
ऐसी गतिविधि न केवल कर्नाटक के लाखों बच्चों के जीवन में ख़ुशी लाती है; यह उनकी जिज्ञासा को भी बढ़ाती है और उनकी बुद्धिमत्ता को चुनौती देती है। यह बीजीवीएस और इसके जॉय ऑफ़ लर्निंग फ़ेस्टिवल्स के आकर्षण का केंद्र है, जो विज्ञान आंदोलन द्वारा भर्ती और प्रशिक्षित सरकारी स्कूली शिक्षकों द्वारा चलाया जाता है। इस प्रकार का उत्सव न केवल सामूहिक जीवन को बचाता है बल्कि स्थानीय शिक्षकों के कार्य और नेतृत्व को विकसित होने का अवसर देता है साथ ही वैज्ञानिक सोच के महत्त्व को स्थापित करता है।

क्यूबावासी निरक्षरता के अंत का जश्न मनाते हैं (1961)
1961 में, क्यूबा के गायक एडुआर्डो सबोरिट ने क्यूबा के साक्षरता अभियान की सराहना में सुंदर गीत डेस्पर्टर (‘द अवेकनिंग‘) लिखा था। वह गाते हैं, ‘ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो मैं अब बता सकता हूँ, क्योंकि आख़िरकार मैंने लिखना सीख लिया है। अब मैं कह सकता हूँ कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ‘। अब, मैं दुनिया को समझ सकता हूँ। अब, मैं ख़ुद को कमज़ोर महसूस नहीं करता। अब, मैं हर कदम आत्मविश्वास से रख सकता हूँ और दुनिया को बदलने के लिए आगे बढ़ सकता हूँ।
स्नेह–सहित,
विजय