उन बच्चों की आँखों में कल का कोई सपना नहीं
युद्धों और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के अनेक क्षेत्रों में बच्चों का जीवन संकट में पड़ गया है।
संजय कुंदन
आज दुनिया युद्ध और अराजकता की चपेट में है। ऊपर से प्राकृतिक आपदाओं की मार है। लोगों का जीना मुहाल होता जा रहा है। इन सबका ख़ामियाज़ा सबसे ज़्यादा बच्चे भुगत रहे हैं, जिन्हें इसका अंदाज़ा भी नहीं है कि यह सब क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है। लाखों बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने जब से होश संभाला है, तब से बस तबाही देख रहे हैं। उनके खाने-पीने, पढ़ने, खेलने-कूदने पर आफ़त है। यूनिसेफ की हालिया रिपोर्टों के अनुसार, 2024 का वर्ष यूनिसेफ के इतिहास में बच्चों के लिए सबसे कठिन वर्षों में से एक रहा है।
यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में छह में से एक बच्चा संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में रह रहा है। संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों का प्रतिशत नब्बे के दशक में लगभग 10 प्रतिशत था जो इस समय बढ़कर लगभग 19 प्रतिशत हो गया है। यानी करोड़ों बच्चे युद्ध की विभीषिका के बीच अपना बचपन बिताने को मजबूर हैं। 2023 के अंत तक, 4.72 करोड़ बच्चे संघर्ष और हिंसा के कारण विस्थापित हो चुके थे और 2024 में इस संख्या के और भी बढ़ने का अनुमान है। सच तो यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हाल के वर्षों में ही इतने ज़्यादा टकराव और युद्ध देखे जा रहे हैं।
ग़ज़ा से आ रही ख़बरें विचलित करने वाली हैं। अभी कुछ समय पहले ग़ज़ा के एक बच्चे यूसुफ का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह अपनी भाषा में बताने की कोशिश कर रहा है कि यहां न खाना है, न घर है, हमारी मदद करें। इज़रायल द्वारा किए जा रहे विनाश के कारण वहां के बच्चे मर्मांतक पीड़ा झेल रहे हैं। ग़ज़ा में संघर्ष ने बच्चों की पढ़ाई का सत्यानाश कर दिया है। वर्तमान में 87 प्रतिशत से अधिक स्कूल भवन क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुके हैं और 625,000 से अधिक स्कूली बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट गई है। यूनिसेफ का अनुमान है कि लगभग 10 लाख से भी अधिक बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता है।
ग़ज़ा के मनोचिकित्सक बताते हैं कि वहां जो कुछ हो रहा है, उसका बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ा है। उनके शरीर में ऐंठन, बिस्तर गीला करना, डर, आक्रामक व्यवहार, घबराहट और अपने माता-पिता का साथ न छोड़ना जैसे गंभीर सदमे के लक्षण विकसित होने लगे हैं। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक बच्चों को रात में बहुत तकलीफ़ होती है। वे पूरी रात रोते हैं और बार-बार पेशाब कर देते हैं। बच्चों ने इमारतों पर कई बार हमले होते देखे हैं जिस वजह से कई बच्चे तो कुर्सी हिलने की आवाज तक से डर के मारे उछल पड़ते हैं। ग़ज़ा के अलावा भी जिन क्षेत्रों में युद्ध या गृह युद्ध के हालात हैं, वहां भी बच्चों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। यह कैसी विडंबना है कि जिन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए था, खेल के मैदान में होना चाहिए था, वे घंटों राशन या ईंधन की लाइन में लगे रहते हैं। उन्हें बहुत लंबा समय बंकर में या किसी अन्य अंडरग्राउंड जगह पर बिताना पड़ता है। इन स्थितियों ने उन्हें मानसिक तौर पर तोड़कर रख दिया है। बहुत से बच्चों में आत्मघाती प्रवृत्तियां घर करती जा रही हैं। एक अनुमान है कि विश्व भर में 10 से 19 वर्ष के हर सात में से एक बच्चा या किशोर अवसाद में जी रहा है।
सूडान में युद्ध पीड़ित एक करोड़ 40 लाख बच्चों को जीवन रक्षक सहायता की सख़्त ज़रूरत है। वहां की आंतरिक हिंसा ने दुनिया में सबसे बड़े बाल विस्थापन को जन्म दिया है। वहां 35 लाख से ज़्यादा किशोर-किशोरियां सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपने घरों से भाग गई हैं। 5 साल से कम उम्र के 30 लाख से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं और अगर उन्हें उपचार नहीं मिला तो सात लाख बच्चे अपनी जान गंवा सकते हैं। अन्य युद्ध प्रभावित क्षेत्रों का कमोबेश यही हाल है।
युद्ध और अन्य कारणों से विश्व के अनेक हिस्सों में खाद्य वस्तुओं और जीवनयापन की अन्य ज़रूरी वस्तुओं की क़ीमतों में रिकॉर्ड उछाल आया है, इसलिए बच्चों को स्वास्थ्यप्रद भोजन नहीं मिल पा रहा है। यूनीसेफ के पोषण विशेषज्ञ के मुताबिक विश्व भर में हर चार में से एक बच्चा बेहद कम या ख़राब आहार पर निर्भर है। उसे फल और सब़्जियां मयस्सर नहीं हैं, प्रोटीनयुक्त चीज़ें नहीं मिल पा रहीं। आंकड़े दर्शाते हैं कि विश्व भर में खाद्य निर्धनता का शिकार 18.1 करोड़ बच्चों में से क़रीब 65 फ़ीसदी केवल 20 देशों में रहते हैं। इनमें 6.4 करोड़ बच्चे दक्षिण एशिया और 5.9 करोड़ सब-सहारा अफ़्रीका में हैं। उनका समुचित पोषण न हो पाने का बड़ा कारण उनके परिवारों का निर्धन होना तो है ही, लेकिन कई देशों में युद्ध, टकराव या अन्य कारणों से खाद्य प्रणाली भी अस्त-व्यस्त हो गई है।
युद्ध और संघर्ष का सबसे गंभीर प्रभाव बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है। स्कूल बंद हो जाते हैं, शिक्षक आना बंद कर देते हैं, और बच्चों को सुरक्षित वातावरण नहीं मिलता। कई बार स्कूल भवनों को ही निशाना बनाया जाता है या उन्हें शरणार्थी शिविरों में बदल दिया जाता है। इससे न केवल वर्तमान शिक्षा बाधित होती है, बल्कि भविष्य में भी इसके दूरगामी परिणाम होते हैं।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का मिज़ाज गड़बड़ा गया है। लगातार आने वाली आपदाएं बच्चों पर बुरा असर डालती हैं। पिछले कुछ वर्षों में अकसर आने वाले तूफ़ान और सूखे से स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा जाती हैं। इससे बच्चे गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। सबसे ज़्यादा नवजात शिशु प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि प्रसूताओं को पर्याप्त भोजन नसीब नहीं हो रहा। एशिया में इस वर्ष जलवायु और स्वास्थ्य आपदाओं तथा आर्थिक संकट के कारण लगभग 4.70 करोड़ बच्चों को मानवीय सहायता की आवश्यकता होगी।
यूनिसेफ की Learning Interrupted रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में जलवायु संकट के कारण 24.2 करोड़ बच्चों की स्कूली शिक्षा बाधित हुई है। यह आंकड़ा दिखाता है कि हर सातवां छात्र मौसम का चक्र गड़बड़ाने के कारण कक्षा से बाहर रहा है। इससे न केवल उसका भविष्य लड़खड़ाया है, बल्कि उसके स्वास्थ्य और सुरक्षा को भी ख़तरा हुआ है।
2024 में, हीटवेव दुनियाभर में स्कूली शिक्षा को बाधित करने वाली सबसे बड़ी जलवायु समस्या बनकर उभरी है। इसने अनुमानित 17.1 करोड़ छात्रों को प्रभावित किया है। अप्रैल में जलवायु संकट के कारण सबसे ज़्यादा दिन स्कूल बंद किए गए। इससे पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 5 करोड़ छात्र प्रभावित हुए हैं।
Education Cannot Wait के नए विश्लेषण के अनुसार, 23.4 करोड़ संकट प्रभावित बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच के लिए तत्काल सहायता की आवश्यकता है। यह संख्या दिखाती है कि शिक्षा संकट कितना व्यापक है और इसके लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। विकासशील देशों की सरकारें बच्चों पर आवश्यक संसाधन का निवेश नहीं कर पा रही हैं, जिसका कारण है- धीमी आर्थिक वृद्धि, बढ़ता क़र्ज़, अपर्याप्त कर राजस्व और विकास सहायता की कमी। अनेक देशों ने बाहरी स्रोतों से क़र्ज़ (Sovereign Debt) ले रखा है। लगभग 40 करोड़ बच्चे उन देशों में रहते हैं जो ऋण संकट का सामना कर रहे हैं। इस ऋण के ब्याज़ का भुगतान करने की लागत के कारण बच्चों के लिए आवश्यक निवेश में बाधा उत्पन्न हो रही है। यदि बड़े पैमाने पर सुधार नहीं किए गए, तो यह संकट और बढ़ सकता है।
हमें यह सोचना होगा कि आख़िर हम अपने बच्चों को कैसी ज़िंदगी दे रहे हैं। समुचित पोषण, शिक्षा, स्नेह और सौहार्दपूर्ण वातावरण से वंचित बच्चे कैसा मनो-मिज़ाज लेकर बड़े होंगे, और वे किस तरह के नागरिक बनेंगे, और वे किस तरह की दुनिया बनाएंगे? आज हर तरह से त्रस्त करोड़ों बच्चों के भीतर कल का कोई सपना नहीं है। वे बस जी रहे हैं किसी तरह से। यह किसी एक या दो देश की समस्या नहीं है। यह मानवता के लिए एक बड़ा सवाल है, जिस पर हर किसी को सोचना होगा।