क्या वाकई भारत में कम हुई है ग़रीबी?
विश्व बैंक ने सर्वेक्षण की पद्धति बदल दी है, जिससे अति निर्धनता के नए पैमाने के तहत आने वाले लोगों की संख्या घट गई है।
उमेश यादव
हाल में विश्व बैंक ने निर्धनता से जुड़े नए आँकड़े जारी किए। संशोधित अति निर्धनता रेखा (3 डॉलर प्रतिदिन) के आधार पर भारत में 2022 में केवल 5.25 प्रतिशत लोग अति निर्धन थे। इन नए आँकड़ों के आलोक में ऐसा कहा जा रहा है कि भारत में 2011-12 और 2022-23 के दौरान तक़रीबन 27 करोड़ लोग अति निर्धनता (Extreme poverty) से बाहर आ गए हैं। प्रेस इंफ़ॉर्मेशन ब्यूरो के अनुसार विश्व स्तर पर अति निर्धनता के स्तर को कम रखने में भारत का मुख्य योगदान है। इनकी विज्ञप्ति बताती है भारत के बिना दुनिया में मौजूद अति निर्धनता 12.5 करोड़ के बजाय 22.6 करोड़ होती।
क्या वास्तव में भारत में पिछले 11 वर्षों में इतने बड़े स्तर पर अति निर्धनता कम हुई है? या अति निर्धनता के आँकड़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है? इसका आकलन करने के लिए लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ग़रीबी के स्तर को निर्धारित कैसे किया जाता है।
विश्व बैंक ग़रीबी रेखा कैसे तय करता है?
विश्व बैंक ने सबसे पहले 1990 में अंतरराष्ट्रीय ग़रीबी रेखा को एक डॉलर प्रतिदिन निर्धारित किया था। विश्व बैंक सबसे निर्धनतम देशों की राष्ट्रीय ग़रीबी रेखाओं के आधार पर अति निर्धनता का स्तर तय करता है। निर्धनतम देशों की राष्ट्रीय ग़रीबी रेखाओं को क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity, PPP) के डॉलर मूल्य में व्यक्त करके इसकी गणना की जाती है। PPP को जब अपडेट किया जाता है तब अति निर्धनता रेखा को भी बदला जाता है। उदाहरण के लिए 1990 में यह 1 डॉलर (1985 PPP) थी। PPP में बदलावों के अनुसार इसे बदलकर 1.08 डॉलर (1993 PPP), 1.25 डॉलर (2005 PPP) और 1.90 डॉलर (2011 PPP) किया जा चुका है।
ग़रीबी का अनुमान बेहतर तरीक़े से लगाने के लिए 2017 में विश्व बैंक ने ग़रीबी रेखाओं को नए स्तर पर परिभाषित करना शुरू किया। इसके लिए सबसे पहले देशों को प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया—निम्न आय, निम्न-मध्यम आय तथा उच्च आय वाले देश। निम्न आय वाले देशों की राष्ट्रीय ग़रीबी रेखाओं की माध्यिका (Median) को अंतरराष्ट्रीय अति निर्धनता रेखा माना जाता है। निम्न-मध्यम आय वाले देशों की राष्ट्रीय ग़रीबी रेखाओं की माध्यिका को इन देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय अति निर्धनता रेखा माना जाता है और इसी प्रकार उच्च आय वाले देशों के लिए अलग अंतरराष्ट्रीय अति निर्धनता रेखा की गणना होती है। 2017 की PPP के अनुसार निम्न-मध्यम आय वाले देशों की राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा की माध्यिका 2.15 डॉलर, निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए 3.65 डॉलर और उच्च आय वाले देशों के लिए 6.85 डॉलर थी।
ग़रीबी रेखाओं को बदलते PPP के अनुसार इसलिए बदला जाता है ताकि ताकि डॉलर की तुलना में अन्य देशों की मुद्राओं की क्रय शक्ति में आए बदलाव को ग़रीबी रेखा दिखा पाए। इसके साथ-ही-साथ, दुनिया के देश अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में हो रहे बदलावों के जवाब में ग़रीबी के बदलते पहलुओं तथा समझ के अनुसार अपनी ग़रीबी रेखाओं को बदलते हैं। अत: ग़रीबी रेखा को समय-समय पर समायोजित करना पड़ता है।
आँकड़ों के पीछे की कहानी
पिछले दिनों जारी ग़रीबी के आँकड़ों के लिए विश्व बैंक ने 2021 के PPP का प्रयोग किया है तथा कई देशों द्वारा बदली गई ग़रीबी रेखाओं को भी इसमें शामिल किया है। निम्न आय वाले देशों के लिए 3 डॉलर, निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए 4.2 डॉलर और उच्च आय वाले देशों के लिए 8.3 डॉलर की ग़रीबी रेखा निर्धारित की गई है। 3 डॉलर को अंतरराष्ट्रीय अति निर्धनता का पैमाना माना गया है। इसके अनुसार 2022-23 में भारत में 5.25 प्रतिशत लोग अति निर्धन थे। 3 डॉलर के पैमाने के अनुसार 2011-12 में 27.12 प्रतिशत लोग अति निर्धन थे। क्या इसका मतलब यह है देश में अति निर्धनता का स्तर 27.12 से गिरकर 5.25 हो गया है?
जवाब है- नहीं। पहला कारण– इन दोनों वर्षों में इस्तेमाल किए गए सर्वेक्षणों के तरीक़े (मेथोडोलॉजी) में भारी अंतर हैं, जिससे इनके नतीजों की तुलना नहीं की जा सकती। दूसरा कारण–मेथोडोलॉजी में व्यापक बदलाव के कारण 2022-23 का सर्वेक्षण निर्धनता के स्तर को कम करके आँकता है। इन वजहों से अति निर्धनता के नए पैमाने के तहत आने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आई है, किंतु यह जरूरी नहीं कि वास्तव में इतने सारे लोग अति निर्धनता से बाहर निकले हैं।
भारत के लिए विश्व बैंक, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा किए जाने वाले घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey–HCES) का उपयोग करता है। 2011-12 और 2022-23 में सर्वेक्षणों में जिस अवधि के लिए विभिन्न चीजों के उपभोग के आँकड़े इकट्ठा किए जाते हैं उसमें अंतर है। 2011-12 से पहले तक के सर्वेक्षणों में यह अवधि 30 दिन की होती थी। इस अवधि को यूनिफ़ॉर्म रिकॉल पीरियड कहते हैं। 2011-12 में यूनिफ़ॉर्म रिकॉल पीरियड के अलावा पहली बार मॉडिफ़ाइड मिक्स्ड रिफ़ेरेंस पीरियड का इस्तेमाल किया गया। मॉडिफ़ाइड मिक्स्ड रिफ़ेरेंस पीरियड में नाशवान चीजों के उपभोग पर पिछले 7 दिनों के आँकड़े इकट्ठा किए जाते हैं, जबकि अन्य चीजों पर 365 एवं 30 दिनों के आँकड़े।
यूनिफ़ॉर्म रिकॉल पीरियड और मॉडिफ़ाइड मिक्स्ड रिफ़ेरेंस पीरियड का इस्तेमाल ग़रीबों की संख्या को कितने नाटकीय रूप से बदलते हैं इसकी बानगी 2011-12 का सर्वेक्षण पेश करता है। यूनिफ़ॉर्म रिकॉल पीरियड के अनुसार 2011-12 में 22.9 प्रतिशत लोग अति निर्धन थे। जबकि मॉडिफ़ाइड मिक्स्ड रिफ़ेरेंस पीरियड के अनुसार यह प्रतिशत क़रीब आधा (13.4) हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि सामान्यत: जितनी लंबी अवधि के लिए उपभोग पर ख़र्च के सवाल पूछे जाते हैं, ख़र्च पर मिलने वाले जवाब के कम होने की आशंका उतनी ही ज़्यादा बढ़ जाती है। जितनी कम अवधि उतना अधिक ख़र्च का आँकड़ा।
इसके अलावा दो और महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जिनको संज्ञान में लेना आवश्यक है। 2022-23 के सर्वेक्षण में सरकारी योजनाओं से मिलने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं को भी परिवारों के व्यय में जोड़ा गया है। 2011-12 के सर्वेक्षण में इनको परिवारों के व्यय में शामिल नहीं किया गया था। इससे 2022-23 में परिवारों के उपभोग की मात्रा अपने आप बढ़ गई है। दूसरा बदलाव यह हुआ है कि 2011-12 में कुल 347 मदों पर हुए ख़र्च के आँकड़ों को इकट्ठा किया जाता था, जिनकी संख्या 2022-23 में बढ़कर 405 हो गई है। अगर किसी परिवार में उपभोग पर होने वाला खर्च 2011-12 और 2022-23 में समान रहता है, तो सर्वेक्षणों में हुए इन बदलावों की वजह से ऐसा होने की प्रबल संभावना है कि वो 2011-12 में उसे अति निर्धन माना गया था जबकि 2022-23 में उसे अति निर्धन नहीं माना गया।
बेहतर मानदंडों की ज़रूरत
सर्वेक्षणों में किए गए उपरोक्त बदलाव 2011-12 की तुलना में 2022-23 में ग़रीबी को कम दिखाते हैं। ये बदलाव इन दोनों सालों के बीच तुलना भी दूभर बना देते हैं। इसलिए 2011-12 और 2022-23 के अति निर्धनता के आँकड़ों की तुलना करते हुए सावधानी बरतने की ज़रूरत है। 2011-12 की तुलना में काफ़ी कम लोगों का वर्गीकरण अति निर्धन के तौर पर हुआ है, ऐसा कहा जा सकता है। लेकिन भारत में इस अवधि के दौरान कितने लोग अति निर्धनता से बाहर निकले हैं, यह विश्व बैंक के आँकड़ों के आधार पर कह पाना मुश्किल है।
3 डॉलर प्रतिदिन की रेखा भारत जैसे देश के लिए उपयुक्त नहीं है। यह दुनिया के सबसे निर्धनतम देशों में जीवनयापन के लिए आवश्यक ख़र्च का एक मानदंड है। आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति के साथ-साथ, और विशेषकर बाज़ार एवं विनिमय के बढ़ते प्रभुत्व के साथ-साथ मूलभूत ज़रूरतों पर होने वाले ख़र्च की मात्रा बढ़ती जाती है। बढ़ती राष्ट्रीय आय के साथ ग़रीबी के मानदंड को भी बदलना पड़ता है। 3 डॉलर प्रतिदिन की रेखा दुनिया के स्तर पर अति निर्धनता को मापने का प्रयास है।
लेकिन यह भारत जैसे देश में ग़रीबी की मुकम्मल तस्वीर सामने नहीं ला सकती। भारत को विश्व बैंक निम्न-मध्यम आय वाले देशों की सूची में रखता है। निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए विश्व बैंक ने 4.2 डॉलर (2021 PPP) की रेखा निर्धारित की है। इसके अनुसार भारत में क़रीब 24 प्रतिशत लोग अति निर्धन हैं। 4.2 डॉलर की यह रेखा भी निम्न-मध्यम आय वाले देशों की राष्ट्रीय ग़रीबी रेखाओं की माध्यिका ही है। भारत को यहाँ की ज़रूरतों एवं माँगों के अनुसार ग़रीबी के मानदंडों को निर्धारित करने एवं उसका अध्ययन करने के लिए रंगराजन एवं तेंदुलकर कमेटियों की तर्ज़ पर पहल करनी चाहिए। तभी देश में ग़रीबी की सही स्थिति सामने आ पाएगी।