12 search results founds

You searched for: "Vijay Prashad"




डोसियर नं. 68 चिली के ख़िलाफ़ हुए 1973 के तख़्तापलट और तीसरी दुनिया तथा निर्गुट खेमे के देशों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। अलेंदे सरकार ने ताँबे के राष्ट्रीयकरण की नीति लागू की, जिसके बाद तख़्तापलट की कोशिशें बढ़ गईं। ताँबे के राष्ट्रीयकरण की नीति नव-उपनिवेशवादी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली का लोकतांत्रिक तर्ज पर पुनर्गठन करने और तीसरी दुनिया के विचारों व लोगों को महत्व देने के मक़सद से तीसरी दुनिया में नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) बनाने हेतु जारी व्यापक कोशिशों का हिस्सा थी।


पिछली सदी के दौरान विकास के मुद्दे से जुड़ी हुई बहसों और सिद्धांतों में बड़े बदलाव आए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात आए बदलावों को चार मुख्य कालों में बाँटा जा सकता है: आधुनिकीकरण सिद्धांत का दौर, नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक क्रम का दौर, वैश्वीकरण तथा नवउदारवाद का दौर और 2007-08 में आए वित्तीय संकट के बाद का संक्रमण काल। यह डोसियर विकास के ऐतिहासिक तथा वर्तमान विमर्शों की पड़ताल करता है और एक नए समाजवादी विकास सिद्धांत की रूप-रेखा पेश करता है।



12‌‌ ‌अगस्त‌ ‌‌2021‌‌ ‌को‌ ‌ज़ाम्बिया‌ ‌के‌ ‌लोग‌ ‌नया‌ ‌राष्ट्रपति‌ ‌चुनने‌ ‌के‌ ‌लिए‌ ‌वोट‌ ‌डालेंगे।‌ ‌वर्तमान‌ ‌राष्ट्रपति‌ ‌एडगर‌ ‌लुंगु‌ ‌को‌ ‌सोशलिस्ट‌ ‌पार्टी‌ ‌ज़ाम्बिया‌ ‌के‌ ‌राष्ट्रपति‌ ‌पद‌ ‌के‌ ‌उम्मीदवार‌‌ फ्रेड‌ ‌एममेम्बे‌ ‌से‌ ‌कड़ी‌ ‌चुनौती‌ ‌मिल‌ ‌रही‌ ‌है। जाम्बिया एक खनिजों से समृद्ध देश, एक बड़ी सामाजिक तबाही के कगार पर खड़ा है, एक समाजवादी एजेंडा ही बहुराष्ट्रीय निगमों और विदेशी बॉन्डहोल्डर्स के सामने जाम्बिया के घुटने टेकते राजनीतिक अभिजात वर्ग के आत्मसमर्पण को पीछे धकेल सकता है।


चिली एक देश है जो नवउदारवाद द्वारा फैलाए जाल जैसे जनता के लिए मितव्ययिता स्लेट और राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा की दक्षिणपंथी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से बर्बाद हो गया है। इसके बीच, चिली के वामपंथी डैनियल हादुइ नवंबर में आगामी राष्ट्रपति चुनावों में एक गंभीर दावेदार दिख रहे हैं।




25 मई 2022 को 8000 लोगों ने वारंगल नगर निगम तक मार्च किया और वाहन आवास के लिए 10,000 आवेदन दिए। आवास की गंभीर कमी के बीच भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में जक्कालोद्दी संघर्ष समिति, समिति द्वारा कब्जा की गई ज़मीन पर 4,600 झोपड़ियाँ बना चुकी है। दुनिया भर के देशों में आवास संकट बड़ा हो रहा है, लेकिन दक्षिण अफ्रीका में झोंपड़ी-निवासियों के आंदोलन, और ब्राजील में भूमिहीन श्रमिकों के आंदोलन से लेकर जर्मनी में किराए पर रहने वालों तक जनता में इस संकट से पार करने की भूख भी बढ़ रही है।



कोरोना आपदा के बाद से महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा लगातार बढ़ी है, बल्कि हिंसा और भी क्रूर हुई है, क्योंकि महिलाओं की मुक्ति के प्रगतिशील विचार पर महिला अधीनता के नव-फासीवादी विचारों ने ग्रहण लगा रखा है। इस बीच, पहली पंक्ति के कामगारों में हर चार में से तीन महिलाएँ हैं। इन कामगारों की तारीफ़ में थालियाँ और बर्तन बजाना एक बात है, लेकिन यूनीयन बनाने, ज़्यादा वेतन और काम की बेहतर परिस्थितियों व अपने काम के क्षेत्रों में नेतृत्व के लिए इनके द्वारा लम्बे समय से उठाई जा रही इनकी माँगों को स्वीकार करना बिलकुल दूसरी।