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एकतरफ़ा प्रतिबंध और महिलाओं के ख़िलाफ़ जारी जंग: बारहवाँ न्यूज़लेटर (2025)

आर्थिक युद्ध से सबसे अधिक प्रभावित होने के बावजूद महिलाओं ने हौसला नहीं खोया और सामाजिक-आर्थिक कार्यों की गति मंद नहीं पड़ने दी।

महिलाओं की एकजुटता का साकार रूप ही हमारी सुरक्षा नीति है, एलेहेंद्रो लप्रीया (वेनेजुएला), 2022

1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) का चार्टर लिखा गया था। इसे लिखने वालों और पारित करने वालों ने दुनिया में तनाव और जंग जैसे हालात से लड़ने के उपायों के बारे में लिखते हुए बहुत सावधानी से शब्दों का चयन किया। जून में चार्टर पर हस्ताक्षर हुए और अक्टूबर में यह लागू हुआ, इस बीच संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका) ने जापान के दो शहरों पर ऐटम बम गिरा दिए: हिरोशिमा पर 6 अगस्त और नागासाकी पर 9 अगस्त को। विश्वास नहीं होता कि जब इस चार्टर की प्रस्तावना तैयार की जा रही थी, जब यह सोच तैयार हो रही थी कि अगली पीढ़ियों को युद्ध की मार से बचाना होगा, जिसने हमारे जीवन में दो बार मानवता को गहरे दुःख में झोंका है’, तब अमेरिका की सेनाएँ एक ऐसे देश के दो शहरों को बर्बाद करने की तैयारी में थीं जिसने लगभग हथियार डाल दिए थे। 

चार्टर तैयार करने वालों ने युद्धरत राष्ट्रों के बारे में लम्बे विचार-विमर्श के बाद अध्याय VII लिखा जिसमें युद्ध रोकने के दो तरीक़े पेश किए गए हैं। पहला तरीक़ा है जितने ग़ैर-सैन्य उपाय संभव हों, अपनाए जाएँ (अनुछेद 41), इसके बाद संयुक्त राष्ट्र युद्धरत राष्ट्र के ख़िलाफ़ बल प्रयोग की अनुमति दे सकता है (अनुछेद 42)। चार्टर में माना गया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ‘आर्थिक संबंधों और रेल, समुद्र, वायु, डाक, टेलीग्राफ़, रेडियो और संपर्क के अन्य साधनों को पूर्ण या आंशिक रूप से स्थगित करने तथा कूटनीतिक रिश्ते ख़त्मकरने का फ़ैसला ले सकतीहै। यूएनएससी ने सिर्फ़ एक बार अनुच्छेद 41 के अंतर्गत अपनी पूरी शक्तियों का प्रयोग किया है, 1968 (यूएनएससी प्रस्ताव क्रमांक 253) से 1979 (यूएनएससी प्रस्ताव क्रमांक 460) तक दक्षिणी रोडेशिया की नस्लभेदी सरकार के ख़िलाफ़। इसके अलावा इस अनुच्छेद का लगभग पूर्ण प्रयोग 1990 से 2003 के बीच इराक़ तथा 1992 से 1995 के बीच यूगोस्लाविया के ख़िलाफ़ किया गया। इस प्रस्ताव के संदर्भ में एक अहम बात यह है कि प्रतिबंधों (यह शब्द चार्टर में नहीं मिलता) का प्रयोग यूएनएससी द्वारा अधिकृत होना चाहिए। दो राष्ट्रों के आपसी विवाद में एक देश दूसरे पर प्रतिबंध लगा सकता है, लेकिन वह देश अन्य राष्ट्रों को इन प्रतिबंधों का पालन करने के लिए क़ानूनन बाध्य नहीं कर सकता। ऐसा करना यूएन के चार्टर का उल्लंघन होगा।

शीर्षकहीन, वैलेंटीना माचाडो और वैलेंटीना लसालवीया (उरुग्वे), 2021

यह आख़िरी बिंदु बहुत ज़रूरी है क्योंकि फ़िलहाल अमेरिका ने लगभग चालीस देशों पर यूएन सुरक्षा परिषद की इजाज़त के बिना प्रतिबंध लगाए हुए हैं (अमेरिका दूसरे देशों पर दबाव डालने के लिए ऐसी एकतरफ़ा कार्रवाई करता है)। और ऐसे प्रतिबंधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है: अमेरिका के वित्त मंत्रालय का सबसे हालिया आँकड़ा 2000 से 2021 के बीच का है जिससे पता चलता है कि अमेरिका द्वारा लगाए प्रतिबंध में 933% का भारी उछाल आया। अमेरिका के ये प्रतिबंध अगर द्विपक्षीय संबंधों तक ही सीमित होते तो क़ानूनन वैध होते। लेकिन इनके ग़ैर-क़ानूनी होने की वजह यह है कि इनका उल्लंघन करते हुए अगर कोई तीसरा मुल्क अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित देश के साथ सामान्य व्यापार करता है तो अमेरिका उसे सज़ा देता है। चूँकि (डॉलर, वैश्विक भुगतान व्यवस्था SWIFT और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में इसकी वीटो शक्ति की वजह से) अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के केंद्र में है इसलिए यह उन दूसरे देशों को दबोचे रखने में सक्षम है जो विश्व के बाक़ी मुल्कों के साथ व्यापार करके अमेरिका से व्यापार ख़त्म होने के उस देश के नुक़सान की भरपाई कर सकते थे। 

यहाँ दबोचनाशब्द बहुत ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल किया गया है। यह जानना ज़रूरी है कि ये प्रतिबंध आख़िर काम कैसे करते हैं: निशाने पर जो देश होते हैं उनके ख़िलाफ़ प्राथमिक प्रतिबंध लगाए जाते हैं; इसके बाद जो कंपनियाँ या देश इन देशों के साथ व्यापार जारी रखते हैं उन पर भी कुछ गौण प्रतिबंध लगाए जाते हैं; और इसके बाद तीसरी तरह के प्रतिबंध उन कंपनियों या देशों पर लगाए जाते हैं जो गौण प्रतिबंध झेल रहे देशों या कंपनियों के साथ व्यापार करते हैं। यह एक अंतहीन प्रक्रिया है। इसी ने 1962 से अब तक क्यूबा का दम घोंटा हुआ है। एक बाद एक शोध में दिखाया गया है कि इन प्रतिबंधों का सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव इन समाजों के सबसे ग़रीब लोगों पर पड़ता है। ये प्रतिबंध भी उतना ही पक्का निशानादेखकर लगाए जाते हैं जितना कोई स्मार्ट बमजो पूरे इलाक़े और परिवारों को तबाह कर सकता है। इस तरह के एकतरफ़ा दबाव बनाने वाले उपायों और बमबारी वाले युद्ध में फ़र्क़ तो है क्योंकि युद्ध में लक्षित देश के भौतिक  इंफ़्रास्ट्रक्चर को ज़्यादा नुक़सान होता है। लेकिन इन दोनों हमलों का स्वरूप एक ही है: युद्ध के दो रूप, एक प्रतिबंधों की असहनीय मार पर टिका और दूसरा बमों की क्रूर चोट पर। कभी-कभार सत्तारूढ़ लोग खुलकर इस तबाही को स्वीकार कर लेते हैं। 2019 में जब अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पाम्पेओ से असोसिएटेड प्रेस के मैट ली ने वेनेजुएला पर लगाए गए एकतरफ़ा प्रतिबंधों के बारे में पूछा तो पाम्पेओ ने जवाब दिया, ‘फंदा कस रहा है। हर घंटे मानवीय संकट बढ़ रहा है।वेनेजुएला की जनता लगातार बढ़ते हुए जिस दर्द और पीड़ा को झेल रही है उसे आप साफ़ देख सकते हैं। इन एकतरफ़ा कार्रवाइयों से आख़िर होता क्या है? ये दर्द और पीड़ा को जन्म देते हैं।

इन कार्रवाइयों से समाज पर पड़ने वाले असर के कई साक्ष्य हमारे सामने हैं। 2020 में पद संभालने के बाद से मानवाधिकारों पर एकतरफ़ा उपायों के नकारात्मक प्रभाव पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत एलेना दोहान ने सीरिया से वेनेजुएला तक ऐसी कार्रवाइयों के प्रभावों को दर्ज करने का महत्वपूर्ण काम किया है। 2021 में दोहान ने यूएन की मानव अधिकार काउन्सिल को बताया कि इन एकतरफ़ा कार्रवाइयों का कमज़ोर वर्गों पर ख़ासतौर से दुष्प्रभावपड़ता है, जिनमें महिलाओं और बच्चों के साथ-साथ आदिवासी, विकलांग, शरणार्थी, अपने ही देश में विस्थापित हुए लोग, विस्थापित जनता, ग़रीबी में रह रही जनता, बुजुर्गों, गंभीर रूप से बीमार लोग और समाज में अन्य विशेष चुनौतियाँ झेल रहे लोगशामिल हैं। 

हमारे नवीनतम डोसियर Imperialist War and Feminist Resistance in the Global South (मार्च 2025) में उन राष्ट्रों और समाजों पर इस तरह की एकतरफ़ा दबाव डालने वाली कार्रवाइयों के असर पर रौशनी डाली गई है, जिनका होना ही वैश्विक उत्तर के लिए चुनौती है। इन कार्रवाइयों के प्रभाव का हमारा विश्लेषण भी वही कहता है जो दोहान ने 2021 में कहा था, यानी इनका सबसे बुरा असर सबसे कमज़ोर वर्गों पर पड़ता है। ये कमज़ोरवर्ग इन कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं: ये वर्ग निर्बल नहीं हैं, ये इस छद्म युद्ध की क्रूरता के ख़िलाफ़ प्रतिरोध खड़ा कर रहे हैं।

इस डोसियर में ज़्यादा ध्यान वेनेजुएला पर दिया गया है। हमने यहाँ के हीरोईनज़ विदआउट बॉर्डरज़ ऑर्गनाइज़ेशन और वेनेजुएलन हाउसिंग असेम्ब्ली हॉर्हे रॉड्रीगेज़ पाद्रे जैसे किसान और मज़दूर संगठनों से बात की। एकतरफ़ा कार्रवाइयों से उत्पन्न संकट में परिवारों को जोड़े रखने के दबाव और सामाजिक पुनरुत्पादन के पितृसत्तात्मक दायित्वों का अत्यधिक बोझ जो महिलाओं पर पड़ता है, उनका सामना करने के लिए और समाज में अपनी राजनीतिक शक्ति खड़ी करने के लिए मज़दूर वर्ग और किसान महिलाओं ने कई तरह के संगठन या समूह बनाए हैं जहाँ वे एक-दूसरे की मदद करती हैं। जब उनके पास पीने का पानी, दवा या भोजन नहीं था, तो उन्होंने सामूहिक क्लीनिक और खाद्य बैंक स्थापित किए, जिन्हें कुछ हद तक राज्य का समर्थन प्राप्त था, लेकिन ये मुख्य रूप से महिलाओं का अपना काम था।

दिसंबर 2021 में मैं Altos de Lídice Commune गया था जहाँ मैं उन महिलाओं से मिला जिन्होंने एकजुट होकर कोविड-19 का मुश्किल दौर झेला था। आठ कम्यूनल काउन्सिल में संगठित इस कम्यून में 6,000 से ज़्यादा लोग रहते हैं। लोकतांत्रिक असेंबलियों के आधार पर स्थापित वेनेजुएला के कम्यून स्थानीय स्व-शासन के विचार पर टिके हैं और समाजवाद की निर्माण प्रक्रिया की नींव रखने का काम करते हैं। इनकी सोच है कि समस्याओं का हल निकलने के लिए जनता को संगठित करना होगा न कि नौकरशाही पर यह काम छोड़ देना चाहिए। उस दिन मैं जिन महिलाओं से मिला उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एक क्लिनिक बनाया, आसपास के अस्पतालों के डॉक्टर यहाँ लोगों का इलाज करने आने लगे और क्लिनिक में लोगों को मुफ़्त दवाएँ दी गयीं (ये दवाएँ इन महिलाओं को चिली के एक महिला अस्पताल से इनसे अच्छे रिश्ते होने की वजह से मिली थीं)। महिलाओं ने इस काम का नेतृत्व किया; इनके संगठन की एक नेता ऐलेहांड्रा ट्रेस्पलसिओस ने मज़ाक़ करते हुए कहा हम अपने काम के लिए पुरुषों का सदुपयोग करती हैं। इनके सबसे मार्मिक और प्रभावशाली आंदोलनों में से एक था arepazo, इसमें सबसे कमज़ोर वर्गों के लोगों में arepas (एक तरह की गोल पैटी) बाँटी गई। वे हर तीन महीने में बच्चों और बुजुर्गों का वज़न करती थीं और जिसका वज़न स्वास्थ्य के लिहाज़ से कम होता उन्हें एक arepa दिया जाता, यह इन महिलाओं का हर व्यक्ति के लिए अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर करने का एक तरीक़ा था। इससे जो आँकड़े मिले उनसे वे जान पाईं कि किन इलाक़ों में भोजन की ज़रूरत है। ट्रेस्पलसिओस ने कहा कि ये संघर्ष का समय है Arepazo कुपोषण और भूखमरी के ख़िलाफ़ इस कम्यून के आंदोलन का हिस्सा था।

इसके साथ ही हमारा डोसियर इस बात पर भी ज़ोर देता है कि इस दिशा में गंभीर रूप से विचार किया जाना चाहिए कि जेंडर कैसे राजनीतिक श्रम के लिंग आधारित विभाजन को पुनर्स्थापितकरता है। समुदायों को संगठित करने में तो महिलाओं की उपस्थिति और नेतृत्व दिखती है लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व और राज्य संचालन के अन्य क्षेत्रों में ऐसा नहीं हो पा रहा। मज़दूर वर्ग और किसान महिलाओं के संघर्ष का एक अहम भाग यह भी है कि महिला नेताओं को स्थानीय स्तर से अधिक ज़िम्मेदारी और शक्तिशाली पदों पर पहुँचाया जाए।

बारह साल की उम्र में ओल्गा लुज़ारदो (1916-2016) माराकैबो शहर के उत्तर-पश्चिमी इलाक़े में एक मार्क्सवादी ग्रुप में शामिल हुईं। 1931 में वे वेनेजुएला की कम्युनिस्ट पार्टी (Partido Comunista de Venezuela, PCV) की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं। युवा लुज़ारदो PCV के हो ची मिन्ह स्कूल में पढ़ाती थीं और लोगों के बीच मार्क्सवाद के प्रसार के लिए वे अपने चलते-फिरते स्कूलके साथ जगह-जगह जाती थीं। 1937 में उन्होंने वेनेजुएला की महिलाओं की कोंग्रेस (Congreso de Mujeres) में हिस्सा लिया जो PCV की महिलाओं के सांस्कृतिक ग्रुप से बनी थी। मार्कोस पेरेज़ हिमेनेज़ की तानाशाही के दौर में लुज़ारदो को गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्हें सोवियत संघ में निर्वासित कर दिया गया और 1958 में ही वे वेनेजुएला वापस जा पाईं। उनके कई छद्म नाम थे जैसे हॉर्हेजिसका इस्तेमाल वे वेनेजुएला के बुर्जुआ तबक़े से लड़ने में करती थीं और अक्टूबर क्रांति से प्रेरित पेट्रोवनानाम से उन्होंने प्रतिरोध की नई भाषा गढ़ने की अपनी आकांक्षा के लिए ख़ुद को एक पत्रकार और कवि के तौर पर स्थापित किया। 1950 से 1952 के बीच जेल में रहते हुए उन्होंने कविताएँ लिखीं जो 1988 में Huellas frescas (नये पदचिह्न) नाम के संग्रह में छपीं। इनमें से एक कविता में वे अपनी बेटी इगुआरिया पेरेज़ और सब लड़कियों को एक सिपाही’, न्याय के लिए लड़ने वाला योद्धा बनने के लिए प्रेरित करती हैं:

 

मेरी बच्ची: मैं चाहती हूँ तुम सिपाही बनो।

 

हमारी लड़ाई के लिए अगर ज़रूरी है तो 

दुनिया के तमाम रंग के झंडे 

तुम्हारे ख़ून से सने हों।

 

जब तक राष्ट्र और सरहदें हैं 

शांति मुमकिन नहीं 

पर जब वह आए तो 

तुम्हें शस्त्रहीन और 

किसी दिवा-स्वप्न में डूबा ना पाए।

 

क्योंकि जिस दिन हम सबके हाथ में 

एक हथियार और आँखों में बेहतर ज़िंदगी का सपना होगा,

उस दिन पूरी धरती एक मातृभूमि बन जाएगी।

 

मेरी बच्ची, शांति के लिए 

ग़रीबों को हथियार उठाने ही होंगे।

और इसलिए मैं चाहती हूँ तुम सिपाही बनो।

सस्नेह,

विजय