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धर्म और समाज के फंदे में फंसी ज़िंदगी
समीक्षा: फ़िल्म ‘ज़िंदगी तमाशा’
यौन हिंसा की रिपोर्टिंग से संबंधित रेखाचित्र बनी बनाई दकियानूसी और रूढ़िवादी सोच को बनाए रखने का काम कर रहे हैं।
बेघर लोगों का जीवन निश्चय ही बेहद कठिन होता है, ख़ासकर स्त्रियों का, लेकिन हमारी सामाजिक कंडीशनिंग मूल रूप से पितृसत्तात्मक है, शायद इसलिए हम उस नारकीयता की कल्पना ही नहीं कर पाते, जिसमें वे दिन रात रहती हैं।