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अफ्रीकी लेखिका ऐंड्री ब्लौइन हमारे जैसी क्रांतिकारी हैं: चौदहवाँ न्यूज़लेटर (2025)

अफ्रीका में लेखन, प्रकाशन एवं राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी की समृद्ध परंपरा है। इस मशाल को आगे बढ़ाने की वर्तमान कोशिशों के बारे में जानें।

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

1962 में फ्लोरेंस न्वानज़ुरुआहू नकीरू न्वापा (1931-1993), जो फ्लोरा न्वापा के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं, ने नाइजीरियाई लेखक चिनुआ अचेबे (1930-2013) को एक पुस्तक की  पांडुलिपि भेजी। उससे चार साल पहले, अचेबे ने हीनमैन प्रकाशन संस्थान से एक ऐतिहासिक उपन्यास, थिंग्स फ़ॉल अपार्ट, प्रकाशित किया था। यह उपन्यास हीनमैन के लंदन कार्यालय में तब पहुँचा था जब उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन के परिणामस्वरूप अफ्रीकी महाद्वीप का स्वरूप बदलने लगा था। घाना 1957 में स्वतंत्र हो गया था, और इसके तीन साल बाद नाइजीरिया। इन दोनों देशों में कुछ आबादी अंग्रेज़ी बोलने वाली थी। इसीलिए इन मुल्कों ने अपनी शिक्षा प्रणाली में हीनमैन की विज्ञान तथा अंग्रेजी की पुस्तकों का उपयोग शुरू किया था। अचेबे की किताब के बाद हीनेमैन के संचालक एलन हिल ने नेल्सन पब्लिशर्स से जुड़े रहे इवांडर ‘वैन’ मिल्ने को हीनमैन में अपने साथ काम करने के लिए बुला लिया। मिल्ने ने नेल्सन पब्लिशर्स से 1957 में क्वामे नक्रूमा की आत्मकथा प्रकाशित की थी। हिल और मिल्ने दोनों ही वामपंथी थे। यही कारण है कि हीनेमैन द्वारा प्रकाशित अफ़्रीकी राइटर्स सीरीज़ (AWS) में नक्रूमा, केनेथ कौंडा, तथा अफ्रीकी महाद्वीप के अन्य राष्ट्रीय मुक्ति नेताओं की किताबें प्रकाशित की गईं। जब फ्लोरा न्वापा ने अपनी किताब अचेबे को भेजी, उस समय वे AWS के सलाहकार के रूप में काम करने लगे थे। उन्होंने फ्लोरा न्वापा को कुछ पैसे भेजे और उनसे अपनी पांडुलिपि लंदन भेजने को कहा।

हीनेमैन ने 1966 में न्वापा का उपन्यास, इफ़ुरु, प्रकाशित किया। यह अफ़्रीकी महिलाओं द्वारा अंग्रेज़ी में लिखे गए उपन्यासों की शुरुआत थी। न्वापा का उपन्यास AWS सीरीज़ के तहत प्रकाशित हुई छब्बीसवीं किताब थी। न्वापा का दूसरा उपन्यास, इडु (1970), AWS सीरीज़ की छप्पनवीं किताब थी। अफ़्रीकी उपन्यासों की इस ऐतिहासिक सीरीज़ में जिन लेखिकाओं ने लिखा, उन्होंने दुनिया को अपनी प्रतिभा से चौंका दिया था। इनमें से कुछ लेखिकाओं व उनके उपन्यासों के बारे में आपको ज़रूर जानना चाहिए:

AWS सं 100: मारू (1972), बेसी हेड (दक्षिण अफ़्रीका)

AWS सं 131: द ग्रास इज़ सिंगिंग (1973), डोरिस लेसिंग (ज़िम्बाब्वे)

AWS सं 149: ए क्वेश्चन ऑफ़ पॉवर (1974), बेसी हेड (दक्षिण अफ़्रीका)

AWS सं 159: थ्री सॉलिड स्टोन्स (1975), मार्था मवुंगी (तंजानिया)

AWS सं 177: सम मंडे फॉर श्योर (1976), नादिन गोर्डिमर (दक्षिण अफ़्रीका)

AWS सं. 182: द कलेक्टर ऑफ ट्रेजर्स (1977), बेसी हेड (दक्षिण अफ्रीका)

AWS सं. 203: रिपल्स इन द पूल (1978), रेबेका नजाऊ (केन्या)

AWS सं. 227: द जॉयज ऑफ मदरहुड (1979), बुची एमेचेटा (नाइजीरिया)

AWS सं. 220: सेरोवे: विलेज ऑफ द रेन विंड (1981), बेसी हेड (दक्षिण अफ्रीका)

AWS सं. 248: सो लॉन्ग ए लेटर (1989), मरियामा बा (सेनेगल)

फ्रांस और पुर्तगाल के अधीन देशों में भी इसी तरह की पहल शुरू हो चुकी थी। सेनेगल की अमिनाटा सो फॉल ने डकार स्थित नोवेल्स एडिशन्स अफ़्रीकीन्स (प्रकाशन घर) से साल 1976 के आस-पास फ्रेंच भाषा में अपना उपन्यास, ले रेवेनेंट, प्रकाशित कर अफ्रीकी महिलाओं के लिए फ़्रेंच में लिखने की जगह खोली। वहीं मोज़ाम्बिक की पॉलिना चिज़ियाने और गिनी-बिसाऊ में लेखिका फिलोमेना एम्बालो ने पुर्तगाली भाषा में लिखना शुरू किया। चिज़ियाने की किताब, बलाडा डी अमोर एओ वेंटो, मापुटो स्थित एसोसिएकाओ डॉस एस्क्रिटोरेस मोकाम्बिकनोस (प्रकाशन घर) से साल 1990 में प्रकाशित हुई। और लेखिका फिलोमेना का उपन्यास, टियारा, लिस्बोआ स्थित इंस्टीट्यूटो कैमोस से 1999 में प्रकाशित हुआ। ये सभी पुस्तकें स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित हैं।

इसके साथ-साथ महिलाओं ने पत्रकारिता का बीड़ा भी उठाया। जैसे, माबेल डोव डैनक्वा ने 1951 में ‘अकरा इवनिंग न्यूज’ पत्रिका शुरू की। इफुआ सदरलैंड ने साहित्यिक पत्रिका ‘ओकीमी’ शुरू की तथा 1957 में घाना सोसाइटी ऑफ राइटर्स की स्थापना की। सदरलैंड ने 1961 में घाना एक्सपेरीमेंटल प्लेयर्स एवं घाना ड्रामा स्टूडियो भी शुरू किया। दक्षिण अफ्रीका की  नोनी जबावु ने साल 1960 में लंदन स्थित प्रकाशक जॉन मुर्रे के साथ अपना संस्मरण,, ड्रॉन इन कलर: अफ्रीकन कॉन्ट्रास्ट, प्रकाशित किया। मिरियम तलाली ने 1975 में रैवन प्रेस से अपना उपन्यास, बिटवीन टू वर्ल्ड्स, प्रकाशित किया। केन्या की  ग्रेस ओगोट का उपन्यास, द प्रॉमिस्ड लैंड (1966), ईस्ट अफ्रीकन पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित हुआ।नाइजीरिया की ज़ुलु सोफोला ने अपना नाटक, द डियर एंड द हंटर्स पर्ल (1969), तैयार किया। मिस्र की नवल एल सादावी, मोरक्को की खनता बनुना तथा अल्जीरिया की असिया जेबर ने अरबी में लिखने वाली कई अन्य महिलाओं के लिए ज़मीन तैयार की। अफ्रीकी महाद्वीप पर महिलाओं के लेखन की एक समृद्ध परंपरा है।

शीर्षक रहित, एंटोनेट लुबाकी (डीआरसी), 1929 के आसपास.

यही कारण है कि ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च से संबद्ध इंकानी बुक्स ने एक अफ्रीकी महिला द्वारा लिखित कथेतर पुस्तक पांडुलिपि को वार्षिक पुरस्कार देने का फैसला किया है। इसके बारे में इंकानी बुक्स में हमारी संपादक इफेमिया चेला ने इस साल की शुरुआत में ट्राईकॉन्टिनेंटल पैन-अफ्रीका न्यूज़लेटर में लिखा था कि ‘यह पुरस्कार केवल प्रशंसा के लिए नहीं; बल्कि महिलाओं की जगह को फिर से क्लेम करने की कोशिश है, यह एक घोषणा है कि अफ्रीकी क्रांतिकारी महिलाओं की कहानियों को अब दरकिनार नहीं किया जाएगा।’

इस पुरस्कार का नाम अफ्रीका की महान क्रांतिकारी एंड्री ब्लौइन (1921-1986) के नाम पर रखा गया है। ब्लौइन पैट्रिस लुमुम्बा की सहयोगी थीं और जून 1960 में उनके द्वारा दिए गए स्वतंत्रता भाषण की सह-लेखिका भी थीं। उन्होंने अपने दो साल के बेटे रेने की मलेरिया से मृत्यु हो जाने के बाद क्रांति का रास्ता चुना, क्योंकि औपनिवेशिक अस्पताल ने उनके बेटे को जीवन रक्षक कुनीन देने से मना कर दिया था, जो कि सिर्फ़ यूरोपीय लोगों के लिए ही उपलब्ध थी। अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री, अफ्रीका (1983)’ में उन्होंने उपनिवेशवाद व उसकी वीभत्सता के बारे में लिखा कि ‘आखिरकार मुझे समझ में आया कि मेरा भाग्य ख़राब नहीं था, इस घटना का असल कारण था एक दुष्ट व्यवस्था, जिसका प्रभाव अफ्रीकी जीवन के हर पहलू पर पड़ता है।‘

ब्लौइन ने एक मुखर पत्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्हें एंटोनी गिज़ेंगा (जो बाद में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के प्रधानमंत्री बने) ने अफ़्रीकी एकजुटता हेतु महिला आंदोलन स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया। ब्लौइन ने पाया कि कांगो, जो कि ‘खनिजों का असाधारण भंडार  है’, को बेल्जियम अपनी निजी तिजोरी मानता था। लुमुम्बा के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़कर उन्हें बेहतरीन लोगों से मिलने का मौक़ा मिला, जिन्होंने ब्लौइन में संघर्ष के प्रति गहरा लगाव जगाया। उपनिवेशवाद की बेरंग वास्तविकताएँ उन्हें राष्ट्रीय मुक्ति की चमक के सामने महत्वहीन लगने लगीं।

L’Arbre (पेड़), चेरी सांबा (डीआरसी), 1987.

1983 में ब्लौइन ने अपनी आत्मकथा प्रकाशित की, लेकिन अफ़सोस कि उसे बहुत ज़्यादा नहीं पढ़ा जा सका। वह पैन-अफ्रीकनिज्म और तीसरी दुनिया के लिए मुश्किल दौर था: राष्ट्रीय मुक्ति के सपने काफी हद तक तख्तापलट, ऋण संकट और राष्ट्रीय स्तर पर पूंजीपतियों के उदय से कुचल दिए गए थे। 1961 में लुमुम्बा और 1966 में नक्रूमा के खिलाफ तख्तापलट हुए। लगभग सभी अफ्रीकी देश अपने बढ़ते ऋण को चुकाने का संघर्ष कर रहे थे। और पूंजीपति अपने देशों की अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने की बजाए अंतरराष्ट्रीय खनन कंपनियों के साथ सहयोग करके ज़्यादा खुश थे। इस दौर में अपर वोल्टा ही एक उम्मीद की किरण रहा, जहां थॉमस संकारा ने 1983 में देश की कमान संभाली। संकारा ने अपने देश का नाम बदलकर बुर्किना फासो (यानी ‘ईमानदार लोगों की भूमि’) किया। हम जानते हैं कि संकारा द्वारा आगे बढ़ाए गए विकास एजेंडा से लुमुम्बा ज़रूर खुश होते पर हम यह नहीं जानते कि ब्लौइन ने साहेल क्षेत्र से आई इस जीत की खबर पर क्या प्रतिक्रिया दी थी। ब्लौइन की आत्मकथा उसी साल प्रकाशित हुई थी जिस साल संकारा प्रधान मंत्री बने। ब्लौइन की आत्मकथा को बुर्किना फासो के संघर्ष से जोड़ा जाता तो शायद ब्लौइन से संकारा तक चली संघर्ष की ऐतिहासिक कड़ी में जनता की रुचि पुन: जागृत हो सकती थी। पर यह दुख की बात है कि वह सूत्र मज़बूती से स्थापित नहीं किया जा सका।

हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में  ब्लौइन को याद करने के कई प्रयास किए गए हैं:

  1. 2019 में, किंशासा (कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य) में युवाओं ने मिलकर सेंटर कल्चरल एंड्री ब्लौइन शुरू किया। यह कल्चरल सेंटर कोई कार्यक्रम आयोजित करने और कांगो के युवाओं को पैन-अफ्रीकनवाद के इतिहास व संभावनाओं के बारे में शिक्षित करने के केंद्र के रूप में काम कर रहा है।
  2. 2023 में, ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च ने सेंटर कल्चरल एंड्री ब्लौइन, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन द कांगो-किंशासा (CERECK) और लिकाम्बो या माबेले (भूमि संप्रभुता आंदोलन) के साथ मिलकर डोजियर नं 77, The Congolese Fight for Their Own Wealth (संसाधन संप्रभुता के लिए कोंगो की जनता का संघर्ष) तैयार किया।
  3. 2024 में, पुरस्कृत निर्देशक जोहान ग्रिमोनप्रेज़ ने ब्लौइन की कहानी पर ‘साउंडट्रैक टू ए कूप डी’एटैट’ फ़िल्म बनाई जिसे ऑस्कर में नामांकित किया गया।
  4. 2025 में, वर्सो बुक्स ने ब्लौइन की बेटी ईव द्वारा लिखे एक भाग को शामिल कर ब्लौइन की पुस्तक ‘माई कंट्री, अफ्रीका’ को पुनः प्रकाशित किया।
  5. आने वाले साल में, इंकानी बुक्स से ब्लौइन के कॉमरेड पियरे मुलेले के नेतृत्व में चले विद्रोह पर लुडो मार्टेंस द्वारा लिखी गई एक कहानी प्रकाशित होगी।

हमें उम्मीद है कि यह वार्षिक पुरस्कार अफ्रीकी महिलाओं के कथेतर लेखन को और आगे बढ़ाएगा तथा इसके ज़रिए अफ्रीकी महाद्वीप में चले मुक्ति संघर्षों में अपना जीवन देने वाली ब्लौइन, जोसी म्पामा, रूथ फर्स्ट सरीखी महिलाओं में रुचि बढ़ेगी।

किंशासा (शहर) दोपहर में मोके, (कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य), 1980.

इनमें से कई महिलाओं ने ब्लौइन की तरह संस्थान भी बनाए थे। उदाहरण के लिए, न्वापा उपन्यासकार होने के साथ एक प्रकाशक भी थीं, जिन्होंने 1977 में ताना प्रेस की स्थापना की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफ़्रीका से जुड़े विषयों पर लिखी गई किताबें अफ्रीकी महाद्वीप के सभी पाठकों तक पहुँचें। राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों ने भी प्रकाशन घर स्थापित किए, जिनकी मदद से विभिन्न देशों में साक्षरता अभियान चलाए गए। इसका एक उदाहरण हमने गिनी-बिसाऊ में राजनीतिक शिक्षा के प्रयासों पर केंद्रित एक अध्ययन में दिखाया है। अफ़्रीका में प्रकाशन का एक समृद्ध इतिहास है, जिसका गहन अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है। इस इतिहास में एलिउने डियोप (प्रेजेंस अफ़्रीकैन, 1947); डी.बी.ओनी (ओनिबोनोजे प्रेस,1958); एंजेलबर्ट म्वेंग (एडिशन सीएलई, 1963); ईस्ट अफ़्रीकन पब्लिशिंग हाउस (1965) के संस्थापक हेनरी चाकावा, तबन लो लियांग व न्गुगी वा थिओन्गो; मार्गरेट बुस्बी (एलिसन एंड बुस्बी, 1967); स्कोटाविले पब्लिशर्स (1982) के संस्थापक मोथोबिस मुट्लोत्से व मिरियम तलाली;बाओबाब बुक्स (1987) के संस्थापक आइरीन स्टॉन्टन व ह्यूग लेविन, तथा मकुकी ना न्योटा (1981) के संस्थापक वाल्टर बोगोया जैसे प्रकाशक शामिल हैं। ये सभी प्रकाशक इंकानी बुक्स के लिए अहम प्रेरणास्रोत हैं।

कृपया एंड्री ब्लौइन पुरस्कार के बारे में लोगों को बताएं, आवेदन की अंतिम तिथि 30 अप्रैल है।

सस्नेह,

विजय