ब्राज़ील के वामपंथियों के सामने उपस्थित चुनैतियाँ
परिचय
वे लोग जो ब्राज़ील की राजनीति पर नज़र रखते हैं, चाहे सतही तौर पर ही सही, उनके लिए यह ख़बर नहीं होनी चाहिए कि देश 1980 के दशक में नागरिक-सैन्य तानाशाही समाप्त होने के बाद से सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहा है, बल्कि कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि 1889 में सम्राट पेड्रो-II को सत्ता से हटाए जाने के बाद से ब्राज़ील गणराज्य के पूरे इतिहास में यह अब तक का सबसे मुश्किल दौर है। ब्राज़ील को ज़बरदस्त राजनीतिक और सामाजिक असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिए धुर-दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ज़िम्मेदार हैं, जो 2019 से औपचारिक रूप से राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हैं, लेकिन फिर भी देश के शासक वर्गों और सशस्त्र बलों के सामाजिक समर्थन और अनुमोदन के भरोसे सत्ता पर क़ाबिज़ हैं।
यदि उग्र-नवउदारवादी परियोजना को अपनाने के सामाजिक परिणाम काफ़ी नहीं थे, तो 2020 में कोरोनोवायरस महामारी का उद्भव और वायरस का मुक़ाबला करने में घंघोर नाकामी और लापरवाही के कारण सामाजिक, आर्थिक, और स्वास्थ्य परिदृश्य और भी बदतर हो गए हैं। सरकार ने बीमारी और विज्ञान दोनों को ही नकार दिया जो आँकड़ों से साफ़ ज़ाहिर होता है: अप्रैल 2021 तक, ब्राज़ील में COVID-19 से 4,00,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, यानी प्रति दिन 3,000 लोगों की मौत हुई। वायरस के नये रूप में सामने आने और मार्च 2020 में ब्राज़ील में पहली बार कोरोवायरस के आने के एक साल बाद स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के ध्वस्त होने के साथ ही यह देश दुनिया के लिए ख़तरा बन गया है।[i]
इस बीच, ब्राज़ील के वामपंथियों – जो पिछले एक दशक में होने वाली सभी बड़ी राजनीतिक लड़ाइयाँ हारते आए हैं – का उद्देश्य अपने सामाजिक आधार को फिर से संगठित करना तथा निर्मित करना है क्योंकि यह देश के राजनीतिक नेतृत्व को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रहा है। हम इस स्थिति में कैसे पहुँचे? समाज को संकट से निकालने के लिए इसके साथ संवाद स्थापित करने की क्या संभावनाएँ हैं?
ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान द्वारा लिखित डोजियर संख्या 40, ब्राज़ील के वामपंथियों के सामने उपस्थित चुनैतियाँ, वर्तमान राजनैतिक संदर्भ में ब्राज़ील के वामपंथियों के सामने उपस्थित चुनौतियाँ का विश्लेषण करता है। प्रगतिशील ताक़तों की संख्या और उनके बीच की विविधता तथा ब्राज़ील की राजनीतिक स्थिति की जटिलता को ध्यान में रखते हुए यह काम इतना भी आसान नहीं है। इसी वजह से हमने श्रमिक वर्गों के विभिन्न प्रतिनिधियों के साथ बात करने का विकल्प चुना ताकि इस प्रक्रिया में मदद मिल सके। हमने नेशनल यूनियन ऑफ़ स्टूडेंट्स (UNE) की उपाध्यक्ष और पोपुलर यूथ अपराइज़िंग (लेवांते पोपुलार दा जुवेंतुदे) की एक सदस्य एलिडा एलेना; यूनिफ़ाइड वर्कर्स सेंट्रल (CUT) के राष्ट्रीय कार्यकारी बोर्ड की सदस्य जंदीरा उहारा; सोशलिज्म एंड फ़्रीडम पार्टी (PSOL) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जूलियानो मेडेइरोस; भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (MST) के राष्ट्रीय बोर्ड की सदस्य केली माफ़र्ट; एक सीनेटर और वर्कर्स पार्टी (पीटी) की अध्यक्ष ग्लीसी हॉफ़मैन; और फ़ेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ़ साओ पाउलो (IFSP) के प्रोफ़ेसर तथा PSOL के राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्य वलेरियो आर्करी का साक्षात्कार लिया।.
डोजियर को पाँच खंडों में विभाजित किया गया है। पहला खंड उन रास्तों के विश्लेषण से संबंधित है जिस पर हाल के वर्षों में ब्राज़ील के वामपंथ ने यात्रा की है; दूसरे खंड में दक्षिणपंथी ताक़तों के टूटने और उनके मेलजोल का विश्लेषण किया गया है; तीसरे खंड में एकता को बढ़ावा देने वाले उपकरणों के बारे में चर्चा की गई; और चौथा एक लोकप्रिय आधार के निर्माण की चुनौतियों का आकलन करता है।[ii] अंत में, पाँचवाँ खंड देश के सबसे महत्वपूर्ण लोकप्रिय नेता पूर्व राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा की भूमिका को दर्शाता है।
इस डोजियर में जिन तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है वह प्रोजेक्ट एक्टिविस्ट डिज़ाइन (डिज़ाइन एतिविस्ता) का एक हिस्सा हैं, एक समूह (क्लेक्टिव) जो ब्राज़ील में 2018 के चुनावों के दौरान मुक्त कला और सूचना के निर्माण तथा वितरण को बढ़ावा देने, नक़ली समाचारों का मुक़ाबला करने और लोकतंत्र का समर्थन करने के उद्देश्य के साथ उभरकर आया। इस अवधि के दौरान, समूह ने कला के दृश्य कार्यों को इकट्ठा किया तथा डिज़ाइन मैराथन और बड़े समारोहों का आयोजन किया, जिस दौरान उन्होंने अधिक मानवीय और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में योगदान देने में डिज़ाइन की भूमिका पर बहस की।
ब्राज़ील के वामपंथ के वर्तमान स्थिति का विश्लेषण
राजनीतिक संगठनों और विशेषज्ञों के अनुसार हाल के दशकों में ब्राज़ील के वामपंथ ने जो पराजय झेली है उनमें से कई हार उस रणनीतिक समझ का परिणाम है जिसका इस क्षेत्र में वर्चस्व रहा है। वर्कर्स पार्टी (पीटी) की तेरह साल की सत्ता के दौरान इस दृष्टिकोण ने संस्थागत संघर्ष को प्राथमिकता दी, जो कि गहरे संरचनात्मक सुधारों की क़ीमत पर था, जो श्रमिक वर्ग को ब्राज़ील की सत्ता में वापस आने के दरवाज़े खोल सकता है।
इसमें कोई शक नहीं है कि पीटी प्रशासन द्वारा लागू की गई नीतियों से ब्राज़ील की आबादी के एक बड़े हिस्से के जीवन में बहुत सुधार आया है। इन कई उपायों में से कुछ हैं: आय पुनर्वितरण नीति बोलसा फ़ेमिलिया (’परिवार को आर्थिक सहायता’), जिसकी वजह से लगभग 3.6 करोड़ लोग अत्यधिक ग़रीबी से बाहर निकले [iii]; आवास कार्यक्रम मिनहा कासा मिनहा विदा (‘मेरा घर मेरा जीवन’), जिसके अंतर्गत 4 लाख से अधिक श्रमिक वर्ग के लोगों के घर बनाए गए [iv];
न्यूनतम मज़दूरी में वृद्धि करके उसे मुद्रास्फीति की दर से ऊपर किया गया; औपचारिक रोज़गार में वृद्धि; सामाजिक असमानता में कमी; और सार्वजनिक तथा निजी विश्वविद्यालयों में शहरी हाशिये पर रहने वाले युवाओं के नामांकन में वृद्धि। निश्चित रूप से, वर्कर्स पार्टी के सत्ता में आने के पीछे 1990 तथा 2000 के दशक में पूरे लैटिन अमेरिका में उठने वाली प्रगतिशील लहर की भी भूमिका है, ये जीत पूरे महाद्वीप में नवउदारवादी नीतियों के परिणामों से प्रेरित थी।
हालाँकि इस बात के लिए पीटी की अधिकतर आलोचना की जाती है कि पीटी ने विभिन्न वर्गों से समर्थन प्राप्त करने और सामाजिक-आर्थिक उपायों को लागू करने के लिए राजनीतिक निर्णय लिया, मगर अधिकांश श्रमिकों को राजनीतिक रूप से शिक्षित करने के लिए कोई तरीक़ा नहीं अपनाया। इसका नतीजा यह हुआ कि यह प्रक्रिया मध्यम और श्रमिक वर्ग के लोगों की वर्ग चेतना के स्तर को बढ़ाने में विफल रही। इसका परिणाम 2016 में पूर्व राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ़ (पीटी) के ख़िलाफ़ तख़्तापलट के रूप में सामने आया, जिसकी वजह से किसी प्रकार का व्यापक विरोध नहीं किया जा सका जिससे महाभियोग की कार्यवाही के परिणाम को पलटा जा सके। दो साल बाद 5.78 करोड़ वोट (55%) के साथ बोलसोनारो के चुनाव ने इस सबक़ की ज़रूरत का और ज़्यादा एहसास कराया।
एलिडा एलेना (यूएनई) ने हमें बताया, ‘भले ही इस अवधि के दौरान ब्राज़ील में प्रगतिशील सरकारों द्वारा सामाजिक असमानता को कम करने के लिए बहुत से प्रयास किए गए, लेकिन श्रनिक वर्ग को संगठित करने के काम को प्राथमिकता नहीं दी गई और न ही समाज में वैचारिक संघर्ष हुआ। जब तख़्तापलट हुआ, तब पीटी [इसे रोकने के लिए] उन लोगों पर भरोसा करने में सक्षम नहीं था, जिन्हें उसकी नीतियों से लाभ मिला था: यानी श्रमिक वर्ग‘। ऐलेना ने यह भी बताया कि दिल्मा रूसेफ़ के सत्ता से हटने के बाद श्रमिक वर्ग पर हमले हुए, श्रम अधिकारों तथा श्रमिक संघ संगठनों को कमज़ोर किया गया जिससे उनके लड़ने की क्षमता कम होती चली गई। ‘इसलिए, हम तर्क देते हैं कि ब्राज़ील के वामपंथियों को रणनीतिक हार का सामना करना पड़ा है, और समाज में ताक़तों का परस्परिक संबंध हमारे लिए प्रतिकूल है।‘
केली माफ़र्ट (MST) का मानना है कि ब्राज़ील के वामपंथियों को लगातार जिस प्रकार से हार का सामना करना पड़ा है उसे रणनीतिक हार का संकेत नहीं मना जा सकात है, ऐसा तब होता है जब एक वर्ग दूसरे राजनीतिक कर्ताओं द्वारा बेअसर कर दिया जाता है। ‘हमने निश्चित रूप से कई राजनीतिक पराजयों का सामना किया है, लेकिन श्रमिक वर्ग अभी भी जीवित है और पूँजी के संकट के प्रभावों का सामना कर रहा है।‘
ब्राज़ील में श्रमिक वर्ग के हितों को आगे बढ़ाने के लिए अंतिम सफल रणनीति लोकप्रिय लोकतांत्रिक रणनीति (एस्रातेजिया डेमोक्रेतिको-पोपुलार) थी। यह रणनीति नागरिक-सैन्य तानाशाही के अंत और उसके बाद लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए होने वाले संघर्षों के बीच निर्मित हुई थी और जो 1970 और 1980 के दशक के अंत में बड़े पैमाने पर होने वाले संघर्षों के उदय के केंद्र में थी।
लोकप्रिय लोकतांत्रिक रणनीति दो बुनियादी कार्यनीति (टैक्टिक्स) को मिलाकर बनाई गई है। पहली, इसने नगरपालिका, राज्य और संघीय चुनावों के माध्यम से राज्य के भीतर शक्ति को मज़बूत करके संस्थानों पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश की। दूसरी, इसने हड़ताल, भूमि पर क़ब्ज़े, लामबंदी और जन संघर्षों के माध्यम से श्रमिक वर्ग को संगठित करने की कोशिश की।
हालाँकि, मफ़ोर्ट बताती हैं कि, ‘जैसे ही लोकप्रिय लोकतांत्रिक रणनीति को अमल में लाया गया, ये कार्यनीति अलग-अलग हो गई, और धीरे-धीरे संस्थानों के ज़रिये [काम करने वाली] कार्यनीति श्रमिक-वर्ग के आंदोलन [वाली कार्यनीति] पर हावी हो गई। जैसे ही ऐसा हुआ तो जो पहले कार्यनीति (टैक्टिक्स) थी वह अब रणनीति (स्ट्रैटेजी) बन गई; [इस बदलाव ने] संगठनों को संगठन निर्माण के काम को प्राथमिकता देने के बजाये सरकार के भीतर रहकर काम करने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा, लूला और दिल्मा के नव-विकासवादी प्रशासन के दौरान राजनैतिक रूप से ऐसे बहुत से ग़लत क़दम उठाए गए जिससे सरकार और श्रमिक वर्ग के संगठनात्मक उपकरण के बीच का अंतर समाप्त हो गया।‘
कुछ ऐसे ही विचार जूलियानो मेडेइरोस (PSOL) के हैं जो बताते हैं कि ‘एक रणनीति जिसने अपने दृष्टिकोण को राज्य के प्रबंधन, उदार लोकतंत्र के खेल के नियमों, [और] बिना संरचनात्मक सुधारों के जीवन की परिस्थितियों को बेहतर करने तक सीमित कर लिया‘ उसके हार को स्वीकार नहीं किया जाए यह असंभव है। मेडेइरोस ने समझाया कि ‘वामपंथी तबक़े ने राज्य के मार्फ़त परिवर्तनों को बढ़ावा देने का विकल्प चुना, जिसकी वजह से श्रमिक वर्ग के क्षेत्रों के साथ उसका संपर्क कमज़ोर हो गया। 1980 के दशक में लोकतांत्रीकरण की प्रक्रिया से ब्राज़ील के समाज में उभरने वाले सामाजीकरण के रूपों को उन चीज़ों द्वारा बदल दिया गया जिनकी जड़ें नवउदारवादी विचारधारा और व्यक्तिवाद में जमी हुई हैं। और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि [सरकारी] संस्थानों के माध्यम से न्यायसंगत और आवश्यक संघर्ष को लागू करने के क्रम में वामपंथ ज़मीनी स्तर पर [जहाँ लोग रहते हैं और सामाजिक जीवन जीते हैं] संगठन बनाने के काम से दूर होता चला गया, लेकिन इससे दुश्मन को इन स्थानों पर क़ब्ज़ा जमाने का मौक़ा मिल गया।‘ मेडेइरोस ने शक्ति के जिस निर्वात का उल्लेख किया है उसी ने धुर दक्षिणपंथ को मज़बूती प्रदान की है। जैसा कि जंदीरा उहारा (CUT) बताती हैं, वामपंथी संगठनों के भीतर ठीक तरह से प्रतिक्रिया नहीं दे पाने की अक्षमता ‘आकाश से वज्रपात की तरह अचानक से नहीं गिरा‘; बल्कि, यह ‘लगभग तीन दशकों के वर्गीय समझौते की राजनीति; [श्रमिक वर्ग] के कार्यक्रम के कमज़ोर पड़ने; श्रमिक वर्ग के बीच आधार बनाने, राजनीतिक शिक्षा देने तथा वैचारिक संघर्ष को संस्थागत और चुनावी संघर्ष की व्यापकता से दूर करने का परिणाम था‘।
जैसा कि यूनियन लीडर ने ख़ुद बताया कि इस तरह की हार न केवल वामपंथियों की ग़लतियों की वजह से हुई, बल्कि दक्षिणपंथ की ओर से होने वाले हमले की वजह से भी ऐसा हुआ, जो विशेष रूप से प्रमुख मीडिया संस्थानों द्वारा किया गया। पीटी प्रशासनों के सत्ता में आने के बाद से ही मुख्यधारा की मीडिया द्वारा एक कहानी गढ़ी गई जिसने राजनीति को अपराधिक कृत्य बना दिया और समाज को राजनीतिक बहसों से अलग कर दिया। इसने भ्रष्ट और ‘सिस्टम द्वारा नियंत्रित‘ के रूप में वामपंथ की छवि गढ़कर विशेष रूप से पीटी का तथा सामान्य रूप से वामपंथ का अपराधीकरण कर दिया।
वेलेरियो आर्करी (PSOL) वामपंथ की कार्यनीतिक अदूरदर्शिता के बारे में बताते हैं, जिसने ‘हमें चुनौति देने वाले ख़तरे को’ कम करके आँका’। आर्करी ने इस श्रेणी में आने वाली घटनाओं को क्रमवार सूचीबद्ध किया: ‘[ऑपरेशन] कार वॉश को कम करके आँका गया, उसके बाद महाभियोग चलाने और वामपंथ तथा लूला के अपराधीकरण का अवसर मिला; फिर, लूला की गिरफ़्तारी; फिर, आख़िरकार, बोलसोनारो द्वारा उत्पन्न ख़तरा। वर्ग शत्रुओं की शक्ति को कम आँकना घातक था।‘
आर्करी ने हाल के वर्षों में ब्राज़ील के वामपंथ द्वारा लगातार की गई विश्लेषणात्मक गलतियों का उल्लेख किया जब दक्षिणपंथ ने आक्रमण तेज़ करना शुरू किया। उदाहरण के लिए, ऑपरेशन कार वॉश के निहितार्थों को समझने के लिए प्रगतिशील शक्तियों के महत्वपूर्ण हिस्से को काफ़ी अधिक समय लग गया।[v]
जब दिल्मा रूसेफ़ को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो कुछ लोगों को विश्वास नहीं था कि संसद द्वारा की जाने वाली इस तरह की पहल को सफलता मिलेगी। उनका तर्क था कि वर्कर्स पार्टी के राष्ट्रपति की आर्थिक नीति पहले से ही शासक वर्ग को लाभान्वित कर रही थी है और बुर्जुआ वर्ग राजनीतिक अस्थिरता में रुचि नहीं लेगा।[vi]
फिर से, वर्षों बाद, कई लोगों को विश्वास नहीं था कि पूर्व राष्ट्रपति लूला को गिरफ़्तार किया जाएगा क्योंकि – जैसा कि वे उस समय तर्क देते थे – दक्षिणपंथ को इस बात का डर होगा कि पूर्व राष्ट्रपति की गिरफ़्तारी को बाद श्रमिक वर्ग के भीतर विद्रोह हो जाएगा। हालाँकि, जब जज सर्जियो मोरो ने 2017 में लूला के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया ताकि लूला को राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने से रोका जा सके और आख़िरकार जब लूला को 2018 में गिरफ़्तार किया गया, तब भी ऐसा कुछ नहीं हुआ। तब, जब बोलसोनारो ने घोषणा की कि वह 2018 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगे तो कईयों ने अनुमान लगाया कि ब्राज़ीलियाई सेना के पूर्व कप्तान को 8% से अधिक लोगों का समर्थन नहीं मिलेगा। हालाँकि, पहले दौर के चुनावों में बोलसोनारो ने बढ़त बनाई और दूसरे दौर में वर्कर्स पार्टी के फ़र्नांडो हद्दाद के ख़िलाफ़ 55% मतों से जीत हासिल की।
इतने सारे अवरोधों के सामने, नवउदारवादी विचारधारा, व्यक्तिवाद और उद्यमशीलता के मज़बूत प्रभाव को कमज़ोर समाजवादी विचारधारा से कोई गंभीर चुनौती नहीं मिली, जिनके संगठनों ने व्यापक रूप से पूँजीवाद-विरोधी, साम्राज्यवाद-विरोधी गुणों को छोड़ दिया, संगठन और आधार बढ़ाने के काम को ठंडे बस्ते में डाल दिया और उसकी जगह अपने प्रयासों को संस्थागत और चुनावी संघर्ष के लिए समर्पित कर दिया।
जंदीरा उहारा (CUT) ने स्पष्ट किया कि दक्षिणपंथ को एक उपजाऊ ज़मीन मिली ताकि ‘श्रमिक वर्ग, जिनमें से अधिकांश असंगठित क्षेत्र के मज़दूर हैं’ पर जीत हासिल कर सकें। ‘ये श्रमिक वर्ग यूनियन, जन आंदोलन या वामपंथी दलों के स्थायी प्रभाव में नहीं हैं, जिन्होंने धीरे-धीरे उन क्षेत्रों को छोड़ दिया है [जहाँ वे पहले अपने राजनीतिक संघर्ष को संगठित करते थे], उसकी जगह कॉर्पोरेट और आर्थिक संघर्ष के साथ-साथ चुनावी जीत को प्राथमिकता देने लगे हैं। इस बीच, राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष करने के लिए दक्षिणपंथ ने उन इलाक़ों में जड़ें जमानी शुरू कर दी हैं जहाँ श्रमिक वर्ग रहते हैं।‘
इतिहास की दुखद पुनरावृत्ति
2008 के आर्थिक संकट के तुरंत बाद, अमेरिका ने एक नये नवउदारवादी आक्रमण की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य वैश्विक आधिपत्य और नियंत्रण को फिर से हासिल करना था। इस बीच, ब्राज़ील में, वर्कर्स पार्टी प्रशासन की जटिल राजनीतिक और वर्ग संरचना ने ख़ुद को साम्राज्यवादी रणनीतियों के प्रभाव में लाकर समाप्त करना शुरू कर दिया। मज़दूरों के अधिकारों में कटौती किए बिना पूँजीपतियों के लाभ को बनाए रखना संभव नहीं था। शासक वर्ग और वर्कर्स पार्टी सरकार के बीच जो संबंध विच्छेद हुआ एक-एक कर उसका डिज़ाइन अमेरिकी साम्राज्यवाद के अदृश्य हाथ द्वारा निर्मित किया गया था।
2014 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में उदारवादी दक्षिणपंथी दल ब्राजीलियन सोशल डेमोक्रेसी पार्टी (PSDB) के आएसियो नेवेस को दिल्मा रूसेफ़ के हाथों हार का सामना करना पड़ा। एक चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से पूर्ण-विकसित नवउदारवादी परियोजना को लागू करने में विफल होने के बाद ब्राज़ील के बुर्जुआ वर्ग के प्रभावशाली समूहों ने दो अलग तरीक़े की कार्यनीति पर काम करना शुरू किया। सबसे पहले, उन्होंने दिल्मा रूसेफ़ के ख़िलाफ़ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की; फिर, बाद में, उन्होंने लूला को राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से रोक दिया और जायर बोलसोनारो के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का समर्थन किया। नवफ़ासीवादी लक्षणों के साथ एक सत्तावादी व्यक्ति, बोलसोनारो एकमात्र उम्मीदवार था जो 2018 के चुनावों में पीटी पर जीत हासिल करने में सक्षम था।
तख़्तापलट द्वारा दिल्मा को सत्ता से हटाए जाने के तुरंत बाद, एक मज़बूत और सफल नवउदारवादी तथा कटौती की नीति लागू की गई ताकि तेरह साल के दौरान वर्कर्स पार्टी की सरकारों द्वारा हासिल की गई जीत को ख़त्म किया जासके। सरकार को कमज़ोर कर दिया गया था, जिससे ब्राज़ील और अंतर्राष्ट्रीय बुर्जुआ को सार्वजनिक संसाधनों के बड़े हिस्से को लूटने की अनुमति मिल गई। देश ने सभी अंतर्राष्ट्रीय मामलों, मंचों और निकायों में बिना किसी शर्त के संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपना संबंध फिर से जोड़ लिया और वेनेजुएला तथा बोलिवेरियन क्रांति की प्रक्रिया के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय अभियान में स्पष्ट रूप से शामिल हो गया।
तख़्तापलट के पाँच साल बाद और बोलसोनारो के चुनाव के दो साल बाद, ब्राज़ील एक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में अपने इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य त्रासदी में डूब गया है।[vii] संघीय सरकार द्वारा स्वास्थ्य संकट के कुप्रबंधन ने देश को – भारत के साथ – मार्च-अप्रैल 2021 तक महामारी का केंद्रबिंदु बना दिया है, ऐसा तब हो रहा है जब वैश्विक स्तर पर वायरस का संचरण धीमा पड़ गया था। इन संकटों के अभिसरण ने लोगों के रहन-सहन की स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया है और इससे भूख और ग़रीबी के साथ-साथ कोरोनावायरस के नये रूप और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के पतन में वृद्धि हुई है।[viii]
बोलसोनारो प्रशासन की जानबूझकर नरसंहार की नीतियों के सामने महामारी केवल बदतर होती जा रही है। सरकार ने अभी भी वायरस को नियंत्रित करने और उससे लड़ने के लिए कार्रवाई नहीं की है, और उन लोगों की बेतहाशा मौत हो रही है जिन्हें देखभाल की सुविधा नहीं मिल पारही है। इसकी वजह से उदारवादी दक्षिणपंथ धीरे-धीरे और लगातार सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहा है।[ix]
हालाँकि अधिक अधिनायकवादी भाषणों और महामारी से लड़ने के लिए उठाए गए क़दमों को लेकर उन्हें कुछ असुविधा हो रही है, लेकिन दक्षिणपंथ उग्र-नवउदारवादी परियोजना के कार्यान्वयन का समर्थन करना जारी रखे हुए है जिससे श्रम और सामाजिक अधिकारों पर हमला हो रहा है।
जंदीरा (CUT) बताती हैं ‘धुर-दक्षिणपंथ और पारंपरिक [उदार] दक्षिणपंथ के बीच राजनीतिक संघर्ष की व्यापकता सांस्थानिक उपकरणों के नियंत्रण के बारे में असहमति और विरोधाभासों पर आधारित है, जिसकी वजह से ब्राज़ील में हमारे पास सीमित लोकतंत्र है। यह विशेष रूप से एसटीएफ़ [सुप्रीम कोर्ट] और न्याय प्रणाली के अन्य उपकरणों तथा राष्ट्रीय कांग्रेस के मामले में साफ़ तौर पर दिखाई देता है। नवउदारवादी कार्यक्रम के इर्दगिर्द की यह एकता जनसंहारक बोलसोनारो प्रशासन के लचीलापन के स्तंभों में से एक है। सेना और बोलसोनारो के लोकप्रिय समर्थन का आधार, जो काफ़ी हद तक, इवानजेलिकल चर्चों से मिलता है, [बोसोनारो के लिए] समर्थन के दो अन्य स्तंभ हैं‘। जंदीरा ज़ोर देकर कहती हैं कि अधिकांश दक्षिणपंथ के लिए बोलसोनारो अपने आप में अंतिम साध्य का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, बल्कि वह केवल ‘उग्र-उदारवादी नीतियों को लागू करने के साधन मात्र हैं’।
घरेलू बुर्जुआ वर्ग के एक बड़े हिस्से के समर्थन के अलावा, वैलेरियो आर्करी (PSOL) बोलसोनारो के समर्थन के चार अन्य स्तंभों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं:
- स्वास्थ्य व्यवस्था की अराजक स्थिति के बावजूद ब्राज़ील की आबादी के लगभग एक तिहाई हिस्से का अविश्वसनीय समर्थन मिल रहा है;[x]
- श्रमिक वर्ग लगातार मिलने वाली हार से हतोत्साहित है;
- बोलसोनारो के सामने मौजूदा विकल्पों की कमज़ोरी; तथा
- स्वयं महामारी, जिसने श्रमिक वर्ग द्वारा लोगों को इकट्ठा कर पाने की क्षमता को सीमित कर दिया है।
मोटे तौर पर, वर्तमान ब्राज़ीलियाई राजनीतिक फ़लक चार व्यापक क्षेत्रों से मिलकर बना है: धुर-दक्षिणपंथ, उदारवादी-दक्षिणपंथ, मध्यमार्गी-वामपंथ और वामपंथ। जूलियानो मेडेइरोस (PSOL) ने हमें बताया कि ‘इनमें से कौन-सा क्षेत्र अभी भी [राजनीतिक] परियोजना तलाश कर रहा है? वह है मध्यमार्गी-वामपंथ तथा उदारवादी-दक्षिणपंथ। लोकतंत्र के संकट ने अतिवादियों को मज़बूत किया है’।
इस बीच, केली माफ़र्ट (MST) का मानना है कि उदारवादी-दक्षिणपंथ का प्रभाव समाप्त हो जाने के बाद से मुख्य संघर्ष धुर-दक्षिणपंथ तथा वामपंथ के बीच हो रहा है। अब, उदारवादी-दक्षिणपंथ के सामने सबसे बड़ी समस्या एक ऐसे राजनीतिक नेता को तलाशने की है जो लोगों से संवाद स्थापित कर सके। हालाँकि, केली माफ़र्ट इस बात को रेखांकित करती हैं कि ‘यह याद रखना हमेशा महत्वपूर्ण है कि धुर-दक्षिणपंथ तथा [उदारवादी] दक्षिणपंथ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं: यानी बुर्जुआ वर्ग के। मज़बूती से पूँजी का विरोध करके तथा श्रमिक वर्ग द्वारा हमें जो वैधता मिली है उसके सहारे हमें इनसे लड़ना होगा।‘
संयुक्त मोर्चा बनाम वाम मोर्चा
वेलेरियो आर्करी (PSOL) का तर्क है कि स्वास्थ्य प्रणाली के पतन के बीच बोलसोनारो को उखाड़ फेंकने के लिए वस्तुनिष्ठ स्थिति इतनी परिपक्व है, जो सड़ांध पैदा करने लगी हैं, और वे व्यक्तिपरक स्थितियों की तुलना में तेज़ी से विकसित हो रही हैं। हालाँकि, जो शक्तियाँ धुर-दक्षिणपंथी सरकार को चुनौती दे रही हैं उनके बीच भी आधिपत्य को लेकर विवाद है: यानी वामपंथ और उदारवादी-दक्षिणपंथ के बीच। आर्करी का मानना है कि ‘धुर-दक्षिणपंथ के ख़िलाफ़ संघर्ष के 100 वर्षों का अनुभव, ख़ासकर जब धुर-दक्षिणपंथ का नेतृत्व फ़ासीवादी चरित्र की राजनैतिक धारा कर रही हो तब, बताता है कि एक व्यापक वाम मोर्चा सबसे अच्छी कार्यनीति है‘। ऐसा इसलिए नहीं है कि वामपंथ धुर-दक्षिणपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई में उदारवादी दक्षिणपंथ के साथ मिलकर नहीं लड़ना चाहेगा, ‘बल्कि इसलिए कि उदारवादी दक्षिणपंथ इस बात से डरता है, और उसका डर वाजिब भी है कि सामाजिक संकट वामपंथी सरकार के सत्ता में आने के दरवाज़े खोल सकता है‘।
जंदीरा उइहारा (CUT) को ऐसा लगता है कि जब संकट और गहरा जाएगा तो वामपंथ तथा मध्यमार्गी-दक्षिणपंथ [उदारवादी दक्षिणपंथ] के सभी खेमे ‘बोलसोनारो गद्दी छोड़ो’ के नारे के साथ एकट्ठे हो जाएँगे। लेकिन मौजूदा फ़ासीवादी हमले के विरोध में सभी शक्तियों को साथ आकर एक संयुक्त मोर्चा बनाने लेने की स्थिति में- जिसकी वकालत वामपंथ और मध्यमार्गी-वामपंथ के कुछ ख़ेमे कर रहे हैं- उनकी राय में, इन ताक़तों को सामाजिक ऐतिहासिक प्रक्रिया के संदर्भ में दो-स्तरीय दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह दृष्टिकोण अधिकारों और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा में होने वाले संघर्ष से लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष को अलग करेगा। यदि यह दृष्टिकोण प्रबल होता है, तो उहेरा भविष्यवाणी करती हैं कि वामपंथ उदारवादी दक्षिणपंथ का बंधक बन जाएगा, जिससे हाल के वर्षों में लागू नवउदारवादी परियोजना को पलटना और भी मुश्किल हो जाएगा। ‘हमारे दृष्टिकोण से, [पूरी तरह से] इसे तोड़े बिना [इस परियोजना] को समाप्त करने की कोई संभावना नहीं है, और जब तक शोषणकारी व्यवस्था के अंतर्गत लोगों को वंचित रखा जाएगा, पूँजावाद के हाशिये पर रहने वाले अधीनस्थ ब्राज़ील में असमानताएँ और अधिक गहरी होती रहेंगी तब तक राष्ट्रीय एकता का कोई मतलब नहीं है’।
ग्लीसी हॉफ़मैन (पीटी) जिस तरह से परिकल्पना करती हैं उससे यह भिन्न मत है, वो मानती हैं कि ब्राज़ील जिस संकट को दौड़ से गुज़र रहा है उसके लिए व्यापक राजनीतिक गठबंधन की आवश्यकता है, ‘ज़रूरी नहीं कि एक चुनावी [गठबंधन] हो, [लेकिन] राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक क्षेत्र के सभी लोग जो टीके, आपातकालीन सहायता और नौकरियों के साथ-साथ वे सभी लोग जो ‘फोरा बोलसोनारो’ (बोलसोनारो गद्दी छोड़ो) के नारे के साथ बोलसोनारो को हराने के लिए लड़ रहे हैं उन सबको एक साथ लाने के लिए यह ज़रूरी है।’
यह व्याख्या एलिडा एलेना (UNE) द्वारा प्रस्तुत किए गए विश्लेषण के अनुरूप है, जो दो मोर्चों के संयोजन का समर्थन करती हैं: एक लोकप्रिय वामपंथी मोर्चा और एक लोकतांत्रिक मोर्चा। ‘बुनियादी सबक़ … [यहाँ] यह है कि लोकतांत्रिक प्रश्न को सामाजिक प्रश्न से अलग नहीं किया जा सकता है, पूँजीवाद के गंभीर संकट के परिणामस्वरूप यह बात और भी स्पष्ट हो जाता है। यह लोकतंत्र का बचाव करने के बारे में है, लोकतंत्र की बिगड़ती स्थिति के बावजूद, क्योंकि यह राजनीतिक संघर्ष छेड़ने के लिए सबसे उपयुक्त स्थल है। पुलिस राज्य या यहाँ तक कि एक फ़ासीवादी राजनीतिक शासन के विन्यास को रोकने की ज़रूरत है जहाँ श्रमिक वर्ग संघर्ष और संगठन के लिए स्थितियाँ काफ़ी प्रतिकूल हो जाएँगी।‘ इसका मतलब होगा एक लोकतांत्रिक मोर्चे का निर्माण और लोकतंत्र की रक्षा के लिए और नवफ़ासीवाद को कमज़ोर करने, अलग-थलग करने तथा हराने के लिए समाज के विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ लाना।
ऐलेना का मानना है कि श्रमिक वर्ग के वामपंथी मोर्चे का निर्माण करना और उसे मज़बूत करना ज़रूरी है, ‘ब्राज़ील को संकट से बाहर निकालने के लिए लोकतांत्रिक शक्तियों तथा जन आंदोलनों को रणनीतिक क्षमता के साथ एक-दूसरे के क़रीब आना होगा। इसमें लोगों के सामाजिक अधिकारों का बचाव करना, नस्लवाद के ख़िलाफ़ अश्वेत लोगों के संघर्ष और उन सभी ऐतिहासिक उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना जो ब्राज़ील को श्रमिकों का दमन करते हैं, और [अर्थव्यवस्था मंत्री] पॉलो गुएडेस की नवउदारवादी नीति के ख़िलाफ़ निरंतर संघर्ष शामिल है।‘
फ़्रेंते ब्राज़ील पॉपुलर (‘पॉपुलर ब्राज़ील फ्रंट’) और फ़्रेंते पोवो सेम मेदो (‘ पीपुल विदाउट फ़ियर फ्रंट’) दोनों 2015 में गठित हुए, दोनों में ही दर्जनों वामपंथी राजनीतिक संगठन शामिल हैं। फ़्रेंते ब्राज़ील पॉपुलर का स्वरूप व्यापक है और राजनीतिक दलों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि फ़्रेंते पोवो सेम मेदो विशेष रूप से सामाजिक और श्रमिक आंदोलनों से मिलकर बना है। ये दो मोर्चे एक राजनीतिक परियोजना और राष्ट्र के लिए एक परियोजना का निर्माण करने के लिए आवश्यक हैं। दोनों ही श्रमिक-वर्ग को संगठित करने और नवउदारवादी सुधारों के ख़िलाफ़ संघर्ष में मध्यमार्गी-वाम के साथ एकता का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
जैसाकि केली माफ़र्ट रेखांकित करती हैं चाहे जो भी कार्यनीति अपनाई जाए इसके बावजूद इस बात को लेकर आपस में सहमति है कि वर्तमान संकट को कम करने या उससे उबरने के लिए एक रास्ता बनाने की ज़रूरत है। केली माफ़र्ट कहती हैं कि MST ने अभी के लिए फ़ैसला किया है कि वह अपने राजनैतिक कार्यक्रम तथा दृष्टि के इर्द-गिर्द एकता बनाने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगा ‘क्योंकि हमारा आकलन है कि सामूहिक संघर्षों में गिरावट के समय ऐसा करने से अत्यधिक-अकादमिक विचारों के परिणामस्वरूप गलतियाँ हो सकती हैं या अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए संघर्ष के क्रम में ऐसी ग़लतियाँ हो सकती हैं जिससे वर्ग संघर्ष को आगे बढ़ाने में कोई मदद ही न मिले। इसलिए, हमने राजनीतिक माँगों के इर्द-गिर्द एकता बनाने की कोशिश की है, जो हमेशा ही हमारे गठबंधनों का प्राथमिक आधार रहा है।
तत्कालिक राजनीतिक माँगों को लेकर बनने वाली एकता ने ब्राज़ील के वामपंथ के बीच कार्रवाई में भी एकता पैदा की है, जैसा कि उदाहरण के तौर पर इन तीन प्रमुख माँगों को लेकर देखा जा सकता है: लोगों के लिए वैक्सीन की उपलब्धता, 600 डॉलर प्रति माह की आपातकालीन सहायता, और बोलसोनारो के ऊपर महाभियोग।
केली माफ़र्ट (MST) ने कहा कि ‘हम राजनीतिक प्रतिबिंबन के दौर में जी रह रहे हैं ताकि हम रणनीतिक प्रक्षेपण में सुधार कर सकें, और इसमें कैंपो पॉपुलर [सामाजिक आंदोलनों और संगठनों] तथा वामपंथ के बीच विखंडन साथ-ही-साथ ही आधिपत्य तथा दीर्घकालिक रणनीति के बजाय कार्यनीति पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना शामिल है। हम उन अनुभवों को बढ़ावा देते हैं, जो हमें सामूहिक राजनीतिक ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, जो आधार बनाने, राजनीतिक शिक्षा और अधिक आक्रामक संघर्ष की तैयारी के माध्यम से समय के साथ जमा होते रहते हैं, मगर उसके साथ ही हम प्रमुख मुद्दों के बारे में एकता का निर्माण करने का लक्ष्य भी रखते हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि पूरे वामपंथ के लिए एकता बना पाना लम्बे समय से एक चुनौती तथा ऐतिहासिक आवश्यकता रही है। इस अर्थ में, एलिडा ऐलेना (यूएनई) का मानना है कि वामपंथ का विखंडन उसे बहुत महंगा पड़ेगा। यह दो परिदृश्यों को जन्म दे सकता है: एक तरफ़, बोलसोनारिज़्म के लिए एक चुनावी जीत और समाज में फ़ासीवाद का एक त्वरित उदय या, दूसरी ओर, एक वैकल्पिक उदारवादी दक्षिणपंथ का गठन, जो नवउदारवादी आर्थिक परियोजना को जारी रखेगा।
वह आगे जोड़ती हैं, ‘अगर हम ख़ुद को खंडित करते हैं, तो कोई भी वामपंथी ताक़त नहीं जीतेगी। हमें आधिपत्य के लिए संघर्ष किए बिना एक अनुकूल वातावरण बनान होगा, हम मतभेदों का सम्मान करें, किसी विशिष्ट संगठनात्मक माँगों से अधिक प्रासंगिक है कि हम कोई ऐसी कार्यनीति अपनाएँ जो हमें एकजुट करे- और वह ब्राज़ील में नवफ़ासीवाद के उदय को हराना’।
आधार का निर्माण
हालाँकि, अधिकांश वामपंथी संगठनों के शब्दों में, ब्राज़ील- पाउलो फ़रेरे का देश, जो 2021 में 100 साल के हो जाएँगे – में वर्षों से प्रगतिशील तबक़ा एक ऐसा आधार बनाने तथा उसे मज़बूत करने के लिए संघर्ष करता रहा है जो आधार जनता के बीच भरोसा क़ायम कर सके तथा जो समाज की शक्तियों के आपसी संबंध को बदल सके। फिर भी, वामपंथ के लगभग सभी धड़े इस बात से सहमत हैं कि एक वैचारिक लड़ाई की शुरुआत करने और अधिक स्थायी तरीक़े से हाशिये के लोगों के साथ जुड़ने के साथ-साथ आधार बनाने की समझ हासिल करना एक आवश्यक रणनीति है। इसे लोगों के बीच ताक़त के पुनर्निर्माण, बोलसोनारिज़्म को हराने और सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के क्रम में संरचनात्मक सुधार करने, जोकि समय की माँग है, की दिशा में केंद्रीय तत्व के रूप में देखा जाता है।
वैलेरियो आर्करी (PSOL) के अनुसार, वामपंथी सामाजिक आधार के सबसे सक्रिय क्षेत्र मज़बूत होते जा रहे हैं। ‘जनता की चेतना में परिवर्तन उनके लड़ने की इच्छा, उनकी भावना, नैतिक शक्ति और आत्मविश्वास के लिए महत्वपूर्ण है। इससे पहले कि वर्ग की स्थिति बदल जाए, चेतना को बदलने की ज़रूरत है। जब कोई चीज़ नामुमकिन लग रही होती है और अचानक से मिल जाती है, तो उम्मीदें बढ़ जाती हैं।‘
‘एलिडा ऐलेना (UNE) रेखांकित करती हैं कि ‘इस पल के लिए तैयार रहने के लिए, हम सक्रिय रक्षा की एक कार्यनीति का निर्माण कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य आक्रामक स्थिति की ओर बढ़ने के लिए परिस्थितियों का निर्माण करते हुए असफलताओं का समना करने के लिए तैयार रहना है। आज हमारा काम बोलसनारिज़्म को अलग-थलग करना, मिटाना और हराना है। श्रमिक वर्ग के साथ हमारे संबंध को व्यापक बनाना ज़रूरी है। ऐसा करने के लिए, हम एकजुटता की राजनीति पर भरोसा करते हैं ताकि हमारे प्रतिरोध को बढ़ाया जा सके।‘
क्योंकि जीवन हमेशा फूलों का सेज नहीं होता है। अलिदा ऐलेना (यूएनई) ने उन सच्चाइयों की ओर इशारा किया जिसकी वजह से हाशिये के इलाक़ों में आधार बनाना ज़्यादा मुश्किल हो जाता है। श्रमिक वर्ग के इलाक़ों में इस क्षमता में इज़ाफ़ा हो सके उस दिशा में बढ़ने से पहले इस बात को स्वीकार करना होगा। इन वास्तविकताओं के बीच संगठित अपराध होते हैं, जो आधार निर्माण कार्य को करने के लिए कार्यप्रणाली के निर्माण को मुश्किल बना देता है; नव-पेंटाकोस्टल चर्चों की व्यापकता है, जो अधिक रूढ़िवादी परिप्रेक्ष्य के आधार पर संचालित होते हैं और लोगों की भौतिक जीवन स्थितियों में मदद करने में सक्षम होते हैं; और हाशिये पर रहने वाले लोगों की बेहद ख़राब जीवन स्थिति है, जिनकी वजह से श्रमिक वर्ग को अपनी ज़िंदगी गुज़ारने के लिए रोज़ाना संघर्ष करना पड़ता है। इन चुनौतियों के अलावा श्रमिकों की स्वायत्तता में कमी, काम की बढ़ती अनिश्चित प्रकृति, श्रमिक वर्ग के औज़ारों जैसे कि संगठन का विघटन, अधिकारों का उन्मूलन और सामाजिक, नस्लीय और लिंग-आधारित अलगाव में वृद्धि भी शामिल है।
जैसे ही श्रमिक वर्ग की जीवन स्थितियाँ ख़राब हुईं वामपंथ के एक धड़े ने कोरोना महामारी के साथ-साथ भूख महामारी से लड़ने के लिए सामुदायिक रसोई चलाने, और भोजन, व्यक्तिगत स्वच्छता किट, मास्क बाँटने तथा और रक्त दान करने जैसे कई एकजुटता कार्यक्रम में कार्यकर्ता शामिल हुए। इनमें से एक कार्रवाई को पेरिफ़ेरिया वीवा (‘हाशिये का जीवन’) के नाम से जाना जाता है, एक ऐसा मंच जो वर्ग एकजुटता बनाने के लिए कई श्रमिक वर्ग के आंदोलनों को एक साथ लाता है। पेरिफ़ेरिया वीवा द्वारा काम में एकजुटता की अभिव्यक्ति के साथ-साथ आधार बनाने का काम भी किया जाता है, जिसमें एजेंतेस पॉप्युलारेस (‘कम्युनिटी एजेंट्स’) के माध्यम से घरों के बीच सीधा संबंध बनाना शामिल है। एजेंतेस पॉप्युलारेस प्रोजेक्ट की कार्यप्रणाली समुदाय के लोगों को एकजुटता कार्यों में संलग्न करने के लिए प्रशिक्षित करने पर आधारित है; ‘एजेंट्स’ के हिस्से में इस उद्देश्य के साथ कुछ घर दे दिए जाते हैं कि वे जहाँ रहते हैं वहाँ सक्रिय रहेंगे तथा कुछ परिवारों के देखभाल की ज़िम्मेदारी लेंगे। इन ‘एजेंट्स’ का काम स्वास्थ्य देखभाल और भोजन प्रदान करने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना भी होता है कि समुदाय के अधिकारों का सम्मान किया जाता है; यह काम सहयोग और पारस्परिक सहायता को बढ़ावा देता है। एलिडा एलेना (यूएनई) बताती हैं कि ‘हम रोज़मर्रा के जीवन में हाशिये के समाज में आधार बनाने के लिए एकजुटता की राजनीति को प्राथमिक रणनीतियों में से मानते हैं। हम जिस समय में रह रहे हैं उस में इसे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रतिक्रिया तथा सक्रिय रक्षा के रणनीतिक दृष्टिकोण की तरह देखते हैं; यह नवउदारवाद के आक्रमण को भी ठोस जवाब देता है।’
राजनीति में लूला की वापसी
मार्च और अप्रैल के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति लूला द्वारा दायर किए गए दो प्रतिवादी दावों को मंज़ूरी दे दी, जोकि उनके उन राजनीतिक अधाकारों की बहाली को लेकर थे जो 2018 में उनसे ले लिए गए थे। उनमें से एक प्रतिवाद में यह स्वीकार किया गया कि लूला पर जिस मामले में केस चलाया गया वह केस पूर्व फ़ेडरल जज सर्जियो मोरो के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता था, इस प्रकार पूर्व राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ सुनाई गई सज़ा को पलट दिया गया। अन्य दावे के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि मोरो ने एक मामले में लूला के ख़िलाफ़ पक्षपातपूर्ण फ़ैसला सुनाया था, जिसकी वजह से लूला को 580 दिन जेल में गुज़ारने पड़े।
हालाँकि यह संभव है कि इन मामलों में नया घटनाक्रम आ सकता है (हालाँकि इसकी संभावना नहीं है), यह निर्णय अभी प्रभावी है। चुनावी राजनीति में लूला के प्रवेश ने ब्राज़ील में राजनीतिक परिदृश्य को बदला है और कई सवाल उठे हैं: विशेष रूप से, सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा निर्णय देने की प्रेरणा कहाँ से मिली? अब तक, सुप्रीम कोर्ट ऑपरेशन कार वॉश मामले में निष्पक्ष नहीं रहा था और इसकी समस्याग्रस्त प्रथाओं ने ब्राज़ील की अदालतों और क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों को प्रभावित किया था।
चाहे इन फ़ैसलों के पीछे कोई भी कारण रहे हों, यह स्पष्ट है कि उदारवादी दक्षिणपंथ का एक धड़ा मौजूदा संकट के दौर में फिर से सत्ता में क़ाबिज़ होने के रास्ते तलाश रहा है। हालाँकि हालिया फ़ैसले श्रमिक वर्ग की लामबंदी का नतीजा नहीं है, लेकिन लूला के राजनीतिक अधिकारों को बहाल करने में ब्राज़ील के वामपंथ के प्रयासों को ज़रूर स्वीकार करना चाहिए। ग्लीसी हॉफ़मैन (पीटी) बताती हैं कि लूला के राजनीतिक अधिकारों की बहाली से प्रगतिशील तबक़ों के भीतर की इच्छाशक्ति फिर से बढ़ी है कि धुर दक्षिणपंथ तथा उदार दक्षिणपंथ का सामना करने के लिए एकजुट होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘[लूला] वह राजनीतिक नेता हैं जो इस [एकता] को बनाने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। अब उन पर [चुनाव लड़ने से] क़ानूनी रूप से रोक नहीं है, जिससे उनके लोगों को जुटाने तथा संगठित करने की क्षमता बढ़ जाती है।‘
केली माफ़र्ट (MST) का मानना है कि राजनीतिक में लूला के वापस आने के बाद ‘इसके परिणाम तत्काल समाने आएँगे, चाहे वह बोलसोनारो के व्यवहार को प्रभावित करना हो, उसे शर्मिंदा करना हो या अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ राजनीतिक समन्वय का नेतृत्व करना हो जिससे ब्राज़ील को वर्तमान सार्वजनिक तबाही से बाहर लाने में मदद मिल सके। लूला के जेल से बाहर निकलने की घटना ने ब्राज़ील के वामपंथ को ज़बरदस्त ढंग से प्रभावित किया है। वर्तमान स्थिति की तात्कालिक माँग है कि वो ब्राज़ील की समस्याओं को हल करने में एक नेता के रूप समान आएँ, लेकिन इससे अधिक आधार निर्माण का काम करने, एकजुटता के कार्यों का विस्तार करने, और फ़ासीवादी बोल्सोनारिज़्म, जो श्रमिक वर्ग में अपना पैठ बन रहा है, का सामना करने के लिए कार्यकर्ताओं का आहवान करमें इससे मदद मिलेगी’।
वेलेरियो आर्करी (PSOL) का मानना है कि भले ही हम अभी भी एक प्रतिक्रियावादी स्थिति में रह रहे हैं, जिसने हमें रक्षात्मक स्थिति में ला दिया, 2022 में राष्ट्रपति पद के लिए लूला के चुनाव लड़ने की संभावना ने ब्राज़ील में राजनीतिक शक्तियों के आपसी संबंध को बदल दिया है। यह पिछले पाँच वर्षों की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक राजनीतिक जीत का प्रतिनिधित्व करता है। वह स्पष्ट करते हैं कि ‘वामपंथ के बीच से चुनान लड़ने के लिए लूला सबसे मज़बूत विकल्प है – यह स्पष्ट है। स्वास्थ्य संकट और आर्थिक मंदी के समय में प्रतिरोध के स्तर को और अधिक बढ़ाने की संभावना है।‘ आर्करी ने आगे बताया कि ‘लूला के बाहर आने के बाद से सब कुछ बदल गया है। हम “बोलसोनारो गद्दी छोड़ो” नारे के तहत सभी लोगों के लिए टीका तथा आपातकालीन सहायता की आवश्यकता को लेकर हम चुप नहीं रह सकते या इसका जवाब देने के लिए 2022 तक इंतज़ार नहीं कर सकते। हम 2022 के चुनाव से डेढ़ साल दूर हैं। वामपंथी सरकार के लिए संघर्ष रणनीति के मूल में होना चाहिए। हमें एक ऐसा वामपंथ चाहिए जिसमें सत्ता के लिए ललक हो। लेकिन अभी डेढ़ साल पहले यह तय करने की चुनौती नहीं है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कौन उम्मीदवार होंगे।‘ जिनका साक्षात्कार किया गया उनके बीच 2022 के चुनावी दौड़ के बारे में इस बात को लेकर आम सहमति थी।एलिडा एलेना (UNE) स्वीकार करती हैं कि वामपंथ श्रमिक और मध्यम वर्ग के लोगों को साथ संवाद स्थापित करने, समाज को प्रभावित करने और सभी के लिए वैक्सीन और आपातकालीन सहायता जैसे माँगों को लेकर ‘बोलसोनारो गद्दी छोड़ो’ जैसे नारे के साथ जन संघर्ष खड़ा करने में विफल रहा है। लूला की वापसी से इस माहौल में बदलाव आ सकता है, हालाँकि यह वर्ग संघर्ष को कितना प्रभावित करेगा यह देखना होगा। ‘ज़ाहिर है, महामारी के कारण हमारी सीमाएँ हैं; हम ऐसी गतिविधियों पर भरोसा कर रहे हैं जिनमें से अधिक प्रतीकात्मक ढंग के ही हैं। लूला के आने के बाद, हमारी राजनीतिक माँगों के जनता तक पहुँचने की संभावना बढ़ जाती है’। 2022 का चुनाव ब्राज़ील के पूरे वामपंथ के लिए एक महत्वपूर्ण लड़ाई है; हमें पहले से ही लोगों के बीच शक्ति का निर्माण करना होगा ताकि बोलसोनारिज़्म को हराया जा सके। और हम ऐसा तभी कर पाएँगे जब हमारी कार्रवाई और हमारे कार्यक्रम के बीच एकता स्थापित हो पाए जो इस संकट से निकलने का वामपंथी रास्ता पेश करने में सक्षम हो’।
अंतिम विचार
ब्राज़ील में वामपंथ के सामने उपस्थित चुनौतियों को बारे में इस अध्ययन में प्रस्तुत विश्लेषणों के माध्यम से जो पहला निष्कर्ष हम निकाल सकते हैं वह यह है कि इस बात की बहुत कम संभावना है को बोलसोनारो प्रशासन को केवल संसदीय चुनाव में हराकर सत्ता से बेदखल किया जा सकता है। बुर्जुआ वर्ग के पास एक संभावना यह भी हो सकती है, जिसकी संभावान कम है, कि आर्थिक संकट गहराने के बाद बोलसोनारो –जिसे उन्होंने सत्ता में आने में मदद की थी- को सत्ता से हटा दिया जाए। हालाँकि, अधिक संभावना इस बात की है कि बुर्जुआ वर्ग तुरंत बोलसोनारो को सत्ता से बेदख़ल नहीं करेगा; हालाँकि, वे राजनीतिक प्रक्रिया को इस तरह नियंत्रित करने की कोशिश करेंगे कि जब वे उसे हटाएँ, तो सरकार पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए उनके पास कोई और वैकल्पिक व्यवस्था हो।
प्रगतिशील तबक़ों को इस बात का पूरा भरोसा है कि एक बार व्यापक पैमाने पर वैक्सीन लगाने के बाद स्वास्थ्य स्थितियों में सुधार होता है, तो हम देश भर में बड़े पैमाने श्रमिक वर्ग को आंदोलन देखेंगे क्योंकि संघीय सरकार द्वारा उठाए गए उपायों को लेकर जनता के बीच असंतोष काफ़ी बढ़ गया है। हालाँकि बोलसोनारो समाज के कुछ हिस्सों के लिए एक प्रासंगिक व्यक्ति बने रह सकते हैं, वे अनुमान लगा रहे हैं उनके लोकप्रिय समर्थन में गिरावट आनी शुरू हो जाएगी।
हालाँकि, एकता बनाने के लिए सबसे अच्छी कार्यनीति क्या हो सकती है इसके बारे में अलग-अलग राय है। कुछ लोग बोलसोनारिज़्म का सामना करने के लिए संयुक्त मोर्चा बनाने की वकालत करते हैं, जिसमें समाज के वे सभी लोग शामिल होंगे जो ब्राज़ील के सुकड़ते लोकतंत्र के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं। अन्य दो मोर्चों के संयोजन की संभावना में विश्वास करते हैं: एक संयुक्त मोर्चा और साथ ही एक वामपंथी मोर्चा जो एक अधिक संरचनात्मक और आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखने में सक्षम है। एक तीसरी राजनीतिक धारा भी है जो केवल वामपंथी मोर्चे के निर्माण में विश्वास करता है। कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनको लगता है कि बुर्जुआ वर्ग के लिए यह व्यावहारिक नहीं होगा कि वह इस संयुक्त मोर्चे में शामिल हो पाएँ, क्योंकि उदारवादी दक्षिणपंथ इस पहल में शामिल होने के लिए तैयार नहीं होगा। कुछ अन्य लोग इसके पीछे यह तर्क देते हैं कि दो मोर्चे से एक छद्म द्वंद्व पैदा होता है; लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और अधिकारों तथा राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए होने वाले संघर्ष के बीच अलगाव नहीं होना चाहिए।
कौन-सी कार्यनीति अपनाई जाए इसको लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों के बावजूद एक आम समझ यह है कि केवल एक मज़बूत सामाजिक, राजनीतिक और लोकप्रिय टकराव ही राष्ट्रीय कांग्रेस पर दबाव बना सकता है कि वह बोलसोनारो पर महाभियोग चलाए। भले ही बोलसोनारो के ख़िलाफ़ महाभियोग न चलाया जाए, फिर भी यह 2022 के चुनावों के लिए एक अलग राजनीतिक संदर्भ तैयार करेगा और राजनीतिक संघर्ष में आगे बढ़ने की नयी संभावनाएँ खोलेगा।
जैसा कि एलिडा एलेना (UNE) रेखांकित करती हैं कि किसी भी स्थिति में, निश्चित रूप से इस संकट से अल्प अवधि में नहीं उबरा जा सकता है बल्कि इससे बाहर निकलने के लिए लम्बी अवधि के प्रतिरोध की आवश्यकता होगी। ‘नवउदारवादी सुधारों ने ब्राज़ील के समाज को गहराई से प्रभावित किया है, और इस संदर्भ में हमें अपने सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में ख़ुद से विचार करना चाहिए’। इसी वजह से हमने अगले खंड में ब्राज़ील के वामपंथ के सामने अल्प तथा मध्यम अवधि में उपस्थित उन प्राथमिक चुनौतियों को व्यवस्थित रूप में रख दिया है जिसके बारे में पूरे डोजियर में चर्चा की गई है।
अल्पावधि की चुनौतियाँ
– बोलसोनारो पर महाभियोग चलाना;
– हमारे कार्यों में एकता स्थापित करना;
– संघर्ष के माध्यम से संगठित और सुरक्षित किए गए क्षेत्रों की रक्षा करेना: स्वदेशी समुदाय, कृषि सुधार के लिए अलग रखे गए क्षेत्र, क्विलोम्बोला [xi] समुदाय, और शहरी क्षेत्रों में प्रतिरोध के स्थान;
– तुरंत सभी के लिए टीके की माँग; और;
– 600 डॉलर मासिक भुगतान के साथ आपातकालीन सहायता की वापसी की माँग।
मध्यम अवधि की चुनौतियाँ
– लोगों की तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए आधार निर्माण कार्य को गहरा और विस्तारित करना जो एकजुटता की राजनीति द्वारा निर्देशित हो;
– इन ज़रूरतों को हमारे संघर्षों की माँगों में बदलना;
– लोगों की शक्ति को वैध बनाने के लिए प्रक्रियाओं का निर्माण;
– राजनीतिक शिक्षा देना;
– बड़े पैमाने पर संघर्ष को फिर से शुरू करना (भले ही सड़कों पर क़ब्ज़ा करना अभी के लिए संभव नहीं है, तत्कालिक ज़रूरतों को व्यापक राजनीतिक संघर्षों के साथ जोड़कर फिर से संघर्ष की परिस्थितियाँ बनाई जानी चाहिए); और
– ब्राज़ील के वामपंथ के भीतर वास्तव में परिवर्तनकारी कार्यक्रम को बढ़ावा देना
जिंद्रा उहारा (CUT) के अनुसार, एक लोकतांत्रिक, लोकप्रिय समाधान के सफल होने के लिए लिए वामपंथ के विभिन्न धड़ों में सामंजस्य और एकता के लिए ठोस नींव तैयार करना आवश्यक है। ‘2021 में, हमें संघर्ष को फिर से आगे बढ़ाने तथा पार्टियों, यूनियनों, श्रमिक वर्ग के आंदोलनों, फ़्रेंते ब्राज़ील पॉपुलार तथा फ़्रेंते पोवो सेम मेदो फ्रेंते के माध्यम से लोगों को जुटाने के तरीक़े तलाशने होंगे। इस प्रक्रिया में, हमें 2022 और उसके बाद के वर्षों का सामना करने के लिए अपनी रणनीतियों, कार्यनीतियों और कार्यक्रम को लेकर प्रतिबद्ध रहना होगा’।
जूलियानो मेडेइरोस (PSOL) का मानना है कि ‘हम भारी अनुपात के ऐतिहासिक बदलाव का सामना कर रहे हैं। कुलीन लोगों के ख़िलाफ़ एक चौतरफ़ा लड़ाई छेड़ने के लिए, व्यापक परिवर्तन [लाने के लिए], वामपंथ की मौजूदगी एक बार फिर उन इलाक़ों में सुनिश्चित करने के लिए [जहाँ लोग रहते हैं], [और] लोकतांत्रिक शक्ति को पूरी तरह लोकतांत्रिक बनाने के लिए हमारे पास यह सही अवसर है कि एक नयी रणनीति को शामिल किया जाए। या तो हमें हमारे समय के बदलावों के साथ बदलना होगा या हमें नक़्शे से मिटा दिया जाएगा।‘
भले ही हम एक ऐसे क्षण में रह रहे हैं जिसमें हमें रक्षात्मक बने रहना है, इतिहास की खिड़की हमारे वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में एक नये पल को प्रज्वलित करते हुए, हर तरफ़ व्यापक रूप से खुली हुई लगती है। इसलिए, यह बुनियादी बात है कि वामपंथ बोलसोनारो को पराजित करे और अपनी कार्यनीति और अपने कार्यक्रम में एकता बनाए ताकि ब्राज़ील के लोगों को जवाब और उम्मीद मिल सके। जन संघर्ष को फिर से संगठित करने के लिए, चुनाव लड़ने तथा श्रमिक वर्ग के इलाक़ों में आधिपत्य को स्थापित करने के लिए यह ज़रूरी है कि श्रमिक वर्ग के साथ फिर से संबंध स्थापित किया जाए। पहले से कहीं ज़्यादा आज इस बात की ज़रूरत है कि पिछले संघर्षों से सबक़ सीखा जाए तथा उसका पुन:अविष्कार किया जाए ताकि सत्ता को सही तरीक़े से जनता के हाथों में दिया जाए – यही एकमात्र ऐसी शक्ति है जो वर्ग शत्रुओं को हराने में सक्षम है।.
Bibliography
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Tricontinental: Institute for Social Research. Lula and The Battle for Democracy. Dossier 5, June 2018. https://thetricontinental.org/lula-and-the-battle-for-democracy/.
Notes
[i] Official numbers from the Ministry of Health as of the writing of this document in April 2021, available at https://covid.saude.gov.br/.
[ii] Translator’s note: In this dossier, the word popular is translated as ‘popular’ when the meaning implies ‘popular’ or ‘of the people’. Because a literal translation does not always carry the same fluidity, we chose to use the term ‘working-class’ in cases such as ‘working-class homes’ and when referring to classes populares (‘working classes’ or ‘working class sectors’), as this is the closest commonly used substitute in this context.
[iii] Ministry of Social Development, ‘Plano Brasil Sem Miséria’.
[iv] Antunes, ‘Minha casa perto do fim?
[v] Tricontinental: Institute for Social Research, Lula and The Battle for Democracy.
[vi] Tricontinental: Institute for Social Research, Lula and The Battle for Democracy.
[vii] Antunes, ‘Dois anos de desgoverno’.
[viii] Castro, Regina. ‘Observatório Covid-19 aponta maior colapso sanitário e hospitalar da história do Brasil’.
[ix] BBC News Brasil ‘Na íntegra: o que diz a dura carta de banqueiros e economistas com críticas a Bolsonaro e propostas para pandemia’.
[x] Folha de S.Paulo, ‘Intacta, base de Bolsonaro pensa como o presidente na pandemia, mostra Datafolha’.
[xi] Quilombos are rural communities originally established by Black people who were enslaved in colonial Brazil as a place of resistance and refuge. To this day, many Quilombola communities struggle to be officially acknowledged and fight for the right to their land.