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हिंदी बुलेटिन

बजट 2025-26: केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय रस्साकशी

केंद्र सरकार पर टैक्स बंटवारे में बेईमानी के आरोप लगते रहते हैं। आइए देखें कि नया बजट इस मामले में क्या दर्शाता है?

केंद्र सरकार और राज्यों के बीच टैक्स राजस्व के बँटवारे को लेकर काफ़ी समय से रस्साकशी चल रही है। इस रस्साकशी में एक तरफ़ लगातार तीन बार केंद्र की गद्दी पर बैठने वाली भाजपा की सरकार है, तो दूसरी तरफ मुख्यत: गैर-भाजपा शासित राज्यों की सरकारें हैं। गैर-भाजपा शासित राज्यों की सरकारों के मोटे तौर पर दो आरोप हैं। पहला राजस्व के ऊर्ध्वार्धर बँटवारे (Vertical Devolution) को लेकर है: राज्य सरकारों का आरोप है कि केंद्र सरकार के टैक्सों की शुद्ध प्राप्तियों (Net Proceeds) में राज्यों का हिस्सा उनकी ज़रूरतों की तुलना में बेहद कम है। दूसरा आरोप राजस्व के क्षैतिज बँटवारे (Horizontal Devolution) को लेकर है: राज्यों के बीच शुद्ध प्राप्तियों के बँटवारे का फ़ॉर्मूला विकसित तथा कम जनसंख्या वाले राज्यों की अनदेखी करके कम विकसित तथा उच्च जनसंख्या वाले राज्यों की तरफ़दारी करता है। दक्षिण भारत के राज्य इस सौतेले व्यवहार को लेकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ लामबंद होते रहे हैं।

सितंबर 2024 में केरल की वामपंथी सरकार के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने विपक्षी राज्य सरकारों के वित्त मंत्रियों की एक बैठक का आयोजन किया। बैठक में शामिल मंत्रियों ने एकरूपता से केंद्र सरकार द्वारा सेसों और सरचार्जों के बढ़ते प्रयोग की भर्त्सना की। उन्होंने वित्त कमीशन से माँग की कि सेस और सरचार्ज पाँच प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए तथा राज्यों को केंद्र के टैक्स राजस्व में कम से कम पचास प्रतिशत हिस्सा मिलना चाहिए। मुख्यमंत्री विजयन ने बैठक में शामिल लोगों का ध्यान लगातार बढ़ते सेसों और सरचार्जों की तरफ आकृष्ट कराया।

कैसे हो रही है राज्यों की हकमारी?

संविधान का अनुच्छेद 279 शुद्ध प्राप्तियों को परिभाषित करता है। इसके अनुसार टैक्सों अथवा शुल्कों की कुल प्राप्तियों में से उनके संग्रहण की लागत को घटाकर शुद्ध प्राप्तियाँ मिलती हैं। हालाँकि संविधान के 80वें संशोधन (2000) के बाद से सेसों तथा सरचार्जों को शुद्ध प्राप्तियों की गणना में शामिल टैक्सों अथवा शुल्कों का हिस्सा नहीं माना जाता। इसका अर्थ ये है कि सन् 2000 के बाद राज्यों के बीच बँटने वाली शुद्ध प्राप्तियों में सेस तथा सरचार्ज शामिल नहीं होते।

वित्त कमीशन का गठन संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। हर पाँच साल पर बनने वाला वित्त कमीशन ही केंद्र सरकार को मिलने वाले टैक्सों के राज्यों के बीच बँटवारे का फ़ॉर्मूला तय करता है। यह बँटवारा राज्यों के लिए इसलिए बेहद अहम है क्योंकि जहाँ केंद्र सरकार की तुलना में इनकी टैक्स वसूलने की शक्तियाँ सीमित होती हैं, वहीं इन पर ख़र्च करने की ज़िम्मेदारी ज्यादा होती है। तेरहवें वित्त कमीशन (2010-2015) ने केंद्र की शुद्ध प्राप्तियों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत तय की थी, जिसे चौदहवें वित्त कमीशन (2015-20) ने बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया। पंद्रहवें वित्त कमीशन (2020-2025) ने राज्यों के हिस्से को 41 प्रतिशत तय किया।

आँकड़ों का स्त्रोत: वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित केंद्रीय बजट के दस्तावेज़ों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर लेखक की गणना।
नोट: 2024-25 के आँकड़े संशोधित अनुमान हैं तथा 2025-26 के आँकड़े बजट अनुमान हैं। शेष वर्षों के आँकड़े वास्तविक हैं।

सरकारी बजट से प्राप्त आँकड़ों से बना उपरोक्त चित्र साफ़ तौर पर दर्शाता है राज्यों को मिलने वाला हिस्सा वित्त कमीशन की अनुशंसा से मेल नहीं खाता। सेसों और सरचार्जों को निकालकर अगर सिर्फ़ शुद्ध प्राप्तियों की बात करें, तो भी राज्य सरकारों को मिलने वाला हिस्सा 2021-22 के अपवाद को छोड़कर वित्त कमीशन के तय फ़ॉर्मूले से कम रहा है।

राज्यों की हकमारी की असली तस्वीर चित्र का दाहिना हिस्सा दिखाता है। केंद्र सरकार के सकल टैक्स राजस्व (सेस और सरचार्ज को शामिल करके) में राज्यों का हिस्सा 2018-19 के बाद से वित्त कमीशन की अनुशंसा से काफ़ी कम रहा है। हालिया वास्तविक आँकड़े सन् 2023-24 के लिए मौजूद हैं। 2023-24 में केंद्र सरकार ने सकल टैक्स राजस्व में से 41 प्रतिशत की बजाय सिर्फ 33 प्रतिशत राज्यों को दिया। 2025-26 के बजट अनुमान के अनुसार भी केंद्र सरकार राज्यों को अपने सकल टैक्स राजस्व का सिर्फ 33 प्रतिशत हिस्सा ही देगी।

बढ़ते सेसों और सरचार्जों का विरोध क्यों?

शुद्ध प्राप्तियों तथा सकल टैक्स राजस्व में से राज्यों को मिलने वाले हिस्से में मौजूद इतना बड़ा अंतर केंद्र सरकार सेसों तथा सरचार्जों की ऊँची मात्रा के माध्यम से अंजाम देती है। केंद्र सरकार के सकल टैक्स राजस्व में सेसों तथा सरचार्जों का हिस्सा 2010-11 में करीब 11 प्रतिशत था तथा राज्यों सरकारों केंद्र के सकल टैक्स राजस्व में से वित्त कमीशन की 32 प्रतिशत की अनुशंसा की तुलना में करीब 28 प्रतिशत हिस्सा मिला। बाद के वर्षों में, विशेषकर चौदहवें वित्त कमीशन के गठन के बाद, जब राज्य सरकारों का हिस्सा 42 प्रतिशत तय किया गया, तब से सेसों तथा सरचार्जों की मात्रा बढ़ती गई तथा केंद्र के सकल टैक्स राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी वित्त कमीशनों के तय फ़ॉर्मूले से कम रही।

आँकड़ों का स्त्रोत: वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित केंद्रीय बजट के दस्तावेज़ों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर लेखक की गणना।
नोट: 2024-25 के आँकड़े संशोधित अनुमान हैं तथा 2025-26 के आँकड़े बजट अनुमान हैं। शेष वर्षों के आँकड़े वास्तविक हैं।

कुल सेसों तथा सरचार्जों और सकल टैक्स राजस्व का अनुपात 2010-11 में 11 प्रतिशत से 2023-24 में बढ़कर 19 प्रतिशत हो गया है। 2025-26 के बजट अनुमानों के अनुसार इसके 17 प्रतिशत रहने की आशंका है। सेसों में केवल जीएसटी क्षतिपूर्ति ही ऐसा एकमात्र सेस है जिसे पूर्ण रूप से राज्यों को देने के लिए लगाया गया है। इसे जीएसटी लगने के बाद राज्यों को होने वाली राजस्व की क्षति की भरपाई के लिए अस्तित्व प्रदान किया गया था। जीएसटी क्षतिपूर्ति सेस को हटाकर भी सेसों तथा सरचार्जों का कुल हिस्सा 2023-24 में 15 प्रतिशत के करीब था।

शुद्ध प्राप्तियों से सेसों और सरचार्जों का बाहर होना एक ऐसा कानूनी पेच है, जिसका दुष्प्रयोग करके राज्यों को वित्त कमीशन द्वारा निर्धारित केंद्र सरकार के टैक्सों के हिस्से से साल-दर-साल महरूम किया जाता है। एक महत्वपूर्ण रुझान यहाँ यह दिख रहा है कि सेसों और सरचार्जों का प्रयोग करके केंद्र सरकार चौदहवें तथा पंद्रहवें वित्त कमीशन की अनुशंसाओं को दरकिनार करके सकल टैक्स राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को बढ़ने नहीं दे रही है। चौदहवें तथा पंद्रहवें वित्त कमीशनों ने राज्यों का हिस्सा क्रमश: 42 तथा 41 प्रतिशत तय तो कर दिया, लेकिन हकीकत में केंद्र सरकार ने 2018-19 से 2025-26 के दौरान अपने सकल टैक्स राजस्व का 32 से लेकर 34 प्रतिशत हिस्सा ही राज्यों को दिया है/देगी।

टैक्सों के बँटवारे में हो रहे अन्याय के खिलाफ़ तलवारे खींचे राज्यों को बजट 2025-26 भी निराश ही करेगा। सेसों तथा सरचार्जों को औजार बनाकर राज्यों को उनके हिस्से से महरूम रखने की रवायत केंद्र सरकार ने इस बजट में भी बरक़रार रखी है। केंद्र सरकार के आँकड़े राज्यों के आरोपों का समर्थन करते हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने बजट जारी होने से कुछ दिन पहले केंद्र सरकार को अपनी माँगों की एक सूची सौंपी। उन्होंने माँग की कि सेसों तथा सरचार्जों को या तो रद्द कर देना चाहिए या फिर उनको राज्यों के साथ बाँटे जाने वाले टैक्सों की सूची में शामिल कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने जुलाई 2022 के बाद से जीएसटी क्षर्तिपूर्ति सेस राज्यों को दिया ही नहीं है, जबकि उसका संग्रहण अभी भी जारी है।

सेसों और सरचार्जों को रद्द करने अथवा उनको राज्यों के साथ बाँटे जाने वाले टैक्सों की सूची में शामिल करने से राज्यों को मिलने वाला राजस्व बढ़ेगा तथा उनको अपनी ज़रूरतों के अनुसार ख़र्च करने के लिए आवश्यक धनराशि प्राप्त होगी। लेकिन केंद्र सरकार का रवैया इंगित करता है कि टैक्स राजस्व में अपने वाजिब हिस्से से महरूम राज्यों के लिए राह आसान नहीं होने वाली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए बेबुनियाद बताया। हालाँकि उनके ही मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि टैक्स राजस्व के बँटवारे में बेईमानी का आरोप लगाने वाले राज्यों की बातें बेबुनियाद नहीं हैं।

उमेश यादव